Know the reason why Dhanteras, Saraswati and Lakshmi are worshiped on Deepawali?
भारत त्योहारों का देश कहलाता है और ध्यान रहे इन त्योहारों के भीतर भारतीय दर्शन का मर्म छिपा हुआ है. दीपों का त्योहार दीपावली हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है और वह एक दिन का न होकर पांच दिन का त्योहार होता है.
मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. धनतेरस इन्हीं आरोग्य के देवता और वैद्य धन्वंतरि के जन्मदिन पर मनाया जाता है, जो कि दीपावली से दो दिन पूर्व आता है.
सही भी है हमारा असली धन, तो हमारा शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास ही है.
भारत सरकार ने भी धनतेरस को 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है.
एक बात जो दिमाग़ में आती है वह यह कि यह त्योहार ‘वाग बरस’ नहीं बल्कि ‘वक बारस’ है.
शब्दकोश वाक्य भाषण और भाषा का अर्थ देता है. पीड़ा के कुछ हिस्से को भाषण के रूप में जाना जाता है. सरस्वती वाणी या भाषा की देवी है. यही वजह है कि सरस्वती को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है. हमारी वाणी और भाषा को अच्छा रखने और बुद्धि को दूषित किए बिना हमारे आचरण को अच्छा रखने की दृष्टि से दीपावली के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है.
वाक्य को विकृत करके लोगों ने बाघ को मार डाला और पूरे त्योहार को बाघ बरस के रूप में जाना जाने लगा, लेकिन हमारी हिन्दू संस्कृति और दर्शन का कहना है कि लक्ष्मी की पूजा करने से पहले सरस्वती की पूजा की जानी चाहिए. इसलिए हमारे पूर्वज धनतेरस के अगले दिन लक्ष्मी की पूजा से पहले ‘वास बार’ के दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं.
इस त्योहार का बाघों से कोई लेना देना नहीं है. उस दिन केवल मां सरस्वती की पूजा की जानी चाहिए और उनके चरणों में प्रणाम कर प्रार्थना करनी चाहिए- “हे मां आप हमारे घर लक्ष्मी के रूप में आएं, हमें पवित्रता प्रदान करें और हमारी वाणी में रहें. हमारे दिल साफ़ हैं और हमारे घर साफ़-सुथरे हैं. जहां पहले सरस्वती है, लक्ष्मी भी कल वहीं रहेगी…"
- उषा वधवा