जाने क्यों एक बार फिर शर्मा दंपत्ति याद आ गए. साथ ही रौनक से अपनी ही कही बात भी कि हर रिश्ते की तरह पति-पत्नी के रिश्ते में भी स्पेस होनी ज़रूरी है. ऐसा कहते वक़्त शायद मैं ये भूल गई थी कि पति-पत्नी के बीच इतनी स्पेस भी नहीं होना चाहिए कि उनके बीच किसी तीसरे के आने के लिए जगह बच जाए.
शादी के बाद पांच सालों में ऐसा पहली बार हुआ था जब मैं और रौनक एक-दूसरे से इतने लंबे समय के लिए अलग हुए हों. पूरे दो महीने के बाद आज मैं अमेरिका से घर लौटी थी. उस पर मेरे प्रोजेक्ट का शेड्यूल इतना टाइट था कि एक दिन भी रौनक से जी भरकर बात नहीं हो पाई. ऑफिस जाना ज़रूरी था, इसलिए रौनक मुझे लेने एयरपोर्ट भी नहीं आ सके. व्यस्त तो हम दोनों यहां पर भी कुछ कम नहीं रहते, इसलिए बहुत व़क़्त साथ नहीं बिता पाते, लेकिन दूर रहकर पहली बार अपने घर और रौनक की कमी का एहसास हुआ. आज रौनक की कही हर वो बात याद आ रही है, जो पहले मुझे बंधन लगा करती थी, लेकिन आज ज़रूरत लग रही है. रौनक मुझसे अक्सर कहा करते थे, “रश्मि, मैं मानता हूं कि तुमने अपना करियर बनाने के लिए बहुत मेहनत की है इसलिए तुम्हें अपने करियर पर पूरा ध्यान देना चाहिए, लेकिन रिश्तों को ताक पर रखकर मिली कामयाबी कभी सुकून नहीं देती. आज मैं तुम्हारी प्रॉब्लम समझ रहा हूं, इसलिए हर बात में समझौता कर लेता हूं, लेकिन कल जब हमारे बच्चे होंगे, तो उन्हें तुम्हारा टाइम चाहिए ही होगा. तब तुम कैसे मैनेज करोगी? फिर मैं भी एक सीमा तक ही तुम्हें सपोर्ट कर सकता हूं. तुम्हारा यूं हर रात देर से घर आना, सुबह जल्दी चले जाना मुझे भी खलता है. मैं भी चाहता हूं कि औरों की तरह हमारा घर भी घर बना रहे, धर्मशाला नहीं कि रात गुज़ारी और चल दिए. पिछले तीन सालों से बच्चा प्लान करने की बात कह-कहकर मैं थक चुका हूं, लेकिन तुम्हारे पास न मेरे लिए टाइम है और न ही अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचने का. मैं भी ऑफ़िस जाता हूं, लेकिन इस बात का हमेशा ख़्याल रखता हूं कि मेरी प्रो़फेशनल लाइफ का असर मेरी पर्सनल लाइफ पर न पड़े, लेकिन जब ये कोशिश तुम्हारी तरफ़ से नहीं होती, तो बिल्कुल अकेला पड़ जाता हूं मैं.” कई बार मुझे छेड़ते हुए रौनक यहां तक कह देते कि अगर मैंने उन्हें इसी तरह नज़रअंदाज किया, तो एक दिन मैं उन्हें खो दूंगी. रौनक की शिकायत को पज़ेसिवनेस का नाम देकर अक्सर मैं हवा में उड़ा देती. रौनक की शिकायतों का मेरे पास एक ही जवाब होता, जिसे मैं बार-बार दोहराती रहती थी, “रौनक, हर रिश्ते की तरह पति-पत्नी के रिश्ते में भी स्पेस होनी ज़रूरी है, वरना रिश्ता बोझ बन जाता है. हम दोनों ही वर्किंग हैं इसलिए हमें एक-दूसरे की प्रॉब्लम्स के साथ एडजस्ट करना ही पड़ेगा.” रौनक मेरे साथ ख़ूब सारा व़क़्त बिताना चाहते थे, लेकिन मेरी नौकरी इस बात की इज़ाज़त नहीं देती थी.
अब जब पूरे दो महीने रौनक से दूर रहना पड़ा, तो मुझे समझ में आया कि एक-दूसरे के साथ व़क़्त गुज़ारने की अहमियत क्या होती है. आज मैं रौनक के सीने से लगकर अपने प्यार को जी भरकर महूसस कर लेना चाहती हूं, उनकी बांहों में समाकर अपनी दो महीने की पूरी थकान मिटा लेना चाहती हूं, क्योंकि लंबे सफ़र की थकान के बावजूद न तो मैं ठीक से आराम ही कर पा रही हूं और न ही मेरा किसी काम में मन लग रहा है. मैं बस शाम को रौनक और आरती के घर आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूं.
आरती मेरे बचपन की सहेली है और पिछले आठ महीनों से हमारे साथ ही रह रही है. उसके पापा की अचानक हार्ट अटैक से मौत हो जाने के कारण घर की पूरी ज़िम्मेदारी उस पर आ गई. कानपुर जैसे छोटे शहर में मनचाही नौकरी न मिलने के कारण उसने मुंबई आने का फ़ैसला किया और मैंने भी दुख की इस घड़ी में उसकी मदद करने के लिए उसे कुछ समय के लिए अपने घर में रहने की इज़ाज़त दे दी. हालांकि रौनक मेरे इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं थे. आरती का साथ रहना उन्हें हमारी प्राइवेसी में ख़लल लग रहा था, लेकिन मैं आरती के परिवार की माली हालत से अच्छी तरह वाक़िफ़ थी. मैं जानती थी अभी उसके लिए किराए के मकान में रहकर नौकरी तलाशना मुमकिन नहीं, वो भी मुंबई जैसे महंगे शहर में. ख़ैर अब आरती भी हमारी छोटी-सी दुनिया का हिस्सा बन चुकी थी. उसके संकोची स्वभाव के कारण मुझे उसकी हर चीज़ का ध्यान रखना पड़ता था. बेहिचक उठना-बैठना, कोई चीज़ मांगना तो दूर वह तो पेट भर खाने में भी संकोच करती थी. आरती की क़िस्मत अच्छी थी कि रौनक के ऑफ़िस में उसके लायक़ वैकेंसी थी और उसे वह नौकरी मिल गई. तब कहीं जाकर मैं राहत की सांस ले पाई थी. तसल्ली इस बात की भी थी कि आगे हमारे साथ न रहने पर भी रौनक उसका ख़्याल रख सकते थे. सुख-दुख में उसकी मदद कर सकते थे. रौनक और आरती के ऑफिस का टाइम भी समान था, इसलिए अब वे साथ आने-जाने लगे थे. फिर आरती भी अब रौनक के साथ घुलने-मिलने लगी थी. आरती की तरफ़ से अब मैं पूरी तरह बेफ़िक्र हो गई थी, इसलिए मेरा पूरा ध्यान अब अपने करियर पर था.
इसी दौरान ऑफिस के इस ज़रूरी प्रोजेक्ट के लिए मेरा अमेरिका जाना तय हुआ. हालांकि अब तक आरती और रौनक एक-दूसरे के साथ काफ़ी कंफ़र्टेबल महसूस करने लगे थे, फिर भी मेरी गैरहाज़िरी में आरती का हमारे घर में रहना रौनक को उचित नहीं लग रहा था, लेकिन इतनी जल्दी आरती को किराए का कमरा कैसे मिलता? अतः मौक़े की नज़ाक़त को देखते हुए मैंने रौनक को समझाते हुए कहा, “देखो रौनक, लोग क्या कहते हैं इससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? फिर आरती साथ रहेगी, तो मैं भी निश्चिंत होकर जा सकूंगी कि मेरे पीछे वो तुम्हारी देखभाल कर लेगी.” रौनक के पास भी हालात के साथ समझौता करने के सिवाय और कोई चारा नहीं था. ख़ैर, तमाम हिदायतों के साथ रौनक ने मुझे अमेरिका रवाना किया और मैंने भी आरती से रौनक के खान-पीने का पूरा ख़्याल रखने की गुज़ारिश की, लेकिन वहां पहुंचकर मैंने महसूस किया कि पति-पत्नी की कमी कोई और पूरा नहीं कर सकता, इसलिए उनका हमेशा साथ रहना ज़रूरी है.
कमरे में रहना मुश्किल लगने लगा, तो मैं बालकनी में बैठकर रौनक और आरती का इंतज़ार करने लगी. अभी उनके आने में एक घंटा बाक़ी था, इसलिए पुरानी फोटोग्राफ्स का एलबम लेकर बैठ गई. उनमें कुछ फोटोग्राफ्स हमारी शादी के शुरुआती दिनों की थी. उन फोटोग्राफ्स को देखकर लगा जैसे पांच सालों में ही हम दोनों कितने बूढ़े और मैच्योर नज़र आने लगे हैं. तभी सामनेवाले फ्लैट की बालकनी पर नज़र पड़ी. उम्र में हमसे काफ़ी बड़े शर्मा दंपत्ति ख़ुद से कहीं ज़्यादा यंग और फ्रेश नज़र आ रहे थे. चाय की चुस्कियों के साथ बतियाते शर्मा दंपत्ति के प्यार की गर्माहट उनके व्यवहार से साफ़ झलक रही थी. एक पल को उनकी केमेस्ट्री देखकर रस्क होने लगा कि ऐसी ताज़गी हमारे रिश्ते में क्यों नज़र नहीं आती.
तभी गेट पर रौनक की गाड़ी नज़र आई. गाड़ी में से आरती जिस तरह रौनक की तरफ़ देखते, मुस्कुराते हुए उतरी, तो एक पल को शर्मा दंपत्ति की केमेस्ट्री, उनके रिश्ते की ताज़गी मुझे उन दोनों के चेहरे, उनके व्यवहार में भी नज़र आने लगी.
पहली बार मुझे आरती को रौनक के साथ देखना अच्छा नहीं लगा. बेल बजते ही मैं दरवाज़े की तरफ़ यूं लपकी मानो खोया ख़ज़ाना मिल गया हो. रौनक के सामने आते ही उससे लिपट गई, लेकिन जिस गर्माहट की मैं आदी थी आज मुझे वो महसूस नहीं हुई. फिर ये सोचकर ख़ुद को मना लिया कि आरती के सामने शायद रौनक मुझे प्यार करने से हिचकिचा रहे हों. डिनर करते समय भी उन दोनों ने जैसे फॉर्मेलिटी के लिए वहां की कुछ बातें पूछीं और बातचीत का मुद्दा बदल दिया. बेडरूम में पहुंचकर भी रौनक के व्यवहार में वो गर्मजोशी नहीं नज़र आई. जिसकी मैंने उम्मीद की थी. पहले जहां एक रात की जुदाई पर भी रौनक रातभर मुझसे लिपटकर सोए रहते थे, वहीं खानापूर्ति के लिए पति-पत्नी के शारीरिक रिश्ते की ज़िम्मेदारियां निभाकर रौनक दूसरी करवट बदलकर सो गए. रौनक के व्यवहार में आए इस बदलाव को देखकर मेरे मन में अब शक़ का कीड़ा कुलबुलाने लगा.
'कहीं मेरी ग़ैरहाज़िरी में आरती और रौनक..? नहीं… नहीं… रौनक मेरे साथ ऐसी बेवफ़ाई नहीं कर सकता.' रौनक के प्रति मेरे विश्वास का इस डोर ने ही शायद मुझे निश्चिंत होकर सो जाने का हौसला दिया और आज रौनक की बजाय मैं उससे लिपटकर सो गई.
सुबह जब आंख खुली तो रौनक मेरे पास नहीं थे. एक बार फिर शक़ का कीड़ा कुलबुलाने लगा, तो मैंने आरती के कमरे में जाकर देखा, रौनक यहां भी नहीं थे. तभी डायनिंग टेबल पर नज़र पड़ी, वो दोनों साथ बैठकर चाय पी रहे थे. जाने क्यों एक बार फिर शर्मा दंपत्ति याद आ गए. साथ ही रौनक से अपनी ही कही बात भी कि हर रिश्ते की तरह पति-पत्नी के रिश्ते में भी स्पेस होनी ज़रूरी है. ऐसा कहते वक़्त शायद मैं ये भूल गई थी कि पति-पत्नी के बीच इतनी स्पेस भी नहीं होना चाहिए कि उनके बीच किसी तीसरे के आने के लिए जगह बच जाए. मैं रौनक के पास में से आरती को धकेलकर ख़ुद बैठ जाना चाहती थी, लेकिन ऐसा करना सभ्यता के ख़िलाफ़ होता, इसलिए चुपचाप आकर 'गुडमॉर्निंग' कहा और उन दोनों की हरक़तों को और क़रीब से देखने के लिए उनके पास आकर बैठ गई. एक पल को लगा जैसे मुझे पास आते देख दोनों ने एक निश्चित दूरी भी बना ली और चेहरे के भाव भी बदल दिए. मेरे बैठने के पांच मिनट बाद ही रौनक ऑफिस जल्दी जाने का बहाना बनाते हुए वहां से उठ गए.
हमेशा की तरह आज भी उन दोनों को साथ ऑफिस जाना था. वो दोनों आठ बजे घर से निकलते हैं और मैं दस बजे, फिर भी आज जल्दी ऑफिस जाने का बहाना बनाकर मैं भी उनके साथ चल दी. मेरी इस हरक़त पर रौनक ने मुझे ग़ुस्से से देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं.
अब तो उन दोनों पर नज़र रखना जैसे मेरा मिशन बन गया था. जितना मैं उन दोनों के बारे में जानना चाहती, उतनी ही उलझती जाती. पुख्ता सबूत न होते हुए भी मैंने उन दोनों को गुनहगार की श्रेणी में ला खड़ा किया और इस उहापोह से छुटकारा पाने का मुझे एक ही रास्ता सूझा- आरती का हमारा घर छोड़ देना.
जब मैंने रौनक से इस बारे में बात की, तो उन्होंने मुझे अजीब-सी नज़रों से देखते हुए कहा, “यूं अचानक आरती को घर से निकालने की बात तुम्हें क्यों सूझी रश्मि?” मेरे इस फ़ैसले से रौनक का नाराज़ होना लाज़मी था. मैंने भीजवाब सवाल में ही दिया, “क्यों, ज़िंदगीभर उसे साथ रखने का इरादा है क्या?” मेरे इस हल्के शब्दों ने रौनक को और भी चिढ़ा दिया.
“रश्मि, तुम्हारे कहने का क्या मतलब है?” मैं भी रौनक के मन की थाह लेना चाहती थी. इसलिए जान-बूझकर उसे उकसा रही थी. “मेरे कहने का मतलब है कि अब आरती का करियर सेटल हो गया है, इसलिए उसे हम पति-पत्नी के बीच से, आई मीन… हमारे घर से अलग रहना शुरू कर देना चाहिए.” अब रौनक का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था.
“रश्मि, कहीं तुम आरती और मुझ पर शक़ तो नहीं कर रही हो?” मुझे भी अब मन की बात कहने का मौक़ा मिल गया था, इसलिए मैंने व्यंगबाण कसने में कोई क़सर नहीं छोड़ी.
“शक़ की गुंजाइश कहां है? सब कुछ साफ़-साफ़ तो नज़र आ रहा है. इस घर में मुझे अब ऐसा लगता है जैसे तुम दोनों पति-पत्नी और मैं अजनबी. दो महीने के लिए मैं घर से बाहर क्या गई, तुमने तो मुझे अपनी ज़िंदगी से ही बेदख़ल कर दिया है.”
मेरी बातें रौनक को इतनी चुभी कि उन्होंने पल भर में सच उगल दिया. “हां, आरती मुझे अच्छी लगती है, इसलिए नहीं कि वो ख़ूबसूरत है, बल्क़ि इसलिए कि ऐसी ही लाइफ पार्टनर की ख़्वाहिश मैंने हमेशा से की थी. तुम्हें अपने करियर से कभी इतनी फ़ुर्सत मिली ही नहीं कि अपनी घर-गृहस्थी का ख़्याल आता, लेकिन तुम्हारे अमेरिका जाने के बाद जिस तरह आरती ने मेरा और इस घर का ख़्याल रखा, तो अपनी गृहस्थी और लाइफ पार्टनर के लिए देखे मेरे सपने फिर से हिलोरे लेने लगे. न चाहते हुए भी मैं आारती की तरफ़ आकर्षित होने लगा. झूठ नहीं कहूंगा, कई बार मन में बुरे ख़्याल भी आए. कई बार काम या बातचीत के दौरान मैंने आरती के शरीर को छूने की कोशिश भी की, कई बार अपने कमरे से आरती के कमरे के दरवाज़े तक गया भी, लेकिन तुम्हारा ख़्याल आते ही दबे पांव लौट आया. हां रश्मि, तुम्हारे विश्वास ने ही मुझे बहकने नहीं दिया. तुम जिस साफ़-पाक मन से आरती और मुझे इस घर में अकेले छोड़ गई थी, उस विश्वास को मैं कैसे टूटने देता. फिर हमारे प्यार की नींव इतनी कमज़ोर भी तो नहीं कि इतनी आसानी से टूट जाए. हां, अब देर हुई, तो सचमुच बहुत देर हो जाएगी.
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रश्मि, मैं मानता हूं कि मैं तुम्हारा गुनहगार हूं. तुम्हारे होते हुए मेरे मन में किसी और का ख़्याल आया, लेकिन इसके लिए अकेला मैं ही तो ज़िम्मेदार नहीं. तुमने भी मेरी इतनी अनदेखी की कि आरती का ज़रा-सा प्यार और अपनापन पाकर मैं बहकने लगा. उस बेचारी को तो शायद मालूम भी नहीं कि मैं अब उसे इस नज़र से देखने लगा हूं. वो तो इस घर और मेरी देखभाल करके तुम्हारा एहसान चुकाने की कोशिश में लगी रहती है.
तुम ठीक कह रही हो रश्मि, आरती का अब हमारे घर और मेरे ऑफिस से भी दूर रहना बेहद ज़रूरी है. पिछले हफ़्ते ही मुझे एक एमएनसी से ऑफर आया है. मैं वहां ज्वाइन कर लेता हूं और तुम आरती का अलग रहने का बंदोबस्त कर दो, फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा.”
“नहीं रौनक, सब कुछ पहले जैसा नहीं होगा, अब हम एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करेंगे. कामयाबी की रेस में दौड़ते-दौड़ते अब मैं भी थक गई हूं. अब मैं भी कुछ देर आराम करना चाहती हूं. तुम्हारे साथ गृहस्थ जीवन का सुख बांटना चाहती हूं. इस ईंट-गारे के मकान को घर बनाना चाहती हूं. सिर्फ़ पत्नी नहीं, मां भी कहलाना चाहती हूं.”
रौनक ने हौले से मेरे होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, “बस रश्मि, तुम्हें अब और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं. तुम्हारी आंखें पढ़कर मैं समझ सकता हूं कि तुम क्या कहना चाहती हो. मैं बहुत ख़ुश हूं कि दूर रहकर ही सही तुम्हें हमारे प्यार की असली क़ीमत तो समझ आई. रश्मि, ऐसी दौड़ का क्या फ़ायदा जो दो पल ठहरकर ये सोचने की मोहलत भी न दे कि हम जीते हैं या हारे. आज तुम्हें आरती ख़ुद से सुखी, इसलिए लग रही है, क्योंकि तुम भी ऐसा ही जीवन जीना चाहती हो, लेकिन करियर में पिछड़ जाने के डर से अपनी भावनाओं के साथ समझौता कर लेती हो, पर अब मैं तुम्हें और नहीं दौड़ने दूंगा. हम एक नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करेंगे, जहां हमारा करियर हमारे प्यार, हमारी पर्सनल लाइफ के आड़े नहीं आएगा.”
अब तक मैं रौनक की बांहों में समा चुकी थी, जहां सिर्फ़ प्यार था, किसी भी शिकायत के लिए कोई जगह नहीं था. अब तक मेरा शरीर एक मशीनी रोबोट की तरह सिर्फ़ काम करता चला जा रहा था, जिसमें इंसानी रूप में सिर्फ़ सांसें चल रही थीं, लेकिन आज मेरे जिस्म में ज़िंदगी लौट आई है. एक ऐसी ज़िंदगी, जो न स़िर्फ खुलकर सांस लेना चाहती है, बल्कि जी भरकर जी लेना चाहती है- अपने प्यार, अपने रौनक के साथ.