"टेंशन मत ले। ऐसा नहीं होने दूंगा मैं। आज जो स्टोरी मैं कवर करने जा रहा हूं, वह भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में सबसे डरावनी सच्ची कहानी साबित होगी। मैंने अपने सोर्स से सब जानकारी ले ली है। दिस विल बी ए गेम चेंजर।…"
चैप्टर 1
बदले की शुरुआत...
रात के करीब १२ बज रहे थे। महाराष्ट्र के अमरावती जिले के पास एक जंगल से कुछ दूर हाईवे पर एक SUV कार तक़रीबन 100 किलोमीटर की स्पीड से जा रही थी। ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए राशिद का अचानक फ़ोन बजा। राशिद ने तुरंत अपने कार के इनबिल्ट ब्लूटूथ से कॉल रिसीव किया, "यस , सुप्रिया। में १० मिनट में पहुंच रहा हूं।"
दूसरी तरफ सुप्रिया -"राशिद तुमको मालुम हे ना कल सुबह की डेडलाइन हे। अगर कल तक स्टोरी सबमिट नहीं की तो एडिटर तेरी और मेरी दोनों की नौकरी खा जाएगा। "
राशिद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," टेंशन मत ले। ऐसा नहीं होने दूंगा में। आज जो स्टोरी में कवर करने जा रहा हु , वह भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में सबसे डरावनी सच्ची कहानी साबित होगी। मैंने अपने सोर्स से सब जानकारी लेली है। धिस विल बि ए गेम चेंजर । आई हैव गॉट थीस। सी यू लेटर। "इतना बोलते ही राशिद ने फ़ोन कट करदिया | उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास दिख रहा था।
राशिद एक टेलीविज़न न्यूज़ चैनल का एंकर है। पहले वह क्राइम रिपोर्टर था। लेकिन पिछले एक -दो सालो से वह उसी न्यूज़ चैनल के एक हौन्टेड रियालिटी शो के लिए भूत / आत्मा की सच्ची कहानिओ को कवर कर रहा है। आज भी वह एक ऐसी ही स्टोरी को कवर करने जा रहा है।
कुछ देर ड्राइव करने के बाद राशिद को जंगल शुरू होने की सुचना पट्टी दिखी। उसने और 500-मीटर कार ड्राइव करके आगे एक सुमसान जगह पर साइड में कार को पार्क कर दिया। वह इंजन को बंद करके एक पल के लिए कुछ सोचता रहा और एक लम्बी सी सांस लेके अपने स्पेशियल कैमरा को हाथ में लेके गाडी के बाहर उतरा। उसने ब्लैक कलर का जीन्स और ब्लू कलर का टीशर्ट पहन रखा था। ठंडी का मौसम है इसीलिए एक ग्रे कलर का जैकेट भी पहना हुआ था। उसके ऊपर गले में लटका हुआ ID कार्ड उसकी पहचान दे रहा थi। क्लीन शेव और घुंगराले बालो के साथ उसका दिखाव किसी पिक्चर के हीरो से कम नहीं था।
उसने गाडी से उतर कर अपनी आस पास देखा। हाईवे पर इस वक़्त कोई गाडी दिख नहीं रही थी। एक अजीब सा सन्नाटा था वहा पर। ठंडी की वजह से काफी सारा फोग था इसलिए उसने अपने पास रखी हुई टोर्च चालू करदी थी। उसकी घडी में तक़रीबन रात के 12.30 बज रहे थे। उसने अपने फ़ोन से सुप्रिया को फ़ोन किया ,सामने से सुप्रिया ने दो रिंग में ही फ़ोन उठा लिया। राशिद ने उसको बताते हुए कहा , "मैं लोकेशन पर पहुंच गया हु लेकिन कोई दिख नहीं रहा “।
सुप्रिया ने जवाब देते हुए कहा, " यादव अपनी टीम के साथ पहुंच रहा है। मेरी अभी बात हुई है उनके साथ। उनकी गाडी का पंक्चर हो गया है। तक़रीबन 30-40 मिनट में पहुंच जाएँगे वह लोग। ".
राशिद ने तुरंत जवाब दिया, " क्या? इतना सारा वक़्त नहीं है अपने पास। कल सुबह तक मुजे यह स्टोरी कवर करनी है। में उनलोगो की वजह से अपना टाइम बर्बाद नहीं कर सकत। में अपना काम चालू कर रहा हु। उनको बोलो मेरा लोकेशन ट्रैक कर के मुजे जंगल के अंदर ही मिले ."
सुप्रिया ने तुरंत ही गभराते हुए दूसरी तरफ से बोला," नहीं राशिद। जल्दबाज़ी मत करो। अकेले वहा जाना खतरे से खाली नहीं। तुम्हे मालुम है ना वहा पर क्या क्या हो रहा है और काफी लोग मारे जा चुके है !! कुछ देर वैट करलो। "
लेकिन राशिद ने बात ना मानते हुए बोला," मेरी चिंता मत करो। मुजे कुछ नहीं होगा। यह मेरी पहली घोस्ट कवर स्टोरी नहीं है। आई विल मैनेज थीस। यादव को बोलो मेरा लोकेशन ट्रैक कर के मुजे जंगल के अंदर ही मिले। " इतना बोलते ही राशिद ने फिर से फ़ोन कट कर दिया।
दूसरी तरफ सुप्रिया "हेलो, हेलो" बोलती रही लेकिन तब तक फ़ोन कट हो चूका था। उसको मालुम था की कॉल बैक करके फायदा नहीं है क्यों की राशिद एक ज़िद्दी इंसान है। वह उसकी बात नहीं मानेगा। सुप्रिया के चेहरे पर साफ़ - साफ़ चिंता की लकीरे दिख रही थी। उसको पता था अब वह कुछ नहीं कर सकती।
एक बार फिर से राशिद ने अपनी चारो और देखा। कोई दिख नहीं रहा था। उसने अपने जेब से सिगरेट निकाल कर अपने मुँह में रखी और अपने दूसरी जेब में से लाइटर निकाल कर उसको जालाया। 2 – 3 लम्बे कश लेने के बाद उसने सिगरेट को वही फ़ेंक दिया। सिगरेट को अपने पाँव से कुचल कर उसको बूजा दिया और वह जंगल की और बढ़ गया।
राशिद धीरे धीरे जंगल में आगे बढ़ रहा था। काफी सन्नाटा छाया हुआ था चारो और। घने अँधेरे जंगल में कुछ ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था।राशिद ने अपनी टोर्च चालू कर दी थी लेकिन अँधेरे और फोग की वजह से टोर्च भी ज़्यादा दूर तक रौशनी नहीं दे रही थी। सन्नाटे में जुगनू की आवाज़ और पैर के निचे टूटे हुए पेड़ के सूखे पत्ते एक डरावना माहौल बना रहे थे। कोई जानवर तो नहीं था लेकिन पेड़ो पे लटके हुए जमगादर अपने आवाज़ों से डर का माहौल पैदा कर रहे थे। अब राशिद चलते चलते हाईवे से काफी दूर आ चूका था।
अचानक सामने की झाड़िओ में कुछ आवाज़ आने लगी। ऐसा लग रहा था की झाड़िओ के पीछे कोई है। अचानक से झाडिया हिलने लगी। यह देख कर राशिद चौकन्ना हो गया और उसने अपने स्पेशियल कैमरा को झाड़िओ की तरफ कर के रिकॉर्डिंग चालू करदी। अचानक से झाड़िओ की हिलने की आवाज़ तेज़ हो गयी और तभी अचानक राशिद के हाथ की टोर्च की रौशनी बंधहो गयी। तुरंत ही राशिद टोर्च को अपने हाथो से टपकारने लगा और दूसरी तरफ झाड़िओ की हिलने की आवाज़ और तेज़ हो गयी। अब ऐसा लग रहा था की कोई झाड़िओ में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है।
इस वक़्त राशिद एकदम डर गया और जोर से अपनी टोर्च को टपकारने लगा। अचानक से टोर्च की रौशनी वापिस आगयी। राशिद ने तुरंत ही झाड़िओ की और देखा तो उसमे से तीन खरगोश बाहर आये। यह देहते ही राशिद गुस्से में बोला , "यू लिटिल शीट …" और अपने पावो से उन करगोशो को डरा के भगा दिया.I अब राशिद ने राहत की सांस लीI अचानक उसको महसूस हुआ की कोई उसके पीछे खड़ा है और ज़ोरो से साँसे ले रहा है। उसने एकदम पलट कर देखा लेकिन वहा पर कोई नहीं था। उसको लगा की शायद उसका भ्रम है। राशिद ने वापिस एक सिगरेट जलाई और कश लेते लेते वह आगे चलने लगा।
राशिद धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था तभी उसको लगा की कोई उसका नाम लेके उससे बुला रहा ह।राशिद ने अपनी टोर्च को चारो और घुमाया लेकिन कोई दिखाई दे नहीं रहा थ।राशिद ने उसको अपना भ्रम समज कर आगे चलना चालू किय। अब वह आवाज़ आना बंध हो गई थ।कही ना कही अपने मन में राशिद सोच रहा था की उसको सुप्रिया की बात मान लेनी चाहिए थी। अब तक वह तक़रीबन 30 मिनट के ऊपर चल चूका था लेकिन अपने शो की स्टोरी के लिए कंटेंट कहलाने लायक कुछ मिला नहीं था।वह सोचने लगा की शायद वह अपना समय बर्बाद कर रहा है और उसको वापिस मूड जाना चाहिए।.
राशिद ने अपनी सिगरेट के दो लम्बे कश लेकर वही फ़ेंक कर पहले की तरह अपने पाँव से बुजा दिय।अब वह वापिस जाने के लिए मुडा ही था की अचानक उससे कुछ आवाज़ आने लग। उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की तो ऐसा महसूस हुआ की वह आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई पेड़ काट रहा हो। राशिद को थोड़ा अजीब लगा इसलिए उसने वहा जाकर देखने का फैसला किया।
राशिद धीरे धीरे आवाज़ की तरफ आगे बढ़ रहा था। जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे आवाज़ तेज़ होती जा रही थी।तभी अचानक राशिद को दूर एक पेड़ पर कोई कुल्हाड़ी मार रहा हो ऐसा महसूस हुआ। राशिद ने अपने कैमरा को चालू किया और वही दिशा में रिकॉर्ड करते करते धीरे आगे बढ़ा। कुछ कदम चलने के बाद उसको साफ़ साफ़ दिख रहा था की कोई पेड़ को कुल्हाड़ी से काट रहा है.राशिद ने पेड़ काटने वाले को मालुम ना पड़े इस तरीके से धीरे धीरे दूसरी तरफ से आगे बढ़ना चालू किया ताकि वह पेड़ काटने वाले इंसान का चेहरा साफ़ साफ देख सके।
कुछ कदम चलने के बाद राशिद उस जगह पर पहुंच गया जहां से वह पेड़ काटने वाले का चेहरा साफ़ साफ़ देख सके। जैसे ही राशिद वहा पंहुचा, वहा का मंज़र देखते ही राशिद के होश उड़ गए, क्यों की जो इंसान पेड़ काट रहा था, उस इंसान का सर गायब था। वह एक सर-कटा इंसान का भूत था।
यह देखते ही राशिद की आँख फटी की फटी रह गयी। एक पल के लिए उसके दिल की धड़कन बंध हो गयी। तभी अचानक वह सर-कटा इंसान गायब हो गया।अब राशिद पूरी तरह से डर गया था।इतनी ठंडी की मौसम होने के बावजूद भी वह पसीने पसीने हो रहा था।तभी उसको किसी के चलने की आवाज़ आयी। वह आवाज़ वहा से आ रही थी जहा से सर - कटा इंसान कुछ देर पहले गायब हुआ था। वह चलने की आवाज़ को अपनी तरफ आती हुई सुनकर राशिद और डर गया और उसने बिना कुछ सोचे समजे भागना चालू कर दिय। इस हड़बड़ाहट में टोर्च उअके हाथो से गिर गयी। कुछ दूर भागने के बाद अब वह चलने की आवाज़ बंध हो चुकी थी और दूसरी तरफ इतना भागने की वजह से राशिद की साँसे भी फूल गयी थी और वह ज़ोरो से हाफने लगा।
उसने अपने मोबाइल को निकाल ने की कोशिश की तो उससे मालुम पड़ा की वह कही गिर गया है। अब उसके पास कोई जरिया नहीं था जिससे वह किसीको कांटेक्ट कर सके।राशिद पूरी तरह डर चूका था।तभी अचानक कही दूर से कुछ लोगो की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। यह आवाज़े सुनकर राशिद और डर गया। अब वह आवाजे धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी लेकिन जंगल में उसके सिवा कोई दिख नहीं रहा था।राशिद को समज में ही नहीं आ रहा था की वह क्या करे।वह वापिस जाने का रास्ता भी भूल चुका था।अब वह आवाज़े तेज़ होती जा रही थ।राशिद साफ़ साफ़ सुन सकता था,अचानक वह गिङगिङाने लगा की “मुजे माफ़ करदो, मुझसे भूल हो गयी। ऐसा लग रहा था की राशिद उन आवाज़ों को पहले से पहचानता है।
तभी राशिद को कोई पीछे से उसकी तरफ आते हुए महसूस हुआ, तुरंत ही राशिद ने वापिस भागना चालू किया।डर और थकान की वजह से उसकी हालत बुरी हो चुकी थी लेकिन वह पूरी कोशिश कर रहा था अपने आप को बचाने की। वह जितना तेज़ भाग रहा था उतनी ही तेज़ कोई चीज़ उसका पीछा कर रही थी।अचानक भागते भागते राशिद का पाँव एक पत्थर से टकराया और वह गिर गया।उसने जैसे ही उठने की कोशिश की तो सामने अचानक कही से वह सीर-कटा हैवान प्रकट हो गया और दूसरी ही पल में उस सर-कटे हैवान ने राशिद के सीर के बीचो - बिच कुल्हाड़ी मार कर उसकी खोपड़ी फाड् दी । उसके सर में से खून की बौछार उडी और वह एक लाश बनकर वही पर गिर गया।उसका बेजान शरीर खून में लथपथ हो रहा था।
थोड़ी देर के बाद यादव अपने दो साथियो के साथ राशिद को ढूंढते ढूंढते जंगल में जा पहुंचा । राशिद का लोकेशन ट्रैक करते करते उन लोगो को राशिद का मोबाइल मिला लेकिन राशिद कही दिखाई नहीं दे रहा था।उस वक़्त घडी में रात के ढाई बज रहे थे। आस पास का माहौल और राशिद का कही नज़र नहीं आना उन लोगो के दिल में डर पैदा कर रहा था। उन लोगो ने फैसला किया की तीनो लोग अलग अलग दिशा में जाएँगे और 20 मिनट के बाद यही वापिस मिलेंगे।उन्हों ने एक पेड़ पर निशान किया और अलग अलग दिशा में आगे बढ़ गए।इस वक़्त गहरा सन्नाटा और अँधेरा एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहा था।यादव और उनके दोनों साथिओ भी एक हद तक डर्रे हुए थे । तक़रीबन 20 मिनट के बाद यादव और उसका एक साथी वापिस वही जगह आ पहुंचे
जहा से वह तीनो अलग हुए थे।
" इस तरफ तो कोई नहीं है।तुजे कुछ दिखा?" यादव ने अपने साथi को पूछा।
उसके साथी ने अपना सर हिलाके ना में जवाब दिया। तभी दोनों को एहसास हुआ की उनका तीसरा साथी वापिस नहीं आया। अब दोनों को थोड़ी चिंता होने लगी और कुछ अनहोनी होने का अंदाजा आ रहा था। दोनों ने एक दूसरे को देखा जैसे इशारो में बात कर रहे हो। दोनों ने फिर वही दिशा में चलना चालु किया जहा पर उनका तीसरा साथी गया था। बिच बिच में वह लोग राशिद और अपने तीसरे साथी का नाम पुकार रहे थे लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा था। यह बात उन लोगो के दील में और डर पैदा कर रही थी।
उन लोगो के हाथ में टोर्च थी लेकिन फॉग होने के कारण ज़्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तक़रीबन दस मिनट चलने के बाद उनको दूर से ऐसा लगा की कोई ज़मीन पर लेता हुआ है। दोनों ने एक दूसरे को देखा और धीरे धीरे सावधानी से आगे बढे।
कुछ कदम चलने के बाद उनको कोई इंसान जमीन पर गिरा हुआ दिखा। वह उनका तीसरा साथी ही था जो बेहोश हो गया था। वह दोनों जल्दी से भागे और उसके पास पहुंच गए। यादव ने उसका सर अपने पैर पर ले लिया और दूसरे साथी ने अपनी पानी की बोतल में से थोड़ा पानी लेकर उसके चेहरे पर छिटका। कुछ पल में वह होश में आया लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। ऐसा लग रहा था की उसने कोई भूत देख लिया है। उसके चेहरे पर डर साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था।
उसने आगे की तरफ ऊँगली से इशारा कीया लेकिन कुछ बोल नहीं पाया। यादव ने अपने दूसरे साथी को देखा और वह भी जैसे समज गया हो वैसे दोनों ने धीरे धीरे अपने तीसरे साथी को संभलकर खड़ा किया और आगे की और बढे।कुछ कदम चलने के बाद उन लोगो ने देखा की कोई ज़मीन पर गिरा हुआ है। तीनो थोड़े नज़दीक गए और वहा का मंज़र देख कर तीनो के मुँह में से चीख निकलते निकलते रह गयी। वह लोग अपनी फटी आँखों से उस तरफ पुतले की तरह देख रहे थे। वहा निचे ज़मीन पर राशिद की खून मैं लथ-पथ लाश पड़ी थी।
कुल्हाड़ी राशिद के सर के बीचो बिच फसी पडी थी और उसकी आँखे खुली थी। अभी भी उसके सर में से खून निकल कर पुरे शरीर पे फैल रहा था। अचानक से तीनो में एक फुर्ती आगयी और तीनो ने हाईवे की तरफ भागना शुरू किया। कुछ देर बाद वह तीनो अपनी कार के पास पहुंच गए। तीनो ऐसे हाफ रहे थे जैसे की कोई मॅरेथॉन भाग के आये हो। एक ने पुलिस को फ़ोन किया और एक ने सुप्रिया को फ़ोन करके पूरी वारदात की जानकारी दी।राशिद के बारे में मालुम होने के बाद सुप्रिया बेहोश हो गयी। थोड़ी देर में पुलिस भी वहा पहुंच गइ और तहक़ीक़ात शुरू करदी थी।
सुबह के तक़रीबन पांच बज रहे थे। एस.पि.शर्मा अपने कमरे में बेड पर सो रहे थे। उनके बाजू मे उनकी पत्नी भी सोई हुई थी। कमरा काफी बड़ा था और लग रहा था की ऐस. पि. साहब ने काफी खर्चा किया है। अचानक से टेबल पर रखे हुए मोबाइल फ़ोन में रिंग बजी। दो रिंग बजने के बाद एस. पि. शर्मा ने फ़ोन उठा लिया। आधी नींद की आवाज़ में उन्हों ने, "हैलो" कहा। सामने से उनके जूनियर अफसर ने राशिद के खून की जानकारी दी।
सारी बात सुनने के बाद एस.पि. शर्मा ने अफसर को कहा, " 9 बजे मुजे डिटेल रिपोर्ट के साथ ऑफिस में मिलना " और इतना कहने के बाद उन्होंने कॉल कट कर दिया।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे अफसर रिपोर्ट के साथ एस. पि शर्मा के ऑफिस में पहुंच गया। एस. पि. शर्मा ने अफसर को बैठने को कहा और अफसर से रिपोर्ट लेकर पढ़ने लगे। रिपोर्ट के पहले ही पन्ने पर राशिद के शव का फोटो था। वह देख कर तुरंत ही एस.पि. शर्मा चौंक गये। उनके चेहरे पर चिंता की रेखा दिखने लगी।
"सर आप ठीक तो है?" अफसर ने तुरंत ही एस. पि. शर्मा की हालत देख कर उनको पूछा। अपने आप को सँभालते हुए एस. पि शर्मा ने कहा, "नथिंग I आई ऍम फाइन। गिव मि ध अपडेट"।
"सर ,इसका नाम राशिद था। एक न्यूज़ चैनल के लिए काम करता था काफी बड़े लोगो के साथ उठाना बैठना था। अपने चैनल के एक शो के लिए शूट कर रहा था", ऑफिसर ने एस.पि शर्मा को जानकारी देते हुए कहा। अपनी बात ख़तम करते वक़्त अफसर के चेहरे पर अजीब सी चिंता दिख रही थी। एस. पि. शर्मा ने तुरंत ही सवाल किया, "क्या हुआ अफसर? ऐसा लग रहा है तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है।"
अफसर ने अपने आपको स्वस्थ किया और कहा, "सर, यह इस महीने की तीसरी वारदात है वह जंगल में। पहले दो लोगो की भी इसी तरह निर्मम हत्या की गयी थी "।
एस. पि. शर्मा ने थोड़ी कड़क आवाज़ में पूछा, "तुम कहना क्या चाहते हो अफसर? साफ़ साफ़ अपनी बात कहो । "
अफसर ने जवाब देते हुए कहा, "सर, कही गांव वालो की बात सच तो नहीं ? शायद यह सारी हत्या वह भूत ..." अफसर अपनी बात पूरी करे उसके पहले ही एस. पि. शर्मा गुस्से में, "कैसी पागलो जैसी बात कर रहे हो? अपनी नाकामिनिओ को भूत का नाम मत दो। मीडिया पहले ही पुलिस के पीछे लगी रहती है। ऐसी बात करके और मज़ाक मत बनाओ डिपार्टमेंट का। "
"सॉरी सर", अफसर ने एस. पि. शर्मा से माफ़ी मांगते हुए निचे की और देखा. "तुम जा सकते हो। और मुजे जल्द से जल्द इस केस पर कोई रिजल्ट चाहिए। "
अफसर एस. पि. शर्मा को सल्यूट कर ऑफिस के बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद एस. पि. शर्मा अपनी खुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने लगे। ऐसा लग रहा था की वह किसी बात को लेकर टेंशन में है। तभी उनके मोबाइल पर किसी का फ़ोन आय।मोबाइल स्क्रीन पर ऍम.एल. ए. शिंदे लिख कर आ रहा था। एस. पि. शर्मा ने तुरंत फ़ोन रिसीव किया लेकिन एस. पि. शर्मा कुछ बोले उसके पहले ही सामने से ऍम.एल. ए. शिंदे ने बोलना चालू कर दिया," में जो सुन रहा हु वह सच है? राशिद की हत्या किसने की है?" शिंदे की आवाज़ में काफी हड़बड़ाहट थी।
उसको शांत करते हुए एस. पि. शर्मा ने कहा, "चिंता मत कीजिये। में इस मामले को पर्सनली इन्वेस्टीगेट करुगा।
लेकिन शिंदे शांत नहीं हुआ और पुलिस डिपार्टमेंट की नाकामिनिओ की वजह से काफी खरी-खोटी सुनाई और आखिर में कहा, "तुम सब निकम्मे हो।एक बात समजलो, अगर में डूबा तो सब डूबेंगे" और इतना बोलके शिंदे ने फ़ोन कट कर दिया।
फ़ोन कट होने के बाद एस. पि. शर्मा को गुस्सा तो आया की वह उस एम् .एल. ए के दांत तोड़ दे लेकिन अपने गुस्से पर काबू रख कर वह कुछ गहरी सोच में चले गये। कुछ पल के बाद एस. पि. शर्मा ने अपने फ़ोन से एक नंबर डायल किया और एक दो रिंग में ही सामने से "हैलो" की आवाज़ आयी. "जे .डी. एक बुरी खबर है। कल रात को जंगल में किसी ने राशिद का खून कर दिया है।" एस. पि. शर्मा ने सामने वाले आदमी को पूरी बात बतायी।
"ठीक है। तुम अपना काम चालू रखो में डेविड को भेज रहा हु। " इतना बोल के सामने वाले आदमी ने फ़ोन कट कर दिया ।
वैसे तो अपनी बीस साल की करियर में एस. पि शर्मा ने कही खून के केस सुलझाए लेकिन यह केस एस. पि शर्मा को कुछ अजीब सी परेशानी दे रहा था। अभी तो इन्वेस्टीगेशन शुरू ही हुयी थी लेकिन लग रहा था की जैसे एस. पि. शर्मा को सच पता है।
चैप्टर 2
सब की मौत आएगी....
जंगल में एक लड़की धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। आधी रात का वक़्त था।दूर दूर से जंगली जानवरो के रोने की आवाज़े आ रही थी। चलते चलते लड़की एक पेड़ के पास पहुंची जिसको देख कर ऐसा लग रहा था की अभी अभी किसी ने उस पेड़ को काटने की कोशिश की हो। और वही पर एक ID कार्ड पड़ा हुआ था। लड़की ने उस ID कार्ड को उठाया तो उसपे राशिद का नाम और उसकी तस्वीर थी। अचानक से सामने से एक जमगादर लड़की की तरफ उड़ता हुआ आया। लड़की तुरंत ही डर के मारे निचे जुक गय।लड़की के चेहरे पर डर के मारे पसीना आ रहा था।उसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा था की वह किसी को ढूंढ रही हो।
अचानक से उससे लगा की कोई झाड़ियो में से निकल कर उसकी और भाग रहा है। उसने पीछे मूड कर देखा तो उसके मुँह में से एक चीख निकल गयी और चेहरे पर डर साफ़ साफ़ दिख रहा था । लड़की ने अपने जिस्म में जितनी भी ताकत थी उससे भागना शुरू किया। अँधेरे में कभी झाड़ियो से तो कभी पेडो से टकरा रही थी लेकिन वह रुकी नहीं। वह भागते भागते पीछे देख रही थी तो वह चीज़ उसका उतनी ही तेज़ी से पीछा कर रही थी।
अचानक से भागते भागते उसका पाँव एक पत्थर से टकराया और वह निचे ज़मीन पर गिर गयी। दर्द की वजह से वह लड़की कराह ने लगी।जो चीज़ उसके पीछे भाग रही थी उसने उस पर हमला कर दिया।तभी अचानक से सुप्रिया की आँख खुल गयी और उससे एहसास हुआ की वह एक डरावना सपना देख रही थी।डर के मारे वह पूरा पसीना पसीना हो चुकी थी मानो की अभी अभी नहा कर आयी हो। वह ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी। कुछ पल अपने बिस्तर पर ऐसे ही बैठी रही और फिर उसने दीवाल पर टंगी हुई घडी में समय देखा तो इस वक़्त सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे। अब वह धीरे धीरे शांत हुई लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी थोड़ा डर दिख रहा था। थोड़ी देर के बाद वह अपने बिस्तर से खड़ी हुई , ऐसा लग रहा था की उसने कोई फैसला किया हो।
"नो! नो सुप्रिया! I can't let you to do this!" सुप्रिया अपने एडिटर की ऑफिस में उसके साथ वही जंगल में जाने की बहस कर रही थी जहा पर राशिद का खून हुआ था लेकिन एडिटर ने मना कर दिया।
" लेकिन सर, प्लीज ट्राय टू अंडरस्टैंड। आई रियली नीड टू डू थीस। मुजे वहा जाकर सचाई की तेह तक जाना है" सुप्रिया ने अपने एडिटर से कहा।
" सुप्रिया मैं जानता हु की राशिद के साथ जो कुछ भी हुआ उससे तुम काफी डिस्टर्ब हो लेकिन मैं तुमको अपनी ज़िंदगी को खतरे में डालने की इज़ाज़त नहीं दे सकता। पहले भी काफी वारदाते हुई है वहा और पुलिस अपना काम कर रही है। में तुम्हे यह करने की इज़ाज़त नहीं दूंगा।" एडिटर ने सुप्रिया को मन करते हुए कहा।
" सर आई ऍम सॉरी लेकिन मैं इस बात की तह तक जाना चाहती हूं।अगर चैनल और आप मेरी मदद नहीं कर सकते तो में अपने आप ही इसका पता लगा लुंगी" इतना बोलते ही सुप्रिया एडिटर की केबिन के बाहर निकल गयी।
एडिटर चाहके भी कुछ नहीं बोल पाया और सुप्रिया को जाते हुए देखता रहा। कुछ पल के बाद एडिटर ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया।एक - दो रिंग में सामने से फ़ोन रिसीव हुआ, " वह नहीं मानी। अब तुम्हे ही कुछ करना पड़ेगा" इतना कहने के बाद एडिटर ने फ़ोन कट कर दिया।
एस. पि शर्मा अपने ऑफिस में केस फाइल पढ़ रहे थे तभी उनका एक कॉन्स्टेबल आया और सेल्यूट करके बोला," जय हिन्द सर, आपसे कोई मुंबई से मिलने आया है"।
एस. पि. शर्मा ने कांस्टेबल को उसको अंदर भेजने के लिए कहा। कांस्टेबल वापिस सेल्यूट करके बाहर चला गया और उस आदमी को अंदर जाने के लिए कहा। कुछ पल के बाद एक मध्यम कद का लेकिन चौड़ी छाती वाला एक आदमी एस. पि. शर्मा की केबिन के अंदर दाखिल हुआ। उसने ब्लू जीन्स और ब्लैक कलर का टी -शर्ट और उसके ऊपर ब्राउन कलर का जैकेट था। हाथो में सोने का ब्रासलेट और दस मे से सात उंगलिओ में सोने की अंगूठी थी। चेहरे पर किसी पुराने ज़ख़्म के निशान थे। उसकी उम्र चालीस साल के आस पास की लग रही थी। वह किसी बॉडीबिल्डर से कम नहीं लग रही थी।उस आदमी को देखते ही एस. पि. शर्मा एक पल के लिए चौंक गये लेकिन दूसरे ही पल में उन्हों ने खुद को संभाल लिया और उस आदमी को बैठने को कहा।
वह आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में तक़रीबन तीस मिनट तक था और दोनो के बिच में काफी बाते हुई। कुछ वक़्त के बाद वह आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में से निकला तभी दूसरा आदमी सामने की तरफ से आया।दूसरा आदमी इतनी हड़बड़ी में था की वह उस आदमी के कंधे से टकरा गय। दोनों ने एक दूसरे को सॉरी कहा और अपने अपने रास्ते चल बने।दूसरा आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में दाखिल हुआ, उसको देख कर एस.पि. शर्मा बोल पड़े,“ अरे आरिफ तुम ! कब आये? “.
लेकिन आरिफ जवाब देने की बजाए रोने लगा। एस.पि. उसको शांत करते हुए, “ हमें भी तुम्हारे भाई की मौत का बहुत अफ़सोस है। हम पर भरोसा रखो हम उसके कातिल को जल्द से जल्द पकड़ लेंगे. इस वक़्त तुम्हे हिम्मत से काम लेना होगा।”
दूसरी तरफ आरिफ रोते हुए, “सर, लेकिन यह कैसे हो गया? एक दिन पहले ही मेरी भाई से बात हुई थी। वह मुजे अगले हफ्ते मिलने भी आने वाले थे।”
एस.पि. शर्मा कुछ बोले नहीं और उसको देखते रहे।कुछ देर बाद एक लम्बी सांस लेते हुए ,“आरिफ, हम इन्वेस्टीगेशन कर रहे है।जैसे ही कुछ मालुम पड़ेगा तो में खुद तुमको बताउगा। फिलहाल हिम्मत से काम लो"।
आरिफ कुछ देर ऐसे ही मायूस होकर बैठा रहा और फिर उसने धीरे धीरे खुद को शांत किया। “सर, जब तक यह इन्वेस्टीगेशन पूरी नहीं हो जाती, में इसी गांव में रहुगा। जिसने भी मेरे भाई को मारा है, उसको सज़ा दिलवाके ही रहुगा” और इतना बोलते ही वह वहा से चला गया।एस.पि. शर्मा ने उसको रोकने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहे।
आरिफ राशिद का छोटा भाई था। दोनों में ज़्यादा उम्र का फर्क तो नहीं था लेकिन आरिफ अपने भाई को एक बाप की तरह मानता था।आरिफ पुणे में आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा था।
राशिद की हत्या को दो – तीन दिन हो चुके थे।पुलिस अपनी इन्वेस्टीगेशन कर रही थी, मीडिया भी अपनी तरफ से प्रशाशन पर दबाव डाल रही थी लेकिन कही से भी कोई सुराग नहीं मिल रहा था।एस. पि शर्मा के लिए यह केस सॉल्व करना जरूरी था क्यों की उनको मीडिया और सरकार के साथ अपने कुछ “ख़ास दोस्तों” को भी जवाब देना था।
मुंबई के एक कैफ़े में सुप्रिया अपने दोस्तों के साथ राशिद के मौत के सिलसिले में बाते कर रही थी।“सुप्रिया, तुम एक बार फिर सोचलो, क्या तुम सही में यह करना चाहती हो?” अनुज ने सुप्रिया को पूछा।
“हा अनुज, मैंने फैसला कर लिया है।अब में खुद राशिद की हत्या का सच ढूंढूगी” सुप्रिया ने अनुज को कहा।
” लेकिन तुम्हे पता है ना वहा जाना कितना खतरनाक है।और तुम ही कह रही थी की राशिद के पहले भी वहा और भी कही ऐसी वारदाते हो चुकी है। और पुलिस तो अपना काम कर ही रही है” रिया ने सुप्रिया को समजाते हुए कहा।
अनुज और रिया सुप्रिया के बहुत अच्छे दोस्त थे और दोनों सुप्रिया को उस जंगल में नहीं जाने के लिए समजा रहे थे लेकिन सुप्रिया अपना फैसला कर चुकी थी।वह अपने दोस्तों की किसी बातो को नहीं मान रही थी।
“सुप्रिया, तुम्हारे पापा एक बड़े बिजनेसमैन है, और काफी पॉलिट्सियन्स से अच्छी पहचान भी है।तुम अपने पापा को बोलकर पुलिस पे दबाव क्यों नहीं बनवाती हो?” रिया ने सुप्रिया को सवाल किया।
“नहीं रिया, तुम तो जानती हो, मुजे पापा के तरीको से सख्त नफरत है। और मेरे लिए राशिद सिर्फ एक मेंटर और सह कर्मचारी ही नहीं लेकिन एक अच्छा दोस्त भी था। उस जंगल पर स्टोरी कवर करने का आईडिया मेरा था।कही ना कही में भी उसकी मौत की जिम्मेदार हु।” इतना बोलते ही सुप्रिया रोने लगी ।
उसके दोस्तों ने उसको संभाला और शांत किया।आखिर में अनुज ने कहा, “वी अंडरस्टैंड यू। लेकिन तुम वहा अकेली नहीं जाओगी।हम दोनों भी साथ आएगे।” अनुज को सुप्रिया मना नहीं कर सकी और उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट खिल उठी।
गनेश, अपनी खोली में अपने आदमीओ के साथ कुछ बात कर रहा था तभी उसका फ़ोन बज उठा। फ़ोन की स्क्रीन पर डेविड लिखा आ रहा था।यह नाम देखते ही गनेश ने फ़ोन रिसीव किया।सामने से उस डेविड नाम के आदमी ने कुछ कहा और जवाब में गनेश सिर्फ हां में हां करे जा रहा था।तक़रीबन दो-तीन मिनट के बाद दोनों की बात ख़तम हुई और गनेश ने फ़ोन रख दिया।
गनेश ने अपने आदमीओ से कहा, “आज रात को वह काम ख़तम करना है|"
तभी उसके आदमी ने उसको कहा,” लेकिन भाई, अभी भी वहा पर पुलिस का कडा बंदोबस्त है।”
तभी दूसरे आदमी ने उसकी बात को समर्थन देते हुए कहा, “और भाई, वह रिपोर्टर की हत्या की वजह से पुलिस ने पहरा और सख्त कर दिया है।गांव में भी अजीब सी बाते हो रही है।”
गनेश ने एक नज़र दोनों की तरफ डाली और फिर बोला, ”पुलिस का टेंशन मत लो तुम लोग। वह जे.डी. शेठ देख लेंगे। बाकी रही गांव वालो की बात, वह हमारे लिए फायदेमंद है। इस अंधविस्वास की वजह से वहा कोई आएगा नही। तुम लोग आज रात की तैयारी करो। ” गनेश की आवाज़ में हल्का सा कड़क पना था। गनेश की बात सुनकर उसके आदमी कुछ और बोल नहीं पाए और रात की तैयारी करने के लिए वहा से निकल गये।
गनेश एक छठा हुआ बदमाश था।ऐसा कोई भी गैर कानूनी काम नहीं था जो वह नहीं करता हो।किडनेपिंग, मर्डर, बलात्कार, एनिमल ट्राफ्फिकिंग और कही गैर कानूनी धंधे चलाता था वह।उसको लोकल पॉलिटिशियन का सपोर्ट भी था इसीलिए उस पर केस तो काफी सारे हुए लेकिन सज़ा एक में भी नहीं हुई। जब भी पुलिस उसे गिरफ्तार करती थी, वह एक या ज्यादा से ज्यादा दो दीनो में छूट जाता। इसी वजह से गांव में कोई भी उसके खिलाफ नहीं जाता और अगर गलती से किसी ने हिम्मत की तो फिर वह इंसान फिर कभी भी नहीं दिखा।
रात के लगभग एक बज रहे थे और गनेश अपने दोनों आदमीओ के साथ अपनी काले कलर की खुली जीप में जा रहा था। तीनो के पास लम्बी वाली बंदूके थी और उसके अलावा जीप में भी कुछ हथियार थे।गनेश ड्राइवर की बाजू वाली सीट पर बैठा था और दूसरा आदमी पीछे बैठा हुआ था।अचानक गनेश की नज़र ड्राइव कर रहे आदमी के गले पर गयी। उसने देखा की उस आदमी ने कुछ तावीज़ जैसा पहना हुआ था।
गनेश ने अपने आदमी को उस के बारे में पूछा। उसके आदमी ने जवाब दिया, “भाई यह मंदिर के पुजारी से लिया है।वह जंगल के अंदर जो बिना सर का भूत घूम रहा है उससे रक्षा करने के लिए। में आप दोनों के लिए भी लाया हु, यह लीजिये।”इतना बोलते ही गनेश के आदमी ने अपनी जेब में से दो और तावीज़ निकाले ।
यह देखते ही गनेश चीड़ उठा और चिल्लाते हुए बोला,” यह क्या बकवास है ! भूत-वूत खुछ नहीं होता। अगली बार ऐसी बेफ़कूफी की ना तो यह बन्दूक की सारी गोलिया तेरे भेजे में डाल दूंगा।” गनेश एक दम से गुस्से में था। उसकी आँखों से जैसे अंगार बरस रही थी।
तभी उसका फ़ोन बज उठा। गनेश ने बिना स्क्रीन देखे फ़ोन उठा लिया। फ़ोन पर सामने एस.पि. शर्मा थे, “कहा हो तुम? तुम 12 बजे तक पहुंचने वाले थे। "
गनेश ने तुरंत ही जवाब देते हुए कहा, “अरे साब आप टेंशन मत लो, बस पहुंच रहा हु । वह रास्ते में गाडी का टायर पंक्चर हो गया था।" गनेश ने बहाना बनाया।
एस.पि. शर्मा ने थोड़े गुस्से से कहा, “डेविड काफी समय पहले वहा पहुंच गया है लेकिन अब उसका फ़ोन नहीं लग रहा।जल्दी जाओ और देखो क्या हुआ है। आज रात को काम ख़तम हो जाना चाहिए।आज रात के लिए मैंने वहा से पुलिस की एक टीम को कही और भेज दिया है।” इतना बोलते ही एस. पि. शर्मा ने फ़ोन कट कर दिया।
गनेश ने अपने आदमी को गाडी की रफ़्तार तेज़ करने को कहा और खुद किसी गहरी सोच में चला गया।तक़रीबन दस मिनट के बाद गनेश के आदमी ने जीप को एक जगह पर रॉक दिया। गनेश अभी भी किसी सोच में डूबा हुआ था।
“भाई पहुंच गये।” ड्राइविं सीट पर बैठे हुए आदमी ने गनेश को कहा। अपने आदमी की आवाज़ सुनते ही गनेश थोड़ा सा चौंक गया लेकिन तुतंत ही खुद को संभल लिया। तीनो अपनी बन्दूक लेके गाडी में से उतरे। तीनो ने अपने पास एक-एक टोर्च भी रखी हुई थी।गनेश ने अपने आदमी को इशारा किया और आस पास देखने को कहा।
तीनो ने थोड़ी देर तक उस जगह का मुआयना किया और जब तस्सली हो गयी की वहा कोई पुलिस या और कोई भी नहीं है, गनेश ने अपने दोनों आदमीओ से बात की। ऐसा लग रहा था की गनेश उन दोनों को समजा रहा था की काम कैसे करना है और जंगल में कैसे आगे बढ़ना है। कुछ पल के बाद तीनो जंगल की तरफ बढे।
जंगल में थोड़ी देर आगे बढ़ने के बाद गनेश ने अपने आदमीओ को इशारा किया, और दोनों आदमी भी उसका इशारा समाज गये और तीनो अलग अलग दिशा में आगे बढे। रात काफी हो चुकी थी। जंगल काफी घनघोर था इसलिए तीनो को अपनी टोर्च चालु करनी पडी। काफी सन्नाटा छाया हुआ था। कही दूर से कुछ जानवरो की रोने की आवाज़ आ रही थी और कही से उल्लू की आवाज़े आ रही थी। यह सब माहौल को पूरी तरह से डरावना बना रहा थे।
तीनो धीरे धीरे अपनी दिशा में आगे बढ़ रहे थे। रात का वक़्त था इसलिए कोई जंगली जानवर हमला ना करे इस वजह से तीनो काफी चौकन्ने थे। तीनो बारी बारी थोड़ी देर में डेविड के नाम की पुकार लगा रहे थे लेकिन किसी को कोई जवाब नहीं मिल रहा था । तीनो को जंगल में दाखिल हुए काफी समय हो चूका था लेकिन डेविड का कोई पता लग नहीं रहा था, ऐसा लग रहा था की जैसे डेविड यहाँ आया ही नहीं हो। गनेश को अब गुस्सा भी आ रहा था क्यों की डेविड कही मिल नहीं रहा था और साथ में अजीब सी परेशानी भी हो रही थी। गनेश ने अपना फ़ोन निकाल कर अपने आदमीओ को बारी बारी कॉल करने की कोशिश की लेकिन दोनों के फ़ोन बंध आ रहे थे।गनेश की परेशानी और बढ़ गइ और उसके मुँह में से गुस्से में एक गाली निकल गयी।
अब गनेश अपनी धीरज खो चूका था और उसने वापिस लौटने का फैसला किया। तभी उसकी नज़र एक चीज़ पर पडी। उसने नज़दीक जाके देखा तो वह किसी आदमी का वॉलेट था। उसने तुरंत ही वॉलेट उठा लिया और उसके अंदर देखा तो वॉलेट में डेविड का ड्राइविंग लाइसेंस था। तुरंत ही गनेश समज गया की डेविड कही आस पास में ही है लेकिन सवाल यह था की वह है किधर! गनेश ने एक बार फिर अपना फ़ोन लिया और डेविड का नंबर डायल किया। कुछ पल में डेविड का फ़ोन जुड़ गया। जंगल में काफी सन्नाटा था इस लिए गनेश को कही से फ़ोन बजने की आवाज़ सुनाई दी।उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट आई लेकिन उसकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं थी।
क्यों की फ़ोन की रिंग तो बज रही थी लेकिन कोई उठा नहीं रहा था। गनेश को थोड़ा अजीब लगा और उसने खुद जाके देखने का फैसला किया। वह फ़ोन की रिंग की आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ा। फ़ोन की रिंग अभी भी बज रही थी और जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे आवाज़ भी तेज़ हो रही थी। कुछ तीस कदम चलते ही उसको सामने ज़मीन पर गिरा हुआ फ़ोन दिखा। गनेश ने जल्दी भागकर वह फ़ोन उठा लिया और उसकी स्क्रीन पे अपना नाम देख कर समज गया की वह फ़ोन तो डेविड का है। लेकिन अब सवाल यह था की डेविड है किधर।
गनेश ने चारो तरफ अपनी नज़र गुमाई लेकिन घने अँधेरे और सन्नाटे के सिवा कुछ नहीं था। अब गनेश को थोड़ा सा डर लगने लगा। उसने फिर से अपने आदमियों को फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन अभी भी दोनों के फ़ोन बंध थे। गनेश को अब समज में नहीं आ रहा था की वह अब क्या करे। तभी उसको महसूस हुआ की उसके कंधे पर कुछ गिर रहा है । उसने अपनी ऊँगली वहा लगाईं तो उसे कुछ गिला पन महसूस हुआ। उसने अपनी ऊँगली को ध्यान से देखा तो वह एकदम से चौंक गया क्यों की उस के कंधे पर जो चीज़ गिर रही थी वह खून था। गनेश का डर अब बढ़ रहा था। उसके सर से पसीना बहते हुए गले तक पहुंच गया था। गनेश ने हिम्मत करके ऊपर की तरफ देखा तो उसके मुँह से चीख निकल गयी। एक पल के लिए उसकी धड़कन रुक गइ थी। वहाँ पेड़ की ऊपरी डाली पर डेविड की लाश लटक रही थी। उसके सर के बीचो बिच किसी हथ्यार का गाव था और उसमे से धीरे धीरे खून निकल रहा था।
गनेश अब पूरी तरह डर चूका था। लेकिन यह तो डर की शुरुआत थी।क्यों की जैसे ही उसने अपनी नज़र सामने की और की तो उसके मुँह से एक और चीख निकल गयी, क्यों की उसके बराबर सामने कुछ कदमो की दूरी पर ही वही बिना सर वाला भूत खड़ा था। गनेश का गला जैसे सुख गया था। उसने बिना सोचे समजे भागना शुरू किया।
गनेश हो सके उतना तेज़ भाग रहा था। झाड़िओ के बिच में से रास्ता ढुंघ ढुंघ कर अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहा था। काफी देर तक भागने के बाद वह रुक गया। उसकी हालत काफी बुरी हो चुकी थी और वह बुरी तरह से हाँफने लगा। उसने आस पास देखा तो कही भी उसे वह सर कटा भूत नहीं दिखा। अब वह धीरे धीरे शांत हुआ लेकिन डर अभी भी था।गनेश बाहर जाने का रास्ता भूल चूका था। वह जंगल के बाहर जाने की बजाए और अंदर आ गया था। उसने अपनी चारो और देखा लेकिन सिर्फ और सिर्फ अँधेरा ही था। तभी उसको महसूस हुआ की कोई उसकी तरफ आ रहा है। गनेश ने एक पल भी ना गवाते हुए वापीस भागना शुरू किया। कुछ दूर भागने के बाद उसको कही दूर से हलकी सी रौशनी दिखाई दी। गनेश काफी थक चूका था लेकिन उसके पास अपनी जान बचाने के लिए भागने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था।
गनेश भागते भागते उस रौशनी की करीब जा पंहुचा। वहा पर एक छोटा सा घर था। घर के बाहर कुछ पुराना सामान रखा हुआ था। बाहर डोरी पर कुछ कपडे लटक रहे थे। घर के अंदर जलाया हुआ दिया इस घने अँधेरे को चीरने की कोशिश कर रहा था।
गनेश और कुछ भी सोचने के बदले सीधा भागते हुए घर के पास जा कर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़े पे दस्तक देने लगा। ”कोई है। प्लीज दरवाज़ा खोलो ! " गनेश डरते हुए दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक दे रहा था। उसके चेहरे और आवाज़ में डर साफ़ ज़ाहिर हो रहा था। इस वक़्त उसकी हालत देख कर कोई भी नहीं मानेगा की वह अपने इलाके का सबसे बड़ा गुंडा है।
जल्द ही किसी ने अंदर से घर का दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के खुलते ही गनेश तुरंत ही अंदर भागा और जल्दी से दरवाज़ा बंध कर दिया और फिर दरवाज़े को अपनी पीठ लगाके ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगा। तभी घर का दरवाज़ा खोलने वाले बुज़ुर्ग इंसान ने पूछा,”कौन हो भाई ?” उस बुज़ुर्ग की उम्र कम से कम 70 साल की लग रही थी। सर के बाल पुरे सफ़ेद हो चुके थे और चेहरे पर पडी झुरिया उसकी बढ़ती उम्र और कम होती हुई ज़िंदगी का ऐलान कर रहे थे। ज़्यादा उम्र होने की वजह से ऐसा लग रहा था उसकी आँखों की देखने की ताक़त भी कम हो गइ थी।
“मेरी मदद कीजिये। मुजे बचाइए। वह मुजे मार डालेगा।”गनेश उस बुज़ुर्ग के सामने गिड़गिड़ाने लगा।
“कौन हो तुम और कौन तुम्हे मारना चाहता है?”, उस बुज़ुर्ग ने गनेश को पूछा और साथ में अपने पास पड़े चश्मे को चढाने लगा।
चश्मा पहनते ही मानो उसकी आँखों की रौशनी जैसे तेज़ हो गइ। उसने गनेश की तरफ देखा तो उसके चेहरे का पूरा तेवर ही बदल गया। ऐसा लग रहा था की वह गनेश को काफी अच्छी तरह से जानता हो।
“तुम! तुम क्यों आये हो यहाँ पर? " उस बुज़ुर्ग ने गुस्से से पूछा।
अपने आप को संभालते हुए गनेश ने ध्यान से उस बुज़ुर्ग की तरफ देखा तो वह भी चौंक गया. “ओह! तो तुम यहाँ पर रहते हो। मुजे तो लगा था की अपने बेटे की मौत के सदमे में तुम भी चल बसे होंगे।” गनेश ने उस बुज़ुर्ग से कहा। इस वक़्त गनेश की आवाज़ में किसी पुरानी दुश्मनी की बू आ रही थी।
“मैं इतनी जल्दी मरने वालो में से नहीं हु। जब उस हर एक इंसान की मौत नहीं होती जिसकी वजह से आज मेरी यह हालत है, तब तक मौत मुजे छू भी नहीं सकती!” बुज़ुर्ग की आवाज़ में एक नफरत सी थी।
यह बात को मानो गनेश पर कोई असर ही नहीं हुआ। तभी बुज़ुर्ग ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,” उस रिपोर्टर को तो अपने किये की सज़ा मिल चुकी है। और तुम्हे इस वक़्त इस हालत में देख कर लग रहा है की अब तुम्हारी बारी है।” बुजुर्ग की आँखों में एक चमक थी।
बुज़ुर्ग की यह बात सुनकर गनेश थोड़ा सहम सा गया। वह मन ही मन सोचने लगा की जरूर यह आदमी कुछ जानता है। उसने तुरंत ही बुजुर्ग पर हमला किया और उसको गले से पकड़ लिया और धमकी भरे स्वर में पूछने लगा,” बताओ क्या जानते हो तुम वरना मैं तुम्हे अभी मार डालूगा।”
लेकिन बुज़ुर्ग पर इस धमकी का कोई असर ही नहीं हुआ और वह हसने लगा। यह देख कर गनेश को और गुस्सा आया। अचानक बुजुर्ग ने अपनी हसी रोक दी और गनेश की तरफ खा जाने वाली नज़रो से देखा और कहा,” वह वापिस आ गया है ! अपने पर हुए ज़ुल्मो का बदला लेने के लिए वह वापिस आया है। वह किसी को ज़िंदा नहीं छोड़ेगा। तुम सबको मार डालेगा!” इतना बोलते ही वह वापिस ज़ोर ज़ोर से हसने लगा।
बुजुर्ग की बाते सुनकर और कुछ देर पहले जो भी जंगल में हुआ, यह सब बातो को लेकर गनेश के मन में एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी। तभी अचानक घर के दरवाजे पर कोई दस्तक देने लगा। गनेश एकदम से डर गया और उसने बुज़ुर्ग की तरफ देखा। बुजुर्ग की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गइ और वह दरवाजे की और बढ़ा मानो वह जानता हो की दरवाजे पर कौन है।
उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो एक आदमी उस पर गिरा। उस आदमी को देख कर गनेश चौंक गया क्यों की वह उसका ही आदमी था और उसकी पीठ पर किसी हथ्यार का घाव था. उस इंसान ने गणेश की तरफ दर्द भरी नज़रो से देखा और बाहर की तरफ इशारा किया और फिर उसकी आंखे बंध हो गइ और उसकी गर्दन लटक गइ। गनेश धीरे धीरे उसके पास गया और उसके नाक के पास अपना हाथ रख कर उसकी साँसों को महसूस करने की कोशिश की लेकिन उसकी साँसे बंध हो चुकी थी। गनेश समाज गया की वह अब ज़िंदा नही है और उसके पास भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
गनेश जैसे तैसे करके हिम्मत जुटाकर घर के बाहर निकला। उसने चारो और एक नज़र गुमायी। हर तरफ घना अँधेरा था। उसको पता नहीं था की वह किस दिशा में जाए। उसने कुछ सोचा और एक दिशा में भागने लगा। वह कुछ दूर भगा ही होगा की उसका पाँव एक पत्थर से टकराया और वह निचे गिर गया। उसने अपने आपको सँभालने की कोशिश की और जैसे ही उठने की कोशिश की उसके सामने वही बिना सर वाला हैवान आ कर खड़ा हो गया। उसके हाथो में कुल्हाड़ी थी जिसमे से अभी भी खून टपक रहा था। वह हैवान अजीब सी लेकिन डरावनी आवाज़े निकाल रहा था।
गनेश तो उससे देख कर जैसे ज़मीन से चिपक ही गया। वह भागना चाहता था लेकिन वह अपनी जगह से हील भी नहीं पा रहा था। उसका पूरा शरीर डर के मारे ध्रुज रहा था। तभी गनेश की नज़र उस हैवान के हाथो पर पडी। उसके हाथो पर एक निशान बना हुआ था। यह देख कर गनेश समज गया की वह हैवान कौन है। वह दोनों हाथ जोड़ कर अपनी जान की भीख मांगने लगा और वह पीछे की तरफ जाने लगा। जैसे जैसे वह पीछे की तरफ जा रहा था वैसे ही वह हैवान उसकी तरफ चल रहा था ।.
गनेश समज गया की अब उसके बचने का कोई रास्ता नहीं, उसने हिम्मत जुटाई और पीछे मूड कर भागने लगा। मुश्किल से वह 2-4 कदम भागा होगा तभी छाक…. कर के आवाज़ आयी। हैवान ने कुल्हाड़ी को इस तरह से फेंका की वह सीधी गनेश के सर में फस गयी। खून किसी फौवारे की तरह उड़ा और गनेश वही गिर गया। उसकी मौत हो चुकी थी। वह हैवान उसके पास आया और अजीब सी लेकिन डरावनी आवाज़े निकाल ने लगा और अचानक से अँधेरे में कही गायब हो गया।
अब इस वक़्त घने जंगल में सन्नाटे के बीच गनेश की लाश लहू लुहान हालत में पडी थी। अभी भी उसके सर से खून निकल कर आस पास की घास को लाल कर रहा था।ऐसा लग रहा था की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है। कोई अपने पर हुए अन्याय का बदला लेने के लिए वापिस लौट आया है।
चैप्टर 3
मौत की मुंह दिखाई....
मुंबई की एक आलिशान कांच की बिल्डिंग के सबसे ऊपरी मंजले पर ऐरकण्डीशन रूम में एक मीटिंग चल रही थी। जे. डी अपने कर्मचारियों को अगले प्रोजेक्ट के बारे में बता रहा था। उसकी सेक्रेटरी सभी बातो को रिकॉर्ड कर रही थी।
जे. डी का नाम मुंबई के जाने माने बिल्डर्स में लिया जाता है। पिछले कुछ सालो से उसकी सफलता और बिज़नेस में काफी प्रगति हुई है। ऊपर से नेता लोग के साथ भी अच्छे सम्बन्ध होने के कारन उसको अपने प्रोजेक्ट्स में ज़्यादा दिक्कते नहीं होती है।
कहा जाता है की वह जो भी प्रोजेक्ट में हाथ डाले, वहा पे मुनाफा बनना ही बनना है। वह अपने साथ हमेशा सिक्योरिटी लेकर घूमता है। जभी भी ऑफिस या फिर घर के बाहर निकलता है तब अपनी बुलेट प्रूफ गाडी में ही सफर करता है। उसके साथ हमेशा 8 – 10 अंगरक्षक आधुनिक हथियारों के साथ चलते है।कुछ लोगो का मानना है की पहले वह एक मुजरिम था लेकिन पता नहीं कैसे आज इतना बड़ा बिल्डर बन गया! लेकिन इतना पैसा और पावर होने की वजह से उसके खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता। यहाँ तक की शहर की पुलिस भी उसकी जेब में है।
जे. डी जिस वक़्त अपने कर्मचारियों से बात कर रहा था तभी सेक्रेटरी के पास रखा हुआ उसका फ़ोन बज उठा। सेक्रेटरी ने फ़ोन रिसीव करके जे.डी को दिया। जे डी ने मोबाइल स्क्रीन पर एस.पि शर्मा का नाम देखकर अपने सभी कर्मचारियों और सेक्रेटरी को कमरे के बाहर जाने को कहा। सबके बाहर जाते ही जे.डी ने फ़ोन पर बात शुरू की। सामने से एस. पि शर्मा ने बताया की पिछले दो दीनो से डेविड और गनेश का कुछ पता नहीं चल रहा। दोनों अचानक से गायब हो गये है।
एस. पि. की बाते सुनकर जे.डी ने सिर्फ एक ही बात कही, “ढूंढो उन्हें वरना तुम्हे ढूंढने के लिए कोई नहीं आएगा” । इतना कह कर जे.डी ने फ़ोन कट कर दिया और अपनी खुर्सी से खड़ा होकर बाहर की तरफ देखने लग। इस वक़्त इतनी ऊंचाई से सारा शहर दिख रहा था और ऐसा लग रहा था की पूरा मुंबई शहर जे. डी के कदमो में आगया हो।
जंगल से तक़रीबन चालीस किलोमीटर पहले एक ढाबे पर एक जिप्सी आकर रुकी। उसमे से सुप्रिया अपने दोस्तों अनुज और रिया के साथ निचे उत्तरी और ढाबे की तरफ चलने लगे। सुप्रिया और रिया एक टेबल पर जाके बैठे और अनुज ढाबे के मालिक के पास जाकर कुछ बात करने लगा। सुप्रिया के चेहरे पर अभी भी दुःख और अफ़सोस दिख रहा था। रिया उसको समजाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सुप्रिया अपने मन में चल रहे विचारो के बाहर निकल ही नहीं रही थी।
अनुज ढाबे के मालिक के साथ बात कर के वापिस आया और सुप्रिया और रिया को बताया की उसने ढाबे वाले को जंगल के बारे में पूछा लेकिन उसको कुछ ज्यादा मालुम नहीं है। वह लोग बाते कर ही रहे थे तभी वहा दूर के एक टेबल पर बैठा एक आदमी उन तीनो पर तब से नज़र लगाए हुए था जब से वह लोग वहा आए थे।
अचानक वह आदमी अपनी जगह से खड़ा हुआ और उन तीनो के टेबल की तरफ आगे बढ़ा। वह तीनो अभी भी अपनी बाते कर रहे थे। अचानक से वह आदमी उन लोगो के पास जा कर सुप्रिया की तरफ देख कर बोला, “मुजे माफ़ कीजिये लेकिन क्या आप सुप्रिया है ना? आप न्यूज़ 7 चैनल में रिपोर्टर का काम करती है?”
अचानक से अपनी तरफ आते हुए सवालों से सुप्रिया कुछ पलो के लिए तो चौक गयी लेकिन फिर खुदको सँभालते हुए उस आदमी को जवाब दिया,” हां में सुप्रिया ही हूँ। लेकिन आप कौन है?”.
देखने में वह आदमी कुछ 27-28 साल का था और अच्छे घर का लग रहा था।.
“ओह्ह! आई ऍम सॉरी। मैं अपना नाम बताना भूल गया। माय नाम इस आरिफ। मैं राशिद का छोटा भाई हु। ” उस आदमी ने अपनी पहचान बतायी।
यह सुनते ही सुप्रिया की आँखे चमक सी उठी। दोनों ने फिर बाते शुरू की। आरिफ ने बताया उसने सुप्रिया की फोटो राशिद के मोबाइल में देखि थी जब किसी पार्टी में खींची गइ थी, और उसी फोटो की वजह से वह सुप्रिया को पहचान सका। सुप्रिया ने आरिफ को वहा अपने टेबल पर ही बैठने को कहा। सुप्रिया के दोस्तों ने भी आरिफ का स्वागत किया। उन लोगो ने कुछ देर तक बाते की और बातो बातो में उन लोगो को समज आया की आरिफ और वह तीनो एक ही मक़सद से निकले थे। जब की सब का मक़सद एक ही था इसीलिए उन सब ने अब साथ साथ ही जाने का फैसला लिया।
आरिफ ने बताया की जंगल के जितने भी मुख्या प्रवेश है, वहा पर पुलिस की घेराबंदी है और किसी को भी जंगल में जाने की अनुमति नहीं है। लेकिन वह एक दूसरा रास्ता जानता है जो पास के ही एक गाव में से हो कर निकलता है और जंगल की दूसरे छोर पर निकलता है। उन सब ने वही रास्ते से जंगल में जाने का फैसला किया।
आरिफ ने अपनी बाइक को वही ढाबे पर पार्क कर दिया और ढाबे के वैटर को कुछ रुपैये देकर बाइक का ध्यान रखने को कहा। चारो जिप्सी में बैठ कर आरिफ के बताये हुए रास्ते पर निकल पड़े।
अनुज ड्राइव कर रहा था, आरिफ उसके बाजु में बैठ कर उसको रास्ता बता रहा था। रिया और सुप्रिया दोनों पीछे वाली सीट पर बैठे थे। सुप्रिया बिच बिच में आरिफ की तरफ एक नज़र डाल देती। तक़रीबन 15 किलोमीटर गाडी चलने के बाद आरिफ ने अनुज को जिप्सी आगे से एक कच्ची सड़क पर मुड़ने को कहा। अनुज ने आरिफ के बताये हुए रास्ते पर गाडी मोड़ दी। सड़क काफी सुमसाम थी। सड़क के दोनों तरफ सिर्फ झाडिया थी और बिच में कच्ची सड़क थी जिसमे से अभी उन लोगो की जिप्सी जा रही थी। आरिफ इस तरह से रास्ता बता रहा था की जानो उसका यहाँ पर रोज का आना जाना है।
कुछ देर तक ड्राइव करने के बाद एक गाव की सीमा शुरू हुई। शाम के तक़रीबन साढे पांच बज रहे थे। सुप्रिया ने आरिफ को पूछा की और कितनी देर लगेगी तब आरिफ ने बताया की और कुछ 15-20 कलोमीटर के बाद वह लोग जंगल के दूसरे छोर पर पहुंच जायेगे। रिया ने तभी अपनी बात रखते हुए कहा,” अभी थोड़ी देर में शाम हो जायेगी और जंगल के बारे में जो बाते हो रही है वह तो हम सबको मालुम ही है। सब रिया की तरफ देखने लगे और मन ही मन में सोच रहे थे की रिया क्या बोलना चाहती है।
रिया ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा। “तो क्यों ना हम आज रात को यही कही रूक जाए? जंगल में हम कल सुबह जायेगे।”
रिया की बात सुनकर अनुज हसने लगा और उसको डरपोक कह कर चिढ़ाने लगा। आरिफ ने भी कहा की उन लोगो को रात में ही जाना चाहिए क्यों की जितनी भी वारदाते हुई है, सब रात को ही हुई है। रिया ने सब को समजाने की कोशिश कर रही थी की आज रात के बजाये दूसरे दिन सुबह जंगल में जाए।
सुप्रिया सब की बात को सुन रही थी। उसने रिया की तरफ ध्यान से देखा। उसे रिया की आँखों में डर साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने सबकी बात काटते हुए कहा,” मुजे लगता है की रिया ठीक कह रही है.”
आरिफ ने सुप्रिया को समजाना चाहा लेकिन सुप्रिया ने उसकी बात को बिच में ही काटते हुए कहा,” नहीं आरिफ। मुज पर पहले से ही एक मौत का बोज है। मैं और किसी मासूम की मौत का बोज नहीं उठा सकती। में अपने दोस्तों की जान को जोखिम में नहीं डालना चाहती। ”
और फिर उसने रिया को कहा,” आज रात को हम यही गाव में रूक जाएँगे और कल सुबह जंगल के लिए निकलेंगे। रिया ने सुप्रिया का धन्यवाद किया और उसने एक राहत की सांस ली।
कुछ देर के बाद अनुज ने जिप्सी को एक छोटी चाय – नास्ते की दूकान पर रोक दिया। “भाई मुजे तो अब चाय चाहिए। तुम लोग कुछ लोगे?’अनुज ने जिप्सी में से उतरकर सबको पूछा। सब ने उसकी बात में हामी भरी और चाय – नास्ता करने के लिए सब जिप्सी से निचे उतरे। आरिफ के चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था की उसको सुप्रिया का फैसला पसंद नहीं था लेकिन ना चाहते हुए भी उसको यह फैसला मानना पड़ा।
सुप्रिया यह बात समज चुकी थी, उसने अनुज और रिया को आगे जाने को कहा और आरिफ को समजाने की कोशिश करने लगी,” मैं जानती हु की तुम इस वक़्त क्या सोच रहे हो। तुम्हारा दर्द में समज सक्ति हु। लेकिन ट्रस्ट मी आरिफ तुम्हारे भाई की मौत का अफ़सोस जितना तुम्हे है उतना ही मुजे भी है।” आरिफ सुप्रिया की बात धयान से सुन रहा था।
सुप्रिया ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,” मैं भी चाहती हु की राशिद की मौत के पीछे का सच मालुम पड़े, लेकिन एक बात समजो हर एक चीज़ का वक़्त होता है। यह दोनों यह जानते हुए भी की यहाँ आना खतरे से खाली नहीं फिर भी मेरी मदद करने के लिए मेरे साथ आये है, तो मेरा इतना फ़र्ज़ तो बनता ही है की में भी उनके बारे में सोचु। और वैसे भी एक ही रात का तो सवाल है।”
आरिफ ने शांति से सुप्रिया को सवाल किया,” लेकिन क्या ख़तरा कल कम होगा? क्या तुम यह कह सकती हो की उन लोगो को कल कोई ख़तरा नहीं होगा?”
सुप्रिया ने आरिफ की तरफ एक नज़र डाली और फिर कहा,” कल का तो मुजे पता नहीं लेकिन जब तक में ज़िंदा हु में अपने दोस्तों को कुछ नहीं होने दूंगी।
आरिफ सुप्रिया को देखते ही रह गया। इस वक़्त सुप्रिया की आँखों में से आंसू निकल रहे थे लेकिन वह आंसू उसकी अंदर की आग का एहसास करा रहे थे। तभी अनुज ने उन दोनों को आवाज़ दी। सुप्रिया ने अपने आप को संभाला, आरिफ ने अपनी जेब में से हाथ-रुमाल निकाल कर सुप्रिया को दिया और उससे आंसू पोछने को कहा। सुप्रिया ने उसका धन्यवाद करते हुए अपने आंसू पोछे और स्वस्थ हो कर दोनों आगे बढे।
अनुज ने पहले से ही सबके लिए चाय और नास्ता का ऑर्डर कर दिया था। तभी अनुज ने चाय वाले को यहाँ आस पास कोई होटल या गेस्ट हाउस होने की पूछ ताछ की।चाय वाले ने कहा की इस गांव में कोई भी जगह नहीं है जहा पर रात बिता सके। चारो को थोड़ी चिंता हुई की अब वह लोग रात कहा बिताएंगे।
चाय वाले को मानो उन लोगो की मन की बात मालुम पड गइ हो, वैसे ही उसने उन लोगो को सवाल किया,” साहेब अगर आप लोगो को दिक्कत ना हो तो मैं एक जगह जानता हु जहा आप लोग आज रात रूक सकते ह। थोड़ी पुरानी जगह है लेकिन एक रात के लिए चल जायेगी। चाय वाले की बात सुनकर चारो खुश हो गये और सब ने हाँ कर दी। चाय वाले ने अपने आदमी को दूकान संभाल ने को कहा और उन लोगो को लेकर चला गया।
बीस मिनट के बाद चाय वाला उन लोगो को एक घर पर ले आया। बाहर से घर काफी पुराना लग रहा था और आस पास के इलाके में एक – दो घर को छोड़के और कोई आबादी नहीं दिख रही थी। सब ने एक दूसरे को देखा और इशारे में ही बात करके फैसला किया की अंदर जाके देखते है।
चाय वाले ने दरवाज़े पर लगा ताला खोल के दरवाज़ा खोला और दरवाज़े को खुलते ही अंदर का हाल देख कर चारो एक दूसरे की और देखने लग। घर का सामान ऐसे ही पड़ा था और उस पर धूल और मिटटी जमा हो चुकी थी। कही कही दिवालो पर मकड़ी के जाले भी थे। तभी चाय वाले ने कहा,” माफ़ कीजियेगा, यह घर काफी सालो से बंध है। यहाँ कोई आता जाता नहीं। मैं अभी सफाई करवा देता हूँ।
तभी सुप्रिया ने उसको मन करते हुए कहा,” रहने दो भैया। वैसे ही एक रात का सवाल है। कल सुबह हम निकल जाएँगे।”
चाय वाले ने उनकी बात मानी और कहा,” जी मेरा घर वहां सामने ही है। अगर आप को किसी चीज़ की जरुरत हो तो बता दीजियेगा। और रात के खाने की चिंता बिलकुल भी ना करे, वह में अपने घर से बना कर लाऊगा।"
सुप्रिया की नज़र तभी एक तस्वीर पर गयी। तस्वीर में एक इंसान जिसकी उम्र तक़रीबन पचास साल की लग रही थी और दूसरा एक आदमी था जिसकी उम्र तक़रीबन पचीस साल की लग रही थी। दोनों बाप – बेटे जैसे लग रहे थे। सुप्रिया उस तस्वीर को ध्यान से देख रही थी तभी चाय वाले ने बताया की वह लोग इस घर के मालिक थे। चाय वाले की बात सुनकर सुप्रिया ने सवाल किया, “अब यह लोग कहा है?”
चाय वाले ने कहा की, “जी मेमसाब एक दर्दनाक हादसे में उस लड़के की मौत हो गयी। और लड़के की मौत के सदमे में उसका बाप पागल हो गया। गांव वाले उस पर तरस खा कर उसको खाना खिलाया करते थे। लेकिन एक दिन अचानक से वह कही चला गया। गांव में किसी को भी नहीं पता की वह कहा चला गया और तबसे लेकर यह घर बंध पड़ा है।” चाय वाले की बात सुनकर सब चुप रह गये।
“अब आप लोग आराम कीजिये, मैं कुछ देर में खाना लेकर आता हूँ।” इतना बोल के चाय वाला वहा से चला गया। उसके जाने के बाद सब लोग एक दूसरे को देखने लगे। सब के चेहरे पर एक अजीब सी परेशानी थी।
रात को चाय वाले की बेटी सबके लिए खाना लेकर आयी। सब लोग खाना खा कर बैठे थे तभी थोड़ी देर में दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। अनुज ने दरवाज़ा खोला तो चाय वाला था। वह अपने साथ गरम दूध लेकर आया था। यह देख कर सुप्रिया ने बोला, “आप ने इतनी तकलीफ क्यों ली?”
“अरे मेमसाब इसमें तकलीफ की क्या बात है। आप तो हमारे मेहमान है। और वैसे भी शहर से यहाँ पर लोग रोज़-रोज़ थोड़ी ना आते है! कुछ बाते बत्ताइये ना शहर की।" उसकी बाते सुनकर सब के चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट आ गय। सब ने दूध पीया, और शहर और गांव की बाते करने लग।
बातो ही बातो में चाय वाले को मालुम पड़ा की यह लोग अगले दिन जंगल में जाने वाले है। चाय वाले ने उन लोगो को धीरे से कहा ,”जी आप लोग जंगल में ना जाए तो अच्छा है "।
आरिफ ने तुरंत ही उसको कारन पूछा तो उसने बताया की,” साहेब गांव वाले कहते है की वह जंगल भूतिया है। शाम होने के बाद वहा कोई आता जाता नहीं। कुछ लोगो ने तो यहाँ तक दावा किया है की वहा बिना सर का भूत रहता है”। सब लोग उसकी बात शांतिसे सुन रहे थे।
“भूत? किसका भूत!” रिया ने डरते डरते सवाल किया। उसका गला जैसे सुख गया हो वैसे वह बोलते समय अटक रही थी।
“मेमसाब वह पता नहीं। लेकिन मैं तो इतना ही कहूँगा की आप लोग जंगल में ना जाओ तो अच्छा है।”चाय वाले ने उन लोगो की तरफ देखकर बोला।
थोड़ी देर बाद चाय वाला वहां से चला गया। अब चारो उसकी बातो पर ही सोच रहे थे। तभी सुप्रिया ने अनुज और रिया को कहा,” देखो तुम लोग यहाँ से वापिस चले जाओ। यह मेरा फैसला है जंगल में जा कर राशिद की मौत का सच पता करना। तुम लोग अपनी जान खतरे में मत डालो।”
अनुज ने तुरंत ही जवाब दिया,” यह भूत-वूत कुछ नहीं होता। यह सब अंधविश्वास की बात है।”
सुप्रिया ने वापिस जवाब दिया,” अनुज अगर भूत नहीं भी है फिर भी कोई तो है जिसने रहीद की हत्या की है। भूत हो या इंसान, खतरा तो है!"
तभी रिया ने कहा,” नहीं सुप्रिया, कुछ भी हो हम लोग तो आएंगे। वापिस जाने के लिए हम दोनों यहाँ तक नहीं आये। अब जो भी होगा देखा जाएगा।” रिया की बात सुनकर सुप्रिया कुछ बोल नहीं पायी और मन ही मन अपने आप को ऐसे दोस्त मिलने के लिए खुश नसीब समजने लगी।
कुछ देर सब ऐसे ही बाते कर रहे थे। बिच बिच में अपने मोबाइल को भी देख लेते। सुप्रिया खिड़की के पास खड़ी खड़ी बाहर की गहराई में खो गयी थी। तभी उसके फ़ोन में रिंग बजी। उसने देखा तो उसपे “पापा” लिखा हुआ था। सुप्रिया के चेहरे पर गुस्से के भाव उभरे और उसने फ़ोन कट कर दिया। कुछ पल के बाद फिर से फ़ोन बजा। इस बार सुप्रिया ने फ़ोन को बंध कर दिया।
अनुज और रिया ने उसको समजाने की कोशिश की वह अपने पापा से बात करे लेकिन सुप्रिया ने जैसे उन लोगो की बात अनसुनी करदी। आखिर में हार मानकर उन दोनों ने भी प्रयास करना छोड़ दिया। आरिफ यह सब बैठे बैठे देख रहा था। वह सुप्रिया को देख कर उसके दर्द को जानने की कोशिश कर रहा था लेकिन इस वक़्त उसको अकेला रहने देने का मुनासिब समजा।
कुछ देर बाद सब ने सोने का फैसला किया और सोने की तैयारी करने लगे। रात के तक़रीबन साढे दस बजे होंगे तभी दरवाज़े पर किसी ने ज़ोर ज़ोर से दस्तक दी। सब लोग इस अचानक सी दस्तक की वजह से थोड़े चौकन्ने हो गये। सब एक दूसरे को देखने लगे। आरिफ धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ा और दरवाज़े पर लगे हुए छेद में से बाहर देख ने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा।
सुप्रिया ने सावधानी भरे स्वर में पूछा,” कौन है बाहर?" लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया, हालांकि जो भी था वह अभी भी दस्तक दे रहा था। आरिफ ने एक बार अनुज की तरफ देखा और अनुज ने जैसे अनुमति दे रहा हो वैसे अपनी गर्दन हिला के इशारा किया। आरिफ ने अपने हाथ में बाजू पर पड़ा डंडा ले लिया और उसको देख कर सबने अपने हाथो में जो मिला वह चीज़ हथियार के तौर पर उठा ली।
सब की धड़कन तेज़ हो चूकी थी। अनुज धीरे धीरे आरिफ के पास पहुंचा और उसने आरिफ को कुछ इशारा किया। आरिफ जैसे उसका इशारा समज गया हो वैसे वह दरवाजे से थोड़ा दूर लेकिन सामने की और आ गया। अनुज ने दरवाज़े की कड़ी को अपने हाथ में पकड़ लिया। सब के दिल की धड़कन बढ़ चूकी थी। डर सब के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। अनुज ने आरिफ को तैयार होने का इशारा किया। आरिफ ने तुरंत ही डंडे को मजबूती से पकड़कर हमला करने के लिए तैयार हो गया। अनुज ने आरिफ की तरफ देख कर एक-दो-तीन का इशारा किया और तीन के इशारे पर अनुज ने दरवाज़े की कड़ी को ज़ोर से खींचा जिसे दरवाज़ा खुल गया। दरवाज़ा खुलते ही सब चौंक गये क्यों की सामने एक इंसान उनकी तरफ मशीन गन ताने खड़ा था।
उस आदमी ने काले कलर का सफारी सूट पहना हुआ था।उसके एक कान में ब्लूटूथ लगाया हुआ था। उसका कद काम से काम 6 फुट और चौड़ा सीना था। उसको देख कर यह मालुम हो रहा था की वह किसी बड़े आदमी का बॉडीगार्ड है। उसको देख कर सब एक ही बात सोच रहे थे की यह आदमी यहाँ क्या कर रहा है और उन लोगो पर बंदूक क्यों तानके खड़ा है। सब लोग किसी नतीजे पर पहुंचे उसके पहले ही पीछे से एक तक़रीबन पैतालीस साल का नेता जैसा दिखने वाला आदमी दाखिल हुआ।
उस आदमी ने दाखिल होते ही सब की तरफ एक नज़र डाली, सुप्रिया को देख कर वह थोड़ा सा चौंक गया लेकिन उसने किसीको यह महसूस नहीं होने दिया की वह सुप्रिया को पहचानता है। उसने अपने बॉडीगार्ड को गन निचे करने का इशारा किया। सबके सामने देख कर कहा,” माफ़ी चाहता हु आप लोगो को इस वक़्त परेशान करने के लिए। मेरा नाम सुरेश शिंदे है और मैं इस इलाके का ऍम. एल. ए हु। हम लोग यहाँ से गुजर रहे थे तो हमारी गाडी में पंक्चर हो गया और यह इलाके में कोई गराज भी नहीं है।”
सब लोग उस की बात सुन रहे थे और वह लोग समज गये की आज रात ऍम. एल .ए . यहाँ पर ही रुकने वाला है। तभी अनुज ने कहा,” कोई बात नहीं सर, दरअसल यह हमारा भी घर नहीं है, हम लोग तो कल…अनुज अपनी बात पूरी करे उसके पहले ही सुप्रिया ने उसको इशारे से कुछ बोलने के लिए मना किया।
ऍम.एल. ए शिंदे ने सुप्रिया को इशारा करते हुए देख लिया लेकिन वह कुछ बोला नही। कुछ देर तक सब ने इधर उधर की बाते की और एक के बाद एक सब सो गये। रात के कुछ तीन बज रहे थे।बाहर सन्नाटा छाया हुआ था। कही दूर से कुत्तो की भोंकने की आवाज़ आ रही थी। घर के अंदर सब ग़हरी नींद में सोये हुए थे। तभी किसी आवाज़ से सुप्रिया की नींद खुल गयी।
उसने अपनी जगह पर बैठे बैठे ही आस पास देखा तो सब लोग गहरी नींद में थे। उसको लगा की उसका कोई भ्रम है और वापिस सोने की कोशिश करने लगी। कुछ देर बाद वापिस कुछ आवाज़ आई। इस बार कुछ अजीब सी आवाज़ थी। ऐसा लग रहा था की कोई जंगली जानवर ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रहा हो। आवाज़ सुनकर सुप्रिया तुरंत ही उठ गइ। उसने रिया को जगाने की कोशिश की लेकिन गहरी नींद के कारन रिया बिलकुल हिली भी नहीं। बाहर से वह आवाज़ अभी भी आ रही थी।
सुप्रिया धीरे धीरे खड़ी हुई। उसने खिड़की के कांच में से बाहर देखने की कोशिश की लेकिन बाहर सिर्फ अँधेरा था। कुछ दूर दूसरे घरो में जलते हुए लाल-टैन की हलकी सी रौशनी की किरण दिख रही थी। सुप्रिया ने खिड़की को खोलने की कोशिश की लेकिन जंक लगने के कारन खिड़की की कड़ी खुल नहीं रही थी।
सुप्रिया ने एक बार फिर सबकी और देखा, सब अभी भी गहरी नींद में थे। वह अजीब सी आवाज़ अभी भी आ रही थी और वह आवाज़ पहले से थोड़ी तेज़ हो गयी थी। सुप्रिया ने दरवाज़ा खोलने का फैसला किया और धीरे धीरे आगे बढ़ी। अँधेरे के कारन उसका पाँव बॉडीगार्ड के पाँव से टकराया। सुप्रिया ने खुदको संभाल लिया लेकिन उसकी वजह से बॉडीगार्ड की आँख खुल गयी और वह चौकन्ना हो गया। सुप्रिया ने तुरंत ही उसको इशारे से आवाज़ नहीं करने को कहा।
बॉडीगार्ड ने अपने आप को संभाला और धीरे धीरे खड़ा हुआ। उसने अपनी गन हाथ में ली और धीरे धीरे बिना आवाज़ किये सुप्रिया के पास पंहुचा। सुप्रिया ने इशारे से उसको कुछ ध्यान से सुंनने को कहा। बॉडीगार्ड ने जब ध्यान से सुंनने की कोशिश की तो उससे भी वह आवाज़ आने लगी। आवाज़ सुनकर बॉडीगार्ड को भी कुछ अजीब सा लगा।
उसने सुप्रिया को इशारे से कहा की वह बाहर जाकर देखकर आएगा तबतक सुप्रिया अंदर ही रहे। सुप्रिया ने उसको इशारे में बाहर जाने से मना किया और समजाने की कोशिश की जो भी बाहर है हो सकता है की वह कोई खतरनाक जानवर हो। लेकिन बॉडीगार्ड ने सुप्रिया की बातो पर ध्यान नहीं दिया और दरवाज़े की और धीरे धीरे बड़ा। उसने दरवाज़े की कड़ी को अपने हाथो में लिया और एक नज़र सुप्रिया की तरफ डाली। सुप्रिया भी उसकी तरफ ही देख रही थी।
बाहर से आवाज़ धीरे धीरे तेज़ हो रही थी लेकिन ताज्जुब की बात यह थी की किसी को भी कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। बॉडीगार्ड ने अपनी गन को संभाली और दरवाज़े की कड़ी खोल के बाहर चला गया। सुप्रिया बिना आवाज़ किये हो सके उतनी तेज़ी से दरवाज़े के पास पहुंची और अंदर द कड़ी को बंध कर दिया।
सुप्रिया वापिस बिना आवाज़ किये खिड़की के पास पहुंची और कांच में से बाहर देखने की कोशिश करने लगी। खिड़की के काच पर मिटटी लगी हुई थी इसलिए कुछ साफ़ नहीं दिख रहा था फिर भी सुप्रिया हो सके उतनी कोशिश कर रही थी। बॉडीगार्ड अभी भी दरवाज़े के बाहर ही खड़ा था और अपनी दोनों बाजू चौकन्ना हो कर देख रहा था। अपनी गन को उसने निशाना लगाकर पकड़ा हुआ था ताकि अगर जरुरत पड़े तो वह फायर कर सके। तभी वह आवाज़ घर के दूसरी तरफ से आने लगी। वह सुनकर बॉडीगार्ड तुरंत उस तरफ भागा। घर की उस तरफ कोई खिड़की ना होने के कारन सुप्रिया थोड़ी निराश हो गयी। लेकिन तभी उससे महसूस हुआ की वह आवाज़ आना बंध हो गयी थी। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था की जैसे कोई आवाज़ थी ही नहीं। तभी
अचानक किसी के दर्द से चीखने की आवाज़ आई। आवाज़ इतनी ज़ोर से आई की सब लोग अचानक नींद से उठ गये।
सुप्रिया भी आवाज़ सुनकर थोड़ी सी घबरा गयी। उसको मन ही मन में बॉडीगार्ड के लिए चिंता होने लगी। उसने सबको जो घटना हुई वह बात बताइ। सबने एक दूसरे की तरफ देखा और तुरंत ही बाहर जाने का फैसला लिया। सब लोग धीरे धीरे दरवाज़ खोल के बाहर निकले और आस पास देखने लगे। वहां कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। कही दूर से कुत्तो की रोने की आवाज़ आ रही थी और हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। अनुज ने रिया, सुप्रिया और ऍम. एल. ए शिंदे को अंदर ही रहने को कहा और आरिफ को अपने साथ आने को कहा।
दोनों घर के बाहर निकले और जैसे सुप्रिया ने बताया था वह दोनों घर के पीछे की तरफ गये। उसके पीछे ऍम. एल. ए शिंदे भी घर के बाहर निकला। रिया और सुप्रिया ने उसको समजाने की कोशिश की लेकिन उसने उन दोनों की बात ना मानकर बाहर जाने का फैसला कर लिया था।
आरिफ और अनुज जब घर के पीछे की तरफ पहुंचे तो वहा पर कोई भी नहीं था। वह दोनों ने सब तरफ देखा लेकिन बॉडीगार्ड का कोई नाम-और-निशान नहीं था। तभी आरिफ का पाँव किसी कड़क चीज़ से टकराया। उसने देखा तो वह एक मशीन गन थी। उसने तुरंत ही अनुज को बुलाया। दोनों को आस पास का सन्नाटा और बॉडीगार्ड की लावारिस गन देखकर कुछ गड़बड़ होने की शंका हुयी।
वह लोग कुछ सोचे उसके पहले ही दोनों के कान में “बचाओ बचाओ “की आवाज़ आई। दोनों यह सुनकर अपनी चारो और देखने लगे और तभी उन्हें एहसास हुआ की आवाज़ घर की मुख्य दरवाज़े की तरफ से आ रही थी। दोनों ने परिश्थिति की घंभीरता को भांप लिया था और बिजली की गति से भाग कर मुख्य दरवाज़े पर पहुंचे। वह आवाज़ सुनकर सुप्रिया और रिया भी घर के बाहर आ गयी थी।
लेकिन चारो ने जो मंज़र देखा वह देख कर उन लोगो के दिल की धड़कन रूक गयी। ऍम. एल. ए शिंदे को एक बिना सर वाला हैवान खींचके ले जा रहा था और ऍम. एल. ए शिंदे मदद की पुकार लगा रहा था। अचानक से मौसम में बदलाव आया और ज़ोर से आंधी उठी और वह बिना सर वाला हैवान देखते ही देखते गायब हो गया। चारो अभी भी वहा पर ही खड़े थे जैसे उन लोगो के पाँव ज़मीन से चिपक गये हो। किसी को भी अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था।
कुछ पल के बाद सुप्रिया रोते रोते वहा पर ही गिर पडी उसके रोने में दुःख और डर दोनों था। वह कुछ बोलना चाहती थी लेकिन कुछ बोल नहीं पा रही थी। बार बार वह उस तरफ इशारा कर रही थी जहा से वह बिना सर वाला हैवान गायब हुआ था। वैसे तो डरे हुए तो सब थे लेकिन इस वक़्त उन लोगो के लिए डर से ज़्यादा अपने आप को संभाल जरूरी था।
तीनो ने मुश्किल से सुप्रिया को उठाकर उसको घर के अंदर ले गये और दरवाज़े को अंदर से बंध कर दिया। अब उन लोगो के पास सुबह का इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।इस वक़्त बाहर जाना खतरे से खाली भी नहीं था। सब लोग एक दूसरे को संभालते हुए सुबह होने का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ घंटे में सुबह हो गयी लेकिन डर और थकान की वजह से चारो लोग एक दूसरे के कंधो पर सर रख कर बैठे बैठे ही सो गये थे।
सूरज की रौशनी चेहरे पर गिरने की वजह से अनुज की नींद उड़ गयी। उसने धीरे धीरे आँखे खोलकर देखा तो सुबह हो चूकी थी। वह तीनो अब भी सो रहे थे। बाहर से पंखीओ की आवाज़े आ रही थी। अनुज ने अपनी घडी में देखा तो इस वक़्त सुबह के साढ़े सात बज रहे थ। उसने सबको एक-एक करके नींद से उठाया। पिछली रात का हादसा अभी भी सब के दिल और दिमाग पर छाया हुआ था। आगे क्या करना है उसका किसी को भी अंदाजा आ नहीं रहा था। तभी चाय वाला चाय और नास्ता लेकर आया।
सब के चेहरे को देख कर वह समज गया की कुछ गड़बड़ है लेकिन अपने आप को रोक लिया कोई सवाल करने से। कुछ समय के बाद वह वहा से चला गया। उसके जाने के बाद सब लोग वापिस गहरी सोच में चले गये। कुछ पल के बाद सुप्रिया ने सबको पुलिस के पास जाने का सुझाव दिया। पहले तो सबने यह कह कर मना किया की कोई भी उनकी बातो पर भरोसा नहीं करेगा लेकिन जब सुप्रिया ने बताया की यहाँ के एस. पि. उसके पापा को जानते है तब जा कर सब लोग ने उसकी बात मानली।
सब लोग ने जल्द से जल्द तैयार हो कर पुलिस स्टेशन जाने का फैसला कर लिया। तक़रीबन दो घंटे के बाद सब लोग पुलिस स्टेशन जा पहुंचे। सुप्रिया ने वहा पर खड़े कांस्टेबल को एस. पि. शर्मा से मिलने के लिए पूछा तो कांस्टेबल ने उन लोगो को इंतज़ार करने को कहा क्यों की एस. पि. शर्मा अब तक आये नहीं थे। आधे घंटे तक सब राह देख रहे थे। जैसे जैसे समय जा रहा था वैसे ही सब की बैचेनी बढ़ रही थी। कुछ देर के बाद एस. पि. शर्मा आ गये।
जैसे ही वह पुलिस स्टेशन में दाखिल हुए तो उनकी नज़र उन चारो पर पडी। उन्होंने तुरंत ही सुप्रिया को पहचान लिया। उनकी नज़र आरिफ पर भी पडी और उसको सुप्रिया के साथ देख कर वह थोड़े चौक गये। सुप्रिया ने भी एस.पि. शर्मा को पहचान लिया था। दोनों की नज़र मिलते ही सुप्रिया अपनी जगह से खड़ी हुई और एस.पि. शर्मा की तरफ बढ़ी और बोली, “अंकल हमें आपसे एक जरूरी बात करनी है।"
एस.पि. शर्मा ने चारो को अपनी कैबिन में आने को कहा। चारो एस.पि. शर्मा के पीछे पीछे उनकी कैबिन में दाखिल हुए। एस.पि. शर्मा अपनी ख़ुर्शी पर बैठे और उनके टेबल के सामने वाली खुरसीओ पर वह चारो बैठ गये।
एस. पि. शर्मा ने सबसे पहले सुप्रिया को यहाँ इस गांव में आने का कारन पूछा। सुप्रिया ने सबसे पहले तो अपने दोस्त अनुज और रिया का परिचय दिया और बताया की वह तीनो राशिद की मौत का राज़ ढूंढने के लिए आये है।उसने यह भी बताया की उसकी और आरिफ की मुलाक़ात कैसे हुई।
एस. पि. शर्मा ने उन लोगो को सुबह सुबह पुलिस स्टेशन आने का कारन पूछा। पहले तो सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे। उनके चहरे पर परेशानी देख कर एस. पि. शर्मा ने उन लोगो को बेझिजक अपनी बात बोलने के लिए कहा। थोड़े पल तक शांत रहने के बाद सुप्रिया ने धीरे धीरे पिछली रात के हादसे के बारे में बताया। सुप्रिया की बात को एस. पि ध्यान से सुन रहे थे और उसकी बात ख़तम होने पर वह भी एकदम से शांत हो गये।
कुछ पल के बाद वह बोले,” तो तुम लोगो का मानना है की एक भूत ने ऍम. एल. ए. को तुम्हारी आँखों के सामने मार डाला। अगर ऐसा है तो ऍम. एल. ए. की लाश किधर है?”
वह चारो समज गये की एस.पि. को उन लोगो की बात पर भरोसा नहीं आ रहा। सुप्रिया ने और उसके दोस्तों ने एस.पि. को भरोसा दिलाने के लिए बहुत कोशिश की लेकिन एस. पि. को उन लोगो की बात पर भरोसा नहीं आ रहा था और उलटा वह उन चारो पर ड्रग्स लेने का आरोप लगा रहा था जिसकी वजह से वह लोग ऐसी बाते कर रहे है।
एस.पि. ने सबको यह गांव अभी के अभी छोड़ के जाने के लिया कहा और सुप्रिया को कहा,” मैं तुम्हारे पापा को अच्छी तरह से पहचानता हु इस लिए सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ रहा हु लेकिन अगर फिर से ऐसी कोई हरकत करने की कोशिश की तो जैल में बंध करदूंगा। तुम लोग जा सकते हो"।
एस.पि. की बात सुनकर वह चारो समज गये की अब बात करके कुछ फायदा नहीं है और सब लोग एस. पि. की कैबिन के बाहर निकल गये। अनुज ने सुप्रिया से कहा की,” अब तो मालुम हो गया है की गांव वालो की बात सच है। यहाँ और रहना खतरे से खाली नहीं है। अब हमे वापिस लौट जाना चाहिये।”
सुप्रिया ने एक नज़र सब की ओर देखा और कहा,” नहीं अनुज, मेरा मक़सद सिर्फ सच जानना नहीं लेकिन सच को सब के सामने लाना है। मेरी बात पर कोई भरोसा नहीं करेगा जब तक में कोई ठोस सबूत ना पेश करू। कल रात जो हुआ उसके बाद मैं तुम लोगो की जान को खतरे में नहीं डालना चाहती हूँ। आगे का सफर मेरे अकेले का है। तुम लोग लौट जाओ।"
सुप्रिया की बात सुनकर आरिफ ने कहा,” सिर्फ तुम्हारा नहीं सुप्रिया, मेरा भी। राशिद मेरा भाई था। यह मेरा हक़ है की मैं अपने भाई की मौत के पीछे का सच मालुम करू। मैं भी तुम्हारे साथ यही रहूँगा।"
सुप्रिया आरिफ को मना नहीं कर सकी लेकिन उसने अनुज और रिया को वहा से वापिस जाने के लिए मजबूर कर दिया था। अनुज और रिया वहा से निकल गये लेकिन अनुज ने अपने जिप्सी की चाबी आरिफ को देदी और वह और रिया गांव के बस स्टॉप की तरफ चल पड़े।
सुप्रिया और आरिफ उन दोनों को जाते हुए देख रहे थे। थोड़े पल के बाद आरिफ ने सुप्रिया से कहा, “मुजे नहीं पता की कल रात को हमने जो भी देखा वह सच है या जूठ और सच है तो वह क्या है, लेकिन में एक वादा करता हु की इस लड़ाई में हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा “।
सुप्रिया आरिफ की बात सुनकर उसको लिपट गयी और एक छोटी बची की तरह रोने लगी। आरिफ भी उसको एक बचे की तरह सहलाने लगा। कुछ देर बाद सुप्रिया ने अपने आप को संभाला और आरिफ को कहा,” आरिफ, राशिद मेरा सीनियर या फिर सिर्फ सहकर्मचारी नहीं था। वह मेरा अच्छा दोस्त भी था। आज मैं जो भी हूँ उसका श्रेय उसको ही जाता है। यहाँ पर आकर स्टोरी कवर करने का आईडिया भी मेरा था। मैं भी तुमको एक वादा करती हूँ, चाहे मेरी जान ही क्यों ना चली जाये लेकिन मैं इस लड़ाई में पीछे नहीं हटूगी।”
आरिफ और सुप्रिया कुछ पल के लिए एक दूसरे को देखते रहे। ऐसा लग रहा था दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए प्यार उमड़ रहा हो लेकिन दोनों ने अपने आप को संभाला।
दोनों जिप्सी में बैठे और आरिफ ने शहर की तरफ गाडी गुमाई। सुप्रिया ने आरिफ से कहा,” अररे! हमे तो जंगल की तरफ जाना है।”
आरिफ ने तुरंत जवाब दिया,” हमारे पास कोई हथियार या फिर कोई ऐसा कोई सामान नहीं है जिससे हम अपनी रक्षा और सबूत को इकट्ठा कर सके। शहर में मेरा एक दोस्त है जो हमे यह सब चीज़ में मदद कर सकता है।
आरिफ की बात सुनकर सुप्रिया के चेहरे पर ख़ुशी छा गयी। ऐसा लग रहा था की वह धीरे धीरे आरिफ की तरफ आकर्षित हो रही हो। रास्ते में दोनों एक-दूसरे के साथ बात करते करते सफर काटने की कोशिश कर रहे थे। बिच में आरिफ ने फ़ोन करके अपने दोस्त को कुछ सामान की तैयारी करने को कहा।
चैप्टर 4
दो दिल मिल रहे है…
दो-ढाई घंटे ड्राइविंग करने के बाद आरिफ ने जिप्सी को एक बंगले के पास रोक दी। बंगला काफी बड़ा था। मुख्य दरवाज़े से लेकर बंगले के बिच में कुछ 200 मीटर का फासला था। बंगले की एक बाजू में छोटा सा गार्डेन था जिसमे कही तरह के पौधे और पेड़ थे। बंगले के चौकीदार ने आरिफ को पहचान लिया और उसका अभिवादन करते हुए मैन गैट खोल दिया। आरिफ ने चौकीदार को हलकी सी मुस्कान दी और जिप्सी को गैट के अंदर ले लिया। बंगले के दरवाज़े पर जिप्सी रोक दी और आरिफ निचे उतरा और उसके पीछे पीछे सुप्रिया भी जिप्सी में से बाहर आयी।
दोनों के बाहर आते ही आरिफ का दोस्त बंगले के बाहर आया और आरिफ को गले लगाकर दोनों का स्वागत किया। अपने दोस्त की पहचान कराते हुए आरिफ ने सुप्रिया को कहा,” मीट रेमो। माय बेस्ट बडी। हम लोग स्कूल से ही साथ है। “
रेमो ने सुप्रिया का अभिवादन किया और आरिफ ने सुप्रिया की पहचान देते हुए कहा,” रेमो, शी इस सुप्रिया।"
रेमो ने आरिफ से उसके भाई की मौत का दुःख जताया और दोनों को उनका कमरा दिखाया और फ्रेश होने को कहा। आरिफ ने भी रेमो के आश्वासन को स्वीकार करके उसको धन्यवाद कहा। तभी आरिफ को कुछ याद आया और उसने रेमो को पूछा “अररे, भाभी और बच्चे नहीं दिखाई दे रहे !”
रेमो ने हसते हसते जवाब दिया,” वह बच्चो के साथ अपने मायके गयी है छुट्टिओ के लिए। अगले हफ्ते आ जायेगी। अब तुम लोग जल्दी से फ्रेश हो जाओ, में खाने की तैयारी करता हूँ।”
आरिफ और सुप्रिया ने उसकी बात हसकर मानली और रेमो के बताए हुए अपने अपने कमरे में चले गये। पिछली रात के हादसे के कारन दोनों पहले ही परेशान थे और आराम भी नहीं मिला था। अपने अपने कमरे में जा कर दोनों थकान की वजह से बिस्तर पर गिरते ही सो गये।.
रेमो ने उन दोनों को आवाज़ लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं दे रहा था, और जवाब मिलता भी कहा से, थकान की वजह से दोनों गहरी नींद में थे। रेमो ने बारी बारी जाके दोनों के कमरे के बाहार जाकर दोनों को फिरसे आवाज़ लगाई लेकिन वापिस वही नतीजा हुआ। रेमो समज गया की दोनों सो रहे होंगे। उसने भी दोनों को डिस्टर्ब नहीं करने का ही मुनासिब माना और खुद खाना खाके कुछ काम से बाहर निकल गया। जाते जाते अपने नौकर को दोनों का ध्यान रखने को कहा और यह भी कहा की शाम तक वह वापिस आजायेगा।
कुछ घंटो तक आराम करने के बाद आरिफ की आँख खुली। उसने देखा तो घडी में शाम के 6 बज रहे थे। वह अपने बिस्तर से उठा और बाथरूम में जा कर नहा कर फ्रेश हो गया। जब वह फ्रेश हो कर निचे आया तो नौकर ने बताया की रेमो कुछ कम से बाहर गये है और थोड़ी देर में आजाएगे। तब तक सुप्रिया भी फ्रेश हो कर निचे आ गयी थी। दोनों ने नौकर को उनके लिए एक कड़क कॉफ़ी देने को कहा और फिर कॉफ़ी पीते पीते दोनों अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में बाते करने लगे और एक दूसरे को पहचान ने की कोशिश कर रहे थे। थोड़ी ही देर में रेमो भी आ गया और तीनो बैठ के दोस्तों की महफ़िल को जमा रहे थे।
रात के 10 बजे तक सब का खाना हो गया था। रेमो ने खाना खाने के बाद पिने का भी इंतज़ाम किया हुआ था। उसने अपने नौकर को कहकर पहले से ही गार्डेन मे एक टेबल और तीन खुर्सी रखवा दी थी। तीनो गार्डेन में वहां जाकर बैठे। रेमो ने एक बॉक्स में से सबको एक - एक बियर की बोतल दी।.
“मैंने जो फ़ोन पर कहा था उसका इंतज़ाम हों गया?” आरिफ ने रेमो को पूछा।
“हा भाई, वह सब सामान कल सुबह डिलीवर हों जाएगा। सारा इंतज़ाम हों गया है।” रेमो ने जवाब दिया।
तभी रेमो को कुछ याद आया और उसने आरिफ और सुप्रिया के सामने एक नज़र डाली और कहा, ”मैं जानता हूँ की तुम लोग राशिद की मौत के पीछे का सच ढूंढ रहे हों और जिस इलाके में जा रहे हों वहां हथियार लेकर जाना मुनासिब है, लेकिन यह कैमरा की क्या जरुरत वहां?”
रेमो का सवाल सुनकर आरिफ और सुप्रिया ने एक दूसरे के सामने देखा और एक लम्बी सांस लेकर आरिफ ने धीरे धीरे शुरू से लेकर अभी तक की सारी बात बतायी। आरिफ की बात सुनकर रेमो का मुँह खुला का खुला रह गया।
“मतलब तुम लोग यह कहना चाहते हों की एक भूत ने राशिद को मारा है और तुम लोग इस बंदूक और कैमरा से उसका सामना करोगे!”रेमो की आवाज़ में एक डर था।
आरिफ और सुप्रिया ने दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया। सुप्रिया ने फिर आगे बात बढ़ाते हुए कहा,” हमारा मक़सद सामना करना नहीं लेकिन सच को सबके सामने लाना है। हमारी बातो पर तब तक कोई विश्वास नहीं करेगा जब तक हम कोई सबूत ना दे।”
रेमो ने सुप्रिया की बात सुनकर दोनों को समजाया की इस कम में कितना खतरा हों सकता है और दोनों की भलाई इसीमे है की दोनों उस जंगल में जाने का इरादा छोड़ दे। लेकिन आरिफ और सुप्रिया का निर्णय एकदम अटल था। दोनों ने रेमो की बात मानने का साफ़ इंकार कर दिया।
जब रेमो को लगा की यह दोनों अपने फैसले पर अटल है तो फिर उसने भी जिद्द छोड़ दी और अपने उन लोगो को चौकन्ना रहने की नसीहत दी। साथ में यह भी बताया की,” यहाँ कुछ किलोमीटर की दुरी पर एक पीर दरगाह है, कल सुबह सुबह वह उन दोनों को वहां ले कर जाएगा।”
आरिफ और सुप्रिया उससे मना नहीं कर पाए। फिर थोड़ी देर तीनो इधर – उधर की बाते करते रहे और थोड़ी देर में रेमो को नींद आने लगी। उसने घडी में देखा तो रात के एक बज रहे थे, उसने दोनों को कहा की, “चलो यार ! मुजे तो नींद आ रही है। मैं सोने चला, यू गाइस कैर्री ऑन!” दोनों को "Good Night बोलके रेमो अपने कमरे की तरफ चल दिया। आरिफ और सुप्रिया भी उसको जाते हुए देखते रहे। दोनों के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान थी।
रेमो के जाने के बाद आरिफ और सुप्रिया दोनों वहां पर ही बैठे रहे। दोनों चुप चाप हों कर ऊपर आसमान की तरफ देख रहे थे। कुछ देर बाद आरिफ ने पूछा,” क्या ढूंढने की कोशिश कर रही हों आसमान में?”
सुप्रिया ने एक नज़र आरिफ पर डाली और हलकी सी मुस्कान के साथ कहा, “कुछ नहीं “
"और तुम क्या देख रहे थे?” सुप्रिया ने आरिफ से सवाल किया।
“कुछ नहीं। बस ऊपर वाले को पूछ रहा हु की क्या सोच कर मेरे सर से बाप जैसे भाई का हाथ हटा लिया!” आरिफ की आँखो में नमी थी और उसकी बात सुनकर सुप्रिया की आँखों मे भी पानी आ गया।
“एक बात पुछु? तुम बुरा तो नै मानोगी?” आरिफ ने धीरे से सुप्रिया को सवाल किया।
सुप्रिया ने अपनी नमी भरी आँखों से आरिफ को देखा और इशारो में इज़ाज़त दी।
“जान का खतरा होने के बावजूद भी तुम क्यों मेरी मदद कर रही हों? तुम वापिस अपनी ज़िंदगी में लौट जाओ। मैं नहीं चाहता की मेरे इस पर्सनल मिशन की वजह से तुम्हे कुछ हों जाए” आरिफ की आवाज़ में एक दर्द और सुप्रिया के लिए चिंता दोनों थी।
“पर्सनल मिशन! क्या राशिद सिर्फ तुम्हारा भाई था? तुम कहना क्या चाहते हों की राशिद की मौत का दुःख सिर्फ तुम्हे है?” सुप्रिया की आवाज़ में दर्द और गुसा दोनों था। उसकी आँखे लाल हों चूकी थी।
सुप्रिया अपनी बात आगे चालू रखते हुए कहने लगी,”अगर राशिद तुम्हारा भाई था तो मेरे लिए भी किसी गुरु से कम नहीं था। आज में जिस मुकाम पर हूँ वह सिर्फ और सिर्फ राशिद की वजह से।मैं जब पंद्रह साल की थी तब मेरी माँ चल बसी। मेरे पापा को कभी भी अपने बिज़नेस में से फुरसत नहीं मिली। मुजे मेरी दादी ने ही माँ का प्यार दिया। दादी के गुजरने के बाद में वापिस अनाथ हों गयी थी। मेरे पापा को तो यह भी नहीं मालुम था की में रिपोर्टर बनाना चाहती हूँ। जब मेने उनको मेरे फैसला सुनाया तब उन्होंने मेरा साथ नहीं दिया। राशिद मेरे पापा का एक अच्छा दोस्त था लेकिन उनसे एकदम अलग था। उसने मुजे हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह प्यार किया। राशिद ने ही मेरे पापा को मेरे रिपोर्टर बनने के लिये समजाया था। राशिद की वजह से ही मुजे इतने बड़े चैनल में काम करने का मौका मिला। ”
आरिफ ध्यान से सुप्रिया की बात सुन रहा था। सुप्रिया की आँखों में से अभी भी आंसू निकल रहे थे। उसने अपनी बात चालू रखते हुए कहा,” जिस स्टोरी को कवर करते हुए राशिद की मौत हुई, वह स्टोरी का आईडिया मेरा ही था। तुम ने अपने भाई को मेरी वजह से खोया है आरिफ मेरी वजह से! उसकी मौत का कारन कोई भूत नहीं लेकिन में हु में !”. सुप्रिया अब बिलख बिलख कर रो रही थी। आरिफ ने उसको संभाल ने की कोशिश की लेकिन सुप्रिया का रोना बंध नहीं हों रहा था। “सुप्रिया संभालो अपने आप को। हिम्मत से क़ाम लो सुप्रिया” आरिफ ने सुप्रिया को संभालते हुए कहा।
रोते रोते सुप्रिया अचानक से बेहोश हों गयी। आरिफ ने सुप्रिया के एक हाथ को अपनी गर्दन के पीछे से घुमाया और उसको अपने दोनों हाथो से उठाकर उसके कमरे तक चलने लगा। आरिफ ने पाँव से धक्का मारकर सुप्रिया के कमरे का दरवाज़ा खोल दिया। कमरे में एक बड़ा सा बिस्तर था जिसपर आरिफ ने सुप्रिया को लेटा दिया।
वहां पर रखे हुए पानी के जग में से थोड़ा पानी अपने हाथो में लेकर आरिफ सुप्रिया के चहरे पर छिटकने लगा। पानी के छिटकाव से सुप्रिया धीरे धीरे होश में आने लगी। सुप्रिया को होश में आते देख आरिफ उसके बाद बैठ गया और प्यार से सर पर सहलाने लगा। सुप्रिया होश में आ गयी थी। उसने आरिफ का दूसरा हाथ अपने हाथो में लिया और अपने करीब खींचा। आरिफ भी जैसे उसका इशारा समज गया हों वैसे वह थोड़ा नज़दीक गया। वह अभी भी सुप्रिया के सर को प्यार से सेहला रहा था।
सुप्रिया ने अपनी नमी भरी आंखो से आरिफ को देखा और आरिफ भी सुप्रिया की आँखों में देख रहा था।दोनों की आँखों में एक दूसरे के लिए उछलता हुआ प्यार दिख रहा था। सुप्रिया ने अपने एक हाथ को धीरे धीरे आरिफ के चेहरे के पास लेकर आयी और अपनी उंगलिओ से आरिफ के चेहरे को सहलाने लगी आरिफ थोड़ा सुप्रिया की नज़दीक गया और उसने धीरे से “आई लव यू” कहा।
सुप्रिया जैसे शर्मा गयी हों वैसे अपनी नज़र को जुका दिया और अपने होंठो पर एक हलकी सी मुस्कान से जैसे आरिफ को हां बोल रही थी। आरिफ थोड़ा और सुप्रिया की ओर जुका। दोनों एक दूसरे की आँखों में एक दूसरे के लिए प्यास ढूंढ रहे थे। दोनों के होंठो के बिच मुश्किल से एक ऊँगली जितना फासला रह गया था और ऐसा लग रहा था की दोनों उस फासले को जल्द से जल्द मिटाना चाहते है और एक दूसरे में खो जाना चाहते है।
दोनों एक दूसरे की साँसों को महसूस कर रहे थे। आरिफ ने अपना हाथ सुप्रिया के सर से हटाकर धीरे धीरे उसके चेहरे पर घुमाते हुए उसके होंठो तक ले आया। उसने अपनी एक ऊँगली से सुप्रिया के निचले होठ को प्यार से सहलाया और सुप्रिया ने भी अपनी आँख बंध कर के जैसे अपने आप को आरिफ के हवाले कर दिया था। दोनों अभी भी उतने ही नज़दीक थे जिससे दोनों एक दूसरे की साँसों को महसूस कर सके।
आरिफ ने अपनी उंगलिओ को सुप्रिया के गालो पर सहलाया। और अचानक से उसने अपने होंठो को सुप्रिया के लाल होंठो पर रख दिए और सुप्रिया के होंठो का रस पान करने लगा। सुप्रिया ने भीआरिफ का इसमें पूरी तरह से साथ दिया। कुछ पलो तक दोनों इस प्यार भरे पलो में खोये रहे। दोनों ने एक दूसरे को आखिर तक एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया।
अगले दिन सुबह आंठ बजे सब ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठे थे तभी रेमो का फ़ोन बजा। रेमो ने फ़ोन पे बात कर के जल्द फ़ोन कट कर दिया और आरिफ और सुप्रिया की तरफ देखकर बोला,” भाई तूने जो चीज़ मंगाई थी वह आगयी है। हमें अभी निकलना होगा। तीनो जल्द से जल्द घर से निकले और रेमो के बताये हुए पते पर पहुंचे। रेमो के घर से तक़रीबन दस किलोमीटर की दुरी पर एक ब्रिज के निचे एक आदमी बड़ी बैग लेकर खड़ा था।
रेमो ने आरिफ को उस आदमी के पास जिप्सी रोकने को कहा। जब जिप्सी उस आदमी के पास पहुंची तो रेमो ने उस आदमी को इशारा किया और वह आदमी अपने सामान के साथ जिप्सी में बैठ गया। रेमो ने आरिफ को जिप्सी को थोड़े दूर एक शॉपिंग मॉल के पार्किंग लोट में लेने को कहा। वहां पहुंचने के बाद आरिफ और सुप्रिया ने सारा सामान देखा और दोनों को संतुष्टि हु की जरूरत का सारा सामान था। रेमो ने उस आदमी को रूपये दे कर वहां से रवाना किया।
तीनो फिर से जिप्सी में बैठे और रेमो ने आरिफ को पीर दरगाह की तरफ जाने का रास्ता बताया। कुछ देर ड्राइव करने के बाद रेमो ने एक छोटी सी गली के किनारे जिप्सी पार्क करने को कहा। आरिफ ने रेमो के कहने के मुताबिक़ जिप्सी पार्क करदी। गली काफी छोटी थी इसी लिए वहां गाडी का आना जाना नामुमकिन था इसीलिए तीनो पैदल चल पड़े। पूरी गली एक जुपडपट्टी जैसी थी। तीनो बारी बारी छोटी छोटी गलियों से निकल कर आगे बढ़ रहे थे। तक़रीबन 10-15 मिनट के बाद तीनो पीर दरगाह के पास पहुंच गये।
रेमो ने उन दोनों को पहले ही बता दिया था की वह लोग कुछ ना बोले क्यों की वह खुद ही पीर बाबा से बात करेगा। तीनो ने अपने जुते बाहर निकाले और अंदर दाखिल हुए। रेमो ने पीर बाबा से आरिफ और सुप्रिया की पहचान दी और राशिद की हत्या और ऍम. एल. ए की मौत की सारी बात बतायी। साथ में यह भी बताया की यह दोनों उस जंगल में वापिस क्यों जा रहे है।
रेमो की बात सुनकर पीर बाबा ने एक नज़र उन दोनों की तरफ डाली और अपनी आँखे बंध करके कुछ बड़बड़ाने लगे। पीर बाबा के चहरे की रेखा बार बार बदल रही थी। कुछ देर के बाद उन्होंने आँख खोली और तीनो की तरफ देखते हुए कहा, “जिस राह पर तुम लोग चलना चाहते हों, वह आसान नहीं है। वह दूसरी बार तुम लोगो को नहीं बक्षेगा। ”
सुप्रिया ने पीर बाबा को सन्मान भरे स्वर में पूछा,” दूसरी बार नहीं बक्षेगा मतलब बाबा? हम कुछ समजे नहीं?”
पीर बाबा ने वापिस एक नज़र उन लोगो पर डाली और कहा,” वह कोई साधारण रूह नहीं है। बदले की आग में जलती हुयी अपने पर हुए अत्याचार के इन्तेक़ाम में जलती हुई रूह है। जोह रूह बदले की आग में जलती है वह और भी खतरनाक होती है। ”
“लेकिन आप यह कैसे कह सकते है की उस रूह ने हम लोगो को उस रात बक्ष दिया?” आरिफ ने वापिस से सवाल किया।
“क्यों की अगर उससे तुम लोगो को मारना होता तो तभी मार दिया होता जिस रात उसने ऍम. एल. ए पर हमला किया। वह रूह अपने बदले की आग में इतनी खतरनाक हों चूकी है की उसकी राह में आना वाला हर कोई उसकी आग में जल कर राख हों जाएगा।”पीर बाबा की आवाज़ में चेतावनी का आभास हों रहा था।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पीर बाबा ने कहा,” मैं तो तुम लोगो को इतनी ही बात कहूँगा की हों सके तो उस जगह जाने का इरादा छोड़ दो। अगर तुम लोगो ने उस रूह के रास्ते में आने की कोशिश की तो वह रूह तुम लोगो को नहीं छोड़ेगी। यह लड़ाई आसान नहीं होगी । इस रूह को हराने के पहले तुम लोगो को अपने अंदर के हैवान को हराना होगा।"
पीर बाबा की बात सुनकर आरिफ ने कहा, ” नहीं बाबा, हम पीछे नहीं हटेंगे। आपकी नसीहत के लिए शुक्रिया लेकिन अब जो हों जाए लेकिन हम हमार मक़सद से नहीं हटेंगे। आरिफ की आवाज़ में एक जूनून था।
आरिफ और सुप्रिया के इरादे को पीर बाबा ने भांप लिया था। वह समज गये थे की यह लोग उनकी बात नहीं मानेगे इसलिए उन्होंने तीनो को थोड़ी देर इंतज़ार करने को कहा और वह अंदर के कमरे में गये। थोड़ी देर में वह जब बाहर आये तब उनके हाथ में दो तावीज़ थे। उन्हों ने एक तावीज़ सुप्रिया को और एक तावीज़ आरिफ को दिया और कहा,” जब तक यह तुम्हारे पास रहेगा तब तक वह रूह तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगी। लेकिन एक बात याद रखना, अगर यह तावीज़ खो गया तो तुम्हे उस रूह से कोई भी नहीं बचा पायेगा।”
सुप्रिया और आरिफ ने बड़ी ही विनम्रता से पीर बाबा से तावीज़ लेकर अपने पास रख लिया और उनका शुक्रिया माना और वहां से तीनो बाहर की और निकल गये। पीर बाबा तीनो को जाते हुए देख रहे थे और मन ही मन में उनकी रक्षा के लिए अपने खुदा से दुआ मांग रहे थे।
आरिफ और सुप्रिया ने रेमो को उसके घर पर छोड़ा और उसकी मदद के लिए उसका शुक्रिया माना। रेमो ने भी उन लोगो को अपने इस मक़सद में सफल होने की बधाई दी। आरिफ ने जिप्सी को जंगल की तरफ मोड़ लिया। ड्राइव करते समय आरिफ कुछ सोच रहा था और सुप्रिया वह समज चूकी थी।
“क्या हुआ? कबसे देख रही हु की तुम कुछ सोच में हों?” सुप्रिया ने आरिफ से पूछा।
आरिफ ने एक गहरी सांस ली और कहा,” पीर बाबा का कहना है की वह रूह बदला ले रही है। अगर मेरे भाई की हत्या भी इसी रूह ने की है तो राशिद ने क्या किया था जिसकी वजह से इस रूह ने उसकी जान लेली? ऍम. एल. ए. को भी इसी हैवान ने मारा है। तो क्या राशिद और ऍम. एल. ए. शिंदे के बिच में कोई कनेक्शन था?”
“तुम्हारी बात तो सही है आरिफ। अगर पीर बाबा की बातो में ज़रा सी भी सच्चाई है, तो कोई राज़ जरूर है जिसकी वजह से यह सब हों रहा है और इस राज़ से पडदा वहां पर ही उठेगा जहां से यह कहानी शुरू हुयी है। ” सुप्रिया ने मक्कम स्वर में आरिफ को कहा।
आरिफ ने एक नज़र सुप्रिया की तरफ डाली और गाडी के एक्सेलरेटर पर पाँव दबाकर गाडी की स्पीड बाधादि। दोनों अब जितना हों सके उतना जल्दी अपने सवालों के जवाब को ढूँढना चाहते थे।
चैप्टर 5
काल चक्र का बवंडर...
एस. पि शर्मा अपनी कैबिन में बैठे बैठे कुछ केस फाइल स्टडी कर रहे थे तभी नेता जैसे दिखने वाले दो आदमी उनकी कैबिन में दाखिल हुए। दोनों की उम्र तक़रीबन पैतीस से चालीस के बिच में लग रही थी।
“नमस्कार एस. पि सर, उन दोनों में से एक आदमी ने एस.पि. शर्मा का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिये कहा। एस.पि शर्मा ने उन दोनों को पहचान लिया और उन लोग को बैठने को कहा और वहां आने का कारन पूछा।
“जी, वह ऍम. एल. ए साब दो दिन से गायब है।" एक आदमी ने धीर से स्वर में कहा।
एस. पि शर्मा चौकते हुए,” गायब है का क्या मतलब?”
“जी, दो दिन पहले वो किसी क़ाम की वजह से शहर की और निकले थे लेकिन वह वापिस नहीं आये। उन्हों ने बोला था की अगले दिन आ जायेगे लेकिन आज दो दिन हों गये है। उनका और उनके बॉडी गार्ड का फ़ोन भी बंध आ रहा है।”
ऍम. एल. ए के आदमीओ की बात सुनकर एस. पि शर्मा सोच में पड गये और उनको तभी सुप्रिया और उसके दोस्तों की बात याद आयी। एस. पि शर्मा ने तुरंत ही अपने एक इंस्पेक्टर को बुलाया और दोनों आदमी को उसके साथ जाने के लिए कहा और कंप्लेंट लिखाने के लिए कहा। एस.पि ने अपने इंस्पेक्टर को ऑर्डर दिया की इस केस को हाई प्रायोरिटी पर इन्वेस्टीगेट करे।.
वह दोनों आदमी के जाने के बाद एस. पि शर्मा गहरी सोच में पड गये। पहले राशिद की हत्या, उसके बाद गनेश और डेविड का गायब हों जाना और अब यह ऍम.एल .ए. का इस तरह लापता होना, एस. पि शर्मा को कुछ समज ही नहीं आ रहा था की यह सब क्या हों रहा है। लेकिन वह एक बात समज चूका था की कोई तो है जो भूत काल में हुए अपने पर अन्याय का बदला लेने के लिए वर्तमान में आया है, लेकिन सवाल यह था की वह है कौन?
कुछ देर बाद एस. पि शर्मा ने इंस्पेक्टर को बुलाया और सबसे पहले उसको ऍम.एल ए. का नंबर ट्रेस करने के लिये कहा और एक टीम लेकर खुद निकल पड़े। वह अपनी टीम के साथ उस गांव में जा पहुंचे जिसका जिक्र सुप्रिया और उसके दोस्तों ने अपने बयान में किया था। गांव के बाहर ही उनको ऍम. एल. ए की गाडी दिख गयी। उन्हों ने तुरंत ही अपने दो कांस्टेबल को गाडी का मुआयना करने को कहा।
गाडी लॉक थी इसलिए एस. पि शर्मा की इजाजत से उन्हों ने ड्राइवर सीट की बाजू वाली खिड़की का कांच तोड़ दिया और उसकी मदद से गाडी का दरवाज़ा खोल के उसका मुआयना करने लगे। कुछ देर बाद दोनों आये और कहा की गाडी में कुछ भी नहीं मिला। तभी एस. पि शर्मा को याद आया की सुप्रिया ने अपने बयान में एक चाय वाले का जिक्र किया था जो उन लोगो को उस घर तक ले गया था। एस . पि शर्मा ने तुरंत ही अपनी टीम को गाडी को गांव में मुड़ने का आदेश दिया।
चाय वाले को ढूंढने में ज़्यादा देर नहीं लगी क्यों की सुप्रिया ने जिस तरह से बयान किया था वैसे ही हुबहु एक चाय वाला नज़दीक में ही मिल गया। पूछताछ के बाद मालुम हुआ की वह वही चाय वाला था जिसके बारे में सुप्रिया ने बताया था। एस. पि शर्मा ने चाय वाले से थोड़ी पूछताछ की और फिर उसको वह घर दिखाने को कहा। चाय वाला बिना जिजक किये पुलिस को वहां ले गया।
थोड़ी देर में वह लोग उस घर के पास पहुंच गये। चाय वाले ने घर का दरवाज़ा खोल दिया। एस. पि शर्मा ने अपने दो कांस्टेबल को अंदर जा कर छानबीन करने को कहा और एक इंस्पेक्टर और कांस्टेबल को घर की पीछे की तरफ जाने के लिए कहा। वह खुद बाहर से घर का मुआयना करने लगे। तभी जो इंस्पेक्टर घर के पीछे गया था वह अपने हाथे में ऍम. एल. ए के बॉडी गार्ड की बंदूक लेकर आया, और कहा,” सर यह देखिये, यह एक मशीन गन पीछे से मिली है।” एस. पि शर्मा समज गये की यह किसकी होगी। उन्होंने तुरंत चाय वाले के सामने गुस्से से देखा।
चाय वाला डर गया, और बोलने लगा,” मैं कुछ नहीं जानता साब इसके बारे में। मैंने कुछ नहीं किया है।”
एस. पि शर्मा ने गुस्से से पूछा,” तुम ने तो कहा था की सिर्फ चार नौजवान यहाँ आये थे। और हमारे सूत्रों की मुताबिक़ उस रात को ऍम. एल. ए भी यहाँ पर था। सच सच बताओ क्या हुआ था यहाँ? क्या छुपा रहे हों तुम?”
“ऍम. एल. ए और यहाँ? नहीं साब मै सच बोल रहा हूँ। मैं तो सिर्फ उन चार नौजवानो को ही यहाँ लाया था वह भी इसलिए क्यों की शकल से वह लोग अच्छे घर के लग रहे थे। और रात को मैंने जब उन लोगो को खाना खाने के बाद दूध दिया तब भी सिर्फ वह चार लोग ही थे। और साब दूसरे दिन भी वह चार ही थे और कोई पांचवा इंसान नहीं था। लेकिन हां साब एक बात है की जब में सुबह उन लोगो को चाय-नास्ता देने के लिए आया था तब सब के सब डरे हुए थे।” चाय वाले ने कहा।
एस. पि शर्मा ने उसकी बात सुनकर उसको समय पूछा की किस वक़्त उसने उन लोगो को साथ में आखरी बार देखा था। चाय वाले ने सब बात उनको बता दी। चाय वाले की बात सुनकर एस. पि शर्मा को यकींन हों गया की चाय वाले को और कुछ मालुम नहीं है। उन्होंने चाय वाले को जाने के लिए कहा, तभी घर के अंदर से जो दो कांस्टेबल गये थे वह दोनों बाहर आये और उन्होंने एस. पि शर्मा को बताया की उनको वहा पर कोई सुराग नहीं मिला।
एस. पि शर्मा थोड़े चीड़ गये और वह खुद घर के अंदर गये। घर के अंदर जाते ही उनकी नज़र सामने दीवाल पर टंगी हुयी एक तस्वीर पर पडी। तस्वीर पुरानी थी और उस पर काफी धूल भी जमा हों गयी थी इसलिये वह थोड़े नज़दीक गये।
एस. पि शर्मा ने तस्वीर को दीवाल से उतारा और अपनी जेब में से हाथ रुमाल निकाल कर तस्वीर पर की धूल को साफ़ किया। धूल हटने पर तस्वीर थोड़ी सी साफ़ हों गयी और उन्होंने जब ध्यान से तस्वीर को देखा तो उनकी आँखे फटी की फटी रह गयी। ऐसा लग रहा था की तस्वीर में जो आदमी थे, एस. पि शर्मा उन लोगो को अच्छी तरह से जानते था।उन्होंने तस्वीर को तुरंत ही वहां पर रख दिया और घर के बाहर निकल कर अपनी गाडी की और चल पड़े। अपने दो कांस्टेबल ऍम. एल. ए की गाडी को पुलिस स्टेशन लाने का आदेश दिया और बाकी पुलिस वालो के साथ वह पुलिस स्टेशन की और रवाना हों गये।
पुलिस स्टेशन पहुंचते ही उन्होंने अपने एक कांस्टेबल को चाय लाने को कहा और वह अपनी कैबिन में अपनी खुर्सी पर जा कर बैठे बैठे गहरी सोच में डूब गये। उनके चेहरे पर एक अनजान सा डर दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था की उनको कोई पुरानी बात याद आगयी हों। तभी कांस्टेबल उनके टेबल पर चाय और बिस्किट्स रख कर चला गया, एस. पि शर्मा अभी भी अपने विचारो में खोये हुए थे।
तभी उनकी कैबिन में अनुज और रिया दाखिल हुए। उनको देखते ही एस. पि शर्मा थोड़े चौंक गये और फिर बोले, “तुम लोग! तुम लोग सुप्रिया के दोस्त हों ना, उस दिन सुप्रिया के साथ यहाँ आये थे?”
अनुज और रिया ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उलटा एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे। दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट देख कर एस. पि शर्मा थोड़े से चीड़ गये लेकिन उन्होंने खुद पर काबू रख कर दोनों को वहां वापिस आने का कारन पूछा।
तभी दरवाज़े के बाहर से एक आवाज़ आयी,” इन्हे में लेकर आया हूँ “और एक आदमी एस. पि की कैबिन में दाखिल हुआ।
उस आदमी ने सफ़ेद कलर का सूट और सफ़ेद कलर के जुते पहन रखे थे। आँखों पर काले चश्मे और गले में एक सोने की भारी चैन बाहर दिख रही थी। उनके सर और दाढ़ी के बाल सफ़ेद थे लेकिन ऐसा लग रहा था की उस आदमी ने अपने बाल और दाढ़ी को किसी अच्छे नाइ से स्टाइल कराया हों। वह आदमी आकर सीधा एस. पि शर्मा की सामने की खुर्सी पर बैठ गया।
उसको देखते ही एस. पि शर्मा के मुँह से निकल पड़ा, “जे. डी.! तुम यहाँ!”
“हाँ एस. पि आना पड़ा मुजे। तुम तो मुजे कुछ बताते ही नहीं, तो सोचा की में खुद चला आउ।" जे. डी. ने एक खुन्नस भरी नज़र से एस. पि को देखा।
एस. पि थोड़ा हिचकिचाया और धीरे से बोला,” नहीं जे. डी. मैं बताने ही वाला था लेकिन सब इतना जल्दी जल्दी हुआ की समय ही नहीं मिला। लेकिन यह दोनों तुम्हारे साथ?”
जे. डी. ने एक नज़र अनुज और रिया की तरफ की और बोला,” यह दोनों मेरे लिए क़ाम करते है। तुम्हे तो पता है की मेरी बेटी मुझसे बात नहीं करती और मेरे बिज़नेस ने मुजे दोस्तों से ज़्यादा दुश्मन दिये है। इसलिए यह दोनों मेरे कहने पर सुप्रिया के साथ उसके दोस्त बनकर उसके साथ ही रहते थे। सुप्रिया के लिए यह दोनों उसके दोस्त है लेकिन हक़ीक़त में यह दोनों सुप्रिया के बॉडी गार्ड्स है"।
जे. डी. की बात सुनकर एस. पि शर्मा की बोलती बंद हों गयी। जे. डी. ने एक नज़र चारो तरफ गुमाई और बोला,” तुम भूल गये हों एस. पि की आज तुम जिस पोजीशन पर हों वह मेरी दी हुयी है। लेकिन किसी ने सच ही कहा है, कौवा कितना भी खुद को साफ़ करे लेकिन वह कभी भी हंस नहीं बन सकता। तुम्हारी औकात भी एक दो कोड़ी के सुब-इंस्पेक्टर की ही है। जे. डी. के चेहरे पर नफ़रत और गुस्सा दिख रहा था।
“नहीं जे.डी. ऐसी बात नहीं है मैं…” एस. पि अपनी बात पूरी करे उसके पहले ही जे. डी. ने उसकी बात काट ली और उस पर चिल्लाके बोला, “शट उप यू फूल!” जे. डी. का गुस्सा देख कर एस. पि एक दम से चुप हों गया। वह कुछ बोल ही नहीं पाया।
“तुमको एक छोटा सा क़ाम दिया था, वह भी नहीं कर सके! बड़े एस. पि बने घूमते हों यहाँ पर लेकिन औकात किसी हवालदार जितनी भी नहीं! कोई तुम्हारी नाक की निचे से ही राशिद और ऍम. एल. ए को मार के चला गया। तुम्हारे ही इलाके में मेरे आदमी गनेश और डेविड गायब हों गये लेकिन तुम्हे पता ही नहीं!” जे. डी. की आँखे लाल हों गयी थी और वह खा जाने वाली नज़रो से एस. पि को देख रहा था।
कुछ पलो के बाद जे. डी थोड़ा शांत हुआ और फिर बोला,” अब में आ गया हूँ। सब ठीक हों जाएगा। एक कहानी को हमने कुछ सालो पहले ख़तम किया था, लगता है की दूसरी कहानी भी यही ख़तम होगी” और वह ज़ोर ज़ोर से हसने लगा। उसकी हसी में अपने दुश्मनो के लिए ध्रुना साफ़ साफ़ दिख रही थी। अनुज और रिया एक दम शांत होकर खड़े खड़े दोनों की बात सुन रहे थे। एस. पि शर्मा की तो बोलती ही बंध हों चूकी थी।
फिर जे. डी अपनी खुर्सी से खड़ा हुआ और एस. पि शर्मा को कहा, “तुम तैयार रहना। अब में खुद यह क़ाम को अंजाम दूंगा। तुम सिर्फ अपनी तरफ से सारा इंतेज़ाम कर के रखना। इस बार गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।"
जे.डी. ने अनुज और रिया को इशारा किया और वह दोनों जे. डी. के पीछे पीछे कैबिन के बाहर निकल गये। एस. पि शर्मा चुप चाप उनलोगो को जाते हुए देखते रहा। ऐसा लग रहा था की वह जे. डी को कुछ बात बताना चाहता था लेकिन उसकी बात दिल में ही रह गयी। जिस तरह से जे. डी ने उसकी ही कैबिन में आकर उसका अपमान किया उससे एस. पि शर्मा काफी तिलमिलाया हुआ था लेकिन जे. डी. के सामने उसकी हिम्मत नहीं थी कुछ बोलने की।
एस. पि ने जे. डी के साथ रह कर ना जाने कितने काले कामो को अंजाम दिया था लेकिन ना जाने क्यों इस बार एस. पि को मन ही मन में डर था। उसने अब तक जो भी देखा और सूना उसके आधार पर वह समज गया था की इस बार क़ाम आसान नहीं होगा। उसने अपने आप को स्वस्थ किया और जे. डी. के कहने की मुताबिक़ अपने कुछ ख़ास पुलिस वालो को तैयारी करने का आदेश दिया।
यहाँ पर आरिफ और सुप्रिया भी अपना सफर तय करके जंगल के पास पहुंच चुके थे। घडी में शाम के आठ बज चुके थे। दोनों को भूख तो नहीं थी लेकिन दोनों जानते थे की आगे का रास्ता आसान नहीं है और दोनों को अपनी शारीरिक और मानसिक हिम्मत का संतुलन रखना होगा। दोनों ने एक ढाबे पर रुक कर कुछ खाने का फैसला किया। ढाबे पर एक टेबल पर बैठे बैठे दोनों कुछ गहरी सोच में थे। गरमा गरम खाना उनके टेबल पर पड़ा पड़ा ठंडा हों रहा था लेकिन दोनों का खाने का बिलकुल भी मन नहीं था। दोनों बार बार वही ऍम. एल. ए के साथ जो हुआ और रहीद की हत्या के बारे में ही बात कर रहे थे।
दोनों इस बात से अनजान थे की उनके पीछे के टेबल पर बैठा हुआ एक आदमी उनकी बाते सुन रहा था। जब जब भी दोनों ने अपनी बातो में बिना सर वाले हैवान का जिक्र किया, तब तब उस आदमी की आँखे चमक उठती थी। ऐसा लग रहा था की वह आदमी किसी की तलाश में है और यह दोनों के पास उसकी चाबी है। वह आदमी ने काले कलर का शर्ट और ब्लू जीन्स पहने हुए था और उसके पास कंधे पर लटकाने वाला एक बैग था। उसकी उम्र भी कुछ अठाइस – तीस के बिच में लग रही थी। अचानक से वह आदमी अपनी जगह से उठा और आरिफ और सुप्रिया की टेबल पर आकर बैठ गया।
एक अनजान इंसान को ऐसे अपने टेबल पर देख कर दोनों थोड़े चौंक गये लेकिन वह आदमी ने हसते हसते अपना परिचय देते हुए कहा , “हाई! आई ऍम विजय और मैं एक पैरानॉर्मल रिसर्चर हूँ। आई ऍम वैरी मच सॉरी टू इंटरप्ट यू गाइस। मैं माफ़ी चाहता हूँ की बिना इज़ाज़त आपकी बातो को सुनने के लिए। लेकिन क्या करू आपकी बाते सुनकर में खुद को रोक नहीं पाया।”
विजय की बात सुनते ही दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ की उनको अपनी बाते ऐसी भीड़ भाड़ वाली जगह पर करनी नहीं चाहिए थी। सुप्रिया ने अपना और आरिफ का परिचय दिया और विजय से पूछा,” हम आपकी क्या मदद कर सकते है ?”
विजय ने वापीस हसते हुए जवाब दिया,” सिर्फ आप ही मेरी मदद नहीं लेकिन हम तीनो एक दूसरे की मदद कर सकते है।"
“सॉरी लेकिन हम कुछ समजे नहीं?”, आरिफ ने तुरंत ही विजय से सवाल किया।
विजय ने एक लम्बी सांस ली और कहा, “मैं एक पैरानॉर्मल रिसर्चर हूँ। इस वक़्त में जिस आत्मा के बारे में खोज कर रहा हु उसी आत्मा का पीछा आप लोग भी कर रहे हों। आप दोनों मुजे आत्मा के बारे में और जानकारी निकालने में मेरी मदद करोगे और में अपने पैरानॉर्मल रिसर्च का अनुभव आप दोनों की मदद के लिए इस्तेमाल करुगा। और मैंने थोड़ी बहुत रिसर्च की है इस आत्मा के बारे में जो तुम दोनों को कुछ मदद करेगी।”
विजय की बात सुनकर आरिफ और रिया एक दूसरे की और देखने लगे और वह कुछ बोले उसके पहले ही विजय ने अपनी बैग में से अपना IPAD निकाला और उसमे उसने इस आत्मा के बारे में जो भी रिसर्च की थी वह दोनों को दिखाने लगा। विजय की रिसर्च को देखते दोनों एकदम दंग रह गये। विजय के पास वह जानकारी थी जिसके बारे में उनको शायद कभी पता नहीं चलता । अब तो विजय को मना करने का कोई कारन ही नहीं था और दोनों ने विजय को अपने साथ आने का प्रस्ताव दिया जिसको विजय ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया।
आरिफ और सुप्रिया का आत्मविश्वास और बढ़ गया था क्यों की अब उनके पास उस हैवान के बारे में कुछ जानकारी थी। आरिफ ने विजय को पूछा की उसके पास इतनी सारी जानकारी कहा से आयी? तब विजय ने बताया की वह जिस पैरानॉर्मल रिसर्च इंस्टिट्यूट के लिए यह रिसर्च कर रहा है वहा से ही उसको यह जानकारी मिली है। काफी सारे पैरानॉर्मल रेसर्चेर्स की सालो की मेहनत है इसके पीछे। और अब उनलोगो ने विजय को जिम्मेदारी सोपि है की वह इस आत्मा की पूरी जानकारी और दुनिया को दिखाने के लिए पुख्ता सबूत लाये।
आरिफ ने ड्राइव करते करते विजय को पूछा,” वह तुम्हारे रिसर्च में कही लिखा हुआ था की उस आत्मा का नाश कर सकते है , वह क्या है? क्या ऐसा मुमकिन है?”
आरिफ का सवाल सुनकर विजय अपने IPAD में कुछ ढूंढने लगा और कुछ देर के बाद बोला,” यहाँ लिखा हुआ है की किसी भी आत्मा को तभी मारा जा सकता है जब वह अपने पुरे रूप में हों। इस वक़्त यह हैवान का सर गायब है यानी की वह अपने पुरे रूप में नहीं है। यह आत्मा अपने पुरे रूप में तभी आएगी जब उसका सर उसके धड़ से जुड़ा हों। जब हैवान अपने पुरे रूप में हों तभी उसको जला कर उसको मारा जा सकता है।”
“इसका मतलब यह है की हमे सबसे पहले उस हैवान का सर ढूँढना होगा”, आरिफ ने विजय की बात सुनकर अपना अभिप्राय दिया। विजय और सुप्रिया ने दोनों ने उसकी बात में सहमति दिखाई।
वह लोग जंगल के काफी करीब आ चुके थे। रात के इस वक़्त दस बजने वाले थे। इस वक़्त इतनी सारी गाड़िया का आना जाना भी नहीं था। कहीं कहीं से एक –दो गाडी पसार हों जाती थी। आरिफ ने जिप्सी को सड़क के किनारे रोक दिया और तीनो नीचे उतरे। आरिफ ने अपने बैग में से एक कैमरा लिया और फिर उसमे कुछ हथ्यार भी थे। उसमे से उसने एक - एक पिस्तौल रिया और विजय को दी और एक अपने पास रखी और बाकी बचे हथ्यारो को बैग में रखकर अपने कंधे पर ले लिया। सुप्रिया ने अपने और आरिफ के तावीज़ जो बराबर से गले में बाँधा। विजय ने अपनी बैग में से एक स्पीड मीटर जैसे दिखनेवाला मशीन निकाला।
आरिफ ने तुरंत ही विजय को पूछा की यह कौनसा मशीन है। विजय ने बताया की यह एक EMF यानी एल्क्ट्रोफायिंग मैग्नेटिक फ्रीक्वेंसी मशीन है। इस मशीन पर लगे दो ऐन्टेना अपनी आस पास के ३०० मीटर की दुरी तक के एल्क्ट्रोफायिंग मैगनेट की फ्रीक्वेंसी को पकड़ कर मशीन के द्वारा अलर्ट भेजते है जिससे यह पता चलता है की आस पास कोई शक्ति है। जितना ज़्यादा इस मशीन का काँटा तेज़ घूमेगा, उतना ही ज़्यादा उस शक्ति का प्रभाव होगा। आरिफ की दी हुई पिस्तौल को अपने पास रखते हुए विजय ने कहा, “ क्या तुम यह मानते हों की भूतो बंदूक से मारा जा सकता है ?"
आरिफ ने विजय को देखा और कहा,” यह कोई साधारण बंदूक नहीं है। इसकी एक -एक गोली चर्च के होली वॉटर में भिगोई हुई है। यह उस हैवान को मारेगी तो नहीं लेकिन उससे कुछ समय के लिए कमज़ोर जरूर करदेगी।”
"लगता है की तुम लोगो ने मेरी बात बराबर सुनी नहीं है। जब तक यह हैवान अपने पुरे रूप में नहीं होगा तब तक उसको कोई कुछ नहीं कर सकता। इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो, चाहे कुछ भी हों, उसके करीब जाने की गलती बिलकुल भी मत करना ख़ास करके जब तक हम उसका सर ना ढूंढ ले।" विजय ने दोनों को समजाया।
तीनो ने एक बार फिर से तस्सली करली की उनके पास सब जरुरी सामान है। सुप्रिया ने आरिफ का हाथ पकड़ा और इशारो में ही उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। आरिफ ने दोनों को एक साथ ही रहने को कहा और तीनो जंगल में दाखिल हुए।
रात के कुछ 10.15 बज रहे थे लेकिन जंगल इतना घना था की बाहर की दुनिया में क्या हों रहा है उसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता। चारो और घना अँधेरा और बड़े बड़े पेड़ वाले माहौल को देख कर कोई भी कमज़ोर दिल वाला इंसान डर जाए लेकिन यह तीन ने अपनी मंज़िल को पाने का जो संकल्प लिया था उसकी वजह से वह लोग अपने डर पर काबू पाके आगे बढ़ रहे थे।
तीनो बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। आरिफ सबसे आगे चल रहा था और उसके एक हाथ में पिस्तौल और एक हाथ में टोर्च थी। उसके पीछे सुप्रिया अपने हाथ में टोर्च लेकर चल रही थी और उसके पीछे विजय अपने हाथ में EMF मशीन को लेकर आगे बढ़ रहा था। तीनो आगे बढ़ने के साथ साथ एक दूसरे को पीछे मूड कर देख भी लेते थे ताकि तस्सली हों की तीनो सही सलामत है।
तीनो अब तक तक़रीबन पौने घंटे ज्यादा चल चुके थे। वह लोग जंगल के काफी अंदर की और आ चुके थे। चारो और सन्नाटा छाया हुआ था। कही दूर से कभी कभी जानवर की रोने की आवाज़े आ रही थी। माहौल काफी डरावना लग रहा था। आरिफ ने दोनों को चुप रहने का इशारा किया और उसके पीछे आने को कहा। तीनो धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। तभी थोड़े दूर सुप्रिया की नज़र एक बड़े से पेड़ पर पडी और वह थोड़ी हड़बड़ा गयी और अगर विजय ने समय पर उसको पकड़ा नहीं होता तो वह निचे गिर जाती।
विजय ने सुप्रिया को संभाला और उसको हड़बड़ाहट का कारन पूछा। सुप्रिया थोड़ी डरी हुयी लग रही थी। आरिफ ने उसके कंधे पर हाथ रख कर हिम्मत देते हुए कहा,” क्या हुआ? कुछ दिखा क्या तुम्हे? डरो नहीं हम लोग है तुम्हारे साथ।"
सुप्रिया ने अपने आप को संभालते हुए उस पेड़ की तरफ इशारा किया और कहा,” यह वही पेड़ है जो मैंने सपने में देखा था। पता नहीं क्यों लेकिन ऐसा लग रहा है की यह पेड़ इस सारी घटनाओ से जुड़ा हुआ है।" सुप्रिया की आवाज़ में अभी भी डर महसूस हों रहा था। आरिफ ने एक नज़र विजय की और देखा और फिर सुप्रिया को संभालते हुए वह लोग पेड़ की तरफ बढ़ने लगे।
पेड़ के पास जा कर तीनो पेड़ की चारो और से मुआयना करने लगे। वैसे तो एक साधारण पेड़ ही था लेकिन उसके चौड़े कद की वजह से इस अँधेरे में थोड़ा डरवाना लग रहा था। सुप्रिया भी अपनी टोर्च की रौशनी की मदद से उस पेड़ को ध्यान से देख रही थी। तभी उसका ध्यान कुछ निशान पर गया। उसने थोड़ा नज़दीक जा कर उससे देखने का फैसला किया। उसने जैसे ही नज़दीक जा कर उस निशान को देखा तो डर के मारे उसके मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी और वह दो कदम पीछे हों गयी।
आरिफ और विजय तुरंत ही उसके पास आये और उसको डर का कारन पूछा। सुप्रिया की आँखों से आंसू आने लगे। वह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी सिर्फ डर के मारे उस पेड़ को ताड़े जा रही थी। आरिफ ने उसको अपनी बोतल में से थोड़ा पानी पिलाया और उसको शांत किया और फिर से उसको डर का कारन पूछा।
सुप्रिया अभी भी डरी हुयी थी लेकिन उसने अबतक अपने आप को संभाल लिया था। उसने बताया की जो निशान उसने अपने सपने में देखे थे पेड़ पर हुबहु वही निशान है। आरिफ और विजय भी यह सुनकर हक्के-बक्के रह गये। आरिफ ने यह भी कहा की यह उसका भ्रम हों सकता है। अँधेरे में पेड़ पर निशान एक जैसे ही दीखते है। सुप्रिया ने तब समजाया की यह निशान और जो निशान उसने अपने सपने में देखे थे उन दोनों में में एक जैसी गहराई है और दोनों में लाल कलर लगा हुआ है।
सुप्रिया की बात सुनकर विजय तुरंत उस पेड़ के पास गया और उस निशान पे लगे लाल कलर को ध्यान से देखने लगा। थोड़ी देर बाद ध्यान से देखने के बाद वह वापिस आया और बताया की वह लाल कलर किसी और चीज़ का नहीं लेकिन खून का है।
खून शब्द सुनते ही सुप्रिया और आरिफ थोड़े चौंक गये। उन लोगो यह समज नहीं आ रहा था की इस पेड़ का यह घटनाओ से क्या संबंध हों सकता है और सुप्रिया के सपने में आके क्या बताना चाहता है? इस पेड़ का सुप्रिया के सपनो में आना सिर्फ एक संजोग ही है या इसके पीछे भी कोई राज़ है ? तीनो इस गुत्थी में उलझे हुए ही थे तभी विजय के हाथ में रखे EMF मशीन में अलर्ट आने लगा।
तीनो तुरंत ही चौकन्ने हों गये। विजय ने बताया की कोई शक्ति आस पास में ही है। धीरे धीरे मशीन की आवाज़ तेज़ हों रही थी इसका मतलब यह था की वह शक्ति धीरे धीरे उनके करीब आ रही थी। जैसे जैसे मशीन की आवाज़ तेज़ हों रही थी वैसे वैसे तीनो अपने कदम पीछे की और ले रहे थे। तीनो के चहरे पर डर साफ़ साफ़ दिख रहा था। अचानक से मौसम में एक बदलाव आया और ज़ोरो से हवा चलने लगी। ऐसा लग रहा था की आंधी आयी हों।
मौसम में हुए अचानक बदलाव की वजह से तीनो हैरान थे और कुछ समजे उसके पहले ही किसी के ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आयी। सुप्रिया ने वह आवाज़ पहचान ली और उसने तुरंत ही दोनों को चौकन्ना किया की यह वही हैवान की आवाज़ है जिसको वह लोग ढूंढने के लिए यहाँ आये है । आरिफ ने अपनी पिस्तौल संभाली और तीनो चारो और अपनी नज़र घुमाने लगे लेकिन आंधी की वजह से कुछ साफ़ नहीं दिखाई दे रहा था। वह आवाज़ धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी और साथ में विजय के हाथ में रखे हुए EMF मशीन की आवाज़ भी तेज़ हों रही थी ।
तभी विजय ने देखा की सामने से कोई चला आ रहा था। उसने ध्यान से देखा तो उसके होश ही उड़ गये। सामने से वही बिना सर वाला हैवान चला आ रहा था। उसके कटे हुए गांव में से खून के निशान साफ दिख रहे थे और उसके एक हाथ में कुल्हाड़ी लटक रही थी। चलते चलते वह हैवान एक अजीब सी और डरावनी आवाज़ निकाल रहा था। आरिफ ने तुरंत ही उस पर अपनी पिस्तौल से उस पर निशाना ताका और ट्रिगर दबा दिया।एक धाय करके गोली निकली और सीधा उस हैवान के सीने पर लगी लेकिन ऐसा लगा की गोली का उस पर कोई असर नहीं हों रहा था। आरिफ ने दो-तीन बार गोली चलाई लेकिन उस हैवान पर कोई असर नहीं हों रहा था।
आरिफ ने तभी चिल्लाके दोनों को भागने को कहा। आरिफ के कहते ही तीनो ने पूरी ताकत लगा कर भागना शुरू किया। तीनो एक के पीछे एक भाग रहे थे और बिच बिच में पीछे मूड कर देख लेते लेकिन ऐसा लग रहा था की वह हैवान उन लोगो से ज़्यादा तेज़ चल रहा था। वह लोग चाहे कितना भी तेज़ भागे लेकिन उनकी और उस हैवान की बिच का अंतर कम नहीं हों रहा था।
तभी भागते भागते अचानक सुप्रिया का पाँव एक पत्थर से टकराया और वह गिर पडी। वह दर्द से कराह उठी और उसके पाँव से खून भी निकल रहा था। आरिफ ने पीछे मुड़कर देखा तो सुप्रिया ज़मीन पर गिरी हुई दर्द से कराह रही थी और विजय उसको संभालने की कोशिश कर रहा था। आरिफ भी तुरंत भाग कर सुप्रिया के पास पहुंच गया और विजय की मदद से सुप्रिया को उठाने की कोशिश करने कागा लेकिन दर्द की वजह से सुप्रिया को काफी मुश्किल हों रही थी।
अब उन लोगो के लिए कोई भी कोशिश करना बेफिज़ूल था क्यों की वह हैवान उन लोगो तक पहुंच चूका था। तीनो निचे ज़मीन पर बैठे उससे देख रहे थे और वह हैवान उनके बराबर सामने कुछ कदमो की दुरी पर ही था और डरावनी आवाज़े निकाल रहा था। तीनो एक दम डरे हुए थे और डर के मारे तीनो का गला सुख गया था। अब तीनो को लगा की उनका आखरी वक़्त आ गया है तभी अचानक से कहीं से गोलिओ की चलने की आवाज़ आयी।
तीनो ने गोली चलने की दिशा में देखा तो उन लोगो भी भरोसा नहीं हुआ, तक़रीबन 10-15 लोग आधुनिक हथ्यारो से उस हैवान पर गोलिया चलाये जा रहे थे। ऐसा लग रहा था की एक साथ हज़ारो गोली चल रही है। अचानक से वह हैवान गायब हों गया। उसके गायब होते ही वातावरण भी एकदम से शांत हों गया।
उस हैवान के गायब होते ही उन लोगो ने भी गोली चलाना बंध कर दिया। तभी पीछे से एक सफ़ेद सूट पहना हुआ एक आदमी उनको शाबाशी देते हुए आया, “वेल डन बॉयज, वेल डन!”
उस आदमी को देखते ही सुप्रिया के मुँह से अपने आप निकल पड़ा, “पापा!” उसको समज में नहीं आ रहा था की उसके पापा यहाँ क्या कर रहे है।
जे. डी के पीछे एस. पि शर्मा भी था लेकिन इस वक़्त वह अपनी वर्दी में नहीं था। उसने गहरे नीले कलर का सूट पहन रखा था। सुप्रिया भागते हुए जे. डी. के पास गयी और थोड़े उखड़े अंदाज़ में पूछा, “आप यहाँ क्या कर रहे है? और यह सब कौन है?”
“यह लोग मेरे ही आदमी है। मैं अपना एक अधूरा काम पूरा करने आया हूँ यहाँ। लेकिन तुम यहाँ क्या कर रही हों?” जे. डी. ने सुप्रिया को कहा। तभी उसकी नज़र आरिफ पर पडी, “हेलो यंग बॉय? हाउ आर यू? राशिद के बारे में सुनकर बड़ा दुःख हुआ।” आरिफ ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
“आप इस वक़्त यहाँ है मगर जरूर कोई गैरकानूनी काम ही होगा। और आप एस. पि अंकल? आप भी इनके साथ है! एक पुलिस अफसर होकर भी आप इस आदमी का साथ दे रहे है?” सुप्रिया गुस्से से बेकाबू हों रही थी।
“मैं जानता हु बेटी की तुम मुझसे नफरत करती हों लेकिन मानो या मानो अगर मैं इस वक़्त यहाँ नहीं होता तो शायद तुम तीनो ज़िंदा नहीं होते!” जे.डी. जिस तरह से सुप्रिया से बात कर रहा था उससे देखकर ऐसा लग रहा था की वह अपनी बेटी से नहीं लेकिन किसी दुश्मन से बात कर रहा हों। आरिफ और विजय सिर्फ दोनों की बात सुन रहे थे और कर भी क्या कर सकते थे।
तभी अचानक जे.डी. का एक आदमी दर्द से कराह उठा और निचे गिर गया। उसके सर के बीचो बिच कुल्हाड़ी फसी हुई थी जिसमे से खून निकल रहा था। सब लोग उसके शव को देख कर चौकन्ने हों गये। आरिफ ने तुरंत ही विजय और सुप्रिया का हाथ पकड़ा और वहा से निकल ने का इशारा किया। तभी अचानक से आंधी फिर से शुरू होगयी और वह हैवान वापिस प्रकट हों गया।
जे. डी के आदमीओ ने अंधाधुन गोली बारी शुरू करदी लेकिन कोई फायदा नहीं हों रहा था। वह हैवान एक के बाद एक सब आदमीओ को सब्जी की तरह काट रहा था। एस. पि शर्मा ने उस पर निशाना ताकने की कोशिश की लेकिन वह अपनी बंदूक का ट्रिगर दबाये उसके पहले ही कुल्हाड़ी उसकी गर्दन पर फिर चूकी थी और उसका सर फुटबॉल की तरह उड़कर कहीं जा गिरा और उसका बाकी बचा हुआ शरीर उधर ही गिर पड़ा। उसके शरीर में से खून की धरा बहने लगी।
देखते ही देखते अचानक सब शांत हों गया। चारो तरफ कटी हुई लाशें और खून ही खून था। वह हैवान उन लाशो के बीचो बिच खड़ा था और ज़ोर ज़ोर से हुंकार लगा रहा था।
चैप्टर 6
काल चक्र की सच्चाई...
जब यह खून खराबा चल रहा था उस बिच आरिफ, सुप्रिया और विजय मौका देखकर वहा से भागने में सफल हों गये थे। उन लोगो को मालुम ही नहीं था की वह लोग कितनी दूर तक दौड़े होंगे क्यों की वह लोग तब तक भाग रहे थे जब तक उन लोगो की साँसे फूलने लगी। आखिर में वह लोग एक पेड़ के पास रूक कर सांस लेने लगे।
तीनो काफी थके हुए थे। अभी अभी थोड़ी देर पहले ही मौत उन लोगो को छू कर निकली थी। तीनो ने जो भी देखा उस पर उन लोगो को भरोसा ही नहीं हों रहा था। आखिर में विजय ने थोड़ी हिम्मत की और खुद को संभाला और आरिफ और सुप्रिया को भी हिम्मत दी।
सुप्रिया डर के मारे ध्रुजते हुए,” वो देखा तुम लोगो ने! कैसे उस हैवान ने पल भर में सबको काट के रख दिया। एस. पि अंकल, पापा सब मारे गये !” उसकी आवाज़ में दुःख और डर दोनों था।
“नहीं सुप्रिया यह वक़्त मायूस होने का नहीं लेकिन हिम्मत से काम लेने का है। बस एक बार सिर्फ उसके सर के बारे में मालुम पड जाए, फिर उसको में अपने हाथो से मारुंगा।" आरिफ ने सुप्रिया को हिम्मत देते हुए कहा।
“और हों सकता है हम लोगो को सबूत भी मिल जाए ताकि हम दुनिया को बता सके की यह आत्मा सच में है और कोई अफवाह नहीं।” विजय ने दोनों से कहा।
“मतलब?” आरिफ ने तुरंत ही विजय को सवाल किया। सुप्रिया भी विजय की बात सुनकर थोड़ी आश्चर्य भरी नज़रो से उसे देखने लगी।
विजय ने एक नज़र दोनों पर डाली और फिर अपने शर्ट पे लगे एक बटन में से एक मेमोरी कार्ड निकाला। यह देख कर आरिफ और सुप्रिया दोनों एक दम से दंग ही रह गये। दोनों के चेहरे को देख कर विजय ने दोनों का सवाल भांप लिया और कहा,” यह दरअसल बटन नहीं लेकिन माइक्रो कैमरा है। मैंने इसे अपने रिसर्च के लिए ख़ास तरीके से बनवाया है। कभी कभी ऐसे हालातो में जब हम कैमरा से रिकॉर्ड नहीं कर पाते तब यह काम में आता है। अब देखते है की इस कैमरा में कुछ रिकॉर्ड हुआ है या नहीं।”
विजय की बात सुनकर आरिफ और सुप्रिया एक दम दंग रह गये थे। दोनों मन ही मन में खुश भी हों रहे थे। एक खतरनाक लड़ाई के बाद उनको आशा की उम्मीद दिख रही थी। विजय ने मेमोरी कार्ड को अपने IPAD से कनेक्ट किया और उसमे रिकॉर्ड हुए वीडियो को देखने लगा।
विजय ने जब वीडियो चालु किया तो तीनो का मुँह खुला का खुला रह गया। कैमरा में सारी घटना रिकॉर्ड हुई थी यहाँ तक की जे.डी. के आदमीओ का नरसंहार भी। यह देख कर तीनो खुश होगये। अब उन लोगो के पास एक बड़ा सबूत था जोह उनकी बात को दुनिया के सामने ला सकता था। तीनो एक दूसरे की तरफ ख़ुशी से देखने लगे।
तीनो सोच रहे थे की उनका अगला कदम क्या होना चाहिए। तभी विजय की नज़र एक जगह पर पडी। दूर से वह किसी गुफा जैसे लग रही थी। विजय ने तुरंत ही दोनों का ध्यान उस तरफ किया। तीनो ने एक दूसरे को देखा और वहां जा कर देखने का फैसला किया।
तीनो धीरे धीरे एक दूसरे को संभाल के आगे बढ़ने लगे। कुछ पचास – सौ कदम चलने के बाद तीनो उस जगह के पास पहुंच गये। वहां जा कर देखा तो वह सच में एक गुफा ही थी। पहले तो उन लोगो को लगा की यह किसी जानवर की गुफा है। उन लोगो ने पहले यह पता करने का फैसला किया की अंदर कोई जानवर तो नहीं। आरिफ ने विजय और सुप्रिया को एक पेड़ पर चढ़ने को कहा। पहले तो सुप्रिया ने जिद्द की वह आरिफ के साथ ही रहेगी लेकिन आरिफ के समजाने पर वह मान गयी।
विजय और सुप्रिया जब पेड़ पर चढ़ गये तब आरिफ ने अपने एक हाथ में पिस्तौल ली। उसने पास में पड़े हुए तीन पत्थर उठाये और गुफा के थोड़े नज़दीक गया। सुप्रिया मन ही मन में आरिफ की सुरक्षा के लिए भगवान् से प्राथना कर रही थी और दूसरी तरफ विजय ने अपनी पिस्तौल का निशाना गुफा की तरफ ताक रखा था। आरिफ ने तीनो पत्थर को एक के बाद एक करके गुफा के अंदर फेंके और फिर भागकर वह थोड़े दूर एक बड़ी चट्टान के पीछे जाकर छुप गया। काफी देर तक भी गुफा में से कोई हरकत नहीं हुयी तो तीनो लगा की शायद अंदर कोई नहीं है।
आरिफ ने विजय और सुप्रिया को पेड़ के ऊपर ही रहने का इशारा किया और खुद धीरे धीरे बड़ी सावधानी से आगे बढ़ने लगा। उसने खुद गुफा के अंदर जाने का फैसला लिया था। सुप्रिया और विजय दोनों को समज नहीं आ रहा था की आरिफ क्या करना चा रहा है। आरिफ ने एक हाथ में पिस्तौल और दूसरे हाथ में टोर्च पकड़ी हुयी थी और धीरे धीरे वह गुफा की नज़दीक जा रहा था।
सुप्रिया समज गयी की आरिफ गुफा के अंदर जाने वाला है तो उसने उसको रोकने के लिए पेड़ से निचे उतरने की कोशिश की लेकिन विजय ने उसको रोक लिया। विजय ने समजाया की उसका वहां जाना आरिफ के लिए और खतरा बढ़ा सकता है। अगर कोई जानवर या फिर और कोई खतरा है तो हों सकता है की आरिफ सुप्रिया को बचाने के लिए अपनी जान पर खेल जाए। इसलिए बेहतर यही होगा की सुप्रिया पेड़ पर ही रुके। विजय की बात सुप्रिया की समज में आगयी और ना चाहते हुए भी वह वही बैठ कर आरिफ को गुफा के अंदर जाते हुए देखती रही।
आरिफ गुफा के अंदर दाखिल हुआ। गुफा में काफी अँधेरा था। आरिफ टोर्च की रौशनी की मदद से धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। चारो तरफ मकड़ी के जाले और कहीं कहीं छत पर जमगादर लटके हुए थे। आरिफ ने देखा की बिच बिच में रास्ते में हड्डी के ढाँचे भी थे। गुफा के अंदर से अजीब सी बदबू आ रही थी। इतनी गन्दी बदबू थी की आरिफ को अपने मुँह को ढकना पड़ा। आरिफ फिर भी आगे बढ़ता गया। आरिफ को गुफा के अंदर जाके काफी समय हों चुका था और बाहर पेड़ पर बैठे बैठे विजय और सुप्रिया भी चिंता में थे की आरिफ को अब तक आजा ना चाहिए था।
अब सुप्रिया और इंतज़ार नहीं कर सकती थी और उसने खुद गुफा में जाने का फैसला कर लिया। विजय ने उससे समजाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी और पेड़ से निचे उतर कर गुफा की और दौड़ पडी। विजय भी उसके पीछे पीछे ना चाहते हुए भी गुफा की तरफ भागा। दोनों ने अपनी पिस्तौल और टोर्च हाथ में पकड़ा हुआ था और विजय ने अपना EMF मशीन भी साथ में रखा हुआ था। अभी तो मशीन शांत था यानी इतनी तो तस्सली थी की आस पास कोई शक्ति नहीं है।
दोनों बड़ी सावधानी से अंदर दाखिल हुए। सुप्रिया ने धीरे से आरिफ का नाम पुकारा लेकिन विजय ने उससे चुप रहने को कहा। थोड़े दूर चलने के बाद उन लोगो ने भी निचे हड्डी के ढाँचे देखे। सुप्रिया के मन में आरिफ के लिए चिंता पैदा हुयी, अब वह जल्द से जल्द आरिफ को ढूँढना चाहती थी। विजय और सुप्रिया को भी बदबू आनी शुरू हों गयी थी। विजय ने सुप्रिया को अपने पीछे ही रहने का इशारा किया और आगे बढ़ने लगे।जैसे जैसे वह आगे बढ़ने लगे वैसे वैसे बदबू और तेज़ होने लगी। थोड़े आगे जाते ही टोर्च की रौशनी में दोनों ने देखा की आरिफ बेहोशी की हालत में निचे पड़ा हुआ था।
विजय और सुप्रिया तुरंत उसके पास भाग कर गये। सुप्रिया ने उसका सर अपनी गोद में लिया और विजय ने अपनी बैग में से पानी की बोतल निकाल कर आरिफ के चेहरे पर पानी का छींटकाव किया। कुछ पल के बाद आरिफ को होश आया और धीरे धीरे अपने आप को संभालते हुए खड़ा हुआ।
विजय और सुप्रिया ने उसको बेहोश होने का कारन पूछा तो उसने सामने की तरफ टोर्च की रौशनी फेकि। वहां का नज़ारा देख कर विजय दो कदम पीछे हैट गया और सुप्रिया के मुँह से एक चीख निकल गयी।सामने की तरफ चार आदमीओ की लाश पडी हुई थी। और वह लाशें किसी और की नहीं लेकिन गनेश और उसके दो साथी और डेविड की थी। सुप्रिया ने डेविड की लाश को पहचान लिया। और उनकी तरफ इशारा करते हुए बोल पडी। “डेविड अंकल!”
“तुम जानती हों इसे?” आरिफ ने सुप्रिया को संभालते हुए सवाल किया।
“हां। यह पापा के खास आदमीओ में से एक है। पापा अपने सारे काले काम डेविड अंकल से ही करवाते थे।’ सुप्रिया ने कहा।
आरिफ को भी लग रहा था की उस्सने डेविड को कहीं देखा है लेकिन उससे याद नहीं आ रहा था। सुप्रिया ने उससे पूछा, “क्या हुआ आरिफ? किस सोच में पड गये?"
“मैंने इस आदमी को कहीं देखा है लेकिन याद नहीं आ रहा की कहा।” आरिफ अभी भी याद करने की कोशिश कर रहा था। तभी आरिफ को याद आ गया की उसने डेविड को कहा देखा है और उसने तुरंत ही विजय और सुप्रिया को कहा,” मैंने इस आदमी को एस. पि शर्मा की ऑफिस में देखा था। जब में राशिद की मौत के बाद पहली बार एस. पि शर्मा की ऑफिस में गया था उनसे राशिद की मौत के बारे में बात करने तब यही आदमी उधर आया था।”
“इसका मतलब यह हुआ की एस. पि शर्मा और इस आदमी के बिच में कोई कनेक्शन था।” विजय ने आरिफ की बात सुनकर कहा।
तभी सुप्रिया और आरिफ को याद आया की पीर बाबा ने कहा था की वह आत्मा अपने बदले के लिए भटक रही है। तो क्या इस सबके पीछे सुप्रिया के पापा जे. डी., एस. पि शर्मा, ऍम. एल. ए शिंदे और डेविड का हाथ था? और राशिद का इस सब से क्या लेना देना था की उसकी भी हत्या हुई?
तीनो गुफा से बाहर निकले और किसी सुरक्षित जगह को ढूंढने लगे। तभी तीनो की नज़र दूर एक रौशनी पर पडी। ऐसा लग रहा था की किसी का घर हों वहा। तीनो जल्द से जल्द वहा पहुंचे। यह वही घर था जहा कुछ दिन पहले गनेश अपनी जान बचाने के लिए छुपने के लिए आया था।
विजय ने दरवाज़े को खटखटाया। कुछ देर बाद अंदर से दरवाज़े की कड़ी खुलने की आवाज़ आयी, तीनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और राहत की सांस ली। एक बुज़ुर्ग ने दरवाज़े के अंदर से ही अपना सर निकाल के तीनो की तरफ देखा और उखड़े स्वर में पूछा, “क्या चाहिए?”
तीनो ने वापिस एक दूसरे की और देखा और सुप्रिया थोड़े आगे आके बोली, “चाचा हम रास्ता भूल गये है और रात भी काफी हों चूकी है। अगर आप हमे आज रात रुकने की इज़ाज़त देते तो बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।”
बुज़ुर्ग ने एक नज़र तीनो की तरफ डाली और तीनो का हुलिया देख कर समज गये की इन लोगो का सफर अच्छा नहीं गुज़रा होगा। उन्होंने तीनो को अंदर आने की इज़ाज़त दी। तीनो उनका शुक्रिया मानते हुए अंदर दाखिल हुए। घर इतना बड़ा भी नहीं था। बाहर एक छोटा कमरा था जहा एक कोने में बुज़ुर्ग की चारपाई थी। अंदर की तरफ छोटा रसोई - घर जैसा लग रहा था।
उस बुज़ुर्ग ने उन तीनो को एक कोने में बैठने को कहा और खुद उन लोगो के लिए पानी लाने के लिए अंदर रसोई घर मैं गया। कमरे में एक बड़ा सा पिटारा था जिस पर कुछ मखिया घूम रही थी। विजय का ध्यान उस तरफ अंदर आते ही गया था क्यों की सारे घर में सिर्फ वही एक जगह थी जहा पर मखिया घूम रही थी।
तभी बुज़ुर्ग उन लोगो के लिए पानी लेकर आया। सबने उनका शुक्रिया माना और एक ही सांस में पानी का गिलास ख़तम कर दिया। बुजुर्ग ने कहा,” लगता है तुम लोगो को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है यहाँ तक आने में। कुछ खाओगे आप लोग?” बुजुर्ग की आवाज़ में एक चमक थी मानो उससे पता हैकी इन लोगो के साथ क्या हुआ है। तीनो ने फिर से उनका शुक्रिया माना और खाने के लिए मना कर दिया। वह लोग जो देख कर आये थे उसके बाद तीनो की भूख हमेशा के लिए ख़तम हों गयी थी।
सुप्रिया को बुज़ुर्ग का चेहरा कुछ जाना पहचाना लग रहा था और वह कबसे याद करने की कोशिश कर रही थी। उसको ऐसे देख कर आरिफ ने उसकी चिंता का कारन पूछा। सुप्रिया ने बताया की ऐसा लग रहा है की उसने इस बुज़ुर्ग को कहीं देखा है लेकिन याद नहीं आ रहा कहा पर। आखिर में सुप्रिया को याद आ गया की उसने उस बुज़ुर्ग आदमी का चेहरा उस रात गांव के पुराने घर में एक फोटो में देखा था। साथ में सुप्रिया को मन में यह सवाल भी हुआ की यह इंसान अपना घर छोड़ कर इस जंगल के बिच क्या कर रहा है?
सुप्रिया ने काफी कोशिश की अपनी भावनाओ को काबू में रखने की लेकिन आखिर में उसे रहा नहीं गया और उसने बुज़ुर्ग से पूछा, ”चाचा अगर आप बुरा ना मानो तो एक बात पुछू?”
बुज़ुर्ग ने सहमति देदी। सुप्रिया ने सीधा सवाल ही पूछा की,” चाचा आप अपना घर छोड़कर इस जंगल के बिच में क्या कर रहे है?”
सुप्रिया के सवाल से बुज़ुर्ग चौंक गया और कहा,” तुम कौन हों? तुम्हे मेरे बारे में कैसे मालुम?”
सुप्रिया ने बताया की उसने उनकी फोटो उनके घर में देखि थी। सुप्रिया की बात सुनकर वह बुज़ुर्ग थोड़ा मायूस हों गया और दबी हुई आवाज़ में बोला,” अब वह घर, घर नहीं लेकिन सिर्फ एक ताबूद है, मेरे सपनो का ताबूद। एक समय था जब उस घर में खुशिया ही खुशिया थी लेकिन कुछ ज़ालिमों ने उससे बर्बाद कर दिया।”बुजुर्ग की आवाज़ में गुस्स्सा और दर्द दोनों था।
तीनो अब खड़े हों गये और एक दूसरे के सामने देख ने लगे। बुज़ुर्ग ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “आज यह जंगल उन ज़ालिमों की वजह से शापित हों चूका है। जो आदमी सब को प्यार करना जानता था वही आज हैवान बनकर इस जंगल के वीरानो में भटक रहा है।”
बुज़ुर्ग की बात सुनकर अब तीनो से रहा नहीं जा रहा था। उनकी बातो से ऐसा लग रहा था की उन्हें मालुम है इस जंगल का राज़। सुप्रिया ने थोड़े नज़दीक जा कर पूछा,” क्या हुआ था चाचा?”
बुज़ुर्ग ने एक नज़र उन लोगो की तरफ डाली और कहा,” तुम लोग क्या करोगे जानकार? तुमलोग शहरी लोग हों। ऐसी बातो को तुम लोग अंधविश्वास का नाम देते हों। और वैसे भी तुम लोगो का इस बात से कोई वास्ता नहीं।”
“वास्ता नहीं! मैंने मेरा भाई खोये है! हम लोग आज मरते मरते बचे है! और आप कहते है की हमारा कोई वास्ता नहीं!” आरिफ काफी गुस्से में था।
सुप्रिया ने आरिफ को शांत किया और खुद बुज़ुर्ग से बात करने लगी, “चाचा इसके लिए में माफ़ी मांगती हूँ। लेकिन चाचा आप जो बात कहने की कोशिश कर रहे है उससे हम जुड़ चुके है। इतना समज लीजिये की हमारे सवालों के जवाब आपके पास ही है।” सुप्रिया की आँखों में आंसू थे।
बुज़ुर्ग ने उन लोगो की तरफ देखा और कहा, “अगर तुम्हे लगता है की मेरे अतीत में तुम्हारे आज के सवालों के जवाब छुपे है तो ठीक है तो सुनो मेरी दास्ताँ ।”
बुज़ुर्ग ने एक लम्बी सांस ली और शून्यवकाश में देखते हुए बोलना शुरू किया,“यह कहानी आज से दस साल पहले शुरू हुयी थी। मेरा बेटा राहुल मुंबई में एक न्यूज़ चैनल में नौकरी करता था और में यहाँ गांव में रहता था। राहुल की माँ तो जब वह छोटा था तभी गुजर गयी थी। उसके गुजर जाने के बाद मैंने ही राहुल को माँ और बाप का प्यार दिया।
काफी अच्छे से हमारी ज़िंदगी कट रही थी। छुट्टिओ में वह गांव आता, हम साथ साथ हसी ख़ुशी रहते। जभी भी आता हर बार मुजे कहता की में उसके साथ शहर जाके राहु लेकिन में हर बार उससे मना कर देता।
गांव में सभी उससे पसंद करते थे। जभी भी शहर से आता तब शहर के बचो के लिए खिलोने लेके आता। उसने अपने पत्रकार होने का फायदा उठा कर सरकार को बोलकर गांव में बच्चो के लिए स्कूल शुरू कराई थी। सारे गांव में उसके जैसा बेटा होने के आशीर्वाद दिये जाते थे। सब का लाडला, सब का प्यारा था मेरा राहुल। मुजे अपने बेटे पर गर्व था।
लेकिन उस दिन उन ज़ालिमों ने सबकुछ बर्बाद कर दिया। एक ही पल में मेरी खुशिओ को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया। उन दिनों राहुल की शादी गांव के सरपंच की बेटी से तय हुयी थी और वह अपनी शादी की छुट्टी लेकर गांव आया था। एक दिन वह काफी परेशान लग रहा था। मेरे पूछने पर उसने बताया की शहर में एक गिरोह ने धोखा-धड़ी करके लोगो के दोसो करोड़ रुपये लूट लिए है और उसके साथ काम करने वाले उसके दोस्त ने बताया है की वह लोग इसी गांव में कहीं छुपे हुए है।
मैंने राहुल को समजाया था की वह इस वक़्त इसे दूर रहे और अपने दोस्त को ही यह खबर पर काम करने को बोले। लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। वह बोल रहा था की अगर वह यह गिरोह का पर्दा फाश करेगा तो उसकी ऑफिस में तरक्की होगी। उसका नाम बड़े बड़े पत्रकारों में लिया जाएगा। उसने अपने पत्रकार दोस्त को भी बुलाया था।
दो दींन के बाद उसका दोस्त आया था और दोनों ने एक योजना बनायी थी। खबर मिली थी की उस गिरोह ने अपने रुपये इस जंगल में कहीं छुपाये है और वह लोग उसी दिन को सारा रुपया लेकर भागने वाले थे। राहुल और उसके दोस्त ने यहाँ के थानेदार से बात करके एक योजना बनायी थी उस गिरोह को पकड़ने के लिए।
मेरे बेटे को क्या मालुम था की जिस खबर के लिए वह इतनी मेहनत कर रहा है, उस्सकी भारी किम्मत उससे चुकानी होगी। मेरा बेटा जब अपने दोस्त के साथ जंगल में गया था तभी में अपने बेटे की रक्षा के लिए मंदिर में पूजा करने गया था। मंदिर से आते समय बिच रास्ते में ही कुछ लोगो ने मुजे अगवा कर लिया।
जब मेरा बेटा थानेदार को लेकर अपने दोस्त के साथ वहा पंहुचा तब उससे मालुम हुआ की उन लोगो के साथ धोका हुआ है। जिस थानेदार की मदद से राहुल और उसके दोस्त ने योजना बनायी थी उस थानेदार को पहले से ही उस गिरोह ने खरीद लिया था। और मेरा बदनसीब देखो, मुजे बंदी बना कर मुजे अपने ही बेटे के खिलाफ इस्तेमाल किया। मेरा इस्तेमाल करके उन्हों ने मेरे बेटे को मजबूर किया की वह उन लोगो से हाथ मिला ले।
मेरा बेटा अपने असूलों का पक्का था। उसने साफ़ इंकार कर दिया उन लोगो की बात मानने के लिए। लेकिन अपनी लड़ाई में वह अकेला पड गया था। उसका दोस्त जिस पर भरोसा कर के वह यह सब कर रहा था उसी दोस्त ने जरुरत के समय पर उसका साथ छोड़ दिया। उसने उन लोगो से हाथ मिला लिया और सिर्फ कुछ रुपयों के लिए उसने मेरे बेटे की ज़िंदगी का सौदा कर लिया।
उन लोगो ने बड़ी बेरहमी से मेरे बेटे को पिटा और आखिर में उस बड़े पेड़ के निचे कुल्हाड़ी से मेरे ही सामने मेरे बेटे का सर धड़ से अलग कर के उसकी हत्या करदी। मेरा बेटा जो कुछ दिन बाद अपनी नयी ज़िंदगी शुरू करने वाला था वही मेरे सामने एक लाश बनके पड़ा हुआ था। उन लोगो ने मुजे मारा तो नहीं लेकिन मेरे जीने की वजह को मुझसे छीन ली।
वह लोग उस वक़्त वहां से फरार हों गये। उस थानेदार ने जूठा केस बनाया की किसी जंगली जानवर ने मेरे बेटे की हत्या की है। उस गिरोह का एक आदमी बड़ा पंहुचा हुआ था। उसकी सिफारिश से वह थानेदार यह इलाके का एस. पि बन गया और कुछ समय के बाद उसी गिरोह का एक आदमी इस इलाके का ऍम. एल. ए बनकर मेरे ज़ख्मो में नमक डालने लगा।
लेकिन किसी ने सच कहा है, इस जनम में किये हुए कर्मो को यहाँ पर ही भुगतना होगा। उनके काले कर्मो की सज़ा देने के लिए मेरा बेटा लौट आया है, और अब वह किसी को नहीं छोड़ेगा। एक मासूम की जान लेकर उन ज़ालिमों ने उससे हैवान बनाया है और अब वही हैवान उन लोग का काल बनकर अपना बदला लेगा!” और बुज़ुर्ग ने अपनी बात ख़तम की। उसकी आँखों में से आग आंसू बनकर बरस रही थी। उसका पूरा बदन गुस्से और दुःख की वजह से ध्रुज रहा था।
विजय ने उनको हाथ पकड़ कर चार पाई पर बैठाया। उस बुज़ुर्ग की कहानी सुनकर तीनो एकदम चुप हों गये थे। उन्हें अपने सवालों के जवाब तो मिल गये थे लेकिन साथ में इस बुज़ुर्ग और उसके बेटे पर हुए अत्याचार की वजह से हमदर्दी भी महसूस कर रहे थे।
तभी आरिफ ने अपने फ़ोन में से राशिद की फोटो उस बुज़ुर्ग को दिखाकर पूछा, “क्या राहुल का दोस्त यही आदमी था?”
फोटो देख कर तुरंत ही उस बुज़ुर्ग की आँखे बड़ी हों गयी और चिल्ला उठा, “है यह वही कमीना है! इसी ने मेरे बेटे को धोखा दिया था।”
बुज़ुर्ग का जवाब सुनकर आरिफ और सुप्रिया जैसे बेजुबान हों गये। उन्हें भरोसा ही नहीं हों रहा था की राशिद ऐसे घिनोने अपराध में शम्मिल था।
विजय ने उस बुज़ुर्ग से पूछा, ”क्या आप जानते है की इस जंगल में जितनी भी हत्या हुई है वह कौन कर रहा है?”
बुज़ुर्ग ने सिर्फ अपना सर हिलाकर हां में जवाब दिया। “क्या आप उसकी मदद करते है?” सुप्रिया ने सवाल किया।
बुज़ुर्ग ने सुप्रिया की तरफ देखा और कहा,” हाँ, मैं अपने बेटे की हत्या का बदला लेने में उसकी मदद कर रहा हूँ। उन पापीओ को जीने का कोई हक़ नहीं!”
सुप्रिया ने वापिस पूछा,”लेकिन क्या आपको कोई खतरा नहीं है उससे? वह आपका बेटा जरूर था लेकिन अब वह एक हैवान है!”
बुज़ुर्ग ने सुप्रिया की तरफ देख कर हल्का सा मुस्कराय और बोला,” वह आज भी मेरा बेटा ही है। उस दिन जब उसकी हत्या करदी गयी तब में टूट चुका था। उन लोगो ने मुजे अग्नि संस्कार करने का भी मौका नहीं दिया था। जूठा केस दीखाने के लिए उन लोगो उसके बदन के छोटे छोटे टुकड़े कर के आधे टुकड़े नदी में बहा दिये थे और आधे टुकड़े दिये डॉक्टर को रिपोर्ट देने के लिए।यह सुनकर तो तीनो के निचे से ज़मीन ही सिरक गयी। उन्हें भरोसा ही नहीं हों रहा था की कोई इतना पत्थर दिल कैसे हों सकता है?
बुज़ुर्ग ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा ,” हत्या के कुछ दिन बाद जब में अपने घर में सो रहा था तब मुजे एहसास हुआ की कोई मेरे पास बैठ कर रो रहा है। मैंने जब देखा तो वह राहुल की आत्मा थी। वह दुखी था और बोल रहा था की जब तक उसका बदला पूरा नहीं होगा तब तक उसकी आत्मा भटकती रहेगी। मैंने अपने बेटे को मदद करने का वादा किया। उसने मुजे बताया की उसका कटा हुआ सर कहा है। मैंने उसी रात जंगल में जा कर उसके बताये मुताबिक़ उसका सर ढूंढा और अपने पास संभल कर रख दिया।”
बुज़ुर्ग की बात सुनकर अब विजय को समज आया की उस पिटारे पर इतनी सारी मखिया क्यों है। उसने आरिफ और सुप्रिया को इशारे से बताया की उस पिटारे में ही राहुल का कटा हुआ सर है।
आरिफ ने बुज़ुर्ग से पूछा की,” आप को क्यों लगता है की उस गिरोह से बदला ले पाओगे? अब इतने साल हों गये है, वह लोग तो यह बात को भूल भी गये होंगे।”
आरिफ की बात सुनकर बुज़ुर्ग आदमी थोड़ा बौखलाकर बोला,” नहीं हों सकता! वह नहीं भूल सकते। क्यों की जिस रुपयों के लिए उन लोगो ने मेरे बेटे की जान ली है, वह रुपये अभी भी इसी जंगल में कहीं दफ़न है। वह लोग उससे लेने जरूर आएंगे एक दिन, और वही दिन उन लोगो का आखरी दिन होगा!”
“क्या आपको याकिन है बदला लेने से उसकी आत्मा को शान्ति मिलेगी”? विजय ने बुज़ुर्ग से सवाल किया।
बुज़ुर्ग सवाल सुनकर जोर से हस पड़ा और कहा,” वह अब् कोई साधारण आत्मा नहीं है। अपने बदले की आग में सालो तक जलने के बाद एक हैवान बन चूका है वह। अब वह किसी के रुकने पर नहीं रुकेगा। जो भी उसके रास्ते में आएगा मारा जाएगा! “
तभी अचानक दरवाज़े पर कोई ज़ोर ज़ोर से दस्तक देने लगा और मदद के लिए पुकार ने लगा। आरिफ ने बुज़ुर्ग को बिना पूछे ही दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुलते ही जे. डी. दाखिल हों गया और उसने दरवाज़ा बंद करदिया और ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगा। वह काफी डरा हुआ लग रहा था।वह काफी बुरी तरह से ज़ख़्मी भी था। उसके सर पर चोट भी लगी हुई थी और कपडे भी गंदे थे। लग रहा था की यहाँ तक पहुंचने के लिए काफी मुश्किलों से गुजरा है । बुज़ुर्ग ने जे. डी को पहचान लिया था।
“तुम यहाँ! मैं तुजे ज़िंदा नहीं छोड़ूगा कमीने!” बुज़ुर्ग एक दम गुस्से में आ गया। आरिफ ने तुरंत ही उनको संभाल लिया। जे. डी. भी थोड़ा चौक गया और बोल पड़ा,” तुम?”
“क्या आप इन्हे जानते है चाचा?” सुप्रिया ने उस बुज़ुर्ग से पूछा।
“यही वह शैतान है जिसने मेरे बेटे को मेरी आँखों के सामने काट डाला था! मैं इसे नहीं छोड़ूगा!” बुज़ुर्ग इंसान काफी गुस्से में था।
बुज़ुर्ग की बात सुनकर सुप्रिया आग बबूला हों गयी और जे. डी को खरी खोटी सुनाने लगी। उसने तो यहाँ तक कह दिया की उससे शर्म आती है खुदको उसकी बेटी बोलने में। जे. डी. ने सुप्रिया से माफ़ी मांगने की कोशिश की लेकिन सुप्रिया गुस्से में थी। उसने अपनी पिस्तौल को जे. डी .के सामने ताक दिया और बोली,” मुझसे दूर रहना। मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूँ। मैं उस इंसान की बेटी नहीं हों सक्ति जो अपने फायदे के लिए किसी मासूम की जान लेले।”
सुप्रिया की बात सुनकर जे. डी. को बहुत बुरा लगा और गुस्से में बुज़ुर्ग से कहने लगा” उस वक़्त तेरे बेटे की वजह से मेरा प्लान अधूरा रह गया था। तब मेने तेरे बेटे को मार डाला। आज तुम्हारी वजह से मेरी बेटी मुझसे दूर हों गयी, में आज तुम्हे भी तुम्हारे बेटे के पास भेज दूंगा!” और इतना बोलते ही जे. डी. ने विजय को धक्का मारा और उसके जीन्स में रखी हुई पिस्तौल को बुज़ुर्ग के सामने ताक दिया। कोई कुछ समजे उसके पेहे की धाय …धाय धाय करके जे. डी ने तीन गोली उस बुज़ुर्ग पर चला दी और यह देख कर सुप्रिया से भी ट्रिगर चल गया और गोली सीधी जे.डी. के सर के आर पार निकल गयी। बुज़ुर्ग और जे. डी. दोनों वही बेजान होकर गिर पड़े।
सब इतना जल्दी हों गया की आरिफ और विजय कुछ समज ही नहीं पाए। सुप्रिया अब रोने लगी। वह अंदर से टूट चूकी थी। आरिफ उससे दिलासा दे रहा था। धीरे धीरे सुप्रिया ने रोना बंध किया और आरिफ के गले लग कर अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रही थी। आरिफ भी उससे शांत होने में साथ दे रहा था।
“सुप्रिया संभालो अपने आपको। हिम्मत से काम लो।” आरिफ ने सुप्रिया को समजाते हुए कहा।
‘नहीं आरिफ मैं कैसे शांत हों जाऊ? मैं एक खुनी की बेटी हु और मैं भी आज खुनी बन गयी….” सुप्रिया वापिस रोने लगी।
“नहीं सुप्रिया तुम खुनी नहीं हों। तुमने तो राहुल और उसके बाबा को इन्साफ दिलाया है। तुमने अपने बाप का खून नहीं लेकिन इस दुनिया में से एक पाप को ख़तम किया है।” आरिफ ने सुप्रिया से कहा।
काफी देर तक समजाने के बाद आखिर में सुप्रिया थोड़ी शांत हुयी।जिस वक़्त आरिफ सुप्रिया को समजा रहा था तब विजय घर में कुछ ढूंढ रहा था लेकिन ऐसा लग रहा था की उससे कुछ नहीं मिला। तभी उससे कुछ याद आया और उसने जे. डी. की लाश के पास गिरी हुयी अपनी पिस्तौल उठाली और पिटारे की तरफ बढ़ने लगा।
आरिफ ने उसको पूछा,” यह क्या कर रहे हों विजय?”
विजय ने तुरंत ही जवाब दिया, “हों ना हों लेकिन मेरा दिल कह रहा है की चाचा ने राहुल का कटा हुआ सर इसी पिटारे में रखा है लेकिन उसके ताले की चाबी नहीं मिल रही और घर में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं है जिसकी मदद से ताला तोड़ सकू इसलिये में इस पिस्तौल की मदद से ताले को तोड़ रहा हूँ।”
“लेकिन क्या यह करना सही होगा?” सुप्रिया ने विजय को धीरे से पूछा। विजय ने दोनों की तरफ मुड़कर देखा और कहा,” में नहीं जानता की यह सही है या गलत लेकिन मुजे इतना पता है की इस हैवान को अगर हमने नहीं मारा तो अब इस जंगल में आने वाला कोई भी नहीं बचेगा। इस समय हम लोग ही है आखरी उम्मीद जो इस हैवान को ख़तम कर सकते है क्यों की अब हम ही है जिनको राज़ पता है। अगर हम ने कुछ नहीं किया तो वह गलत होगा। यहाँ फिर हररोज़ किसी ना किसी मासूम को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा..”
आरिफ और सुप्रिया उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे। विजय ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,” में जानता हु की जो भी राहुल के साथ हुआ वह बहुत बुरा हुआ लेकिन अब उस पर अन्याय करने वालो को सज़ा मिल गयी है। अब हमने कुछ नहीं किया तो पता नहीं कितने मासूमो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। हम उन लोगो के गुनाहो की सजा मासूमो को नहीं दे सकते। अगर आज हम पीछे हट गये तो आज के बाद इस हैवान के हाथो मरने वाले हर एक मासूम की मौत के जिम्मेदार सिर्फ हम होंगे।"
विजय ने अपनी बात ख़तम करके सुप्रिया और आरिफ की और देखा। दोनों ने इशारे में उसकी बात से सहमति दिखाई। विजय ने अपनी पिस्तौल का निशाना पिटारे के ताले की तरफ रखा और दूसरे ही पल में धायं… करके एक गोली चली और पिटारे का ताला टूटकर लटकने लगा। तीनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और विजय धीरे धीरे पिटारे की तरफ बढ़ा। विजय ने पिटारे की कड़ी को खोलके पिटारे को खोला तो उसमे से अजीब सी बदबू आने लगी। तीनो ने तुरंत ही अपने नाक को ढक लिया। पीटर के अंदर काफी सारा पुराना सामान और कपडे थे।
तीनो एक-एक करके सारा सामान बाहर निकाल ने लगे।जैसे जैसे पिटारे में से सामान कम होता जा रहा था वैसे वैसे तीनो की बैचेनी भी बढ़ रही थी क्यो की कहीं भी राहुल के कटे सर का सुराग नहीं मिल रहा था। सारा सामान निकाल ने के बाद पिटारे में सबसे निचे एक चन्दन की लकड़ी का बॉक्स था। आरिफ ने तुरंत ही वह बॉक्स उठा लिया। बॉक्स को उठाते ही बदबू काफी तेज़ हों गइ। एक पल के लिए ऐसा लगा की बदबू की वजह से उन लोगो का सर फट जाएगा।
आरिफ ने बॉक्स को चार पाई पे रख दिया। बॉक्स पर एक छोटा सा ताला लगा हुए था। आरिफ ने एक जटके के साथ ताला खींचा तो वह टूट गया। आरिफ ने तुरंत टूटे हुए ताले को निकाल कर बॉक्स की कड़ी खोल दी। तीनो के दिल की धड़कन धीरे धीरे बढ़ गयी थी। अब् यही आखरी उम्मीद थी उन लोगो के लिए राहुल के कटे हुए सर को ढूंढने के लिए। तीनो ने अंदर देखा तो उसमे इंसान की खोपड़ी थी। तीनो थोड़े डर जरूर गये लेकिन इस वक़्त डर ने का नहीं लेकिन हिम्मत से काम लेना था। आरिफ ने तुरंत ही खोपड़ी को उस चन्दन की लकड़ी के बॉक्स में से बाहर निकाला। उससे बाहर निकालते ही अचानक मौसम बदल गया और बाहर तेज़ बिजली गिरने लगी।
तीनो एक दम से सोचने लगे की इस ठंडी के मौसम में बिजली का कड़कना मुमकिन ही नहीं। तीनो समज गये की यह उसी हैवान की खोपड़ी है और उसीकी वजह से मौसम में बदलाव आया है। आरिफ ने वापिस खोपड़ी को उस चन्दन के बॉक्स में रख कर कड़ी लगादी। जैसे ही खोपड़ी को चन्दन के बॉक्स में रखा तुरंत ही मौसम वापिस से पहले जैसा हों गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हों।
चैप्टर 7
काल चक्र का अंत...
घडी में इस वक़्त रात के तीन बज रहे थे। सुबह होने में सिर्फ कुछ घंटे ही बाकी थे।तीनो के पास वक़्त कम था, क्यों की अगर तीनो ने आज रात कुछ नहीं किया तो फिर कल का पूरा दिन उनको वही रहना पडेगा और रात का इंतज़ार करना पड़ेगा।तीनो को अब जल्द से जल्द कोई रास्ता निकालना था ताकि इस हैवान का हमेशा के लिए खात्मा कर सके।
आरिफ ने अपनी पिस्तौल में चेक किया तो सिर्फ दो ही गोली बची थी।उसने सुप्रिया को पूछा तो उसकी पिस्तौल में अभी भी ६ गोलिया थी। विजय की पिस्तौल में सिर्फ एक ही घोली थी। आरिफ तुरंत ही अपनी हथियारों वाली बैग ढूंढने लगा तभी उन तीनो को ध्यान में आया की वह हथियार वाला बैग वह लोग उसी गुफा में भूल आये है। तीनो की चिंता और बढ़ गयी। विजय ने अपनी बैग खोल के देखा तो उसमे एक –दो किताबे, IPAD और EMF मशीन के अलावा और कुछ नहीं था।
विजय ने अपने बटन कैमरा वाला मेमोरी कार्ड सुप्रिया को निकाल कर दिया और उसके पास संभलकर रखने को कहा। सुप्रिया कुछ सामजी नहीं और इसका कारन पूछा। विजय ने एक लम्बी सांस ली और कहा,” हम एक ऐसी लड़ाई लड़ने जा रहे है जिसमे हमारा दुश्मन हमसे कहीं गुना शक्तिशाली है। हमारी जीत सिर्फ उससे मारने में नहीं लेकिन उसका सच दुनिया के सामने लाने में है। अगर इस लड़ाई में मुजे कुछ भी हों जाता है तो इस सच को दुनिया के सामने लाने की जिम्मेदारी में तुम दोनों को सौप रहा हूँ।”
विजय की बात सुनकर आरिफ और सुप्रिया थोड़े भावुक हों गये लेकिन सुप्रिया ने विजय को मेमोरी कार्ड लौटा कर कहा, “हम तीनो साथ में ही यहाँ से ज़िंदा वापिस जायेगे। चाहे कुछ भी हों, आज इस जंगल को श्राप से मुक्ति मिलेगी"। तीनो ने एक दूसरे को गले लगाया और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया।
फिर विजय ने एक कोने में देखा तो वहां कांच की एक खाली बोतल रखी हुयी थी। उसने तुरंत ही वह बोतल लेली और रसोईघर में गया। आरिफ और सुप्रिया को कुछ समज में ही नहीं आ रहा था की विजय क्या कर रहा है। लेकिन थोड़ी ही देर में उन दोनों की उलजन भी दूर हों गयी। विजय जब रसोईघर में से बाहर निकला तो उस कांच की बोतल में नीले रंग का कुछ था।
आरिफ ने पूछा,” यह क्या है विजय?”
विजय ने मुस्कुराकर कहा,” उस हैवान को मारने का ब्रह्माश्त्र ।”
“मैं कुछ समजी नहीं?” सुप्रिया ने वापिस सवाल किया।
“यह मिटटी का तेल है। इसकी मदद से हम उस हैवान को जला सकेंगे।” विजय ने उत्तर दिया।
विजय की बात सुनकर तीनो के चेहरे पर एक खुशी छा गयी। विजय ने कांच की बोतल को अपनी बैग में रख दिया। तीनो ने मिलकर एक योजना सोची और एक दूसरे को आखरी बार गले लगा कर उस घर के बाहर निकले।
विजय ने उन लोगो को बताया की उसकी जानकारी के मुताबिक़ जब तक यह खोपड़ी इन लोगो के पास है वह हैवान इन लोगो को नहीं मार सकता लेकिन वह जरूर कोई ना कोई कोशिश करेगा इन लोगो से खोपड़ी को हथियाने की।
घर के बाहर घनघोर सन्नाटा था। दूर दूर तक कुछ नहीं दिख रहा था। कही दूर से शियार की आवाज़े आ रही थी तो पेड़ पर बैठा हुआ उल्लू रात की भयानकता में और इज़ाफ़ा कर रहा था। अगर कोई कच्चा दिल का इंसान होता तो उसका इस माहौल में दिल कब का थम चुका होता लेकिन यह तीनो ने अपने संकल्प से अपने डर पर काबू पा लिया था। अब उन लोगो का एक ही लक्ष्य था उस हैवान का खात्मा।
तीनो धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे।सुप्रिया ने चन्दन के बॉक्स को अपने पास संभलकर रखा हुआ था। उसके आगे विजय अपने हाथ में EMF मशीन के साथ चल रहा था और आरिफ सुप्रिया के पीछे धीरे धीरे हाथ में पिस्तौल पकडे चल रहा था। काफी अँधेरा होने की वजह से तीनो ने अपने हाथ में टोर्च पकड़ी हुयी थी जिसकी मदद से उन लोगो को थोड़ी मदद मिल रही थी आगे बढ़ने में। बिच बिच में छोटे जानवर उनके रास्ते में आते रहे लेकिन इन लोगो का दुश्मन तो इस जानवरो के मामले में काफी खतरनाक था।
विजय ने पीछे मुड़कर देखा तो सुप्रिया और आरिफ कहीं दिख नहीं रहे थे। उसने तुरंत ही दोनों के नाम की पुकार लगाईं लेकिन कहीं से कोई भी जवाब नहीं आ रहा था। उससे थोड़ा डर लगने लगा। अचानक दोनों का गायब हों जाना उसको समज नहीं आ रहा था। विजय दोनों को चारो और ढूंढने लगा लेकिन कहीं कोई भी सुराग नहीं मिल रहा था। अब उसका डर धीरे धीरे बढ़ने लगा था। इस ठंडी के मौसम में भी उससे पसीना आने लगा।
तभी उसने देखा तो कोई थोड़े दूर पेड़ के निचे बैठा है। उसने वहा टोर्च डाली तो आरिफ लहूलुहान हालत में पड़ा था। विजय तुरंत उसके पास भागके गया। आरिफ के सर पर गहरी चोट लगी थी जिसके कारन उसके सर से खून लगातार बह रहा था। विजय ने आरिफ को होश में लाने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा। विजय अब काफी हद तक डर चूका था।
उसने सुप्रिया को ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसकी यह कोशिश भी नाकाम रही। अचानक उससे महसूस हुआ की उसके पीछे कोई ज़ोर ज़ोर से सांस ले रहा है। उसने पीछे मुड़कर देखा तो सुप्रिया उसकी तरफ गुस्से से देख रही थी। उसके चहरे का रंग दूध की तरह सफ़ेद हों चूका था। आँखों का रंग भी पूरी तरह से लाल हों चुका था। वह अजीब सी आवाज़े निकाल रही थी। विजय समज गया की उसके सामने जो खड़ा है वह सुप्रिया नहीं है लेकिन सुप्रिया के रूप में कोई और है।
विजय ने सुप्रिया को पुकारते हुए खुद को संभालने को कहा लेकिन उस आत्मा का सुप्रिया के शरीर पर पूरी तरह से कब्जा था। उसने विजय पर हमला कर दिया और उसका गला दबाने लगी। विजय की साँसे फूल ने लगी। वह अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन उस आत्मा का ज़ोर ज़्यादा था। विजय ने अपनी पूरी ताकत से सुप्रिया को धक्का देकर खुद को उसके हाथो से छुड़ा लिया। उसकी साँसे फूल गयी थी और वह ज़ोर ज़ोर से खांसने लगा।
विजय ने अपने आप को बचाने के लिए भागना शुरू किया। थोड़े दूर तक भागने के बाद विजय ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके पीछे कोई नहीं था। उसने अपनी नज़र चारो तरफ गुमाई लेकिन उससे कोई नहीं दिखा। वह एक पेड़ के निचे खड़े होकर ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगा। तभी पेड़ के ऊपर से कुछ आवाज़ आयी। उसने ऊपर देखा तो सुप्रिया ने उसपर कूदकर हमला कर दिया।
विजय एक दम ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। तभी सुप्रिया और आरिफ ने आके उससे शांत किया। विजय पूरी तरह डरा हुआ था। सुप्रिया को देख कर वह ज्यादा डर गया और दो कदम पीछे हों गया। आरिफ ने उसके पास जा कर संभाला और विजय को शांत किया। थोड़ी देर के बाद विजय शांत हुआ और उससे ध्यान हुआ की उसके साथ जो भी हों रहा था वह सच नहीं था। उसने आरिफ और सुप्रिया को सारी बात बतायी जो भी उसके साथ हुआ। विजय की बात सुनकर दोनों हक्के-बक्के रह गये। तीनो समज गये की वह हैवान उन लोगो के साथ छलावा कर रहा है।
तीनो ने धीरे धीरे आगे चलना शुरू किया।तीनो बड़ी सावधाने से घनी झाड़िओ में से आगे बढ़ रहे थे। तभी किसी ने सुप्रिया को पुकारा। सुप्रिया ने उस आवाज़ की दिशा में देखा तो वहां कोई नहीं था। सुप्रिया ने अपनी आस पास देखा तो विजय और आरिफ भी कहीं नहीं दिख रहे थे। सुप्रिया समज गयी की अब वह आत्मा उसके साथ छलावा कर रही है।उसने अपने डर पर काबू पाने की कोशिश की तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और वह एक झटके से पीछे पलटी।
पलट ने के बाद उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ। सामने जे. डी खड़ा था। उसके सर पर गोली लगने का निशान था जिसमे से अभी भी खून निकल रहा था और उसके चेहरे को लाल कर रहा था।सुप्रिया दो कदम पीछे हैट गयी।
“डरो नहीं बेटी, मेरे पास आओ।” जे. डी. का भूत सुप्रिया को बुलाने लगा।
“नहीं तुम सच नहीं हों। तुम एक छलावा हों।” सुप्रिया चिल्ला उठी
सुप्रिया की बात सुनकर जे. डी. का भूत ज़ोर ज़ोर से हसने लगा, “क्या लगता है तुम्हे ? तुम उससे हरा दोगी? वह एक हैवान है!” जे.डी. के भूत की आवाज़ एक दम से भारी हों गयी थी।
“हाँ में मारुंगी। इस कहानी को तुमने शुरू किया था लेकिन ख़तम में करुँगी! तुम्हारा शुरू किया हुआ काल चक्र में आज तोङूगी।”सुप्रिया की आवाज़ में गुस्सा और आत्मविश्वास दोनों था।
सुप्रिया की बात सुनकर जे. डी. का भूत ज़ोर ज़ोर से अटटहास करने लगा। धीरे धीरे उसकी आवाज़ बड़ी होने लगी। और ऐसा लगने लगा की जे. डी. के भूर की हसने की आवाज़ चारो और से आ रही है। अब सुप्रिया से यह सहा नहीं जा रहा था। उसने अपने कान को अपने हाथो से ढक दिया और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी,” शट अप! शट अप! चुप हों जाओ! तुम सच नहीं हों! शट अप!”
आरिफ सुप्रिया को होश में लाने की कोशिश कर रहा था। ” सुप्रिया मैं हूँ , तुम्हारा आरिफ!”
धीरे धीरे सुप्रिया ने अपने आप पर काबू पाया। वह आरिफ के गले लगकर रोने लगी। आरिफ ने उससे शांत किया और हिम्मत रखने को कहा। सुप्रिया ने अपने आप को संभाला और आगे बढ़ने के लिए तैयार हों गयी।
तभी आरिफ को लगा की कोई उसके पीछे चल रहा है। उसने पीछे मूड कर देखा तो उसके पीछे राशिद खड़ा था। राशिद को देख कर ही आरिफ के मुँह से अपने आप निकल पड़ा,” भाई तुम!” वह तुरंत ही राशिद की तरफ आगे बढ़ा।
आरिफ को रोकते हुए राशिद ने कहा,” हाँ आरिफ में कैसे हों मेरे भाई? माफ़ करना मैं बिना बताये तुमसे दूर चला गया।”
राशिद की बात सुनकर आरिफ रोने जैसा हों गया लेकिन खुद पर काबू रख कर बोला,” भाई आपने ऐसा क्यों किया? मुजे विश्वास नहीं हों रहा है यह सब जो हों रहा है उसके आप भी जिम्मेदार हों।”
“आरिफ मुजे माफ़ कर देना। मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हों गयी। उस समय मैंने यह नहीं सोचा था की मेरी ग़लती मेरे भाई के मौत का कारन बनेगी। तुम उससे नहीं मार पाओगे। वह बहुत खतरनाक है। चले जाओ यहाँ से चले जाओ….” और राशिद गायब हों गया।
आरिफ कुछ बोल नहीं पाया। बस उस दिशा में एक पुतले की तरह खड़ा होकर देखते रहा। विजय और सुप्रिया आगे बढ़ गये थे लेकिन जब सुप्रिया ने पीछे मूड कर देखा तो आरिफ अपनी जगह पर पुतला बनकर खड़ा था। सुप्रिया ने विजय को रुकाया और खुद आरिफ के पास दौड़ कर जा पहुंची।
“आरिफ! क्या हुआ आरिफ? होश में आओ!” सुप्रिया आरिफ को होश में लाने की कोशिश करने लगी।
“हम्म…ममम…सुप्रिया मैंने भाई को देखा। अपने किये पर पछता रहे थे भाई।” इतना बोलते आरिफ सुप्रिया को गले लगकर रोने लगा।
सुप्रिया ने आरिफ को शांत किया और अपने मक़सद को याद दिलाया। आरिफ ने जल्द ही खुद को स्वस्थ किया और बोला,” सॉरी कुछ पल के लिए अपने मक़सद से भटक गया था। लेटस डिस्ट्रॉय हिम …” सुप्रिया ने भी आत्मविश्वास से आरिफ को देखा और आगे की और बढे।
“गाइस, वी नीड टू हुर्री। सुबह होने में ab सिर्फ एक ही घंटा है।” विजय ने दोनों से कहा।
अब तीनो जल्दी जल्दी आगे बढ़ रहे थे। कुछ सौ कदम चले होंगे तभी वह लोग एक खुली जगह पर पहुंच गये। वह कुछ तीनसौ मीटर जितना खुला मैदान था और आस पास बड़े बड़े और घने पेड़ थे।
“गाइस, मुजे लग रहा है की यह जगह ठीक है अपने प्लान के हिसाब से।” सुप्रिया ने दोनों से कहा। आरिफ और विजय ने भी उसकी बात में सहमति दिखाई। अब तीनो ने अपनी योजना पर कम चालु कर दिया।
आरिफ ने अपनी पिस्तौल में देखा तो उसमे दो गोली थी। उसने वह पिस्तौल सुप्रिया को देदी। सुप्रिया की पिस्तौल में 6 की 6 गोली थी। वह पिस्तौल उसने खुद रख ली। आरिफ ने सुप्रिया के हाथ में से वह चंदन की लकड़ी का बॉक्स ले लिया जिसमे खोपड़ी रखी हुयी थी। विजय ने आरिफ को अपनी बैग में से मिटटी के तेल की बॉटल निकाल कर आरिफ को देदी जिसको आरिफ ने अपने पास संभालकर रख दिया। आरिफ ने विजय को सुप्रिया को लेकर थोड़े दूर सामने की तरफ खड़े हुए एक बड़े पेड़ पर चढ़ने को कहा।
सुप्रिया ने एक नज़र आरिफ की तरफ देखा। उसकी आँखों में आरिफ के लिए प्यार और चिंता दोनों थी।” प्रॉमिस मि, तुम अपना ख्याल रखोगे और खुदको कुछ नहीं होने दोगे।” सुप्रिया ने चिंता भरी आवाज़ में आरिफ से कहा।
आरिफ ने सुप्रिया की तरफ देखा और कहा, “आई प्रोमिस।” आरिफ ने फिर विजय को इशारा किया और विजय सुप्रिया का हाथ पकड़कर उस पेड़ की और चल पड़ा। सुप्रिया आगे चल रही थी लेकिन उसकी नज़र आरिफ की तरफ ही थी और उसकी आँखों में आंसू थे। आरिफ ने अपनी भावनाओ पर काबू रखा हुआ था लेकिन अंदर ही अंदर उससे भी थोड़ा डर लग रहा था क्यों की उसकी एक गलती उन तीनो को मौत का कारन बन सकती थी।
विजय और सुप्रिया उस पेड़ पर सुरक्षित चढ़ गये। आरिफ को जब तसल्ली हों गयी की अब वह दोनों सुरक्षित है तब उसने अपना कम चालु किया। उसने चंदन के बॉक्स को अपने हाथ में पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर उस हैवान को बुलाने लगा,” कहा हों तुम? मैं तुम्हे बुला रहा हु। मुजे मालुम है राहुल की तुम यही हों!” इतना बोलने के बाद आरिफ चुप हों गया लेकिन अभी भी चारो और सन्नाटा छाया हुआ था।
थोड़े पल के बाद आरिफ वापिस ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा,” राहुल, देखो मेरे पास तुम्हारा सर है। निकलो बाहर सामना करो मेरा…” आरिफ ने बोलना बंध किया ही था की अचानक हवा का एक ज़ोरदार जोंका आया और ऐसा लगा की किसी ने आरिफ को धक्का मारा हों उस तरह आरिफ थोड़ा हड़बड़ा गया। अपने आप को संभालने की कोशिश में आरिफ के हाथो में से वह चंदन का बॉक्स निचे गिर गया।
निचे ज़मीन पर गिरते ही बॉक्स की कड़ी खुल गयी और उस में से खोपड़ी बाहर निकल गयी। आरिफ अपने से दस कदम दूर गिरी हुयी उस खोपड़ी को लेने के लिए आगे बढ़ा तभी अचानक मौसम में बदलाव आया। ज़ोर ज़ोर से हवा चलने लगी। ऐसा लग रहा था की तूफ़ान आ रहा हों। आरिफ अपने आप को संभाल ने की कोशिश कर रहा था तभी उस तूफ़ान को चीरता हुआ वह हैवान आरिफ के सामने आके खड़ा हों गया।
हैवान काफी डरावनी आवाज़े निकाल रहा था। उसके कटे हुए सर के गांव में से खून बाहर आ रहा था। उसके एक हाथ में कुल्हाड़ी थी। हैवान को देखकर आरिफ एकदम से सावधान हों गया। हैवान ने अपनी कुल्हाड़ी से आरिफ पर हमला किया लेकिन आरिफ ने बड़ी ही फुर्ती दिखते हुव निचे जुक गया और सफलता से उसका वार खाली कर दिया। आरिफ ने उस समय अपनी चालाकी का इस्तेमाल करके काफी बार उस हैवान के वार को असफल बनाया और आखिर में उसने उस खोपड़ी को अपने हाथ में ले ही लिया।
आरिफ ने उस हैवान से थोड़ी दुरी बनाली और अपनी पिस्तौल में से गोली चलाई लेकिन गोली का कुछ ख़ास असर उस हैवान पर नहीं हुआ। अब आरिफ के पास अपना आखरी दाव खेलने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा था। आरिफ ने अपने गले में से तावीज़ को निकाला और अपनी मुट्ठी में उससे पकड़ा। उसने इस तरह तावीज़ को पकड़ रखा था ताकि तावीज़ के धातु वाला भाग उसकी मूठी के बाहर लटक रहा था।
आरिफ ने हैवान की तरफ भागना शुरू किया। जैसे ही वह नज़दीक पंहुचा तो हैवान ने अपनी कुल्हाड़ी गुमाई लेकिन आरिफ ने निचे जूक कर वार को असफल बनाया और बड़ी ही ताक़त से हैवान के पेट पर तावीज़ वाली मुट्ठी से एक मुक्का मारा। तावीज़ के प्रभाव की वजह से हैवान कमज़ोर हों गया और उसके हाथ में से कुल्हाड़ी गिर गयी।
मौके का फायदा उठा कर आरिफ ने दो – तीन मुक्के और जड़ दिये हैवान के पेट पर। तावीज़ का प्रभाव इतना भारी था की हर मुक्के पर ऐसा लग रहा था की आरिफ उस हैवान को बिजली से शॉक दे रहा हों। हैवान उस तावीज़ के प्रभाव के सामने कमज़ोर साबित हों रहा था। उसी मौके का फायदा उठाते हुए आरिफ ने खोपड़ी उठाई और पलक जपकते ही उस हैवान के कटे हुए घाव पर रख दी।
कटे हुए सर का हैवान के शरीर से मिलाप होते ही अचानक से चारो और बिजली चमकने लगी और देखते ही देखते वह हैवान अपने संपूर्ण रूप में आ गया। हैवान का यह नया रूप काफी भयानक था। आँखे एकदम लाल लाल थी। चेहरे पर के गांव सड़ चुके थे जिसमें से मांस के टुकड़े लटक रहे थे। अपने असली रूप में आते ही हैवान ने ज़ोर से डरावनी दहाड़ लगाईं।
नज़ारा इतना डरावना था की एक पल के लिए आरिफ का दिल भी धड़कन चूक गया। लेकिन आरिफ ने अपने डर पर काबू पाया और आखरी मुक़ाबले के लिए तैयार हों गया। हैवान ने आरिफ पर हमला कर दिया और आरिफ को एक ही हाथ से गले से उठा कर फेंक दिया। आरिफ एक सुक्के पत्ते की तरह हवा में उड़ गया। निचे गिरते ही वह दर्द से कराह उठा। तावीज़ भी उसके हाथ में से कहीं गिर गया। वह खड़ा होने की कोशिश कर ही रहा था तभी वापिस उस हैवान ने उसपर वार किया और आरिफ एक सके पत्ते की तरह उड़ कर दूर जा गिरा।
आरिफ काफी घायल हों चूका था। उसके सर से खून निकल रहा था। उसके हाथ और पाँव में भी भारी चोट आई थी। वह खड़ा होने की कोशिश कर रहा था लेकिन दर्द की वजह से वह खड़ा नहीं हो पा रहा था।
पेड़ पर बैठे बैठे विजय और सुप्रिया यह देख रहे थे। सुप्रिया ने देखा की आरिफ की जान को खतरा है तो उसने ना आव देखा ना ताव और तुरंत ही वह पेड़ से निचे उत्तरी और आरिफ के मदद करने के लिए दौड़ पडी। विजय ने उसको रोकने की कोशिश की लेकिन उसकी कोशिश नाकाम रही इसलिए वह भी सुप्रिया के पीछे पीछे भागा।
हैवान ने अपनी कुल्हाड़ी हवा में उठाई और आरिफ की गर्दन पर वार करने ही वाला था तभी सुप्रिया ने बिजली की गति से अपने गले का तावीज़ निकाल कर उस हैवान पर फेंका। तावीज़ के भारी प्रभाव से वह हैवान दर्द से दहाड़ ने लगा। ऐसा लग रहा था की कोई उससे इलेक्ट्रिक शॉक दे रहा है।.
तभी पीछे पीछे आते हुए विजय ने उस पर आरिफ के पास रखी हुई कांच की बोतल को हैवान की तरफ फेंकी। हैवान के भारी शरीर से टकराते ही बोतल टूट गयी और मिटटी का तेल उस हैवान के शरीर पर फैल गया। आरिफ ने तुरंत ही अपने आपको संभाला और अपनी पिस्तौल से निशाना लगा कर हैवान पर गोली चलादी।
गोली लगते ही हैवान के पुरे शरीर को आग लग गयी और देखते ही देखते हैवान आग में जलने लगा। आग की जलन की वजह से हैवान दर्द की आवाज़े निकाल रहा था जो उस जंगल के सन्नाटे को चीरती हुयी दूर दूर तक जा रही थी। और कुछ ही देर में हैवान शांत हों गया। उसका शरीर भड़ भड़ करके आग में जल रहा था। अचानक से आसमान में से एक रौशनी आयी और हैवान के जलते हुए शरीर पर गिरी। उस रौशनी में हैवान का शरीर देखते ही देखते गायब हों गया। अचानक से सब कुछ शांत हों गया।
आरिफ अभी भी दर्द में था और फिरसे वह वही गिर पड़ा। सुप्रिया ने उसको अपनी बाहों में ले लिया और विजय की मदद से उसको संभाल कर खड़ा किया। तीनो की आँखों में एक जीत की चमक थी। थोड़ी ही देर में सुबह हो गयी और जंगल में नए जीवन की शुरुआत हुई। पंछियों की आवाज़ से सारा जंगल खिलखिला उठा। यह अँधेरे का नाश और नए उजाले की शुरुआत थी।
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