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कहानी- बेशऊर 2 (Story Series- Beshur 2)
अपने पति के संग इस तरह के रिश्ते की त्रासदी को झेलते-झेलते वह बुरी तरह थक गई थी. मायके जाती, तो मां से कुछ नहीं कहती. बस, उनके बगल में ऐसे सो जाती, जैसे बरसों से सो नहीं पाई हो. पर मां बिना कहे ही उसके मन के दर्द को समझ देर तक उसके बाल सहलाते रहती.
... लेकिन यह नहीं कहती कि उनका बेटा पहले से ही किसी और पर मोहित था और उससे अंतर्जातीय विवाह करना चहता था, जिसे रोकने के लिए सासू मां ने चटपट उसके साथ बेटा की शादी करवा दी थी. अब उन्हें लग रहा था बहू, बेटा के पैरों के धूल के बराबर भी नहीं थी. पर बात उस दिन क्यों नहीं समझ में आया था, जब 15 लाख रुपयों के संग इसी अंजली को अपने हैंडसम बेटे के लिए रस्मों-रिवाज़ के बंधन में बांधकर ले आई थी...
अपने पति भुवन की पसंद वह नहीं कोई और थी, इसमें उसका क्या दोष था? फिर भी पति का ग़ुस्सा भी उसी पर उतारता, उन पैसों पर नहीं, जो उसके पापा ने दिए थे. उन पैसों को वह व्यापार में लगा अच्छा मुनाफ़ा कमा रहा था, पर इसकी उसे कोई चिंता नहीं थी कि उसकी पत्नी की आंखों में भी अपनी शादी के कुछ सपने होंगे, कुछ अरमान होंगे. जान-बूझकर वह उससे बात ही नहीं करता था. आंखों में उसके लिए हिकारत भरे अपनी चुप्पी से उसे बेगाना और अकेला बना रखा था. वह भले ही शारीरिक हिंसा नहीं करता था, पर अपनी चुप्पी और रूखे व्यवहार से उसे मानसिक रुप से प्रताड़ित करते रहता. एक ही कमरे में एक ही बिस्तर पर भुवन के साथ सोती थी, फिर भी दोनो अकेले-अकेले रहते थे. भुवन किताबों में डूबा सो जाता था. वह अलग पड़ी चुपचाप अपमान के सिगड़ी पर सिंकती रहती. बस, एक रिश्ता बंध गया था, बना नहीं था. हर रात की यही कहानी देख उसे रात से ही घबराहट होने लगती.
भले ही उसे अपनी पत्नी नहीं प्रभावित करती, पर कोई भी पराई औरत जब घर में आतीं, उनसे अति प्रभावित हो उनके आसपास डोलते, हंसी-मज़ाक में मशगूल रहते. यह सब देख-सुनकर वह शर्मिंदा हो जाती, क्योंकि वही व्यक्ति जब अपनी पत्नी के साथ बिस्तर पर होता, तो पत्नी की तरफ़ उसकी पीठ होती और होती एक अदृश्य दीवार, जो अंजली के दिल में वितृष्णा भरता.
अपने पति के संग इस तरह के रिश्ते की त्रासदी को झेलते-झेलते वह बुरी तरह थक गई थी. मायके जाती, तो मां से कुछ नहीं कहती. बस, उनके बगल में ऐसे सो जाती, जैसे बरसों से सो नहीं पाई हो. पर मां बिना कहे ही उसके मन के दर्द को समझ देर तक उसके बाल सहलाते रहती. पापा दिल के मरीज़ थे, इसलिए उन्हें कुछ भी नहीं बताती. एक दिन मां ने धीरे से कहा था, "तू चिंता मत कर मैं कुछ करती हूं.’’
वह ज़ोर से हंसी थी. "तू चिंता मत कर मैं कुछ करती हूं.’’
वह ज़ोर से हंसी थी.
"तू क्या कर लेगी? घर तुम्हारे पैसों से नहीं पापा और भैया के पैसों से चलते हैं. उनके सहमती के बिना तुम कुछ नहीं कर सकती."
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कुछ ही दिनों बाद पापा को दिल का दौरा पड़ा और देखते-देखते वह काल के गाल में समा गए थे.
अब हर तरह से जलील होकर भी पापा जिसके खूंटे बांध आए थे, उसे वही जीना-मरना था. इतने दिनों में भुवन का बिज़नेस चमक उठा था. अब उसे पैसों का नशा हो गया था. एक दिन अपनी प्रेमिका को पत्नी बनाकर घर ले आया और उसे कार में बिठाकर उसके मायके में छोड़ आया.
मायके के दरवाज़े पर खड़ी बहन को देखते ही भाई बिगड़ गया था, ‘‘कैसे चली आई तुम. उसकी हिम्मत कैसे हुई तुम्हे यहां छोड़ जाने की. वही के पुलिस स्टेशन में रपट लिखवा देती, तो उसके होश ठिकाने आ जाते. पर तुम्हे तो इतना करने का भी शऊर नहीं है..."
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
रीता कुमारी
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