Link Copied
कहानी- मुक्ति 1 (Story Series- Mukti 1)
चाहती तो यह थी कि वक़्त के साथ सांसारिक मोह-माया से धीरे-धीरे स्वयं को दूर कर लूं, किंतु मोह है कि बढ़ता ही जा रहा है. और यही मेरी वर्तमान स्थिति का सच है. फिर जानते हुए भी उस कटु सत्य को कैसे स्वीकार कर लूं, जो संसार की नश्वरता का बोध कराता हो. वह भी तब जब मैं शारीरिक रुप से अभी तक पूर्णतया स्वस्थ थी.
पापा उन दिनों ख़ामोशी से मृत्युशैया पर लेटे एकटक छत को निहारते रहते थे. अपने सभी भाई-बहनों में मैं पापा के सबसे ज़्यादा क़रीब रही हूं. मेरा संवेदनशील मन हर पल पापा को खो देने के भय से व्याकुल रहता था. उनके क़रीब लेटकर उनके स्पर्श को, उनकी ख़ुशबू को अधिक-से-अधिक अपने भीतर समाहित कर लेना चाहती थी मैं.
अब इसी स्पर्श के एहसास में, इसी ख़ुशबू में और मेरी स्मृतियों में ही तो वह मेरे भीतर सदा के लिए जीवित रहनेवाले थे. इसीलिए अधिक-से-अधिक उनके क़रीब रहने का प्रयास रहता था मेरा. मन में सोचा करती थी मैं, क्या महसूस कर रहे होंगे पापा इस समय, अपनों का साथ छूट जाने का ग़म या फिर मुट्ठी में बंद रेत की तरह हाथ से फिसलती ज़िंदगी को पकड़ लेने की छटपटाहट या जल्द-से-जल्द इस भवसागर को पार करने की चाहत.
जाते हुए व्यक्ति के मनोभावों को कहां कोई समझ पाया है आज तक. कुछ सच ऐसे होते हैं, जिनका अनुभव तभी होता है, जब इंसान स्वयं उस स्थिति से गुज़र रहा होता है.
कल पापा इस स्थिति में थे और आज मैं यकायक ही उनकी स्थिति में पहुंच गई हूं, किंतु उनके और मेरे होने में भी बहुत बड़ा अंतर है. उम्र का एक बहुत बड़ा अंतराल. पापा उस समय 95 वर्ष के थे. मम्मी पहले ही चली गई थीं. अकेलेपन और बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक दुर्बलता ने उन्हें हर चीज़ की निरर्थकता का बोध करा दिया था. यह उनकी उम्र का सच था, किंतु मैं... मैं तो अभी मात्र 60 साल की हूं, इसलिए मेरी उम्र के सच भी दूसरे हैं. मुझे देखकर मेरी उम्र का अंदाज़ा लगाना भी कठिन है. चार वर्ष पूर्व जब से नानी और दादी बनी हूं ज़िंदगी के सोए हुए तार एक बार पुनः झंकृत हो उठे हैं.
अपनी नातिन और पोते की मासूम मुस्कुराहटों और शरारतों में अपना बचपन फिर से जी रही हूं मैं. पोते सनी का भलीभांति लालन-पालन करना, उसे अच्छे संस्कार देना, अभी तो न जाने कितने दायित्व हैं मेरे. चाहती तो यह थी कि वक़्त के साथ सांसारिक मोह-माया से धीरे-धीरे स्वयं को दूर कर लूं, किंतु मोह है कि बढ़ता ही जा रहा है. और यही मेरी वर्तमान स्थिति का सच है. फिर जानते हुए भी उस कटु सत्य को कैसे स्वीकार कर लूं, जो संसार की नश्वरता का बोध कराता हो. वह भी तब जब मैं शारीरिक रुप से अभी तक पूर्णतया स्वस्थ थी. कुछ भी तो नहीं हुआ था मुझे.
यह भी पढ़ें: रिश्तों में तय करें बेटों की भी ज़िम्मेदारियां (How To Make Your Son More Responsible)
अनुराग ने सबके साथ पैकेज टूर पर यूरोप घूमने का प्रोग्राम बनाया था. दो महीने बाद की टिकटें थीं. घर में उत्सव सा माहौल था. किंतु इंसान के जीवन में तक़दीर नाम की भी एक चीज़ होती है, जो जब चाहे उसे चकमा दे जाती है और इंसान हाथ मलता रह जाता है.
पिछले दस दिनों से मुझे तेज़ बुखार था. प्रारम्भ में डाॅक्टर ने वायरल समझा, किंतु जब बुखार उतरा ही नहीं, तो सभी टेस्ट करवाए गए और फिर जो रिपोर्ट सामने आई उसे देख घर में सभी की रुह कांप गई.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
रेनू मंडल
अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES