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कहानी- बेवफा 5 (Story Series- Bewafa 5)
मैं निकलने लगा, तो शबाना ने धीरे से ‘थैंक्स फॉर कमिंग’ कहा और कुंडल तो गले लगकर रो पड़ा. मैं भी भावुक हो गया. मैंने अपने रीवा जाने की बात की किसी से चर्चा नहीं की. वापस इलाहाबाद में अपने हॉस्टल चला आया था.
यह सोचकर मेरे मन को बड़ी तसल्ली हुई कि चलो एक परिवार बस गया. दोनों को मनपसंद ज़िंदगी जीने को मिल गई. मुझे लगा दोनों- कुंडल और शबाना, बहुत भाग्यशाली हैं. शायद धरती के सबसे भाग्यशाली कपल.
उसने एफआईआर में मेरा नाम भी डलवाने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने इनकार कर दिया, पता नहीं क्यों. हां, दो पुलिसवाले मेरे घर ज़रूर आ गए. मुझे जीप में बैठाकर गांव से गुज़रनेवाली सड़क तक ले गए और मुझसे ढेर सारे सवाल पूछे. मैंने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया.
तक़रीबन 10-12 मिनट तक सवाल-जवाब करने के बाद पुलिस ने मुझे अपनी जीप से उतार दिया और मैं पैदल चलकर अपने घर आ गया. मेरी मां ने तो मुझे देखकर राहत की सांस ली थी.
लगभग दो साल तक दोनों का कोई पता नहीं चला कि वे हैं कहां? तब संचार सुविधाएं आज जैसी आधुनिक नहीं थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी लोगों को इक्कीसवी सदी में कंप्यूटर के साथ ले जाने की बात करते सुने जाते थे. संचार क्षेत्र में ले-देकर बस इतनी ही तरक़्क़ी हुई थी. पीसीओ कल्चर तक शुरू नहीं हुआ था. लोग अत्यावश्यक संदेश भेजने के लिए तार यानी टेलिग्राम का प्रयोग करते थे. बहुत बड़े लोगों के पास फोन होता था. उसकी कॉल बहुत महंगी होती थी, इसीलिए, दोनों किस दुनिया में चले गए? किसी को कुछ भी नहीं पता चला.
शायद जून का महीना था, घर में मेरे पास एक पत्र आया. उसकी लिखावट से पता चला गया कि पत्र कुंडल का है. उसने लिखा था कि वे दोनों सही सलामत रीवा के एक छोटे से कस्बे में रह रहे हैं. वहां कुंडल ने अपनी डिस्पेंसरी खोल रखी हैं. मैं तुरंत रीवा गया.
वहां वाक़ई कुंडल ने अच्छी-ख़ासी जान-पहचान बना ली थी. मरीज़ों की भीड़ जौनपुरवाले क्लिनिक से भी अधिक होती थी. सुबह-सबेरे ही हेल्थ प्रॉब्लमवालों की भीड़ जुटने लगी थी. इस कारण कुंडल वहां के स्थानीय डाक्टरों की आंख की किरकिरी बन गया था. शबाना मरीज़ों को दवा देने में उसकी मदद करती थी. वे लोग वहीं घर ख़रीदने की योजना बना रहे थे. फ़िलहाल, किराए के घर में पति-पत्नी के रूप में साथ रहते थे.
मैंने ही बात-बात में पूछा था, "तुम दोनों ने शादी कर ली?"
उन्होंने ‘हां’ कहा. दोनों बहुत ही ख़ुश थे. मेरे वहां पहुंच जाने से उनकी ख़ुशी कई गुना बढ़ गई. मैं दो दिन रहा. शबाना मुझे कुछ और दिन रुकने के लिए बोल रही थी, पर यह संभव नहीं था. दो दिन में मैने महसूस किया कि दोनों को धरती का सबसे अधिक प्यार और केयर करनेवाला पार्टनर मिला है. दवाई देने में शबाना कुंडल की मदद करती, तो खाना बनाने में कुंडल शबाना की मदद करता था.
शाम को कुंडल ने ही बताया था कि वे गिरफ़्तारी के डर से अभी तक कोर्ट-मैरिज के लिए अदालत में नहीं जा सके हैं. हां, मंदिर में शादी ज़रूर कर ली है. उसकी फोटो भी रखी है. मैंने राहत की सांस ली, हालांकि अभी तक मैं पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुआ था.
मैं निकलने लगा, तो शबाना ने धीरे से ‘थैंक्स फॉर कमिंग’ कहा और कुंडल तो गले लगकर रो पड़ा. मैं भी भावुक हो गया. मैंने अपने रीवा जाने की बात की किसी से चर्चा नहीं की. वापस इलाहाबाद में अपने हॉस्टल चला आया था.
यह सोचकर मेरे मन को बड़ी तसल्ली हुई कि चलो एक परिवार बस गया. दोनों को मनपसंद ज़िंदगी जीने को मिल गई. मुझे लगा दोनों- कुंडल और शबाना, बहुत भाग्यशाली हैं. शायद धरती के सबसे भाग्यशाली कपल.
अगस्त महीने में अचानक एक सुबह मेरे कमरे में रखे अख़बार की सुर्ख़ियों पर मेरी नज़र गई.
नाबलिक लड़की को लेकर फरार डॉक्टर दो साल बाद पुलिस की गिरफ़्त में. वह रपट कुंडल और शबाना की ही थी. जौनपुर की पुलिस ने उसे रीवा में गिरफ़्तार कर लिया था.
मैं फ़ौरन भागा-भागा गांव आ गया. कुंडल से मिलने ज़िला काराग़ार में गया. वह न्यायिक हिरासत के तहत ज़िला जेल में बंद था. मुझे देखते फूट-फूटकर रोने लगा. उसने ही बताया कि अनजाने में शबाना एक भयंकर ग़लती कर बैठी और उसका बसा-बसाया आशियाना उजड़ गया.
दरअसल, शाबाना की रीवा के उस कस्बे में पास ही रहनेवाली एक महिला से दोस्ती हो गई थी. दोनों ख़ूब बातें करती थीं एक दिन शाबाना उससे खुलती चली गई.
उसने अपनी प्रेम कहानी उस पड़ोसन सहेली को बता दी. सहेली को सहेली की बात हजम नहीं हुई. उसने अपनी किसी और सहेली को बता दी. सहेली-दर-सहेली बात धीरे-धीरे फैलने लगी. बात भटकती रही. उसने एक-दूसरे डॉक्टर का दरवाज़ा खटखटाया.
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कुंडल के क्लिनिक खोल लेने से उस डॉक्टर का दवाखाना विरान हो गया था. कुंडल से पहले से ही चिढ़े उस डॉक्टर ने यह सूचना फोन करके जौनपुर पुलिस को दे दी. वहां कुंडल वांछित अपराधी था, लिहाज़ा पुलिस सक्रिय हो गई. जौनपुर पुलिस ने रीवा पुलिस से संपर्क किया और एक दिन रात कुंडल के घर पहुंच गई. औपचारिक रूप से कुंडल गिरफ़्तार कर लिया गया. शबाना के लाख विरोध के बावजूद उसे उसके मां-बाप के हवाले कर दिया गया.
हरिगोविंद विश्वकर्मा
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