एक हीरो की हीरोईन बनकर पर्दे पर इश्क़ लड़ाना, गाने गाना या इमोशनल सीन करना फिर भी आसान है लेकिन एक तवायफ़ का किरदार ना सिर्फ़ करना बल्कि उसे जीवित कर देना बहुत कठिन है, लेकिन कुछ एक्ट्रेसेस ने इसे भी बखूबी किया और लोगों के ज़ेहन में उस किरदार को ताउम्र के लिए यादगार बना दिया. यहां हम उन्हीं की बात करेंगे.
रेखा ने उमराव जान हो या मुक़द्दर का सिकंदर की कोठेवाली जिस अंदाज़ से तवायफ़ के रोल्स किए हैं वो लाजवाब हैं. हर कोई यही कहता है कि इस रोल में रेखा जैसा कोई नहीं. उमराव जान के क्लासिक रोल के लिए रेखा का चुना जाना ही यह बताता है कि रेखा जैसा कोई नहीं. इसकी वजह उनकी उम्दा अदाकारी, फेशियल एक्सप्रेशन और डांस में निपुण होना है. रेखा ने कई फ़िल्मों में इस तरह के रोल किए हैं, चाहे सुहाग हो या अमीरी ग़रीबी रेखा ने तवायफ़ के किरदार को खूबसूरत और ज़िंदा कर दिया था.
वैजयंतीमाला कमाल की एक्ट्रेस थीं. साधना जैसी फ़िल्म भी किसी क्लासिक से कम नहीं थी और ना ही फ़िल्म देवदास और इन दोनों ही फ़िल्मों में वैजयंतीमाला ने तवायफ़ का रोल किया और क्या खूब किया. साधना का वो गाना औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया आज भी क्लासिक है और रोंगटे खड़े कर देनेवाला है. इस गाने में फ़िल्म की बात करें तो एक औरत की कश्मकश दिखाई है. इसी का एक और गीत है कहो जी तुम क्या क्या ख़रीदोगे यहां तो हर चीज़ बिकती है... फ़िल्म में वैजयंतीमाला ने तवायफ़ के लालच और मक्कारी की एक तरफ़ बखूबी झलक दिखलाई तो दूसरी ओर एक मजबूर औरत की व्यथा को भी पेश किया. उनकी अदाकारी, नृत्य, मुजरा करने की अदा ही थी कि उन्होंने देवदास में भी तवायफ़ का रोल जीवंत किया. फ़िल्म आम्रपाली में भी उन्होंने राजमहल की मुख्य नर्तकी का रोल किया था और बेहद खूबसूरत भी लगी थीं
मीना कुमारी ने पाकीज़ा में जिस पाकीज़गी के साथ एक तवायफ़ के किरदार को पर्दे पर उतारा शायद ही कोई सोच सकता है, लेकिन उन जैसी एक्ट्रेस के लिए ये मुश्किल काम नहीं था. उनके हावभाव और अदाकारी की संजीदगी ने यह मुमकिन कर दिखाया. हालाँकि फ़िल्म साहिब बीबी और ग़ुलाम में वो एक बड़े घर की बहू बनी थीं लेकिन अपने पति को तवायफ़ के पास जाने से रोकने के लिए उन्होंने खुद उसी तरह की जीवनशैली अपनाने की कोशिश की थी. बेहद मार्मिक था उनका वो रोल भी.
शर्मिला टैगोर बेहद स्टाइलिश मानी जाती थीं और उतनी ही मॉडर्न भी थीं वो, ऐसे में उनसे किसी ने उम्मीद नाहीं की थी कि फ़िल्म मौसम में वो एक चकला घर यानी रेड लाइट एरिया की तवायफ़ का रोल करेंगे, पर उन्होंने जिस अंदाज़ से वो रोल किया क़ाबिले तारीफ़ है. मेरे इश्क़ में लाखों झटके... से लेकर रुके रुके से कदम तक में उनकी मन की पीड़ा और टीस नज़र आती है. इसके अलावा फ़िल्म अमर प्रेम को कोई कैसे भूल सकता है. गांव की एक मजबूर स्त्री किस तरह कोठे पर आ बैठती है लेकिन उसके बाद भी अपनी अच्छाई और गुणों को वो बरकरार रखते हुए अपना प्यार भी निभाती है, एक प्यार अपने प्रेमी के लिए और दूसरा अपने मुंह बोले बेटे के लिए. बड़ा नटखट है ये किशन कन्हैया क्या करे यशोदा मैया... कुछ तो लोग कहेंगे... कई अमर गीतों से भरपूर थी अमरप्रेम.
रतिअग्निहोत्री ने अपनी पहली ही फ़िल्म से धमाका कर दिया था लेकिन तब कहां किसी ने सोचा था कि यह सोलाह बरस की अल्हड़ सी लड़की आगे चलकर तवायफ़ जैसी फ़िल्म का हिस्सा बनेगी, उसमें लीड रोल निभाएगी और अवॉर्ड भी अपने नाम कर जाएगी. रति के लुक्स को देखकर कोई नहीं कह सकता कि इस आधुनिक लड़की में एक तवायफ़ के रोल की खूबी छिपी है, लेकिन फ़िल्म तवायफ़ इसका जीता जागता उदाहरण है.
वहीदा रहमान जैसी सादगी भला कहां नज़र आती है किसी और एक्ट्रेस में और ऐसी सादगी के साथ इस तरह के रोल को जोड़ना कैसे संभव है, लेकिन जब अदाकारी नंबर वन हो, डांस सबसे ऊपर हो और हुनर लाजवाब हो तो एक नहीं कई फ़िल्मों में ऐसे रोल निभाए जा सकते हैं. क्लासिक फ़िल्म प्यासा, तीसरी क़सम से लेकर फ़िल्म मुझे जीने दो तक में वहीदा ने तवायफ़ की भूमिका को एक अलग ही स्तर पर पहुँचा दिया था, यहां तक कि फ़िल्म गाइड में भी वो एक तवायफ़ की बेटी ही बनी थीं जिसे खुद डांस करने का शौक़ था. वो बेहतरीन डांसर तो थी ही उम्दा कलाकार भी थीं.
तब्बू ने तवायफ़ का ट्रेंड चेंज कर दिया. जी हां चाँदनी बार में उन्होंने एक बार डांसर की भूमिका निभाई थी जो पारंपरिक तवायफ़ से तो अलग थी लेकिन उतनी ही दमदार थी. वो भी डांस करके लोगों का मनोरंजन करती नज़र आई जिस तरह तवायफ़ें करती थीं लेकिन ये अंदाज़ कुछ अलग था. तब्बू ने जिस खूबसूरती से यह रोल किया किसी ने सोचा भी नहीं था. तवायफ़ का मॉडर्न वर्जन उन्होंने ही दिखाया. इस फ़िल्म में एक बार गर्ल की उस कश्मकश को दर्शाया है जो एक सामान्य ज़िंदगी जीने के सपने देखती है लेकिन यह उसके लिए आसान नहीं.
सुचित्रा सेन ने भी फ़िल्म ममता में एक तवायफ़ का रोल किया था और इसी तरह का किरदार नरगिस ने भी फ़िल्म अदालत में किया था. दोनों ही फ़िल्मों में हालात की मजबूरियाँ और प्रेमी से दूरी उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करती हैं, आधी फ़िल्म में वो एक शरीफ़ घर की भोली भाली लड़कियाँ थीं और आगे आगे की आधी कहानी उनके तवायफ़ बनने की मजबूरी की कहानी थी. उनके भी इन रोल्स को पसंद किया गया, लेकिन ये अलग तरह की कहानी थी इसलिए इनकी तुलना अन्य तवायफ़ों के किरदारों से नहीं की जा सकती. इन दोनों ही फ़िल्मों के गानों ने धूम मचा दी थी और आज भी वो क्लासिक गाने माने जाते हैं.
ममता का के ये गाने- रहें ना रहें हम महका करेंगे या फिर रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह... या फ़िल्म अदालत के गाने- यूं हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए या फिर... उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते... ये तमाम गीत यादगार हैं इन्हीं किरदारों की वजह से.
इन सबके अलावा स्मिता पाटिल (घुँघरू) से लेकर करीना कपूर(चमेली), माधुरी दीक्षित( देवदास) और ऐश्वर्या राय(बंटी और बबली, उमराव जान) तक ने तवायफ़ के रोल किए और उनकी प्रशंसा भी हुई लेकिन जिन्होंने हमेशा के लिए दिलों पर छाप छोड़ीं वो यही एक्ट्रेस थीं.
हालाँकि हम सभी को सलाम करते हैं ईमानदारी से अपने किरदार को निभाने के लिए और जिस ज़माने में एक्ट्रेस कतराती थीं इस तरह के रोल करने से उस समय ऐसे रोल्स करके चुनौती को अपनाया इन्होंने और खुद को सही साबित भी किया.