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कहानी- बेवफा 1 (Story Series- Bewafa 1)
अदालत में मौजूद पूरा जनमानस सन्न. अचानक से शोर ग़ायब हो गया. माहौल में एक सन्नाटा-सा पसर गया. लोगों को समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है. कुंडल तो मानो जड़वत-सा हो गया. वह निहार रहा था कभी शबाना को कभी मुझे. ज़ाहिर है, जो कुछ शबाना ने अभी कहा था, उसके लिए वह बिल्कुल अप्रत्याशित था. एकदम अविश्वसनीय और हैरतअंगेज़.
उस रोचक लव स्टोरी का शायद आज क्लाइमेक्स था. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में उस बहुचर्चित प्रेम कहानी के मुक़दमे की सुनवाई चल रही थी. जज के सामने की कुर्सियों पर बैठे लोगों के अलावा बड़ी संख्या में तमाशाई खड़े भी थे. मीडियावाले बड़ी तादाद में थे. उन्हें पठनीय और रोचक मसाला जो मिलनेवाला था.
पेशकार ने आवाज़ दी और शबाना उठी और जाकर विटनेस बॉक्स में खड़ी हो गई. वह एकदम चुपचाप थी. नीचे देख रही थी. अभियोजन पक्ष के वकील के जिरह करने पर अचानक बोली, योर ऑनर… मुझे फुसलाकर ये रीवा ले गए…"
"हां, हां.. बोलो… वकील ने उसे पुचकारा.
वह आगे बोली, "और वहां मेरे साथ बलात्कार किया…"
अदालत में मौजूद पूरा जनमानस सन्न. अचानक से शोर ग़ायब हो गया. माहौल में एक सन्नाटा-सा पसर गया. लोगों को समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है. कुंडल तो मानो जड़वत-सा हो गया. वह निहार रहा था कभी शबाना को कभी मुझे. ज़ाहिर है, जो कुछ शबाना ने अभी कहा था, उसके लिए वह बिल्कुल अप्रत्याशित था. एकदम अविश्वसनीय और हैरतअंगेज़.
वह शबाना का ऐसा बयान सुनने के लिए तैयार भी नहीं था. उसके चेहरे का रंग बराबर बदल रहा था. कभी हवाइयां उड़ने लगती थी. कभी वह अदालत की छत की ओर देखने लगता था. निश्चत तौर पर वह अपने आपसे लड़ने का प्रयास कर रहा था और शायद हार रहा था.
और शबाना.. पूरे किए कराए पर पानी फेरने के बाद ख़ामोशी ओढ़ ली थी उसने.
बेशक, इसके आगे वह नहीं बोल पाई. अभियोजन पक्ष के वकील के लाख प्रयास के बाद भी. लेकिन बोलने के लिए अब बाक़ी ही क्या रह गया था. कुंडल को उसने पहले डॉक्टर से पति बनाया और अब बलात्कारी बना दिया. अब और क्या बोलेगी?..
हालांकि वकील उसे भी बराबर कुरेद रहा था. उसका उत्साहवर्द्धन कर रहा था.
शबाना के परिवार वाले ख़ुश थे. एक राहत थी उन सबके चेहरे पर. वह जो चाहते थे, उनकी बेटी ने वह बोल जो दिया था.
"तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है?" अदालत ने थोड़ी देर बाद कुंडल से पूछा.
वह बोला कुछ नहीं, बस देख रहा था.
अदालत ने अपना सवाल दोहराया.
"नहीं..." उसने बुझा-सा उत्तर दिया.
लोगों को हैरानी हो रही थी कि कुंडल कुछ बोल क्यों नहीं रहा है. उसके घरवाले यानी माता-पिता काफ़ी परेशान हो रहे थे, ख़ासकर उसकी मां. सब चाहते थे कि कुंडल अपने बचाव में कुछ बोले. पर उसने 'नहीं' कहकर पल्ला झाड़ लिया और अपने आपको क़ानून के शिकंजे में ख़ुद फंसा लिया.
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मैं भी दर्शक-दीर्घा में बैठा था. कभी कुंडल को देखता था, कभी शबाना को. लेकिन उन दोनों में से कोई मुझसे नज़र नहीं मिला पा रहा था. मिलाते भी कैसे नज़र! क्या कहते मुझसे वे दोनों.
वहां मैं ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था, जो दोनों से समान रूप से परिचित था. उनके संबंधों का इकलौता गवाह था मैं. सहसा मेरी नज़र शबाना पर ठहर गई. मैं उसे अपलक देखने लगा. मैं सोच रहा था कि कितनी सफ़ाई से वह झूठ बोल गई. मुझे पहले से ही पता था, वह इसी तरह हथियार डाल देगी. लड़कियां ऐसा ही करती हैं. ऐसा न करनेवाली बोल्ड लड़कियां समाज में बहुत कम मिलती हैं...
हरिगोविंद विश्वकर्मा
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
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