Close

कहानी- स्टेशन जो छूट गया… (Short Story- Station Jo Chhut Gaya…)

“ज़िंदगी कभी दूसरा मौक़ा नहीं देती, बिल्कुल किसी ट्रेन की तरह अगर एक बार स्टेशन छूट गया, सो छूट गया. और अगर किसी से प्रेम है, तो कभी उससे कटु शब्द मत बोलो. क्या पता वह आपके साथ उसके आख़िरी शब्द हों, वह ज़िंदगीभर एक कटु स्मृति बनकर रह जाएं..."

राधा रात के लगभग दस बजे दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर खड़ी थी. उसकी हालत कुछ ठीक नहीं थी. वह भीड़ में अपना चेहरा छिपाकर रो रही थी. सामान के नाम पर उसके पास सिर्फ उसका पर्स था. वह बार-बार अपना फोन चेक कर रही थी, मानो जैसे चाहती हो कि फोन पर ही सही पर कोई उसे रोक ले. फोन तो नहीं आया, पर उसने जिस ट्रेन का टिकट कटाया था वह ट्रेन ज़रूर आ गई.
वह भारी मन से कुछ दुविधा में ट्रेन में चढ़ी. जब अपनी सीट पर पहुंची, तो देखा की पटरियों पर दौड़ती भागती रेल के अंदर की दुनिया गहरी नींद में थी. राधा को साइडवाला कोच मिला था, जिस पर वह इत्मीनान से बैठ गई. वह खिड़की से बाहर देखती हुई अपनी आंखों को आंसुओं से भीगा रही थी कि तभी ट्रेन किसी सुनसान जगह पर रुक गई. राधा को लगा कि ट्रेन को सिग्नल नहीं मिला होगा.
कुछ देर बाद ट्रेन वापस चल पड़ी. राधा ट्रेन की गति से अपने विचारों को दौड़ा रही थी कि तभी राधा की हमउम्र महिला राधा के पास आई और बोली, “आपके साथवाली सीट मेरी है.” राधा ने अपनी रुआंसी आंखों को छुपाते हुए अपने आपको समेटा. उस महिला ने अपना परिचय दिया, “मेरा नाम मीरा शर्मा है और आपका?” राधा इस संवाद को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी, पर शिष्टाचार निभाने के लिए उसने कहा, “मेरा नाम राधा है आप यहां कहां से चढ़ी, यहां स्टेशन तो नहीं था.”
मीरा ने जवाब दिया, “मेरी ट्रेन दिल्ली स्टेशन से छूटी थी, तो मेरे कार ड्राइवर ने ड्राइव करके मुझे यहां छोड़ दिया. आप कहां जा रही हैं?”
राधा ना चाहते हुए भी अब इस संवाद का हिस्सा बन गई. उसने जवाब दिया, “जी, मैं मथुरा अपने मायके जा रही हूं, और आप..?” मीरा बोली, “अरे अब तो यह ट्रेन मेरा घर है, मेरा आना-जाना लगा रहता है. हां, पर जाना तो वैसे मुझे भी मथुरा ही था.” अब दोनों काफ़ी बातें करने लगी. औपचारिकता की सिलवट भी अब कुछ निकल-सी गई थी. मीरा ने पूछा, “बुरा मत मानना, पर तुम कुछ परेशान-सी लग रही हो! चाहो तो हम बात कर सकते हैंं. वैसे भी मथुरा आने में अभी समय है.”

यह भी पढ़ें: दूसरों को नसीहत देते हैं, ख़ुद कितना पालन करते हैं (Advice You Give Others But Don’t Take Yourself)

राधा कुछ असहज हुई, पर वह मीरा से बात करना चाहती थी, “अब क्या बताऊं, मैंने और सागर ने दो साल पहले लव मैरिज की थी. एक साल तक सब ठीक था, पर पिछले कुछ दिनों से सागर के लिए मेरे अलावा सब कुछ महत्वपूर्ण हो गया है. आए दिन झगड़े होते हैं. कभी नौकरी की वजह से, कभी मेरे माता-पिता, तो कभी उसके पैरेंट्स की वजह से. शायद वह अब मुझसे प्यार नहीं करता. ना मुझे समय देता है और ना ही तवज्जो. इसलिए जा रही हूं उसे हमेशा के लिए छोड़कर." इतना कहकर राधा फफक पड़ी. मीरा ने कहा, “तुम्हारे आंसू बता रहे हैं कि तुम उससे बहुत प्यार करती हो. देखो राधा, छोटी-छोटी घटनाओं से किसी बड़े निर्णय पर पहुंचना ग़लत है. मैंने भी ये ग़लतियां की हैं. अगर ऐसा लगे कि रिलेशनशिप में कोई एक डगमगा रहा है, तो उसका साथ मत छोड़ो, बल्कि उसका हाथ और कसकर पकड़ लो." लंबी सांस भरते हुए मीरा ने आगे कहा, “ज़िंदगी कभी दूसरा मौक़ा नहीं देती, बिल्कुल किसी ट्रेन की तरह अगर एक बार स्टेशन छूट गया, सो छूट गया. और अगर किसी से प्रेम है, तो कभी उससे कटु शब्द मत बोलो. क्या पता वह आपके साथ उसके आख़िरी शब्द हों, वह ज़िंदगीभर एक कटु स्मृति बनकर रह जाएं. आप जिससे प्रेम करते हैं, वह आपके पास है, आपके साथ है, यह सबसे महत्वपूर्ण है. वापस जाओ और अपने प्रेम को अपनी बांहों में भर लो. कहीं ऐसा न हो कि समय निकल जाए और तुम चाहकर भी अपनी प्रेम के पास वापस ना लौट पाओ." राधा मीरा को सुनती जा रही थी.
उसने कहा, “मीरा, शायद तुम जो कह रही हो वह सच है. मुझे सागर को ऐसे अचानक छोड़कर नहीं आना चाहिए था. पता नहीं ग़ुस्सा दिमाग़ पर इतना हावी हुआ कि कुछ समझ नहीं आया. मैं कल मां से मिलकर तुरंत वापस लौट जाऊंगी.”
राधा अब काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी. उसने आगे कहा, “मीरा, मैं अपनी ट्रेन की दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहती हूं, क्या तुम मुझे अपना नंबर दोगी?” मीरा ने राधा को अपना नंबर दिया, जो उसने एक काग़ज़ पर लिख लिया. रात की ख़ामोशी में राधा को कब नींद लगी उसे पता ही नहीं चला. नींद टूटी तब मथुरा आ गया था. रात के तीन बजे थे. मीरा अपनी सीट पर नहीं थी. राधा ने बहुत ढूंढ़ा, पर फिर उसने सोचा कि वह जल्दबाज़ी में स्टेशन पर उतर गई होगी. राधा अगले दिन मथुरा में अपनी मां से मिलकर वापस दिल्ली लौट आई.

यह भी पढ़ें: परफेक्ट वाइफ बनने के 9 रूल्स (9 Rules For Perfect Wife)

उसने आते ही सागर को गले लगा लिया उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा, “पता है सागर, मैं तो तुम्हें और हमारे रिश्ते को हमेशा के लिए छोड़कर जा रही थी, पर मीरा की बातों से ऐसा लगा कि तुम मेरे हाथों से रेत की तरह फिसलते जा रहे हो, फिर एक अजीब-सी बेचैनी हुई कि शायद मैं तुमसे कभी नहीं मिल पाऊंगी. मैं किसी भी तरह तुम्हें देखना चाहती थी. तुम्हें गले लगाना चाहती थी… और अब तुम अकेले नहीं हो. जीवन के हर अंधेरे में मैं तुम्हारा साथ दूंगी." सागर ने राधा का माथा चुमा और कहा, “मुझे तुम्हारी ज़रूरत है राधा. भला हो उस मीरा का जिसने तुम्हें मेरे पास वापस भेजा. पर वह कौन थी? अगर वह दिल्ली में रहती हैं, तो चलो उसके घर जाकर उसे धन्यवाद दे आएं.” राधा ने कहा, “हां, घर तो नहीं पता, पर उसने मुझे अपना नंबर ज़रूर दिया था. रुको मैं अभी कॉल करती हूं." राधा ने मीरा को फोन मिलाया. रिंग जा रही थी और थोड़ी देर में किसी आदमी ने फोन उठाया राधा ने कहा, “क्या मीरा शर्मा को फोन देंगे प्लीज़.”
उस तरफ़ से आवाज़ आई, "वह नहीं है, पर आपको मेरा नंबर किसने दिया.”
राधा बोली, “क्या आप उनके पति दीपक हैं?”
दीपक ने कहा, “हां…”
राधा ने कहा, “मुझे आपका नंबर मीरा ने ही तीन दिन पहले ट्रेन में दिया था. हम दोनों साथ-साथ सफ़र कर रही थीं. क्या प्लीज़ उसका मोबाइल नंबर देंगे. मुझे मीरा से बात करनी है.” इतना सुनते ही दीपक ने कहा, “यह कैसा मज़ाक है? क्या आप मेरे दुख का मखौल उड़ा रही हैं. मीरा 15 दिन पहले दिल्ली मथुरा रेल हादसे में मर चुकी है. मेरी मीरा चली गई, मैं उसके आख़िरी समय में उसके पास नहीं था. वह ग़ुस्सा थी मुझसे, घर छोड़कर अपनी मां के पास मथुरा जा रही थी कि तभी यह हादसा हुआ. काश! मैं लड़ने की जगह उससे आख़िरी बात यह कह पाता कि मुझे तुमसे प्यार हैै... मीरा मुझे तुम्हारी ज़रूरत है...”
इतना सुनना था कि राधा के हाथों से फोन छूट गयाा. आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी और उसे कुछ याद आ रहा था, तो मीरा के आख़िरी शब्द, “राधा ज़िंदगी किसी को दूसरा मौक़ा नहीं देती बिल्कुल किसी रेल की तरह..!”

Kahani
Vijaya Kathale
विजया कठाले निबंधे

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article