हमारे भीतर, जीने के कोई साधना और तंतु विद्यमान नहीं होते हैं, लेकिन ये जो कलुये जैसे लोग, यह जो रश्मि है, यह जो मां है सब मुसीबत में एक-दूसरे का हाथ थाम लेते हैं. हम सभी जानते हैं कि हम ज़िंदगी की भट्टी में जल कर राख हो रहे हैं, लेकिन हमें यह विश्वास हमेशा बना रहता है कि हमारी राख भी बची तो वह सुबह 'फीनिक्स' की तरह फिर से जी उठेगा.
एक
सवाल यह नहीं है कि अमीर मरते क्यों हैं, सवाल यह है कि गरीब जी कैसे जाता हैं?
सब से आसान होता है सवाल उठाना, कुछ सवाल होते हैं, कुछ उठाये जाते हैं और कुछ खडे हो जाते हैं. यह जो तीसरा मामला है, सवाल के खडे हो जाने का, वह, किसी सवाल का, नैसर्गिक जन्म है. “अमीर मरते क्यों हैं?” एक उठाया हुआ सवाल है, जबकि, “गरीब जी कैसे जाता हैं?” युगों-युगों से चला आ रहा वह सवाल है, जो नैसर्गिक रूप से जन्म लेता है.
नैसर्गिक रूप से जन्म लेने का अर्थ यह है कि, यह प्रश्न, तर्क की कसौटी पर, कसा न जा सकेगा, अर्थात इस सवाल का एक ही सर्वमान्य उत्तर नहीं होगा .
इसका एक अर्थ यह भी है कि, “गरीब जी कैसे जाता है?” का उत्तर, हर देश,काल,परिस्थिति व युग में ढूंढ़ा जाएग. यह उत्तर “काल खंड” में होगा, अर्थात कालातीत भी और कालजयी भी.
यह कुछ इस तरह की बात हुई कि , कुछ पौधे हम रोपते हैं, उन्हें खाद पानी देते हैं, उन की देखभाल करते हैं और कुछ पौधे बिना किसी वजह के स्वत: उग आते हैं. न जाने प्रकृति का कौंन सा नियम है कि, जो पौधे खुद जी जाते हैं, वे देखभाल किये हुये पौधों से कहीं अधिक मजबूत होते हैं.
वह सिर पकड़े बैठा था कि पी ए ने केबिन में घुसते हुये कहा,
“सर डाक्टर आया है."
“भेज दो “जैसे ही डाक्टर भीतर घुसा, उसके मुंह से पहला सवाल निकाला - “क्या हुआ “
“वह नहीं रही सर “
चेतन ने सिर पकड़ लिया ,
“गोली मार दूंगा तुम्हें साले “शर्म नहीं आती, पचास लाख का बिल लेकर मुझे बताने आये हो कि उसका क्रिमिनेशन कर दो.” कितने हार्टलेस हो तुम और हाँ, बस यही एक ज़िम्मेदारी का काम सौंपा था मैंने तुम्हें हर महीने पाँच लाख की तंख्वाह के बदले और तुम उसे नहीं बचा सके । अफसोस, वह रोते हुये बोला -
“और पैसे चाहिये तो बता दो,” मेरे पास पासे की कमीं नहीं है.
क्या चाहिये था उसे किडनी , हर्ट , लीवर ?
चुप्पी ----------------------
सामने से हट जाओ अमरेश, इस वक्त मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता , और हाँ “तुम्हें गोली मार देने से उस की जान बच जाती तो विश्वास मानों मैं तुम्हें गोली भी मार देता .
“सर, उसकी जान उतनी कींमत नहीं थी, जितनीं आपने उस की जान बचाने के लिये खर्च कर दी. “अमरेश बोला ।
“क्या थी वह? बस, गरीबी रेखा के नीचे जी रही चालीस करोड आबादी का एक हिस्सा भर .”
“कमींने, तुम क्या हो, बीस पच्चीस लाख लोंगों की तरह धरती पर एक बोझ, जो लोंगों के खून पर जी रहा है.” चेतन चीख कर बोला ।
“सर, मानता हूँ कि मैं नींच हूँ, पर, हम सब, एक ही कैटेगरी में के हैं, मैं अगर टाप वन पर्सेंट कमीनों में आता हूँ तो आप शायद एक सौ पच्चीस करोड की आबादी में “टाप टेन” लोगों की कैटेगरी में आते हैं.” अमरेश बोला ।
उसने शायद चेतन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था ।
“धांय,गोली चली लेकिन लगी नहीं , चेतन ने हवाई फायर किया,” और बोला “तुम मुझे मेरे जज्बात की कींमत बताओगे ? “
“सर, जज्बात और आप, क्या मजाक करते हैं “आपकी कई पीढियां तो मैं अपनी आंखों से देख चुका, खैर, “मुझे पता है सर, आप मुझे नहीं मारेंगे “वह हंसा ।
उसकी हंसी चेतन के दिल में चुभी , और उस से भी अधिक चुभी उस की कही हुई बात , “जज़्बात और आप ? कई पीढ़ियाँ तो मैं अपनी आँख से देख चुका हूँ ।“ यह बात सच भी थी, दौलत और जज़्बात साथ नहीं होते , जहां दौलत होती है वहाँ जज़्बात नहीं रहते , और जहां जज़्बात होते हैं , वहाँ दौलत नहीं टिकती ।
वह गुस्से से बोला - “इसे ले जाओ मेरे सामने से , और सुनो इसे पूरा पेमेंट कैश करना ,” उसने पी ए को इन्सट्रक्शन दी .
“और हां, डाक्टर अमरेश शुक्ला, अगर इस का रिकार्ड कहीं आया तो इस बार गोली हवा में नहीं चलेगी,तुम मुझे जानते हो । और हाँ , रहा कैश वह तुम कैसे किनारे लगाओगे, यह मेरा सिरदर्द नहीं है . “
अमरेश हंसा – “ सर पैसे किनारे लगाने की फैक्ट्री है हमारी , आप इस का दस गुना भी देंगे तो हम लोग , शाम तक भट्टी में डाल कर जला देंगे उसे . “
“कमींनों”, यमराज से पूछना पडेगा कि तुम जैसे निकृष्ट लोगों कों, वह किस रेट में अपने यहां नौकरी पर रखते हैं?”
“ऐड नाउ, गेट आउट “, डू नाट डिस्टर्ब मीं “, वह अकेला था बिलकुल अकेला. उसने केबिन में इमर्जेंसी लाईट जला दी . वह रो रहा था , जार जार रो रहा था । जो मरी थी वह रिश्ते में उसकी कुछ नहीं थी , लेकिन उसे ऐसा लग रहा था , कोई उसकी जिंदगी लूट कर ले गया है और अब उसके पास कुछ नहीं बचा है ।
दो
“अमीर लोग गरीब की मौत पर रोते क्यों हैं? “
सवाल रोंने का नहीं है , “ कौंन रोता है किसी और के गम में ऐ दोस्त , हमको अपनी ही किसी बात पे रोंना आया . “
अमीर जानता हैं , बैंक लोन दे सकते हैं , नेता पालिसी ला देगें , मार्केट से पैसा कमा लेंगे , लेकिन उसके लिये अगर जान देंने की बारी आयी तो , तो वह कोई गरीब ही देगा और कोई नहीं .
नातेंदार , रिश्तेदार और सहयोगीयों के पास सलाह या तसल्ली के सिवाय देने को कुछ नहीं होता है .
“छी: बडे लोग, “यह थी “चेतन” की “उससे”, “पहली” मुलाकात.
उसे याद है वह आ रहा था कि रश्मि ने गैलरी में कहा था “छी: बड़े लोग” और आफिस की गैलरी में सन्नाटा छा गया था , उसकी तरफ रश्मि की पीठ थी और वह उसे देख नहीं पायी थी .
वह सोचने लगा , अच्छा हुआ कि , उस दिन “उसने” , “उसका” चेहरा नहीं देखा था , वर्ना , उसे बडे लोग “कहने” का अर्थ कैसे पता चलता.
उस के कान झनझना उठे थे , “ छी: बडे लोग , “ सुन कर , “छी: “ सभ्य समाज में इतनी बडी गाली है, यह उस के कान को उस दिन पता चला था .
पूरी गैलरी में सब की आंख झुकी हुई थी , पता नहीं आज किस पर गाज गिरेगी ,सब डरे हुये थे , न जानें आज कौंन हलाल होगा .
रश्मि को भी अब तक आने वाले खतरे का अहसास हो चुका था , लेकिन उसके चेहरे पर कोई अफसोस या भय के भाव नहीं थे .
“और यह तो होंना ही था,” दो मिनट में साहब का “पीए” खुद आया था उसे बुलाने. आश्चर्य यह था कि पीए आया था , वही “पीए” जिसकी काल , साहब की आवाज के बराबर समझी जाती थी .बात बहुत बडी थी वर्ना अदना सी बात के लिये “पीए” तो नहीं आता . अव्वल तो फोंन ही काफी था , ज्यादा अर्जेंट हुआ तो दो पीऊन थे .
उस ने दुपट्टा सम्हाला – कितना सस्ता सूट था उसका , “सेल में” “तीन सौ” का , वह “तीनसौ” भी उसकी जेब पर भारी थे ,जब उसने वह रुपये बटुये से निकाल कर फुटपाथ वाले को दिये थे .
साहब के आफिस में, तीन सौ रुपये के सूट वाली लडकी , केबिन में जायेगी कहीं “आफिस” मैला न हो जाये . जिस केबिन के सफाई कर्मचारीयों के सफारी सूट तक , पांच हजार के थे , उस केबिन में , आज तीन सौ का काटन सूट पहने, वह भीतर जाने को तैयार थी . गेट पर उस से किसी ने कोई सवाल नहीं पूछा , सेंसर आपरेटेड गेट खुद खुल गया .
वह साहब के केबिन में थी ।
“क्या नाम है तुम्हारा?” पता नहीं चेतन क्या क्या कहना चाहता था, पर रश्मि को देख कर, उसके मुंह से पहला प्रश्न यही निकला.
उसने एक बार फिर , उसे हिकारत से देखा – “सर , आई नो , मैंने मिस्टेक की है , आप मेमों , चार्जशीट या टर्मिनेशन लेटर जो भी चाहें दे सकते हैं . या फिर आप कहें तो मैं खुद रिजाईन लिख कर दे दूं , मुझे पता है कि, अब मैं यहां काम नहीं कर पाऊंगी . यहां भी मेरे दिन पूरे हो गये . “
चेतन के भीतर खडे सारे सवाल , इतनी सी बात पर, दम तोड चुके थे , वह जानता था कि ,उसके एक इशारे पर , यह लडकी , सडक पर आ जायेगी .
“उसने कहा बैठो “
बिना कुछ कहे , वह बैठ गयी उसे वहां एक - एक पल रुकना भारी लग रहा था , “ सर आई एम कलप्रिट लेट मीं गो, टेल मीं माई पनिशमेंट .”
तीन
(“मैं जानती हूँ, मैं गुनहगार हूँ, मुझे मेरी सजा बताईये.”)
चेतन सोच में पड गया . फिर बोला -
“मैं तुम्हें माफ कर दूंगा, बस इतना बता दो तुमने “छी: ये बडे लोग “क्यों कहा?”
सर , मैं माफी नहीं अपना पनिश्मेंट मांग रही हूँ, या तो आप मुझे मेरा हश्र बता दें , या मुझे सम्मान के साथ रिजाईन कर के यहां से जानें दें . आई नो कार्पोरेट कल्चर , देयर इस नो स्पेस फार देम , हूँ डू नाट नो , हाउ टु बिहेब विथ सीनियर्स , एंड, यू आर, नाट ओनली सीनियर , यू आर, सी ई ओ , इवन आई नो, ओनर आफ द कम्पनी . ( मुझे कार्पोरेट कल्चर का पता है , जो यह नहीं जानते कि , अपने सीनियर के साथ कैसे व्यवहार करें, उन के लिये , यहां कोई जगह नहीं होती है , और आप सीनियर ही नहीं, बल्कि कम्पनी के सी ई ओ हैं , सी ई ओ क्या मालिक हैं .)
रही अपनी बात पर कायम रहने की , तो मैं अभी भी अपने स्टैड पर खडी हूँ , इसलिये अपने कहे के लिये माफी नहीं मांग सकती .
उस के माथे पर बल पड गये .
किसी का टूट जाना या किसी को तोड देंना इतना आसान नहीं होता है . सारी लडाई तो मान अभिमान और स्वाभिमान की है . स्वाभिमान पैसे का गुलाम नहीं होता. यह बात उसे कचोट रही थी कि तभी उसे अपने दादा की सीख याद आयी , “जहां ताकत काम न करे , वहां प्यार से काम लेना चाहिये .”
उसने खुद के जज़्बातों को कंट्रोल करते हुये – हार्वर्ड की मैंनेजमेंट टेकनीक प्रयोग की , यू हैव गिवेन मीं रियेल पिक्चर , ऐंड ट्रू फीड बैक आफ आर्गनाईजेशन , आई अम थैंक फुल टू यू , इन इंडिया देयर आर वेरी फियु पीपुल , हूं गिव , रियल ओपिनियन , आई अम थिंकिंग टु अलीवेट यू . प्लीज बी फीयर लेस , सच टाईप आफ एप्लाईज आर , रियल असेट आफ कम्पनी . कैंन यू प्लीज टेल मीं रीजन फार टेलिंग “छी: बडे लोग .” (तुम ने मुझे कम्पनी के बारे में आईना दिखाया है, भारत में बहुत कम लोग हैं, जो वास्तविक फीड बैक देते हैं, मैं तुम्हें प्रमोशन देंने के बारे में सोच रहा हूँ, क्या तुम मुझे छी: बड़े लोग कहने का कारण बता सकती हो.)
इतना सुनते ही रश्मि की आंखें छलछला आईं , वे लोग जो पीडा में पत्थर से भी अधिक मजबूत हो जातें हैं , जरा सी सिंपैथी मिलते ही, बहुत जल्दी टूट जाते हैं . उसकी सांस तेज हो गयी , वह खुद को रोक नहीं पायी, केबिन के कोने में उसे वाश रूम नजर आया , वह सिसकती हुई वाशरूम भागी, वह रो रही थी और उसके आंसू नहीं रुक रहे थे , उसने दुपट्टे के कोर से आंसू पोंछे उसकी आंखें लाल थीं, वह वापस लौटी .
“सर, यह मेरी तीसरी अप्वांटमेंट है और आज अगर आप मुझे बाहर कर देते तो मेरे घर में चूल्हा नहीं जलता.” इतना कह कर वह जैसे खुद को रोक नहीं पायी और सिसकी के साथ फिर से रो पडी .
“सर मैं खुद को नहीं बदल सकती और मेरा नेचर मुझे कहीं टिकने नहीं देता. “
चेतन को अभी अपने सवाल का जवाब नहीं मिला था .एक बात और जो वह समझ नहीं पा रहा था वह यह कि, उसे जो वक्त की कींमत बताई गयी थी , वह आज वक्त की वह कीमत उसे कम क्यों लग रही थी.
बाहर से अर्जेंट मीटिंग के दो रिमाइंडर आ चुके थे उसने कोई जवाब नहीं दिया था , न जाने क्यों आज वह खुद को कमजोर महसूस कर रहा था और वह जो उसके सामने कुर्सी पर बैठ कर रो रही थी, रोते हुये भी कहीं से कमजोर नहीं लग रही थी.
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतनी बडी दौलत का मालिक हो कर भी उस अदना सी स्त्री के आगे आज कमजोर कैसे पड़ गया है .
उसने कुछ नहीं कहा , पांच मिनट काफी होते हैं उस केबिन में और सब चीजें जैसे मशींन की तरह थीं वहां .
पांच मिनट बीतते ही काफी आ चुकी थी , साथ ही एक प्लेट में रोस्टेड ड्राई फ्रूट्स थे .
चार
उस की निगाह रश्मि के तीन सौ रुपये के नीले सूट पर टिकी थी .जब हम जज्बात को जीते हैं तो कुछ होते हैं. शायद अपने भीतर छुपे हुये असली इंसान . तब न रसूख का खयाल होता है न हीं रुपये - पैसे , मान - सम्मान का . तभी तो कहते हैं इश्क अंध होता है. “खूबसूरती” कपडे में कहां होती है . खूबसूरती चेहरे और रंग में भी नहीं होती है , उसे लगा खूबसूरती देखने वाले की निगाह में भी नहीं है, अगर देखने वाले की निगाह में खूबसूरती होती तो उसे आज तक कोई न कोई खूबसूरत जरूर लगी होती , उस की निगाह में , सब से खूबसूरत देखने की चीज ,बस “पैसा” थी , आज तक उसने बस यही जाना था . फिर , आज यह क्या हो गया . न जानें क्यों , वह उसे देखे जा रहा था . उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सामने कौंन है , जिसे पैसा नहीं खरीद सकता था . खैर आज उसे कुछ और जानने की लालसा थी , शायद उस प्रश्न में उसकी जिंदगी का कोई अनछुआ राज छुपा था .
किसी के मन की बात खरीदी तो नहीं जा सकती अगर ऐसा होता तो , वह न जानें कितना बडा आफर दे देता “छी : ये बडे लोग” का अर्थ जानने के लिये . “सचमुच वह जानना चाहता था कि बडे लोग कैसे होते हैं. उसने अब तक बडे लोगों की जिंदगी जी थी लेकिन अपने आप को जाना नहीं था . आज उसके भीतर जैसे खुद को जान जाने की लालसा पैदा हो उठी थी. किसी किताब में , या घर पर , बडे लोग क्या होते हैं आज तक उसे यह नहीं बताया गया था . दान, पुण्य , पूजा पाठ सब कुछ उसने देखा था , लेकिन कभी भी उसने “छी: बडे लोग” आज तक नहीं सुना था . सुनता भी कैसे जो जिस संगत में रहता है, उसके सुनने की क्षमता , बस उतनी ही होती है . हां , न जानें क्यों, उसे बचपन से ही लगता था , कि , ‘कहीं न कहीं’ दुनियां में , सोंने चांदी के अलावा और भी कुछ होता है . उसे लग रहा था कि किसी ने उसके भीतर छुपी हुई जिज्ञासा जगा दी है .
“सर मैं जा सकती हूँ, “
एक बार फिर उस की नजर नीले सूट पर टिक गयी , हल्के सुनहरे धागे से सामने की तरफ कढाई , और मैचिंग का दुपट्टा गहरे नींले रंग से थोडा हल्का , दुपट्टे से मैच करती लैगिंग . वह पागल हो गया , आज तक उस ने किसी को इतनी गहराई से नहीं देखा था . भला इतने साधरण कपडों में किसी का क्या इंट्रेस्ट हो सकता है . लेकिन अब तक रश्मि सम्हल चुकी थी. कौंन उसे कैसे देख रहा है , लडकियां , यह बहुत जल्दी समझ जाती हैं और इस से भी जल्दी यह समझ जाती हैं कि , उसे कहां तक देखा जा रहा है . इस बार उस की निगाह मिल चुकी थी , अब शायद वह आखों में आखें डाल कर बात कर सके लेकिन नहीं , जो सत्ता के आगे अपने स्वाभिमान में नहीं टूटी थी, अब सज्जनता के आगे मोंम सी पिघल गई थी , उसने निगाह झुका ली.
रश्मि का निगाह मिला कर झुका लेंना , चेतन को तीर सा लगा . उस के सिर पर काम का जो भारी बोझ चल रहा था , अचानक हल्का होता प्रतीत हुआ . वह बोला आपने काफी पी ली हो , तो जा सकती हैं , और हां आपको यहां से कोई नहीं निकालगा यह मैं प्रामिज करता हूँ.
“थैंक्यू सर, सचमुच आप बडे आदमीं हैं.” उसने सिर झुकाये - झुकाये कहा.
वह हंसा, उस की जान में जान आई , वह थोडा सा शर्माई और सकुचाई भी , वह जानती थी कि , उसे कैसे और कहां कहां देखा जा रहा है . किस तरह उस की स्टडी हो रही है, लेकिन , किसी गरीब लडकी के भीतर इतनी सेंसिटिविटी नहीं होती, कि वह , अपने को देखने से, किसी से बचा सके या फिर इस बात का विरोध कर सके. न हीं वह समाज में इस तरह की चीजों को , इग्नोर कर सकती है . एक उम्र आते - आते भीतर की संवेदनायें, इस तरह की निगाहों से, जैसे अम्यून हो जाती हैं, लेकिन फिर भी जब किसी शरीफ आदमीं की निगाह , किसी को देखने लगती है, तो उस के भीतर भी, संवेदनायें जागने लगती हैं . न जानें कौंन सी अदृश्य शक्ति ऐसे मौके पर उसे रोटी , कपडा और मकान से उपर उठ कर सपने देखना सिखा देती है . और जब दिल में, सपने पलने लगते हैं तो भीतर कितनी भी मुसीबत चल रही हो , मन में जिंदगीं को ढूंढती लहरें , उठने लगती हैं . समंदर की लहरें , न चांद देखती हैं, न उस से अपनी दूरी, वे जब उछलती हैं , तो बस लगता है चांद तक जा पहुंचेंगी .
“बडे लोग भी हंसते हैं “उसने मन ही मन सोचा, “अगर यह हंस रहा है तो जरूर हंसते होंगें. “
इस से पहले कि वह निकल जाती , चेतन ने कहा – “अभी तुमने कहा सचमुच आप बडे आदमीं हैं”
यह बात , तुमने जो ‘छी: बडे लोग’ कही थी, उस से अलग है. क्या बता पाओगी इतनी देर में ऐसा क्या हो गया ? “
उसने आँख नींचे गडा दीं , बोली – आप सच सुन पायेंगे, यह उम्मीद है, इसलिये कह देती हूँ, मेरी मां ने कहा था, बेटी सच बोलना बडा कठिन काम है , “लेकिन सच पर टिके रहना,” अगर कोई सच को समझने वाला मिल गया तो तुम्हारा जीवन संवर जायेगा , वर्ना तुम्हें पूरी जिंदगी तकलीफ उठानी पडेगी हाँ इतना जरूर है कि , यदि तुम सच पर टिकी रह सकी , तो कम से कम , तुम्हें आत्मग्लानि नहीं होगी .”
पांच
मैंने अभी कहा आप बडे आदमीं हैं, यह एक इंडिविजुअल आबर्वेशन है . यह बडा आदमीं, आपके पैसे के लिये नहीं है , आपके फैसले की समझ के लिये है , जो आपने “रियल फीड बैक की बात की ” उसके लिये है , आपने एक अदने से काम करने वाले की बात को भी अहमियत दे कर , उसकी फीलिंग समझने का प्रयास किया यह उसके लिये है . आदमीं रुपये पैसे से नहीं अपने ‘दिल’ से बडा होता है , और सचमुच आप बडे आदमीं हैं .
उस की निगाह ऊपर नहीं उठी ।
किसी भी सवाल के , कई जवाब होते हैं और ज्यादातर सवाल पूछने वाला , उस सवाल का जवाब , खुद की धारणा के अनुरूप , अपने मन के भीतर, सोच कर बैठा होता है और जब , सवालों के जवाब , धारणा के विपरीत मिलते हैं, तो समझदार लोंगों की बातचीत आगे चलती है , कुछ नया विचार पाने के लिये .
रश्मि का यह उत्तर , उस की धारणा के विपरीत था , उसने भले ही बातचीत में मैंनेजमेंट की टेकनीक लगाई हो लेकिन इस वक्त रश्मि ने उसे अहसास करा दिया था कि , वह बडा आदमीं है और ऐसा बडा आदमीं , जो अब तक के , उसके जीवन के, बडे आदमीं के बेंच मार्क से बडा था .
वह बोला, चलो कुछ देर के लिये मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ , लेकिन मुझे “छी: बडे आदमीं” कहने का कारण बताओ .”
इस बार वह हंसी – “बोली गलती हो गई .”
वह बोला , देखो , अभी तुमने झूठ न बोलने की बात कही थी , और अब झूठ बोल रही हो .
“हां सच है कि इस वक्त मैं झूठ बोल रही हूँ.” रश्मि ने कहा ।
तो सच क्या है बताओ , मैं तुम्हें सच बोलने के लिये प्रमोशन देंने जा रहा हूँ . चेतन बोला ।
“सर! छी: बडा आदमीं” की कहानी इतनी छोटी नहीं है, कि आपको दो लाईन में बता दूं , हां, आज क्यों कहा , यह बता देती हूँ.
आज बारह तारीख है और अभी तक एम्पलाईज को वेतन नहीं मिला है . हमें पता है कि इस तिमाही के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं , तो क्या , एम्पलाईज की पांच लाख की सेलरी रोक कर क्या कम्पनी का मुनाफा बराबर हो जायेगा , हजारों करोड , बैंक में रख कर , अगर आप टाईम से , एम्प्लाईज की सेलरी नहीं दे सकते , तो काहे के बडे आदमीं. आज अगर सेलरी नहीं मिली तो न जाने कम्पनी के कितने घरों में , बनिये से उधार ले कर “चूल्हा” जलाना पडेगा और इसीलिये मैंने कहा “छी: बडे आदमीं” .
इतना कह कर उस ने प्रतीक्षा नहीं की और साहब के केबिन से निकल गयी .
आजकल टेकनींक भी कितनी फास्ट हो गयी है , इधर वह केबिन से निकल कर अपनी सीट पर पहुंची और उधर बैंक का एस एम एस आ गया सेलरी पहुंचने का.
पैसा आदमीं के विचार बहुत जल्दी बदल देता है . वह सोचने लगी , उसे अपने जज्बात पर काबू रखना चाहिये था . बडे लोग हैं क्या जरूरत है अपने विचार इस तरह सार्वजनिक करने की . यदि ये लोग न हों , तो करोंडो लोग भूखों मर जायें . कुछ तो करते हैं ये लोग , जो कम्पनी चलाते हैं . इतने लोंगो को रोजगार देते हैं .
आज अगर उसे निकाल दिया जाता तो शाम को फिर वही सब कुछ शुरु हो जाता , जो आज से बीस बच्चीस दिन पहले घर में चल रहा था. वही कि घर में क्या है , खाना क्या बनेगा , आज कुछ नहीं है चाय ब्रेड से काम चला लेते हैं । कोशिश करें क्या पता बनिया दाल चावल उधार दे दे । वैसे ही उसका पुराना हिसाब बाकी है । क्या फर्क पड़ता है , थोड़ा उल्टा सीधा बोलेगा सामान तो दे ही देगा । उसे ही कौन सा नुकसान है सौ का सामान सवा सौ में देता है और हिसाब में लिख देता है । सब को सामान चाहिए , सब जानते हैं , लेकिन कौन बोलेगा , उधारी बंद कर दे तो बस हो गया काम । चाय की पत्ती , चीनी चावल नून तेल तक सब तो हिसाब लिख कर आता है और तीन चौथाई सेलरी पहले ही दिन बनिया के हाथ में चली जाती है । यह तो मिडिल क्लास की शाश्वत कहानी है । कहानी के पात्र बदलते रहते हैं लेकिन कहानी कहाँ बदलती है । ऐसी ही कहानिया देखते सुनते तो वह बड़ी हुई थी । क्या करेगा बनिया , क्या इतने पैसे लाद केर ले जाएगा अपने साथ । ऐसे खून पीने वालों को तो भगवान के घर नरक में भी जगह नहीं मिलेगी । जा बेटी जरा देख तो छेदी कुछ दे दे तो ले आ शायद चूल्हा जल जाये । कमीना छेदी सामान क्यों नहीं देगा , जरूर देगा समान , उसे गंदी निगाह से देखेगा , हँसेगा कोई भद्दा कमेन्ट करेगा , सामान देते हुये अपने गंदे हाथों से उसके हाथ छूएगा। यह सब देखते सुनते , उसे याद नहीं कि कब अचानक उसे बडे लोगों से नफरत पैदा हो गयी थी . बस इतना याद है कि ऐसे ही हालात से जूझते जूझते उसके पिता दुनियाँ से चल बसे थे और दुनियां से जाते हुये , उन के चेहरे पर , जीत का बहुत बडा आत्म संतोष था , उनके लिए मौत , जैसे मौत न हो कर कोई उत्सव हो .
छह
संजोग की बात है जिस दिन उनकी मृत्यु हुई थी , ठीक उसी दिन , उस मालिक की भी मौत हुई थी जिसने उन्हें अपनी कम्पनी में काम पर रक्खा था . ऐसा कभी नहीं हुआ था कि , कम्पनी ने उसके पिता को , नियत तारीख को मजदूरी दी हो , हां पिता ने बडी ही स्वामिभक्ति से कम्पनी की सेवा की थी और कभी किसी के खिलाफ कुछ नहीं बोला था .
कभी भी किसी गरीब आदमीं की मौत , किसी बीमारी से नहीं होती , हां उस की मौत का कारण बाद में किसी डी एम या किसी बडे डाक्टर को चेक कर के बताना पडता है , यह घोषणा करने के लिये कि उस की मौत , समय पर, कोटे से अनाज न मिलने के कारण नहीं, बल्की एक लम्बी सी नाम वाली किसी बीमारी से हुई है . इसके विपरीत , बडा आदमीं , कभी स्वाभाविक मौत नहीं मरता . हस्पताल से उस का हेल्थ बुलेटिन जारी होता रहता है और लम्बा समय वेंटिलेटर पर बिताने के बाद वह बिना किसी बडी बीमारी के गुजर जाता है . उसकी बीमारी का नाम क्या था यह किसी को पता नहीं चलता बस अंत में इतनी खबर आती है कि उन्हें सर्दी जुकाम की तकलीफ थी जो निमोनिया में बदल गयी , या फिर उन्हें सीने में दर्द के चलते हस्पताल में भर्ती किया गया था . इससे बाद न्यूज चैनेल पर , बीमारी के कारण को छोड कर, बाकी सब कुछ पर चर्चा होती है . चाहे उनके अंतिम दर्शन के लिये आने वाले मुख्य अतिथियों की बात हो या कि उनके क्रिमिनेशन के लिए कितने टन चंदन की लकडी लगी इस पर .
समझ में यह नहीं आता कि चौबीसों घन्टे फैमिली डाक्टर की निगरानी में रहने वाले को दवा और हस्पताल की जरूरत क्यों पडती है , उसे सर्दी जुकाम क्यों होता है और उसे अचानक सीनें में दर्द की शिकायत कैसे हो जाती है . इसके बाद भी वह डाक्टर सालों से उस फैमिली का फैमिली डाक्टर कैसे बना रहता है . और हां वह भी सामान्य उम्र जी कर ही क्यों मरता है.
क्योंकि उस के पिताजी और उस मालिक की उम्र में कोई ज्यादा फर्क नहीं था बस रहा होगा कोई एक दो साल का . वह सब कुछ रख कर और उसे धरती पर उसे छोड कर मरा था, जबकि उस के पिताजी सचमुच खाली हाथ गए थे . आमींन.उस दिन घटी उस घटना ने उसे समाजवाद की परिभाषा समझा दी थी .
भावनायें जब उबाल पर होती हैं तो वे भूत भविष्य और वर्तमान नहीं देखतीं , विचार जब चलते हैं तो वे अपनी कहानी में समय का बंटवारा नहीं करते और जब कोई किसी के सपने देखता है तो उम्र नहीं देखता . यदि हम वक्त को अपने चिंतन में जोड कर चलें तो हमारे खयाल जन्म लेंने से पहले ही मर जायें. गणित व्यावहारिक जगत का हिस्सा है जबकि ख्वाब और खयाल इंसान की जिंदगी हैं . कोई भी टुकड़ा अपने मूल से छोटा होता है और इसीलिये गणित जो जिंदगी का हिस्सा होती है पूरी जिंदगीं से छोटी होती है . गणित का अर्थ है यह सवाल कि यह जिंदगी कैसे चलेगी , अर्थात जिंदगी जीने के लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? बस सम्पूर्ण जीवन का सार इस सवाल में छुपा हुआ है .जिसने भी जन्म लिया है , यह सवाल उन सभी के लिए है , और सवाल जीवन में बार बार खडा होता है .
यह सवाल बडे से बडे पैसे वाले के सामने भी उतना ही सार्थक है, जितना सडक पर भीख मांग कर एक रोटी खाने वाले के लिए . इस सवाल का जवाब ही आदमीं की पूरी जिंदगी तय करता है , यह सवाल ही किसी की जिंदगी का फैसला कर देता है .
कोई भी जिंदगी बीते हुये कल की जिंदगी , या आने वाले कल की नहीं होती । जिंदगी सिर्फ वर्तमान नहीं होती है। दरअसल कल ,आज और कल में जिंदगी
को बांटना ही गलत है । किसी भी इंसान की जिंदगी बस जिंदगी होती है . कल आज और कल को मिला कर ही एक पूरी जिंदगी बनती है । जिंदगी वर्तमान में भी उतनी ही है , जितनी भूत और जितनी भविष्य में दिखाई देती है . हाँ हम अपनी सुविधा और सिद्धातों को गढ़ने के लिये समय को भूत , भविष्य और वर्तमान में विभाजित कर देते है . समय तो समय है . वह आज है वह कल था और आने वाले समय में भी रहेगा .
समय पर लिखी हुई इबारतें नहीं बदला करतीं , इबारत कहें तो घटना . वक्त के सीने पर इबारते लिखी हुई हैं , हर पल यह इबारत लिखी जा रही है और आने वाले समय में लिखी जाती रहेगी , कहने का सीधा अर्थ यह है कि कोई भी समय घटना विहींन नहीं है और जीवन में हर पल घटनाओं का गुजरते जाना ही पूरे जीवन की कहानी कहता है . न घटनायें रुकती हैं और न ही जिंदगी की कहानी . अगर कोई घटना पहले घट चुके है तो उसे नकारा नहीं जा सकता । ठीक वैसे ही भविष्य में जो घटनाएँ , घटेंगी उन्हें नकारा न जा सकेगा । जब हम जीवन में घाटी हुई घटनाओं को नकार नहीं सकते तो , कोई भी जीवन भूतकाल, वर्तमान और अपने भविष्य के बिना पूर्ण कैसे हो सकता है। जो लोग मात्र वर्तमानजीवी होंने की बात करते हैं , वे अधूरे जीवन की बात करते हैं , क्योंकि जिस वर्तमान में हम जीवन जी रहे हैं वह हमारे न चाहते हुये भी भूत काल की घटनाओं और भविष्य की कल्पनाओं को वर्तमान में समेंटे हुये हैं . और इस तरह से गणितीय दृष्टि से देंखें तो , वर्तमान , तमाम कोशिश के बाद भी मात्र वर्तमान नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे कि कोई भी पूर्ण सख्या तभी तक पूर्ण रहती है जब तक हमें दशमलव का ज्ञान नहीं होता . जैसे ही हमें दशमलव का ज्ञान होता है एक , एक न रह कर वन प्वांट जीरो वन से ले कर जितने भी दशमलव तक हम बढते जाते हैं उतने फ्रेक्शन में टूटता चला जाता है और एक छोटी सी संख्या अनंत हो जाती है . यही जीवन का सत्य है , जब हम भूत , वर्तमान और भविष्य को एक सूत्र में पिरो कर जीवन को पूर्णता में देखने लगते हैं तो जीवन छणभंगुर न हो कर अनंत हो जाता है ।मानव चिंतन में समय की बाध्यता नहीं होती , क्योंकि चिंतन जीवन को पूर्णता में स्वीकार करता है गणितीय समय के बंधन में नहीं और इसीलिए जब कोई अपराधी अपना पुराना बदला लेने के लिये बंदूक निकाल कर गोली चलाता है तो पाता है कि भावनाओं में तो न जाने वह कितने लोगों का कत्ल कर चुका है । जबकि फिजिकली तो वे मौजूद ही नहीं हैं , जिनका वह कत्ल करता चला जा रहा है ।
सात
ठीक इसी तरह अमर प्रेम भी तो है , जहां आब्जेक्ट बचता ही नहीं और देखते देखते प्रेम इम्मारटल हो जाता है . अर्थात प्रेमिका का वजूद न होते हुये भी प्रेमी उसे प्रेम करता चला जाता है ।
आज चेतन पचास की उम्र में भी पच्चीस साल की उम्र की भावनाओं को ठीक वैसे ही जी रहा था .
उधर एक एच आर प्राब्लम निपटी थी लेकिन , यह प्राब्लम उसकी जिंदगी पर बहुत भारी पड़ी थी। ब्लैक कॉफी भी उसके मूड का कुछ नहीं कर पा रही थी । पंद्रह बीस मिनट की बातचीत में उसे लगा , जैसे किसी ने उसे भीतर तक झकझोर दिया है । किसी ने करारा थप्पड़ मारा था उसके गाल पर , जिसे वह सहला रहा था । लगता है उस थप्पड़ के अमिट निशान उस के चेहरे पर बन गए थे। वह वाशरूम गया तो उसे फील हुआ उस के गाल पर पांच जोरदार उंगलिया छप गई हैं। बड़े लोगों की लाइफ में मीटिंग के सिवाय होता क्या है? हर मीटिंग और हर सेकेंड कींमती होता है उनका । एक एक सेकेंड न जाने कितने करोड़ का होता है बड़े लोगों का । भला कैसे आंकी जाती है एक बड़े आदमीं के एक मिनट की कींमत ? जैसे कि किसी कंपनी का प्रॉफिट पर ईयर दो चार लाख करोड़ है और उस के मालिक के पर सेकेंड की कींमत निकालनी है, तो कंपनी प्रॉफिट को एक साल में जितने मिनट होते हैं उस से डिवाइड कर दो।अजीब बात है , इस तरह तो एक बड़े आदमीं की टोटल लाइफ कैलकुलेट की जा सकती है। भले ही उस कींमत में उसे खरीदा न जा सके , लेकिन उसकी कींमत तो निकल ही आएगी।
दौलत एक भूख है , बहुत बड़ी भूख जो किसी भी खुराक से नहीं मिटती।
लेकिन , मज़ा यह था कि एक पंद्रह बीस हजार प्रति माह कमाने वाली अदना सी कर्मचारी , उसके जीवन से कई सौ करोड़ का वक्त छीन ले गई थी और उससे भी बड़ी बात यह थी , कि वह उसके खयालों में समाई जा रही थी । इस तरह न जाने वह उसके कितने हजार करोड़ का वक्त उस से लगातार छीन रही थी।
इधर कान्फ्रेंस चल रही थी लेकिन , कांफ्रेंस रूम में सन्नटा छाया था। कोई कुछ बोल नहीं रहा था , सब को पता था , बॉस अपसेट हैं , पता नहीं किस का पत्ता कट जाए , वह तो अचानक पी एस ने एंट्री की और लंच का आर्डर कहां से होगा पूछा , तो, उस की तंद्रा टूटी । ओह तो वह मीटिंग में है , पर कौन सी मीटिंग है यह , एजेंडा क्या है मीटिंग का, यह तो उसे याद ही नहीं था । उसे तो यह भी नहीं पता था कि , वह कांफ्रेंस हाल में लोगों से घिरा है , और आफिसे का सीनियर स्टाफ उसे बहुत देर से देख रहा हैं । कोई और दिन होता , तो वह कांशस हो जाता , अपने टाई की नाट ठीक करने का उपक्रम करता और एक सेकेंड के भीतर , पूरे मैटर के साथ इन्वाल्व हो जाता।
उस ने आंख उठाई ,लेकिन आज वह कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था । सभी को लगा बम फूटेगा।
लेकिन नहीं , उस ने पूछा , “यहां किस ढाबे में सब से टेस्टी खाना मिलता है ?
किसी को समझ में नहीं आया कि साहब क्या कह रहे हैं , कहीं ऐसा तो नहीं साहब किस बात पर बहुत गुस्सा हैं और अपना गुस्सा किसी पर उतार रहे हैं ।
तभी चेतन बोला , ये क्या ड्रेस पहन रक्खी है तुमने “रुमा” बहुत भद्दी लग रही हो ।
सब सन्न रह गए , यह हो क्या रहा है आज मीटिंग में , ऐसा तो कभी नहीं हुआ । आज चेतन सर , काम की बात न कर के , इतने कींमती वक्त में , ढाबा और ड्रेस की बात कर रहे हैं।
तभी चेतन ने डांटा “ मैडम , ये स्कर्ट टॉप छोड़ कर , सूट पहना करिये, सलवार सूट , परिफ्रेबली आफ ब्ल्यू कलर। और हां मेरे सवाल का जवाब किसी ने नहीं दिया। क्या आप लोग सिर्फ बड़े होटल का खाना खाते हैं , आज तक किसी ने ढाबे का खाना नहीं खाया क्या ?
मैं जानता हूँ आप लोगों को कुछ नहीं पता , एक काम करिए , आप रश्मि से पूछ लीजिये वह जिस ढाबे से खाना खाती है आज वहीं से आर्डर कर दीजिए यहां मीटिंग । सब हैरान थे, कोई कुछ नहीं बोला। चेतन को अपने सबऑर्डिनेटस और मीटिंग से नफरत सी हुई। ये सब के सब बस गुलाम हैं हाँ में हाँ मिलाने वाले।किसी को कुछ नहीं पता ।
आई एएम सारी , मीटिंग कैंसिल करिए और बाकी डिस्कशन कल करेंगे ।
जिंदगी के मामले बड़े विचित्र होते हैं।ये दिल कब कहां किस पर और क्यों आता है यह कोई नहीं जानता। और जब आता है तो कुछ पता नहीं चलता , बस दिल आने के लक्षण और उस के परिणाम दिखाई देते हैं।
हाँ हर प्रेम जिंदगी बदल देता है। वह जिंदगी चाहे अमीर की हो या गरीब की । किसी गरीब के लिए तो प्रेम ही वह ताकत है जो उसे जिंदगी देता है। सच तो यह है कि प्रेम न हो तो गरीब आदमी जन्म लेते ही मर जाये । और
एक गरीब की जिंदगी में जीने लायक कुछ होता ही नहीं और पैदा होंने के बाद आदमीं स्वत: मर नहीं सकता इसीलिए जीता चला जाता है।
आठ
उसके पास सोचने समझने के लिए कुछ होता है तो बस यह कि , आज सुबह चूल्हा कैसे जलेगा और सुबह जल गया तो शाम का काम कैसे चलेगा। इस सुबह और शाम के इंतजाम में गरीब आदमी की जिंदगी बीत जाती है।
उसके पास तो अपनी इज्जत और बेइज्जती के बीच भी सोचने के लिए कुछ नहीं होता। जब रोटी का संघर्ष जिंदा रहने के संघर्ष से बड़ा हो जाये तो काहे की इज्जत और कैसी बेइज्जती ।
जिंदगी का दर्द इंसान को बहुत कुछ सिखाता है और एक दिन इस दर्द की इंतहा , गरीब आदमीं को मौत के भय से इम्यून कर देती है। नतीजा यह कि जब कोई गरीब आदमीं यहां से जाता है तो उसके चेहरे पर एक अपूर्व शांति होती है। जैसे उसे जीवन का पूर्ण ज्ञान जीते जी मिल गया हो और वह यहां इस जीवन में निर्वाण प्राप्त करने ही आया था, इस नश्वर शरीर का त्याग उसके लिए एक आनंद बन जाता है जबकि किसी अमीर आदमीं के लिए बढ़ता हुआ जीवन कमाई हुई दौलत के न भोग पाने के कारण एक पीड़ा की अनुभूति देता है। वह अपने जीवन से मुक्त कहां हो पाता है वह तो बस अपनी दौलत के बल पर , स्वयं के अमर हो जाने और जीवन को और अधिक भोगने के सपने देखता है। वह हर पल जीवन के खो जाने और मृत्यु के करीब आने के भय से से डरा रहता है । तभी तो आमीर अपनी सुरक्षा में डॉक्टरों की फौज तैनात रखता है। यहाँ तक कि अपने शरीर के स्पेयर पार्ट्स तक का इंताजाम कर के रखता है, जैसे किडनी और लीवर ।
यह सब लिखना पढना भी बड़ा पीड़ादायक है। तमाम इंतजाम के बाद भी बड़ा आदमीं न तो अमर होता है , और न ही , छोटा आदमीं बिना देखभाल के असमय ही दुनिया छोड़ता है।
मौत उम्र के मामले में कोई भेदभाव नहीं करती, वह अमीर- गरीब नहीं देखती और न ही आने और जाने में किसी से रिश्वत लेती है, और इसीलिए मौत एक यूनिवर्सल ट्रुथ है , एक हैवेनली नेचुरल फिनोमिना बियोंड द कंट्रोल आफ ह्यूमन। इसीलिए रीबर्थ अर्थात दूसरों को जिंदगी देंने वाला डाक्टर भी मरता है और अरबों की दौलत भी किसी की जिंदगी बचा नहीं पाती ।
चेतन और रश्मि , दोंनो आफिस से घर लौटे, दोंनो खुश थे एक वेतन मिल जाने और घर में चूल्हा जलने से और दूसरा दिल पर चोट खाने से। दिल का दर्द , दर्द के साथ जिंदगी में एक अजीब सी मिठास देता है जो बस वही महसूस कर सकता है जो इस दर्द से गुजारा हो । घर पहुँच कर ,दोनों एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे, बस प्लेटफार्म अलग था।
रश्मि लौटते समय ढाई सौ ग्राम मिठाई, फूल माला और धूपबत्ती ले कर घर लौटी थी , यह सोचते हुये कि थैंक गॉड, आज फिर, नौकरी जाते जाते बची थी, यह जो भगवान है वह इस कम्यूनिटी या इस लेवल के लोगों के लिए एक्जिस्ट करता है। कुछ न होंने अर्थात सुबह शाम के चूल्हे के जलने का इंतजाम न होंने के बाद भी यह जो ऊपर वाले पर विश्वास है जिस के सहारे एक गरीब आदमीं आसानी से सत्तर अस्सी साल जी जाता है यह विश्वास ही उसका भगवान है , यही उसके भीतर की ताकत है , और यही जीवाति रहने की ताकत देने वाली जिजीविषा भी ।
रश्मि अपनी सेलरी से डेढ़ सौ रुपये में सुकून, शांति और रात की नींद खरीद कर लौटी थी, और चेतन अरबों का मालिक हो कर भी आज न जाने क्यों नींद खोकर बेचैन घर लौटा था ।
“छी बड़े आदमीं” की चोट उसे भीतर तक जला रही थी। घर में टंगे बड़े बड़े लोगों के खानदानी चित्र उसे गाली देते हुए प्रतीत हो रहे थे , ये सब बड़े आदमीं थे । “छी बड़े आदमीं।“
उसे अपने भीतर , अपनी जीवन शैली से घोर नफरत पैदा हो रही थी ।
एक्चुअली , बड़े लोगों को सेंटिमेंटल नहीं होंना चाहिए और न ही उन्हें अपनी शानो शौकत या रईसी की को छोड़ कर आम आदमीं से मिलना जुलाना चाहिये। क्योंकि ऐसा होते ही वे बीमार हो जाते हैं , मानसिक बीमार । उनके भीतर जैसे ही सामाजिक चिंतन का वाइरस प्रवेश करता है , उनकी जिंदगी की हार्ड डिस्क को करप्ट कर देता है।
दरअसल ऐसा वैल्यू सिस्टम जो उसके पैसे की ताकत के विश्वास के खिलाफ हो उसे झकझोर कर रख देता है। बडा होंना न जाने जीवन में कितने ढेर सारे बंधन पैदा कर देता है। उसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बंधन है वह है आजादी का छिन जाना । एक बड़े आदमीं के लिए आजादी नहीं होती , देखने और कहने के लिए सबकुछ है लेकिन एक्चुअल आजादी कहीं नहीं है। वह अपनी मर्जी से कहीं आ जा नहीं सकता । ड्राइवर हर वक्त साथ चलता है अर्थात नो प्राइवेसी। चलो खुद गाड़ी चला भी लें तो हर जगह लोग उसे जानते हैं न भी जानते हों तो उसके हाव भाव जीवन शैली कहीं भी जाने पर उसके पहचान की चुगली कर देते हैं।
उसका दिल रईसी की गुलामी से आजाद होंने को तड़प रहा था और जब उसने गहराई से अपने भीतर झांका तो पाया रश्मि ने उसे “छी बड़ा आदमीं” कह कर उसे जीवन में अपनी धनाढ्य सोच की गुलामी का अहसास कराया था। गुलामी जेल के सींखचों में कैद होने का नाम न हो कर अपने विचार रहन सहन और आदतों की कैद भी है। बल्कि यह एक प्रकार की बड़ी गुलामी है। अपनी जिंदगी के आजाद न होने के सोच की गुलामी। एक अमीर आदमीं को आजादी कहां मिलती है , वह जन्म के साथ ही पैसे का गुलाम होता है , जो उसे अपने घर के वैल्यू सिस्टम से विरासत में मिलती है। वह इस बात को समझ ही नहीं पाता और युगों - युगों में कोई विरला ही बुद्ध या महावीर होता है जो इस वैल्यू बेस्ड मानसिक गुलामी की जंजीर तोड़ मुक्त होता है, वरना अमीरी और राजसी ठाट की गुलामी एक मानव जनित नैसर्गिक प्रक्रिया है जिसे छद्म सुख से परिभाषित कर दिया गया है।
आजादी की एक झलक भर इंसान को उसकी घोर गुलामी का अहसास करा देती है। यह उसी रश्मी का बिल था जिसने एक वाक्य से उसके भीतर छिपी सदियों की गुलामी का अहसास कराया था । अपने अदने से कर्मचारी के लिए 50 लाख के मेडिकल बिल का भुगतान करना कंपनी के किसी भी नियम कानून के अंतर्गत नहीं आता था । परिस्थितियां तेजी से बदल रहीं थी।
नौ
पहली मुलाकात से आज उसकी मौत तक , इन 7 सालों में ऐसा क्या दिया था रश्मि ने कि चेतन ने एक अदनी सी मौत पर डाक्टर को गोली मारने की बात कह दी थी ।उसकी आँखों के सामने एक एक कर जिंदगी के पन्ने खुलते जा रहे थे । उसने उसे प्यार दिया था , शायद नहीं, कत्तई नहीं , उसने कोशिश की थी एक बार उस से प्यार जताने की और उसने हंस कर टाल दिया था, “साहब छोड़ो इसे” , “आप साहब ही रहोगे और हमारा प्यार नहीं हो सकता” , वैसे भी मुझे किसी और से प्यार है। रश्मि ने बड़ी बेबाकी से कहा था उस से ।
वह चौंका था , कहां उसकी नजदीकी पाने के लिए एक से एक बड़ी मॉडल, बड़ी बड़ी सुंदरिया न जानें क्या क्या करती हैं और यह जिसके लिए उसके भीतर एक तड़प जागी थी , उसने उसे मिनटो में मना कर दिया था।
तभी तो कहते हैं प्यार भी अजीब सी चीज है – जहां उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता । कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता । एक और बात है यह प्यार कहाँ किसी की बात मानता है , इस बात से चेतन पर कोई फर्क नहीं पड़ा था कि रश्मि ने उस के प्रेम के अनुरोध को नकार दिया था । चेतन को रश्मि से प्यार हुआ था , रश्मि को चेतन से प्यार हो न हो इस बात का भला चेतन के प्यार पर क्या असर पड़ता।
हाँ रश्मि से बात करने में धीरे धीरे उसका संकोच मिट गया था। कारण यह कि जब कोई करीब होता है तो दिल के भीतर करीब होता चला जाता है बाहर भले न दिखाई दे और यह करीबी बातचीत व्यवहार में दिखने भी लगती है।
सवाल यह था कि चेतन को उस से प्यार हुआ क्यों ? प्यार न शरीर से होता है और न ही मन से प्यार होता है प्यार होता है अहसास से। वह अहसास कब , कहँ , किसे और कैसे मिल जाये कोई नहीं जानता । सवाल यह है कि कौन सा अहसास , सच तो यह है कि जहां हमें “अपने होने” का अहसास हो जाता है , कि जब किसी के माध्यम से हम अपने अस्तित्व के करीब पहुंचा जाते है , तो हमें प्यार हो जाता है।
तभी तो किसी मीरा को , किसी राधा को , रोमियों या मजनूं को अजीब सा प्यार होता है जो आब्जेक्ट ऑब्सेसिव नहीं होता बल्कि आब्जेक्ट के माध्यम से वह खुद के होंने के अस्तित्व को ढूंढने लगता है ।सच्चे प्यार में आब्जेक्ट अपने अस्तित्व तक पहुंचने का माध्यम होता है। आब्जेक्ट स्वयम में प्यार , सब्सटेंस या सब्जेक्ट नहीं होता । प्यार में आब्जेक्ट प्रेमी के अपनी खोज तक पहुँचने का माध्यम भर होता वह अपने आप में प्यार नहीं होता । कृष्ण आब्जेक्ट हैं प्रेम नहीं, आब्जेक्ट और सब्जेक्ट के वैचारिक व भौतिक मिलन की चाह या फिर उस मिलन से पैदा हुई अनुभूत ,जो निरंतर निरंतर जीवन सरिता बन जीवन में प्रवाह मान है बस वही प्रेम है। प्रेम हृदय में निरंतर उमड़ रहा वह आनंद का स्रोत है जिसे बस प्रेमी ही समझ सकता है ।
चेतन के जीवन में प्रेम की नदी सूखी हुई थी , एक अनोखी अनुभूति जिसका अहसास उसे अभी तक अपने जीवन में नहीं हुआ था वह रश्मि ने उसे करा दिया था । इस अनुभूति के लिए उसे किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी, प्रेम का अहसास एक निर्द्वंद प्रक्रिया है जो किसी से यहां तक कि खुद से पूछ कर भी घटित नहीं होती , हाँ इस अहसास के घटित होंने पर होश नहीं रहता , सच तो यह है कि किसी अहसास के घटित होंने के लिए बेहोशी के आलम से गुजर जाना शायद अहसास की पहली शर्त है होश बचा रह गया तो जीवन में अहसास की अधूरी अनुभूति होती है वह अहसास नहीं बस एक गणित है और प्रेम कम से कम गणित नहीं है।
हाँ अहसास के घटित होंने के बाद पता चलता है कि हमें मिला क्या है। कि जिंदगी गणित के जोड़ घटाव के बाहर की कोई चीज है। जिस दिन हम जिंदगी से मिल लेते हैं यह जो संसार के खेल हैं , सब बेमानी हो जाते हैं, तब पता चलता है, प्रेम का एक लम्हा भी खरीद पाने की ताकत दुनियां की किसी भी दौलत में नहीं है।
सच तो यह था कि रश्मि के बहाने वह खुद से प्रेम कर बैठा था, सवाल यह है कि क्या इस से पहले वह खुद से नफरत करता था ? नहीं इस से पहले वह खुद को जानता ही नहीं था। जो वह था या जिसे वह जानता था वह तो चेतन कत्तई नहीं था , दूर दूर तक नहीं था। रश्मि उसके खुद के जान जाने का आब्जेक्ट बन कर उभरी थी। उसने यह तो कह दिया था कि उसे चेतन से प्यार नहीं हो सकता वह किसी और से प्यार करती है लेकिन उसने चेतन को खुद से प्यार करने से कभी रोका ही नहीं, वह बोली , सर अपनी बात आप जानो मैं उसमें क्या कह सकती हूँ, वैसे भी आपकी जिंदगी और आपकी सोच आपकी अपनी है। आप मुझे प्यार करते हैं या नहीं करते इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकती, प्रेम प्रभु की कृपा है , उस की देन है , उसका आशीर्वाद है, यदि आपके भीतर प्रेम ने जन्म लिया है , तो यह मानवता के लिए एक बहुत बड़ी घटना है , क्योंकि बड़े लोगों को सिर्फ और सिर्फ ताकत और दौलत से प्यार होता है इन्सानों से नहीं । हो सकता है आपका प्यार समाज को कुछ दे जाए।
हाँ उसने चेतन को कभी अपने प्रति आकर्षण से रोका ही नहीं , उसने चेतन के भावनाओं की कद्र की , चेतन को रश्मि के सहयोग की कैसी भी जरूरत पड़ी वह पीछे नहीं हटी। रात देर तक रुकना हो सुबह जल्दी आना हो या चेतन के साथ किसी भी काम के लिए कहीं जाना हो।
कुछ तो लोग कहेंगे , सो जिसे जो कहना है , कहे , क्या फर्क पड़ता है। बदनामी हो या शोहरत , बस जगह बदलते ही खत्म हो जाती है और जिंदगी बीत जाने पर किसी बात का कोई अर्थ नहीं रहता । इतिहास में न जाने कितनी बदनामियों और शोहरत के किस्से दफन हैं जिन्हें कुछ न करने वाले बस पढ़ पढ़ कर रस लेते हैं।
प्रेम और शरीर बड़ी उलझी हुई ग्रंथी है और यह सब अपने वैल्यू सिस्टम पर निर्भर करता है।
रश्मि और चेतन में यह कितना था इसे बस वे दोनों ही जानते थे बाकी सभी के लिए वह किस्सा कहानी और कयास भर था।
रश्मि नीले सूट में बैठी थी और चेतन ने उसकी गोद में सिर रख दिया , घनी जुल्फों की छांव चेतन के चेहरे पर छाई हुई थी।
सुनो यह जो तुम्हारे अहसास की मेडिसिन है न , मुझे अपने भीतर की हर पीड़ा से मुक्त कर देती है। काश की पूरी उम्र बस यूहीं कट जाती।
उसने चेतन के सिर पर हाथ फेरते हुए बालों में उंगलियां फेरीं और बोली , चेतन अहसास कभी भी फार एवर नहीं होते, उन्हें बस, लम्हों में ही जी लिया करो, कोई भी पूर्णता आदमीं को बोर कर देती है। जिस दिन तुम्हें मेरी पूर्णता का अहसास होगा तुम मुझ से बोर हो जाओगे। मुझ से नफरत करने लगोगे।
यह जो मेरा जिस्म है , जो तुम्हें थोड़ी देर ही सही, मेरे बहाने तुम्हें तुम्हारी आत्मा से मिलाता है , यह हमेशा न हो सकेगा। एक दिन तुम इन अनुभूतियों से पूर्ण हो जाओगे और तब यह रोमांच , यह जो मेरे माध्यम से खुद तक पहुंच जाने की प्रक्रिया है कि जिसमें तुम खुद को भूल जाते हो वह हमेशा न हो सकेगा और तब मैं इसी तरह तुम्हारे पास हो कर भी , तुम्हारे लिए इरिलीवेंट हो जाऊँगी।
दस
वह हंसा , अभी कह रही थी कि , लम्हों को जी लेने दो और अभी खुद ही लम्हों के बदल जाने या उनके खो जाने , उनके अहसास विहीन हो जाने की बात कह रही हो। जानती हो रश्मि , यह जो जिंदगी है, बस लम्हों की कैद भर है। और वो लम्हे जिनमें मैं खुद को खो देता हूँ, बस उतनी ही मेरी जिंदगी है और हां , फिलहाल तो मैं तुम्हारे साथ इन लम्हों में खुद को खो कर, अपनी जिंदगी पा जाता हूँ , जब तक यह लम्हे हैं , हैं , जब नहीं होंगे तब नहीं होंगे आज हैं तो क्यों न इन लम्हों में अपनी जिंदगी जी लूँ । इस नहीं होंने की परवाह में यह जो होंना है उसे कैसे अनुभूति से परे हो कर गुजर जाने दूं मैं ।और बस खामोशी , खामोशी , खामोशी, कि अहसास के लम्हे बोलते नहीं हैं। दोनों की आंखें आंसुओं में डूबी हुई सिर्फ और सिर्फ खामोश हैं । चेतन की जिंदगी के इन सात सालों में ऐसे लम्हों की एक सीरीज है या यह कहें कि उसकी जिंदगी एक सच्ची किताब है , जो उसके दिल के दिलो दीवार पर लिखी है जिसे वह जब चाहें पलट कर पढ़ लें।
रश्मि , तुम शादी कर लो।
वह हंसी किस से ?
अब यह तो नहीं कहूंगा मुझसे ।
रहने दो तुम कहोगे तब भी नहीं करूंगी, जानते हो क्यों ?
“अपने लिए नहीं” , तुम्हारे लिए, “तुम्हारे बच्चों , परिवार और खानदान की इज्जत के लिए।“ रश्मि बोली , और हाँ एक बात और बता दूं , सेठानी सब जानती हैं , तुम्हारी पूरी खबर है उनके पास, तुम्हारे हर टूर का ब्ल्यू प्रिंट रहता है उनके मोबाइल पर, लेकिन बड़े घर की स्त्रियों को, घर और परिवार की लाज बचानी आती है , उन्हें मालूम है इस खानदान का वारिस कौन है और उसे कैसे तैयार करना है। जिस दिन तुम नया वारिस लाने की सूरत पैदा करोगे जी नहीं पाओगे। न ही वह जी पायेगा जो इस खानदान की शुद्धता नष्ट करेगा।“
“रश्मि संस्कार, जिंदगी को बहुत छोटा बना देते हैं, इंसानियत भी इसके नीचे दब जाती है।न जाने क्यों मैं तुमसे मिल कर, रईसी से नफरत करने लगा हूँ।
मुझे लगता है मैं सचमुच तुमसे प्यार करता हूँ। चेतन ने कहा ।
वह हंसी चेतन आदमीं के विचार वक्त के साथ बदलते रहते हैं , चिंता मत करो “रईस लोगों को कभी - कभी प्यार की बीमारी लग जाती है , तुम्हें भी लग गई है हाँ जब खुद ब खुद वक्त के साथ जिंदगी की हकीकत और सामाजिक बंधनो से रूबरू होंगे तो , यह बीमारी दूर हो जाएगी।“ ।“ और इसके बाद भी अगर यह बीमारी दूर न हो , तो मुझ से मिल लेना।“ वह बोली ।
वह चौंका , “मुझसे मिल लेना मतलब , यह जो तुम मेरे साथ हो , रोज मेरे साथ काम करती हो , यह तुमसे मिलना नहीं तो और क्या है।“
“नहीं चेतन , यह तो , मैं तुमसे मिलती हूँ , तुम मुझ से कहां मिलते हो।“ मैं तुम्हारे पास आती हूँ , आफिस में काम करती हूँ और तुम मेरे बॉस हो , मैं जो भी करती हूँ , वह मेरी नौकरी का हिस्सा है , जिसके लिए तुम मुझे सेलरी देते हो, जिससे मेरा जीवन स्तर अच्छा हुआ है , जिससे मेरा घर चलता है, इस नौकरी के बाद , मेरे घर में दो टाइम चूल्हा जलेगा कि नहीं , यह भय समाप्त हो गया है। हाँ, अगर तुम्हें मुझसे मिलना हो , तो कभी मेरे पास आना ।“ रश्मि बोली , फिर कहा , “रहने दो, तुम मेरे पास कैसे और कहां आ पाओगे, मैं तुम्हें धर्म संकट में नहीं डालना चाहती। हां आ गए तो उस कमीने से मिलवा दूंगी जिसे मैं प्यार करती हूँ।“
चेतन को , जिंदगी ने या कहें उसके दिल ने मजबूर कर दिया कि वह रश्मि से मिलने जाए।
किसी को महल में बुला लेना आसान है , लेकिन किसी का महल से निकल कर फुटपाथ तक , किसी से मिलने जाना बड़े जीवट का काम है। और तब तो और भी अधिक जब यह चुनौती हो, कि किसी फुटपाथ के इंसान से मिलना है वह भी इस तरह मिलना है कि उस मिलने में कहीं से यह अहसास न झलके कि कोई राजपथ किसी फुटपाथ तक चल कर आया है। यदि राजपथ को, फुटपाथ को समझना है , तो उसे, खुद फुटपाथ बनाना होगा।
इतना तो वह समझ चुका था कि , यदि वह रश्मि की ओर झुका है, तो उसके व्यक्तित्व में कहीं तो कुछ है। एक सामान्य आदमीं के व्यक्तित्व में इतना कुछ हो, कि कोई अरबपति उसके जुल्फों की छांव तलाशने लगे तो कहीं न कहीं कुछ तो छुपा है उसके व्यक्तित्व में , कुछ तो है उसके भीतर , जो किसी की जिंदगी के अधूरेपन को पूरा कर रहा है। बड़े लोगों के खरीदने की ताकत का अहसास एक आम आदमीं नहीं लगा सकता। और यह प्यार जी एक ऐसी टीस बन गई थी जो वह कोई भी कींमत दे कर नहीं खरीदा सकता था । खरीदने में एक आजादी रहती है जिसे खरीदो उसे अपने हिसाब से जहां चाहो वहाँ , जैसे चाहो वैसे बुला लो या हुक्म दे दो मैनेज कर लो । लेकिन प्रेम , खुद के बिक जाने, खुद के लुट जाने का फलसफा है । कोई इंसान प्रेम में क्यों लुटता है और लुट कर उसे क्या हासिल होता है यह सिर्फ वह जानता है जो प्यार में लुटा हो , जिसने प्यार में जिंदगी गंवा दी हो । हाँ कुछ तो अनोखा हासिल होता है प्रेम में , जो युगों युगों से लोग , प्रेम करते आ रहे हैं । सब कुछ लुटा कर प्रेम , जहां इंसान खुद बच गया जहां उसका अस्तित्व रह गया, वहाँ प्रेम हुआ ही नहीं ।
वह चला पड़ा रश्मि से मिलने । चला कहाँ जैसे किसी ने उसे मजबूर कर दिया हो कि वह रश्मि से मिले और जिंदगी के अभी भी अधूरे पड़े ज्ञान को समझ ले । किसी का अमीर होना एक बात है और जिंदगी की समझ होना दूसरी । एक और बात भी है तीसरी बात “जिंदगी को जीना ।“
जैसे ही वह, रश्मि से मिलने , गली के मोड पर पहुंचा , उसे लगा यहाँ जिंदगी जीने के फलसफे को समझा जा सकता है । जीवन सुख , सुविधा और ठहराव में सांस नहीं लेता , जीवन पैदा होता है , संघर्ष में जीवन जन्म लेता है जीने की जिजीविषा में ।
सुख और सुविधा में तो जीवन दम तोड़ देता है और इसीलिए अमीरी के भीतर हर वक्त एक अनजाना मौत का साया मँडराता रहता है । अमीरी में जन्म तो है , जीवन नहीं है ।
“किसी दिन इधर से गुजर कर तो देखो , बड़ी रौनकें हैं फकीरों के डेरे ।“ जहां खोने के लिए कुछ नहीं है , जीवन की सवच्छंदता वहीं मिल सकती है । एक गरीब बस्ती में कोई किसे लूटेगा और क्या लूटेगा , गरीब के पास खोने के लिए क्या है । जहां एक के बाद दूसरे वक्त के चूल्हे के लिए संघर्ष है वहाँ अपनापन और भाईचारा बहुत होता है । ऐसी जगह हर घर अपना होता है । यहाँ , एक रोटी खाने से पहले , पड़ोसी , पड़ोसी से पूछता है , उसके घर चूल्हा जला कि नहीं और वह अपनी रोटी चार हिस्सों में बाँट कर भी तृप्त हो जाता है , क्योंकि वह जानता है, भूख क्या होती है । और हाँ , भूख लगने पर जो खाना खाया जाता है , वही स्वादिष्ट होता है । स्वाद मटर पनीर और चिकन में नहीं है, भूख में है और इसीलिए अमीर लोगों को किसी भी खाने में स्वाद नहीं आता क्योंकि उन्हें भूख ही नहीं होती । उनकी सारी की सारी भूख शिफ्ट हो कर दौलत पर पहुँच जाती है , उन्हें बस अपने बढ़ते हुये बैंक बैलेंस , या लाकर में जमा हो रही दौलत से सुख मिलता है । उनकी भूख बस दौलत से मिटती है । हाँ दौलत और सत्ता की भूख आजतक किसी किसी की, कभी खत्म नहीं हुई है ।खैर चेतन के पैर गली के मोड पर ठिठक गए थे , उसे लगा वह भीतर नहीं जा पाएगा । वस्तुत: वहाँ का एट्मास्फियर उसे भीतर ही नहीं जाने दे रहा था । उसने रश्मि को फोन लगा दिया ।
ग्यारह
रश्मि, मैं आज तुमसे मिलने आया हूँ, तुम कहती थी न , कि जिस दिन तुमसे मिलने आऊँगा , जिंदगी की हकीकत से ऊबरू हो जाऊंगा । सचमुच मुझे, “जिंदगी की हकीकत से रूबरू होंने की चाहत” यहाँ खींच लाई है, लेकिन मेरे लिए इस मोड से आगे बढ़ पाना संभव नहीं है , लगता है इसके आगे मैं खुद से एक कदम भी नहीं चल पाऊँगा ।
रश्मि जैसे चौंक सी गई , क्या सचमुच चेतन उससे मिलने आ पहुंचा है । वह लपकी और दो मिनट में चेतन के बगल में पहुँच गई । चेतन उसे देख कर हैरान रह गया । यह वही रश्मि है जो सलवार सूट पहन कर आफिस आती है ।
न चेहरे पर मेकअप, न सलवार सूट । उसने तो एक सस्ती सी जींस और टी शर्ट डाल रक्खी थी ।
ओह गाड रश्मि तुम ,
क्यों क्या हुआ इतना चौंक क्यों रहे हो , मैं ही हूँ, क्या पहचानते नहीं हो ।
ओह , ऐसा कुछ नहीं है , लेकिन कभी तुम्हें इस ड्रेस में देखा नहीं इसलिए ।
चेतन बाबू, मैंने कहा था न , कि, मैं तुमसे मिलने आती हूँ , वह एक अलग बात है , वह मेरा प्रोफेशन है, हाँ मुझसे मिलना हो , तो मेरे घर आ जाना समाजवाद का हैंगओवर उतर जाएगा और यह जो अमीरी से नफरत के भाव पैदा हो रहे हैं , तुम उस बीमारी से भी मुक्त हो जाओगे ।
खैर मुझे भरोसा नहीं था कि तुम आओगे , चलो आ गए हो तो मैं अपना वादा भी पूरा कर दूँ । हाँ तुम्हारे लिए यहाँ चलना थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन मेरे पीछे पीछे आओगे तो चले आओगे ।
एक बात कहूँ – “चेतन आज भरोसा हो गया कि तुम मुझे सच्चा प्यार करते हो । “ लेकिन यह भी सच है कि मैं चाह कर भी तुम्हें इस जनम में प्यार नहीं कर सकती ।“ जानते हो क्यों , क्योंकि मैं नहीं चाहती , कि मेरी वजह से तुम्हारी बदनामी हो, या तुम्हारी पर्सनल लाईफ खराब हो जाये ।“
वह बोला – “पगली” बस कर, रहने दे, तेरे साथ रह कर , मैं भी थोड़ा तो समझने लगा हूँ , कि प्यार क्या होता है । मुझे तुझ से तेरे प्यार की गवाही नहीं लेनी है । यह प्यार नहीं है तो फिर प्यार किसे कहते हैं जिसमें तू यह सोच रही है कि मेरी जिंदगी न बर्बाद हो ।“
“हाय , चेतन , तुम भी न , कितने लो लेवल के लोगों की तरह सोचने लगे हो, बिल्कुल हम लोगों की तरह, “ वो खिलखिला कर हंस पड़ी ।
चेतन जैसे कहीं खो गया , तो क्या यह , “हंसी” होती है , ऐसी “हंसी” तो आज तक उसने रश्मि के चेहरे पर कभी देखी ही नहीं थीं ।
रश्मि भी जैसे अपने होश में नहीं थी , चेतन उन राहों पर चल नहीं पा रहा था , तो रश्मि ने उसका हाथ पकड़ लिया ।
चेतन अब दस मिनट में घर पहुँच जाओगे । नहीं तो तुम्हें यह पाँच सौ मीटर चलने में आधा घंटा लगता , वैसे मुझे बस दो मिनट लगते हैं ।
चेतन ने कहा – “रश्मि मेरा हाथ तो नहीं छोड़ोगी । “
वह भावुक हो गई – “चेतन , मेरा हाथ मत पकड़ो ।“
वह हंसा ,“रश्मि,” आज मैंने नहीं, तुमने मेरा हाथ पकड़ा है, रास्ता दिखाने के लिए । “
वे दोनों ऐसे ही बेखबर चल रहे थे कि आस पास ज़ोर से हंसने की आवाज आई ।
अबे देख रश्मि है , अपने लग्घड के साथ, सुना है किसी बड़े आसामी पे हाथ मारा है ।
चेतन को लगा कि उसका खून पी जाये ।
ये कौन है रश्मि ।
वह हंसी – “किस किस का नाम बताऊँ तुम्हें । “
उसने गौर से देखा साले सब के सब फटीचर थे ।
तभी एक ने जुमला उछला – क्यों रे हम मर गए थे क्या , जो बाहर से पकड़ लाई , इस चिड़ियाघर के सफ़ेद पंछी को ।“
अब रश्मि से रहा नहीं गया – “अबे हरामी , मेरे घर मेहमान आया है , इसलिए लिहाज कर रही थी, साले ले चलूँ तेरी अम्मा के पास खींच के, तेरी औकात बताने ।और अभी भी न समझा हो तो बोल, तेरा केस फिर से खुलवा के ताड़ी पार करा दूँ । “
अबे चुप कर साले , मारा जाएगा तू , इस पागल लड़की के चक्कर में , जानता नहीं, इकलौती ग्रेजुएट है मुहल्ले की , जो सबके लफड़े निपटाती है । तेरी माँ का केस भी इसी ने सुलझाया था , वह भी थाने जा कर आधे घंटे में ।
इस बीच जानबूझ के भीड़ बनाई जाती और रश्मि को रगड़ते हुये दो चार छोकरे निकाल जाते । वह जैसे इन सब बातों से अम्यून थी । चेतन के कुछ समझ में नहीं आ रहा था । वह सोचने लगा क्या वाकई यह वही सभ्य रश्मि है आफिस वाली ।
वह हंसा “गाली अच्छी दे लेती हो ।इतना ही जानती हो कि और भी आती है ।“
वह शरमा गई चेहरा लाल हो गया ।
धत चेतन बाबू आप भी -- -
वह छोटा सा रास्ता था या उस रास्ते पर पूरी बस्ती बसी हुई थी , यह चेतन की समझ में नहीं आ रहा था ।
अजीब सी बेखौफ दुनियां चल रही थी उसके साथ साथ। दोनों तरफ दुकानें सजी थीं , क्या नहीं था यहां, सब्जी, फल, कपड़े, आर्टिफिशियल ज्यूलरी, कोल्ड ड्रिंक , पर्स , मोबाइल ,सिम, खिलौने, दुनियां की जो भी चीज सोच सकते हैं , वह यहां फुटपाथ पर मौजूद थी। और हां जो ब्राण्ड चाहिए वह मिल जाएगा।पेरिस के परफ्यूम से के कर यू एस की ब्रांडेड जीन्स तक वह भी बड़े कम दाम में।
वह फटी आंखों से सब देख रहा था, हद हो गई , चीजे इतनी सस्ती होती हैं वह सोचने लगा।
अजीब सी दुनिया है यह , उसके लिए चीजें मिट्टी के मोल थीं , लेकिन वहां खरीदने वालों के लिए बहुत बार अफोर्ड कर पाने लायक नहीं थी। सब इनकम ग्रुप का खेल था।
रश्मि बोली क्या देख रहे हो चेतन , यहां सब कुछ मिलता और और वह भी डुप्लीकेट।कोल्ड ड्रिंक्स से ले कर कपड़े तक, बस यहां आदमी असली मिलते हैं जो दिल में है वही चेहरे पर ।उसने चेतन का हाथ पकड़ा आओ तुम्हें यहां की मिठाई खिलाऊँ , बोलो खाओगे।
उसे लगा जवाब देंना बेमानी है और उसके पास न कहने का ऑप्शन भी नहीं है। उसने एक ठेले से गुड़ की जलेबी ली और दोनों एक ही दोने में खाने लगे । वह बोली लो टेस्ट करो चेतन।
वह फटाफट दो तीन पीस जलेबी खा गई और चेतन उसका मुंह देख रहा था , अचानक उसे ध्यान आया चेतन ने तो कुछ लिया ही नहीं । वह समझ गई यह नहीं खा पायेगा। उसने उसके मुंह में एक पीस ठूंसते हुए कहा , खा लो कुछ नहीं होगा। यह इंफेक्शन की बीमारी बस मन की बीमारी है और डॉक्टरों के कमाने का जरिया। इस देश के लाखों लोग यह खाते हैं कोई नहीं मरता ।
बारह
उधर जलेबी का एक पीस खाते ही चेतन की आत्मा तक खिल गई। सुनो यह लोग इसमें इतना स्वाद कैसे भर देते हैं , यह तो बड़ी महंगी बिकनी चाहिए।
वह हंसी , यह कोई बड़ी स्वीट शाप वाला नहीं बनाता और न हीं यह ब्रांडेड आईटम है। इसमें स्वाद बनाने वाले के हाथ और बेचने वाले के प्यार में छुपा है। वह देखो पीछे उसकी लुगाई जलेबी बना रही है और उसका मर्द खोमचे पर रख कर इसे बेच रहा है। यह इतनी सस्ती है कि जेब में पड़े छुट्टे भी भर पेट खाने के बाद खत्म नहीं होंगे।
सुनो रश्मि प्लीज एक प्लेट और ला दोगी , वह हंसी यहां आए हो तो जलेबी क्या जो मांगोगे दे दूंगी।
सोच लो , अभी प्रामिज किया है तुम ने।
हाँ सोच लिया बोलो क्या मांगते हो।
“रश्मि तुम शादी कर लो।“
वह फिर शरमा गई , हट पागल हो गए हो क्या?
मुझे गलत मत समझो, मैं यह नहीं कह रहा हूँ, मुझ से शादी कर लो।
ओह इस बार वह सचमुच शरमा गई “हट “ , आदमीं भी कितना गलत सोचता है, वह सोच बैठी थी, शायद चेतन उस से शादी करने को कह रहा है।
वह भागी और एक दोना जलेबी और ले आई। लो चेतन खाओ।
अब ले आई हो तो अपने हाथों से खिला भी दो।
“हट” पागल हो गए हो क्या?
इतना कहने के बाद वह अपने हाथों से चेतन को जलेबी खिलाने लगी । बार बार उंगलियां होठों को छूने लगीं और फिर शबरी के बेर सी जलेबियाँ आधी आधी हो कर कभी इस मुंह में तो कभी उस मुंह में खाई जाने लगीं । अब जलेबी क्या , उस बाजार के पानी पूरी से ले कर वेज बिरियानी तक का लाजवाब स्वाद चेतन के मुंह को लग गया था।
सबसे बढ़ कर आज उसे असली जिंदगी का स्वाद मिल रहा था अपनी जिंदगी में। वह देख रहा था हर बेचने वाले की आंख में ढेरों जिंदगी थी भले चेहरे पर झुर्रियां हों। एक अनजाना सा अपनापन और ढेर सारा प्यार भरा था लोगों में सब जैसे एक दूसरे को जानते थे । वहां सब कुछ चल रहा था, उधार , नगद और पुराना हिसाब । हर चेहरा खिला हुआ। उसे समझ में आया गरीबी और अभाव खुशियां नहीं छीन सकती और रईसी न प्यार खरीद सकती है न खुशियां। उसे न जाने क्यों ऐसा अहसास हुआ जैसे “ पैसे वाले , वास्तव में बहुत गरीब हैं , बस उनकी गरीबी का मानदंड अलग है। और जिन्हें वे गरीब समझते हैं , उनकी रईसी का आलम ये पैसे वाले कभी नहीं समझ पाएंगे। सचमुच इंसानियत और जिंदादिली से जिंदगी जीने की कला में ये लोग बहुत अमीर हैं।
इसी तरह गुजरते और चलते रश्मि का घर आ गया।
घर क्या बस बामुश्किल एक छोटा सा कमरा था , जिसमें एक तखत पड़ी हुई। सामने प्लास्टिक की दो कुर्सियां , लेकिन जैसे ही वह घर में घुसा रश्मि की माता जी के आंसू छलक उठे। बेटी इतने बड़े आदमीं आये हैं तेरे कहने पर। जरा बिस्तर पर बिठा। और जैसे ही वह बिस्तर पर बैठा उस की माता जी एक थाल में पानी ले कर आ गई। इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसकी माता जी ने उसके पैर परात में रख कर धो दिए।
वह जैसे पानी पानी हो गया , नहीं मां जी , यह आप क्या कर रही हैं।
अरे बेटा , तुम पहली बार इस घर में आये हो और तो कुछ है नहीं हमारे पास तुम्हारे लायक , हाँ हमारे यहां अतिथि का स्वागत ऐसे ही करते हैं, सदियों पुरानी परंपरा है बस वही निभा रही हूँ । इतना कहते ही उनकी आंखों से आंसू बह निकले , इतने आंसू कि पूरा पैर उन आंसूओ से एक बार फिर नहा गया।
बेटा मैं तुम्हें कुछ कहने लायक कहां हूँ लेकिन तुम हम लोगों के लिए भगवान से कम नहीं हो।
न जाने कितनी बातें बताती है रश्मि तुम्हारे अच्छे काम और बड़े ऑफिस के बारे में। और हां एक बड़ी बात यह कि जब से रश्मि तुम्हारे यहां काम करने लगी है , इस घर में, ऐसा कोई दिन नहीं हुआ, जब दो वक्त खाना न बना हो , अब तो अडोस पड़ोस को भी हम लोगों पर भरोसा हो गया है कि रश्मि के रहते किसी को भूखा नहीं सोंना पड़ेगा। बेटा भगवान तुम्हें लंबी उम्र दे।
और फिर न जाने कितनी पुरानी अनसुनी बातों का सिलसिला चल पडा।कमाल है , कितनी बातें हैं इनके पास , बड़े लोगों के पास तो लगता है जुबान ही नहीं होती। जैसे उनके एक एक शब्द की कींमत हो, ज्यादा बोलेंगे तो शब्द भी खर्च हो जाएंगे , और हां मां के आंसुओं ने तो जैसे उसे ख़रीद लिया था । मां जी के साथ वह भी रो पड़ा। वह क्यों रोया यह उसे ख़ुद ही पता नहीं चला।
एक बात थी आज उसे लग रहा था , जीवन में सबसे बड़ा सुख रोंने में है।
बस बारबार उसका दिल भरा जा रहा था। उसे लग रहा था वह आज जीवन की कितनी अनमोल अनुभूति से गुजर रहा है। रोने की अनुभूति से गुजरना अपने आप में अनोखी अनुभोती है । पता नहीं उसे रोने से क्या हासिल हो रहा था , लेकिन न जाने क्यों उसे लगा जैसे वह पुनर्जन्म की अनुभूति से हो कर गुजर रहा है ।
तभी मां जी बोली , बेटा तुम्हारे लायक तो कुछ नहीं है हमारे पास लेकिन जो कुछ रूखा सूखा बन पडा, बनाया है, पहली बार आये हो , फिर कभी आना हो न हो , अगर खा कर जाओगे , तो हमें खुशी होगी वैसे भी, हमारे यहां घर आये मेहमान को बिना खाना खिलाये नहीं भेजते हैं।
चेतन ने दाल ,चावल , साग, रोटी, वहीं बेड पर बैठे बैठे खाया। उसे भरोसा ही नहीं हुआ दुनियां में इतना स्वादिष्ट खाना भी बनाता है जो एक छोटी सी झोपडी में मिलता है किसी फाइव स्टार होटल में नहीं।
वह उठ अच्छा चलूँ मां जी अचानक स्वत: उस के हाथ माँ के चरणों में झुक गए। वह जैसे पीछे हटते हुए बोली यह क्या बेटा तुम बहुत बड़े आदमी हो , हमारे अन्नदाता। फिर आशीर्वाद देते हुये बोली , जुग जुग जियो।
उसे लगा , वह सचमुच बहुत छोटा है, बहुत छोटा , इन लोगों के सामने , आदर्श में , मान सम्मान देंने में और जिंदगी जीने के मायने में।
वह चलने लगा तो माँ बोली, बेटा मौका मिले तो आते रहना।
“मां जी अगर आप ऐसे ही खाना खिलाएंगी तो जरूर आऊंगा” चेतन बोला ।
उनकी आंखों से एक बार फिर आंसू छलक गए। बेटा तुम्हे अच्छा लगा तो एक बार क्या हजार बार बनाऊंगी यह तो मेरा सौभाग्य है कि तुम्हें हमारे हाथ का खाना अच्छा लगा।
उसने एक बार फिर हाथ जोड़ दिए।
“एक बात कहूँ माँ जी रश्मि की शादी कर दीजिए” चेतन ने कहा ।
वह कुछ नहीं बोली , बेटा चाहती तो मैं भी हूँ लेकिन इसके लायक यहां कोई लड़का मिलता ही नहीं , कई बार इसे कहा है , खुद देख ले , जो बन पड़ेगा ले दे के किसी तरह तेरे हाथ पीले कर दूंगी। लेकिन यह सुने तब तो।
बेटा तुम्हीं यह जिम्मेदारी उठा लो तो मेरी तबियत हल्की हो जाये , मैं तो बस इसी में घुली जाती हूँ कि मेरे बाद इसका क्या होगा।
तेरह
नहीं मांजी आप चिंता न करें , और हाँ आप कहें तो मैं अपने ऑफिस में किसी से बात करू , इसके लायक एक दो लड़के हैं मेरी नजर में।
न माँ जी को लगा कि चेतन अजनबी है और न चेतन को अहसास हुआ कि वह पहली बार किसी से मिल रहा है, वह भी अपने स्तर के मुकाबले अदने से लोगों से।
बातें बहुत थीं , न जाने कहां तक जातीं और कितनी देर चलतीं कि तभी दरवाजे पर हलचल हुई।
कौन है रे, माँ जी ने पूछा पर भीतर आने वाले ने जवाब देंना जरूरी नहीं समझा , सीधे अंदर आ गया।
तुझे हजार बार कहा है कलुये कि बिना पूछे भीतर मत आया कर लेकिन तू है कि मानता नहीं । माँ गुस्सा हुई , लेकिन कलुये ने खीसें निपोर दीं।
कलुये, तुझे देख के मुझे आग लग जाती है। तू कुछ करता क्यों नहीं और आजकल किसे पकड़ लाया है जो तेरे साथ रह रही है तुझे जरा भी शर्म लाज है कि नहीं । माँ बोली । फिर बोली , अच्छा चल मैं चलती हूँ , नहीं तो मेरा गुस्सा बढ़ जाएगा , सुन बेटी , इसे चाय पिला के भेजना पता नहीं सुबह से इसे कुछ मिला भी कि नहीं।
चेतन सोचने लगा डांट में भी इतना प्यार।
मां चली गई चेतन सोचने लगा यह क्या है।
तभी रश्मि हंसी , क्यों रे आज तुझे पांच दिन बाद यहां आने की फुरसत मिली है। कसम से किसी दिन मैं तेरा खून कर दूंगी , बहुत मन होता है मेरा, तेरी जान लेने का। उसमें क्या देखा रे तूने, जो उसे घर उठा लाया।
उसने जोर का थप्पड़ मारा कलुये को , जिसे देख चेतन सहम गया।
और उसे थप्पड़ मार कर , खुद दहाड़ मार कर रो पड़ी , उसकी सिसकी जैसे थम ही नहीं रही थी।
कलुये ने उसके सिर पर हाथ रक्खा , चुप हो जा अभी मैं मरा नहीं हूँ, न तेरे से दूर हूँ। तू अच्छी तरह जानती है, मैं तेरे लायक नहीं हूँ। मैं उसे न लाता तो तू मेरी उम्मीद में बैठी रहती।
अरे कमीने, यह तू तय करेगा कि, तू मेरे लायक है कि नहीं, अरे तुझे कुछ नहीं करना था घर में पड़ा रहता मेरे पास तुझे जिंदगी भर पैसे कमाने की ताकत है मुझमें ।
तो तू चाहती थी, मैं तेरे पर बोझ बन के रहूँ , कितने दिन, मेरी आत्मा भी मुझे रोज धिक्कारती थी , कलुये क्यों एक पढी लिखी लड़की की जिंदगी बर्बाद करने पे तुला है।
रश्मि बेड पर बैठ कर सिसकने लगी , चेतन मैं इसे बचपन से प्यार करती हूँ। इसने मुझे तब सम्हाला था जब मेरा बाप मरा था।
तब मैं बस दस साल की थी और इसने मुझे पूरे पंद्रह दिन जबरदस्ती कहीं से ला कर खाना खिलाया था। कहता , जैसे भी हो, इसे खा ले , नहीं खायेगी, तो मर जाएगी और यहां तुझे पूछने कोई नहीं आएगा। न मालिक न मालिक का नौकर और न ही मालिक का ड्राइवर , बड़े लोग बहुत मतलबी होते हैं और पत्थर दिल । और अगर तुझे कुछ हो गया, तो बड़ी अम्मा जीते जी मर जाएगी।
क्या उम्र थी इसकी कोई बहुत बड़ा नहीं था, रहा होगा बस बारह तेरह साल का । जानते हो चेतन , जब मैं बेहोश होती तो यह न जाने किस किस तरीके से मुझे होश में लाता। तुम्हारे सभ्य समाज में वे सब तरीके अनैतिक और निषिद्घ हैं लेकिन हमारी दुनियां में वह प्यार है। बहुत सारी अनैतिक ताकतें हमारे समाज में हमें जिंदा रखती हैं। यह जो असहाय और सुबह शाम की रोटी पर जीने वाली कम्युनिटी है, यह हर रोज , शाम को जल कर राख हो जाती , खत्म हो जाती है। कुछ नहीं बचता इसके भीतर और फिर अगली सुबह, यह, अपनी राख से पैदा हो कर , सांस लेने लगती है, जिंदा हो जाती है “फीनिक्स” की तरह।जिस तरह “फीनिक्स” राख से पैदा हो जाता है ठीक उसी तरह हम सब यहां रहने यहाँ जीने वाले लोग हैं ।
“फीनिक्स” के भीतर कौन सा केमिकल है कौन सी संजीवनी है वह तो हम लोगों को नहीं पता, लेकिन हम लोगों को फीनिक्स बना देने वाली शक्ति है “प्यार”, वह प्यार चाहे सभ्य समाज की निगाह में घृणित , वर्जित , वल्गर या रिस्टिकटेड हो ।
हमारी उम्मीद हमें जीने की जिजीविषा देती है । एक माँ जिसमें अपने भूखे बच्चे को खाना खिला पाने की ताकत नहीं है वह जब उसे कंधे पर उठाती है , उसे ले कर काम करने या मजदूरी करने जाती है , तो अनजाने ही उस से कहती है ।“बेटा तू आ गया है ,अब सब ठीक हो जाएगा “ । वह उस से पूछती है “तू बड़ा आदमी बनेगा न ।“ वह उस से बातें करती है और कहती है ,
“ तुम पढ़ लिख कर अफसर बनाना और और अपनी माँ की लाज रखना । “ बेटा , जब तू बड़ा आदमी बन जाएगा , तो तेरे लिए बहुत सुंदर बहू लाऊँगी और तब मैं कोई काम नहीं करूंगी । बस आराम करूंगी । बेटा तू अपनी माँ का सपना पूरा करेगा न ।“
मेरी माँ भी , ऐसी ही माँ है , जो बिना किसी साधन के सपनों के साथ जिंदा रही । जिसने न जाने कैसे , मुझे सरकारी स्कूल में पढ़ाया । और सच कहूँ , तुम लोग कभी नहीं समझ पाओगे कि, सरकारी स्कूल में, किस तरह पढ़ाई होती है । वहाँ टीचर भी पढ़ाते कम और सपने अधिक दिखाते हैं । जहां न बोर्ड है न किताबे और न ही कागज पेन वहाँ के टीचर को जब कोई स्टूडेंट मिल जाता है , जो नेचुरल प्रतिभा का धनी होता है तो , टीचर की आँखें चमक जाती हैं , वह कोयले को हीरा बनाने में अपनी जान लगा देता है । उसे भरोसा होता है कि यह मेरा नाम रोशन करेगा ।
यह दो चार लोगों की कहानी नहीं है , यह इस देश की हकीकत है । और तभी किसी सरकारी स्कूल से बोर्ड का टापर पैदा होता है । किसी लैंप पोस्ट के नीचे किसी पार्क में पेड़ की छांव में पढ़ कर कोई आई ए एस, पी सी एस बनता है । वह जो लाखों में एक किसी गरीब का बच्चा टापर होता है , वह जो करोडो के बीच कई सालों में पैदा हुआ एक अफसर होता है वह मिसाल होता है व्यवस्था के लिए । वह उम्मीद पैदा करता है ऐसे ही “फीनिक्स” के भीतर , उन्हें हर हाल में जिंदा रहने और कुछ कर गुजरने की ताकत देता है ।
सारी सुविधाएं रख कर यदि लोग डाक्टर , इंजीनियर , अफसर , प्लेयर या सिंगर बनते तो दुनियाँ के सारे टेलेंट पर बड़े लोगों का कब्जा होता । हम भगवान पर इसीलिए भरोसा करते हैं कि वह बेईमानी नहीं करता । न तो जन्म में न मृत्यु में और न ही टेलेन्ट बांटने में ।
हमारे भीतर , जीने के कोई साधना और तंतु विद्यमान नहीं होते हैं , लेकिन ये जो कलुये जैसे लोग, यह जो रश्मि है , यह जो मां है सब मुसीबत में एक दूसरे का हाथ थाम लेते हैं । हम सभी जानते हैं कि हम जिंदगी की भट्टी में जल कर राख हो रहे हैं लेकिन हमें यह विश्वास हमेशा बना रहता है कि हमारी राख भी बची तो वह सुबह “फीनिक्स” की तरह फिर से जी उठेगी।
यह जो पूरी बस्ती देख रहे हो यह ऐसे ही “फीनिक्स” से भरी हुई है। इतना कह कर वह बोली -
सुन कलुये , अब तू जा उसे बहुत प्यार देना जिसे मन से घर में उठा लाया है।
इतना सुनते ही कलुआ बोला “सुन बात यहीं की यहीं रही , न मेरा प्यार तेरे लिए कम होगा और न तू मुझे भूलेगी मेरी बात मान अगर सचमुच तूने मुझे प्यार किया है, तो कोई ढंग का लड़का देख कर शादी कर ले। इतना कहते हुए उसने भी गंदे हाथों से अपनी आँख पोछी ।
“कलुये तू जा, और कोई कहता , तो कभी शादी न करती , तू कहता तो भी नहीं, लेकिन तूने मुझे अपने प्यार का वास्ता दिया है तो उसे निभाना ही पड़ेगा। “ इतना कह कर रश्मि फफक कर रो पड़ी ।
कलुआ चुपचाप निकल गया । किसी के पास इस मोड पर कहने के लिए कुछ नहीं था । “ मुझ से तू पूछने आया है वफा के माने , ये तेरी सादादिली मार न डाले मुझ को । “ मैं तेरा ख्वाब हूँ , तू हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को ।“ रश्मि ने आँसू पोछे वह मजबूत हो चुकी थी । बिलकुल पत्थर दिल मजबूत ।
चौदह
चेतन सब कुछ देख रहा था, शायद उसे प्यार की गहराई का अहसास हुआ था। वह समझ गया था कि क्यों रश्मि कहती है कि वह उसे प्यार नहीं कर पायेगी। प्यार करना किसी के हाथ की बात है क्या , कि जिसे चाहे प्यार कर ले , जिसे चाहे न करे।
और इसके बाद चेतन के कहने से , उसी के ऑफिस के एक कर्मचारी अभिराम से रश्मि की शादी हो गई थी।
“सुनो अभिराम वह तुम्हारी वाइफ थी तो मेरी सेक्रेटरी भी।तुम जानते हो मैं वहां नहीं आ पाऊंगा,लेकिन उस देवी की चिता पर एक लकड़ी देने का हक मेरा भी बनता ।“ चेतन ने कहा ।
सर मैं आपकी फीलिंग्स समझ सकता हूँ।
तुम नहीं जानते अभिराम उसने मुझे जिंदगी जीना सिखाया था।
जी सर,
अच्छा सुनो एक काम करना,
वहां से मोबाइल पर तुम लाइव लकड़ी रखना और मैं यहां आफिस में लाइटर से एक धूपबत्ती जला दूंगा यह पूरी धूप बत्ती तुम ले जाओ , यह तुम उसकी चिता पर रख देंना। जब रिमोट से उद्धघाटन हो सकते हैं , वर्चुअल प्लेटफार्म पर क्लास हो सकती है , भाषण हो सकते हैं तो वर्चुअल श्रद्धांजलि क्यों नहीं हो सकती।
और अभिराम ने एक अच्छे कारपोरेट सेवक की तरह बड़ी ही सफाई से अपने गमछे में मोबाइल को दबा कर साहब के हुक्म का पालन कर दिया था।
उसने सर झटका , देखते देखते शाम हो गई थी , घर जाना था ।
घर क्या , बड़े लोगों के घर आफिस सब एक से होते हैं ।
घर पहुँचते ही सेठानी बोली
“क्या हुआ बहुत उदास हो,”
“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं।“चेतन ने कहा ।
तुम्हें तो आज खुश होंना चाहिए कंपनी के इस क्वाटर का प्रॉफिट बीस परसेंट बढ़ा है। सेठानी ने कहा ।
ओह हां सो तो है , तुम पार्टी दे रही हो कल इसके लिए।
हा हा कल नहीं आज , तुम्हें हो क्या गया है तुम इन्वोटेशन की डेट भी ठीक से नहीं देखते । इतने लापरवाह तो तुम कभी नहीं थे।
और वो तुम्हारी फेवरेट सेक्रेटरी थी रश्मि , उसने तुम्हें याद नहीं दिलाया।
वैसे है कहाँ रश्मि कई दिनों से दिख नहीं रही है। सेठानी ने कटाक्ष किया ।
“थी मतलब “चेतन चौंका
मेरा मतलब रश्मि ने याद नहीं दिलाया , सेठानी ने कहा
“वो नहीं रही” चेतन ने भारी मन से कहा ।
“ओह माई गा ओड, सो सैड बहुत अच्छी लड़की थी, मे हर सोल रेस्ट इन पीस।“ सेठानी बोली ।
“कोई बात नहीं उसकी फैमिली को कंपनसेशन भेज दिया कि नहीं।“
हुँह , चेतन
“ वैसे हुआ क्या था उसे , बाई द वे तुम क्रिमिनेशन में क्यों नहीं गए ।“ सेठानी ने पूछा । “ एनी वे वो फूल भिजवा दिए थे कंपनी रूल्स के अनुसार।
हैव सम कर्टसी तुम्हारे बहुत क्लोज थी।“
“यू आर टेकिंग इन अदर वे, शी वाज सिम्पली माई पी एस , ऐंड नाउ शी इस नो मोर।“ कुछ तो ह्यूमेनिटी रक्खो ।
दैट्स आई नो। सेठानी बोली
“वैसे यह पार्टी तुम्हें आज नहीं रखनी चाहिए थी, यू नो शी वाज आवर इम्प्लाई।“चेतन ने कहा ।
“नोनो, नाट वर, शी वाज योर इम्प्लाई। “सेठानी ने फिर से टांट किया ।
“वैसे पार्टी तो हमने पहले ही डिसाइड कर दी थी हमें क्या पता था कि उसे आज ही ----“
“प्लीज कीप क्वायट “,चेतन बोला ।
“ओह सो सारी, सेंटीमेंट्स हर्ट हो रहे हैं, चीप गर्ल्स अपने साथ मालिक को भी सेंटीमेंट्स में जीना सीखा देती हैं दैट्स द बिगेस्ट प्राब्लम, वो अपनी लाइफ तो खराब करती ही हैं, कंपनी को भी नुकसान पहुंचाती हैं। रिलैक्स मैं ब्लैक कॉफी भेजती हूँ तुम फ्रेश हो कर रेडी हो जाओ मैं पार्टी की तैयारी देखती हूँ। सेठानी ने कहा ।
तभी बेल बजी मैडम डाक्टर अमरेश आए हैं सरवेंट बोला ।
“ओके सेंड हिम” सेठानी ने कहा ।
“कम आन अमरेश यू हैव डन अ वंडरफुल जॉब। सोमेश कैसा है।“
“ही इज आल राइट आज रिलीव हो कर आ जायेगा।“अमरेश बोले
और मैडम ये सोमेश का बिल है ,
ओह आई सी , बस एक करोड़ , कुछ भी नहीं सोमेश को बचाने के लिए।
चेतन ने उसे घूर कर देखा , यही फैमिली डाक्टर है सुबह उस से उसकी सेक्रेटरी को मारने के लिए पचास लाख ले कर गया था और शाम को एक सर्वेंट को बचाने के बदले एक करोड़ ले रहा है।कमींना डाक्टर एक करोड़ का चेक व्हाइट मनी में उस के सामने ले कर गया इस बार उस का मन हुआ सच में अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से उसके सीनें में गोली उतार दें लेकिन वह जानता था जो वह चाहता है कर नहीं सकता।
रश्मि का जाना , आज ही पार्टी होना सोमेश का उसी हास्पिटल में भर्ती होना सभी घटनाएं साथ हो रही हैं , क्या यह एक संजोग मात्र है और संयोग के एक एक घटना की मैडम को पूरी जानकारी है।
उसे रश्मि की बात याद आई , “तुम्हारे एक एक टूर का ब्ल्यू प्रिंट है सेठानी जी के पास और हां जिस दिन तुम खानदान के वारिस को चुनौती दोगे तुम नहीं बचोगे।“
उसका सिर घूम गया, आखिर सोमेश को क्या हुआ था जो बिल एक करोड़ आया , क्या सचमुच यह सब एक संजोग था कि कहीं कुछ ---- कहीं एक करोड़ की डील तो नहीं थी किसी काम के लिए ... इस सब के बीच उसे पार्टी में जाना था । वह समझ ही नहीं पा रहा था कि यह पार्टी किसकी खुशी के लिए है । जिंदगी भी अजीब होती है .......
दिल तो रोता रहे और आँख से आंसू न बहें , इश्क की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया । वह पार्टी में पहुंचा , एवरी थिंग वाज नाइसली अरेंज्ड इन द पार्टी।सब कुछ बहुत लाजवाब था लाइट साउंड ड्रिंक्स फ़ूड स्टार्टर बिल्कुल कारपोरेट कल्चर की तरह कहीं भी उसमें देसी ढाबे की बदबू या गंध नहीं थी। आज इनवाईटी भी सब के सब एलीट क्लास के थे।
तीन रो बनी थी वी आई पी गेस्ट , घर के लोग और सब से पीछे आफिस स्टाफ। साफ झलक रहा था कि मालिक और मजदूर में क्या गैप होता है।
तभी माइक चेतन के पास आया, सर आप कुछ बोलिये इस क्वाटर की उपलब्धि पर।
अजीब सी हिप्पोक्रेसी है इस समाज में , आज ही उसकी कंपनी का एक इम्प्लाई गुजरा है सब उसके क्रिमनेशन से लौटे हैं और अब यहां जश्न मना रहे हैं।
यह उसकी समझ से बाहर था कि उसके हार की खुशी सेलिब्रेट की जा रही है या कंपनी के प्रॉफिट की ।
उस ने माइक लिया , हम लोगों ने सचमुच एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है लेकिन इस उपलब्धि के दबाव को पूरा करने में आज ही हमने अपना एक कर्मठ इम्प्लाई खो दिया है।
सब से पहले हम उसकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखेंगे।
पंद्रह
दो मिनट के मौन के बाद जैसे ही आंख खुली वह बोला इस बार मैन फैसला किया है हम अपने प्रॉफिट का दो परसेंट सी एस आर बजट रखेंगे। सी एस आर अर्थात सामाजिक जिम्मेदारी और इसकी शुरुवात हम रश्मि के कस्बे से करेंगे , बोर्ड ऑफ डायरेक्टर और आप लोगों का क्या कहना है।
सब जानते हैं कि प्रेजिडेंट कुछ बोले तो क्या कहना है सभी ने जोरदार तालियों से उसका स्वागत किया।
हम उस कस्बे को गोद लेंगे और धीरे धीरे कर उसे एक माडर्न कस्बा बना देंगे जहां स्कूल कालेज और रहने की सारी सुविधाएं होंगी।
उसकी इस बात पर देर तक तालियां बजती रहीं , सेठानी ने भी चेतन का साथ दिया। प्रेस रिलीज जारी हो गई चेतन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीइज की वाह वाही की खबरे सोशल मीडिया पर चल रहीं थीं । हाँ सेठानी ने इस प्रोजेक्ट का नाम रक्खा फीनिक्स सी एस आर एक्टिविटीज।
उन्होंने धीरे से चेतन के कान में कहा, हमरा दिल इतना भी छोटा नहीं है कि तुम्हारी भावनाओं को न समझ सके , तुम इमोशनली किसी के साथ जीते रहो मुझे फर्क नहीं पड़ता हाँ इस साम्राज्य को चलाने के कुछ कम्पलशन हैं जो पूरे करने पड़ते हैं , दो परसेंट और 100 परसेंट में बहुत फर्क है , बिजनेस का गणित यह कहता है कि यह दो परसेंट एडवर्टाइजिंग बजट के मुकाबले बहुत कम है और इससे कंपनी की ब्रांड इमेज को जो फायदा पहुंचेगा वह बहुत ज्यादा है।
चेतन एक बार फिर , कुछ समझ नहीं पा रहा था क्यों उसके नौकर की बीमारी का बिल एक करोड़ आया, क्यों वह उसी दिन रिलीज हुआ जिस दिन रश्मि उसी अस्पताल से क्रिमिनेशन के लिए ले जाई गई और यह फीनिक्स शब्द कैसे उसकी वाइफ को मिला सी एस आर प्रोजेक्ट का नाम रखने के लिये , तो क्या एक बिजनेस मैंन की लाइफ के एक एक पल का ब्लू प्रिंट दौलत का गुलाम है।
फीनिक्स कभी मरता नहीं बार बार राख से पैदा हो जाता है यही तो कहा था रश्मि ने उससे अपने घर आने पर। और यह जो दौलत के ढेर पर खड़ी हुई जिंदगी है इसके पास जीने की आजादी कहां है वह तो बस पीढी दर पीढ़ी दौलत की कस्टोडियन है, उसकी गुलाम।
अचानक उसके मुंह से निकला “छी बड़े लोग।“ तो क्या आज वह दिल से जीना सीख गया था , अपने वैल्यू सिस्टम से बाहर निकल कर जिंदगी में पैदा हुये रिवोल्यूशन के साथ।
फिर वह बोला फीनिक्स इज द यूनिवर्सल ट्रुथ फार सर्वाइवल आफ मैंन काइंड। मेक इट थीम फार आवर सी एस आर प्रोजेक्ट।
देर तक हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा सेठानी जी ने चेतन के कंधे पर सिर रक्खा हुआ था, फोटोग्राफर फोटो खींच रहे थे , अभी दिल के भीतर की फोटो लेने वाला कैमरा नहीं बना है , चेतन के कंधे पर कोई था और चेतन इमोशनली किसी और कंधे पर टिका था अपनी बची हुई जिंदगी जीने के लिए। वह अपनी मौत के बाद भी जिंदा थी , “फीनिक्स” की तरह जो राख़ से भी पैदा हो जाता है । चेतन को भरोसा था कि जो कुछ उस ने देखा है , जिस चिता को उसने जलाया है सुबह होते होते उस राख़ से वह फिर पैदा हो कर उसके आफिस में आ जाएगी काम करने । यही तो उसने कहा था , हाँ यही तो उसने कहा था, कि हम सब यहा जीने वाले इस बस्ती में रहने वाले “फीनिक्स” हैं । हमें पता है कि यदि हमारी राख़ भी बची तो सुबह तक हम उसमें से उठ खड़े होंगे ।
उसे अहसास था कि राख़ भी किसी को जिंदगी दे सकती है । किसी और को भले न सही , उसे तो वह प्रेम का अहसास करा गई थी , वही प्रेम जिस प्रेम के अहसास को पा कर वह अर्थहीन संस्कार से बाहर निकाल कर जी उठा था ।उसे भरोसा था वह आएगी , अपनी राख़ से निकाल कर , जरूर आएगी , वह झूठ कैसे कह सकती है , वह फीनिक्स है । उसे अपने प्यार पर भरोसा था और प्यार तर्क नहीं देखता ।
अगली सुबह चेतन को उस राख़ में कुछ ढूंढेते देखा गया । और जब महापात्र ने पूछा बाबू यहाँ क्या ढूंढ रहे हो ,कोई अपना है क्या जिस की राख़ लेने आए हो ।
वह बोला “मैं यहाँ राख़ लेने नहीं, जिंदगी लेने आया हूँ ।“
महापात्र बोला – बाबू पागल हो क्या , यहाँ जिंदगी नहीं मिलती । यह तो मौत के बाद मोक्ष का द्वार है ।
चेतन हंसा – “जिंदगी यहाँ नहीं मिलती तो कहाँ मिलती है , यदि तुम मोक्ष पर भरोसा करते हो और कहते हो मोक्ष का द्वार यहाँ से खुलता है , तो फिर जिंदगी यहाँ नहीं तो कहाँ मिलेगी । तुम कहते तो हो पर अपनी ही बात पर भरोसा नहीं करते । मैं यहाँ जिंदगी लेने आया था और यहाँ से जिंदगी ले कर जा रहा हूँ ।“
महापात्र भीतर तक हिल गया । “ तुम्हें डर नहीं लगा “ वह बोला ।
डर डर किस चिड़िया का नाम है । यहाँ आ कर तो व्यक्ति भय मुक्त होता है ।चेतन ने कहा ।
महापात्र को अपने जीवन में ऐसा पहला आदमी मिला था जो उससे इस तरह बात कर रहा था । जो उससे डर नहीं रहा था , जो भस्म होंने को जिंदगी की तरह देख रहा था ।
क्या सोच रहें हैं महाराज ।
कुछ नहीं बस यही कि आप भले घर के बड़े आदमी लगते हैं , जो ढूंढ रहे हैं ढूंढ लीजिये मैं चल रहा हूँ सुबह से ही यहाँ काम शुरू हो जाता है ।
हाँ आप यहाँ आए हैं तो दक्षिणा दे जाईए नहीं तो पूरे दिन बेचैनी रहेगी ।
चेतन ने जेब से एक अँगूठी निकाली ।
महापात्र की आँखें चमक उठीं, यह तो बहुत कींमती मालूम होती है ।
आपकी निगाह में हीरे की है , अब मेरी निगाह में दौलत का अर्थ नहीं रह गया है ।
महाराज, सुना है आपको जो दान दो वह ऊपर तक पहुँच जाता है । चेतन ने कहा ।
इसे ग्रहण करिये और फीनिक्स को पहना दीजिएगा , मैं जीते जी उसे नहीं पहना पाया ।
वैसे उसने कहा था वह राख़ से पैदा हो जायेगी सो बड़ी उम्मीद और भरोसे के साथ यहाँ आया हूँ , कि वह जरूर पैदा होगी ।
महापात्र हंसा – यह प्रेम न हो तो उसका कारोबार कैसे चलेगा ।
आप बेफिक्र रहें आपका दान उचित पात्र तक पहुँच जाएगा ।
इतने बड़े उपहार ने सुबह सुबह महापात्र को कमर तक यजमान के आगे झुका दिया था ।
चेतन अभी भी पेड़ो के झुरमुठ , तो कभी पानी में , परछाई देख रहा था , उसे भरोसा था “फीनिक्स” मरता नहीं है । राख़ से जी उठता है । हाँ जितना ही वह आस पास देखता उतना ही उसके भीतर जीवन का संचार होता चला जाता ।
करीब दो तीन घंटे वहाँ बिताने के बाद अचानक उसे अहसास हुआ की वह उसके भीतर जी उठी है । “फीनिक्स” ने जैसे अपनी राख़ से सांस ली और वह उसके भीतर जी उठी ।
उसे लगा उसकी ऊर्जा उस की जिंदगी एक से दो हो गई है , वह भौतिक स्तर पर भले ही एक दिख रहा हो अपने भीतर अनेक हो उठा है । उसके भीतर ढेर सारे पंछी जी उठे हैं ।
वह भारहीन सा उड़ता चला जा रहा है । बस उड़ता चला जा रहा है सभी बंधनों से मुक्त हो कर ।
- शिखर प्रयाग
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