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कहानी- बदलाव की आहट 2 (Story Series- Badlav Ki Aahat 2)
जिस घाव को मैंने पुराना जान भर जाने दिया था, मस्तिष्क से निकाल दिया था, वही आज मेरे सम्मुख उघड़ा पड़ा था. दोषी न होने पर भी सज़ा मुझे मिलनी थी, हमारे सामाजिक नियमों के तहत. हमारे समाज में स्त्री उन अपराधों की सज़ा भी तो पाती है, जो उसने किए नहीं होते, करने की सोची भी नहीं होतीं.
'बात तो सही कह रही है' कपिल ने धीमे से कहा, "अब इस बारे में सोचना पड़ेगा..."
वर्ष भर बीत गया. वैदेही चार वर्ष की होने को आई परन्तु उसके संगी के आने की कोई आहट नहीं हुई, तो मैं डाक्टर से अपना चेकअप कराने गई.
"ऐसा भी हो जाता है कई बार कि एक बच्चा ठीक ठाक हो जाने के पश्चात दूसरे के समय कठिनाई आ जाती है." डाॅक्टर ने कहा. परन्तु भलीभांति जांच कर लेने के बाद निर्णय सुनाया कि मुझ में कुछ गड़बड़ नहीं है और कपिल की जांच करवाने की सलाह दी.
अगले दिन कपिल भी डाॅक्टर से मिल आए. एक टेस्ट की रिपोर्ट दो दिन पश्चात मिलनी थी. कपिल रिपोर्ट लेकर आए, तो बहुत उदास थे. बहुत पूछने पर भी कुछ न बोले, गुमसुम ही बने रहे. मुझे लगा कुछ छुपा रहे हैं. पहले तो कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया. अगले दिन मैने डाॅक्टर से टेलिफोन पर बात की. उनका उत्तर मुझे चौंका गया. डाॅक्टर ने स्पष्ट कहा कि कपिल के लिए पिता बनना संभव ही नहीं.
डाॅक्टर साब ने तो बात पूरी कर टेलिफोन रख दिया, पर मुझे ज़ोर का झटका दे गए.
तो फिर वैदेही?
जिस घाव को मैंने पुराना जान भर जाने दिया था, मस्तिष्क से निकाल दिया था, वही आज मेरे सम्मुख उघड़ा पड़ा था. दोषी न होने पर भी सज़ा मुझे मिलनी थी, हमारे सामाजिक नियमों के तहत. हमारे समाज में स्त्री उन अपराधों की सज़ा भी तो पाती है, जो उसने किए नहीं होते, करने की सोची भी नहीं होतीं.
और वह अति साधारण-सा लगनेवाला दिन मेरे सामने एक बहुत बडी चुनौती बन कर खड़ा हो गया.
कॉलेज में मेरे संग ही पढ़ता था सुधीर. वह मुझे ज़रा भी न भाता था, पर मुझसे बात करने का कोई अवसर न छोड़ता वह. मैंने उसे अनेक बार कठोर उत्तर दिए, पर वह तो यह बात मान ही नहीं सकता था कि कोई लड़की उसे ठुकरा भी सकती है? कॉलेज का हीरो था वह. कम से कम वह स्वयं को तो ऐसा ही समझता था. उसके पिता अपने शहर की नामी हस्तियों में एक थे और उसे वांछित वस्तु प्राप्त करने की आदत ही थी. यह भी सुना था कि उसने अपने मित्रों से शर्त लगा रखी थी कि वह मुझे पाकर रहेगा. महंगे कार्ड ख़रीद लाकर प्रेम निवेदन करता वह मुझसे, पर मैं वह कार्ड उसके सामने ही फाड़ कर फेंक देती.
मुझे चूंकि उसमें कोई रुचि नहीं थी इस कारण जब माता-पिता ने मेरे लिए रिश्ता देखना शुरु किया, तो मैंने कोई आपत्ति नहीं की और जब पूरी जांच-पड़ताल करके पापा ने कपिल के साथ मेरा रिश्ता तय कर दिया, तो मैं पूरी तरह संतुष्ट थी.
पर इस बात ने सुधीर के अहम् को बहुत बडी ठेस पहुंचाई थी.
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विवाह के एक सप्ताह पूर्व हमारे बीए के परिणाम घोषित हुए. कम्प्यूटर युग तो तब था नहीं, परन्तु समाचारपत्र में सुबह सवेरे ही परिणाम देख लिया था. अच्छे अंक प्राप्त किए थे मैंने और मेरे साथ की लड़कियों ने भी, सो तय किया कि सब कॉलेज में मिलते हैं. घर में अकेले बैठकर ख़ुशी मनाने का मज़ा ही क्या? तीन वर्षों का लम्बा साथ था और अब तो सब तितर-बितर हो जानेवाले थे. मेरी तो पढ़ाई का ही अंत हो गया था, जिन्हें आगे पढ़ना था वह भी तो अलग-अलग विषयों में बंट जानेवाले थे. बहुत देर नोटिस बोर्ड के सामने भीड़ लगाए रहे, फिर कैंटीन में जा बैठे. लड़कों का ग्रुप अलग खड़ा हो-हल्ला मचा रहा था. किसी को भी तो घर लौटने की उतावली नहीं थी उस दिन...
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
उषा वधवा
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