मुझे तन्हाई से अक्सर मिला है
ख़्यालों में वहीं दिलबर मिला है
यूं मिलने के ठिकाने और भी थे
कभी छज्जे कभी छत पर मिला है
वो मेरे संग था बेफ़िक्र कितना
कि ग़म में भी सदा हंस कर मिला है
कोई वजह तो होगी कुछ तो होगा
किसी से आज वो छुपकर मिला है
दिखाया ख़ुद को जब से आईना है
मिला जो भी मुझे बेहतर मिला है
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