आज की दुनिया में तो कुछ चतुर सुजान ने वक़्त की डिमांड देखते हुए सच बोलने पर जीएसटी लगा दी है, बोलने का दुस्साहस करोगे, तो भारी क़ीमत चुकाना पड़ेगा, दूसरी तरफ़, झूठ को टैक्स फ्री कर दिया है.
आज मैं वादा करता हूं कि जो भी बोलूंगा, सच बोलूंगा, सच के अलावा काफ़ी सारा झूठ भी बोलूंगा.. और क्यों ना बोलूं.. आफ्टर ऑल अभिव्यक्ति की आज़ादी है. लिहाज़ा अब करूंगा गंदी बात. नहीं, सच और झूठ की बात चल रही है, गंदी बात हमारे संस्कार से बाहर का एजेंडा है. झूठ कितना पॉपुलर और पॉवरफुल है कि अदालत तक को यक़ीन नहीं कि कोई शख़्स बगैर गीता या कुरान को हाथ में लिए सच बोलने का रिस्क उठाएगा (बल्कि किताब पर हाथ रखकर भी लोग झूठ की शरण में चले जाते हैं) झूठ के सामने खड़ा- सत्यमेव जयते कितना दीन, हीन और अविश्वसनीय लगता है.
संस्कृत का एक श्लोक देखिए- सत्यम ब्रूयात - प्रियम ब्रुयात.. (सच बोलना चाहिए, मीठा सच बोलना चाहिए) ये कैसे होगा. सच तो कड़वा बताया गया है. वो 'परी' कहां से लाऊं? आगे कलियुग का समर्थन करते हुए सुझाव दिया गया है- प्रिय असत्यम ब्रूयात.. अप्रिय सत्यम मा ब्रू यात.. जो स्वादिष्ट लगता हो, वो झूठ बोला जा सकता है. (चुनाव में तमाम दलों के नेता इसी श्लोक से प्रेरणा पाते हैं!) जो कड़वा लगे या कलेजा छील दे, ऐसा अप्रिय सच कभी मत बोलो. झूठ की मार्केटिंग में इस श्लोक की बड़ी भागीदारी है.
लोग सच का बोर्ड लगाकर खुलेआम झूठ बेचते हैं. सड़क से संसद तक झूठ का दबदबा है.. झूठ च्यवनप्राश है, अमृत कलश है.. वीटो पॉवर है. झूठ बिकता है, चलता है, डिमांड में है. सच कहावतों और कहानियों से ऑक्सीजन लेकर ज़िंदा है. सच हिंदी फिल्मों का आख़री सीन है, जिसमें साधनहीन हीरो महाबली खलनायक पर विजय पाता है. हर सरकार सच को बचाने की शपथ लेती है, पर दिनोंदिन सच ग़रीबी रेखा से नीचे जा रहा है. कोई झूठ के पक्ष में खड़ा नहीं है, फिर भी उसके सामने सच कैसे कुपोषित हुआ पड़ा है.
आज की दुनियां में तो कुछ चतुर सुजान ने वक़्त की डिमांड देखते हुए सच बोलने पर जीएसटी लगा दी है, बोलने का दुस्साहस करोगे, तो भारी क़ीमत चुकाना पड़ेगा, दूसरी तरफ़, झूठ को टैक्स फ्री कर दिया है. सारे बोलो… सच के रास्ते में पड़नेवाले सारे मेन होल के ढक्कन हटा दिए गए हैं, जिससे सच को नीचे गिरने में असुविधा न हो और… झूठ के रास्ते में पड़नेवाले सारे स्पीड ब्रेकर हटा दिए गए हैं- 'कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को…' दोनों की सेहत में ज़मीन-आसमान का फ़र्क देखिए, झूठ का स्टेमिना ऐसा मज़बूत है कि कोरोना की पूरी कॉलोनी निगल जाए, तो ज़ुकाम भी ना हो. और… सच अगर मूली की तस्वीर भी देख ले, तो छींकने लगेगा. इसी झूठ ने कई धर्मों के सच को लहूलुहान किया है.
चूंकि अतीत हमेशा सुनहरा और गौरवशाली होता आया है, इसलिए सच का भविष्य सोच कर सिहर जाता हूं. एक हिन्दी फिल्म का गाना है- झूठ बोले कौआ काटे… तो गोया अब झूठ से इन्सानों को कोई परहेज़ नहीं रहा. सिर्फ़ कौओं को घी हज़म नहीं हो रहा है. मगर कौए कब से सत्यवादी हो गए. वो तो ख़ुद झूठ के ब्रांड एंबेसडर बताए जाते हैं. जबसे कलियुग आया है, कौओं ने हंसो से मोती छीन लिया है और तमाम अमराइयों से कोयल को बेदख़ल कर दिया है. अगर ग़लती से कोई कोयल नज़र आ जाए, तो कौए ऑफर देते हैं, आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा.. मालिश कराना है…
झूठ अजर अमर है. झूठ रावण है. हर बार अपना पुतला छोड़कर भीड़ में खड़ा हो जाता है. भीड़ पुतला जलाकर संतुष्ट है. रावण "नाभि" सहलाता हुआ मुस्कुराता है. वो अपने अमरत्व के प्रति आश्वस्त है. असत्य पर सत्य की विजय से जनता गदगद है और हकीक़त से आगाह रावण आश्वस्त. भीड़ में खड़ा 'सच' रावण को पहचान रहा है, मगर सत्यमेव जयते के सिंहनाद में खोई जनता पुतले को रावण समझ बैठी है.
'झूठ' के सांकेतिक दहन से 'सच' की जीत और रामराज की वापसी साफ़-साफ़ नज़र आ रही है. सिर्फ़ रावण को असलियत पता है कि 'झूठ' दीर्घायु हो रहा है!..
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