जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे
चाहे किशोर प्रेम का अल्हड़पन हो, दिल टूटने का दर्द हो, प्रेमिका से इज़हारे मोहब्बत हो या सिर्फ़ उसके हुस्न की तारीफ़... मोहम्मद रफ़ी का कोई सानी नहीं था. मोहब्बत ही नहीं, इंसानी जज्बात के जितने भी पहलू हो सकते हैं... दुख, ख़ुशी, आस्था या देशभक्ति या फिर गायकी का कोई भी रूप हो भजन, क़व्वाली, लोकगीत, शास्त्रीय संगीत या ग़ज़ल, मोहम्मद रफ़ी ने गायकी में सभी भावनाओं को बखूबी निभाया. ये सच है कि मोहम्मद रफी साहब जैसा फनकार न कभी हुआ और न कभी होगा.
रफी साहब न सिर्फ बहुत अच्छे गायक थे पर बेहद उम्दा इंसान भी थे, इसलिए ये कहना मुश्किल है कि वे इंसान बड़े थे या कलाकार. मोहम्मद रफी ने अपनी ज़िंदगी में करीब 26 हजार गीत गाये और लगभग हर भाषा में. वर्ष 1946 में फिल्म 'अनमोल घड़ी' में 'तेरा खिलौना टूटा' से हिन्दी सिनेमा की दुनिया में कदम रखा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अमृतसर के कोटला सुल्तान में जन्मे मोहम्मद रफी छः भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थे. उन्हें घर में फीको कहा जाता था. गली में किसी फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था.
13 साल की उम्र में पहली शादी
ये बात शायद बहुत कम लोगों को पता है कि13 साल की उम्र में ही रफी की पहली शादी उनके चाचा की बेटी बशीरन बेगम से हुई थी, लेकिन कुछ साल बाद ही उनका तलाक हो गया था. कहते हैं उनका तलाक भी गायकी से उनकी मोहब्बत की वजह से हुआ था. दरअसल जब भारत पाक विभाजन हुआ तो उनकी पहली पत्नी ने भारत में रुकने से मना कर दिया और रफी साहब संगीत से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने भारत नहीं छोड़ा और उनकी पत्नी उन्हें छोड़ गई. उनकी इस शादी के बारे में घर में सभी को मालूम था लेकिन बाहरी लोगों से इसे छिपा कर रखा गया था. घर में इस बात का जिक्र करना भी मना था, क्योंकि रफी की दूसरी बीवी बिलकिस बेगम को ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई इस बारे में बात करे.
20 साल की उम्र में दूसरी शादी
20 साल की उम्र में रफी की दूसरी शादी बिलकिस के साथ हुई, जिनसे उनके तीन बेटे खालिद, हामिद और शाहिद तथा तीन बेटियां परवीन अहमद, नसरीन अहमद और यास्मीन अहमद हुईं. रफी साहब के तीनों बेटों सईद, खालिद और हामिद की मौत हो चुकी है.
जब सुरैया ने अपने घर में एक कमरा दिया रफी साहब को
बिलकिस से दूसरी शादी के बाद रफी और उनकी पत्नी भिंडी बजार के चॉल में शिफ्ट हो गए थे, लेकिन रफी को चॉल में रहना पसंद नहीं था. वो सुबह साढ़े तीन बजे उठकर रियाज करते थे और इसके लिए वे मरीन ड्राइव तक पैदल जाते थे, क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनके रियाज की वजह से आस-पास के लोगों की नींद खराब हो. मरीन ड्राइव पर एक्ट्रेस सुरैया का घर था. जब उन्होंने कई दिनों तक रफी को रियाज करते हुए देखा तो उन्होंने पूछा कि वो यहां क्यों रियाज करते हैं. तब रफी ने अपनी परेशानी बताई. इसके बाद सुरैया ने अपने घर का एक कमरा रफी को रियाज करने के लिए दे दिया था. रफी को जब काम मिलने लगा था तब उन्होंने कोलाबा में फ्लैट खरीद लिया था, जहां वो अपने सात बच्चों के साथ रहते थे.
कभी नहीं पूछा कि उन्हें गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा
मोहम्मद रफी बहुत ही शर्मीले स्वभाव के थे. न किसी से ज्यादा बातचीत और न ही किसी से कोई लेना-देना. न शराब पीते थे न उन्हें सिगरेट-पार्टियों का शौक था, न ही देर रात घर से बाहर रहने की आदत. संकोची तो इतने थे कि
वे कभी भी संगीतकार से ये नहीं पूछते थे कि उन्हें गाने के लिए कितना पैसा मिलेगा. बस वे आकर गीत गा दिया करते थे और कभी कभी तो एक रुपया लेकर गीत गा दिया करते थे.
कई साल विधवा को चोरी से मनी ऑर्डर भेजते रहे
रफी काफी दयालु इंसान थे और उनका दिल भी काफी बड़ा था. उनकी ही कॉलोनी में जब उन्होंने देखा कि एक विधवा बहुत तकलीफ में है, तो उन्होंने किसी फर्जी नाम से पड़ोस की एक विधवा को पैसे भेजना शुरू कर दिया. कई साल तक उस महिला को मनी ऑर्डर मिलता रहा, पर जब मनी ऑर्डर आना बंद हुआ तो महिला पोस्ट ऑफिस गई. वहां पता चला कि मनीऑर्डर भेजने वाले का निधन हो गया और उनका नाम मोहम्मद रफी था.
पब्लिसिटी से रहे हमेशा दूर
रफी साहब को पब्लिसिटी बिल्कुल पसंद नहीं थी. वो जब भी किसी शादी में जाते थे तो ड्राइवर से कहते थे कि यहीं खड़े रहो. रफी सीधे कपल के पास जाकर उन्हें बधाई देते थे और फिर अपनी कार में आ जाते थे. वो जरा देर भी शादी में नहीं रुकते थे.
कभी इंटरव्यू नहीं दिया
रफ़ी बहुत कम बोलने वाले, ज़रूरत से ज़्यादा विनम्र और मीठे इंसान थे. शर्मीले इतने थे कि रफी साहब ने कभी कोई इंटरव्यू नहीं दिया. उनके सभी इंटरव्यू उनके बड़े भाई अब्दुल अमीन हैंडल करते थे. कहते हैं रफी ने अपनी पूरी लाइफ में सिर्फ दो इंटरव्यू दिए थे.
लता मंगेशकर से 6 साल बात नहीं की
रफी साहब को संगीत से मोहब्बत थी और वे इसे कभी पैसों के तराजू में नहीं तौलते थे. इसी पैसों वाले मुद्दे पर रफी साहब और लता मंगेशकर के बीच सालों तक बातचीत बंद रही. दोनों ने कई साल साथ गाना नहीं गाया. वजह थी प्लेबैक सिंगर को रॉयल्टी मिलने की. यह विवाद तब शुरू हुआ जब लताजी ने गीतों की रॉयल्टी में पार्श्वगायकों को भी हिस्सा देने की मांग की. हालांकि इस लड़ाई में मुकेश, मन्ना डे, तलत महमूद और किशोर दा समर्थन में खड़े थे, सिर्फ आशाजी, रफी साहब और कुछ सिंगर्स को यह बात ठीक नहीं लग रही थी. रफी साहब का कहना था कि जब हमने एक बार गाने के पैसे ले लिए तो दोबारा से उस पर पैसे मिलने का मतलब क्या है. लता मंगेशकर चाहती थीं कि रफी उनका साथ दें, पर रफी खिलाफ थे. फिर माया फिल्म के गाने 'तस्वीर तेरी दिल में...'के अंतरे को लेकर दोनों में बहस हो गई.
दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इनकार कर दिया. बाद में संगीतकार जयकिशन ने दोनों में सुलह कराई, फिर एसडी बर्मन म्यूजिकल नाइट में उन्होंने एक साथ स्टेज पर गाया.
बाबुल की दुआएं गाते हुए खुद रो पड़े थे रफी साहब
फिल्म 'नील कमल' के गाने 'बाबुल की दुआएं लेती जा' के लिए रफी साहब को नेशनल अवार्ड मिला था. इस गीत को गाते समय कई बार उनकी आंखें नम हो गई थीं और इसकी वजह ये थी कि इस गीत को रिकॉर्ड करने से एक दिन पहले ही उनकी बेटी की सगाई हुई थी और कुछ दिन में शादी थी, इसलिए वो काफी भावुक थे, फिर भी उन्होंने ये गीत गाया और इस गीत के लिए उन्हें 'नेशनल अवॉर्ड' मिला.
जब मौलवी के कहने पर गाना छोड़ दिया था रफी साहब ने
हिंदी सिनेमा को अनगिनत नगमे देने वाले महान गायक मोहम्मद रफी जब अपने करियर के शिखर पर थे, तो सिर्फ मौलवियों के कहने पर फिल्मों में गाना बंद कर दिया था. दरअसल, रफी हज करने गए थे और मौलवियों का कहना था कि हाजी होने के बाद गाना बजाना बंद कर देना चाहिए. रफी के मन में भी ये बात बैठ गई. हज से लौटकर कई महीने गुजर गए और रफी ने कोई गाना रिकॉर्ड नहीं किया. बाद में नौशाद साहब ने उन्हें बहुत समझाया और रफी के बेटों ने भी गाना शुरू करने की सलाह दी, तब जाकर उनका मन बदला और दोबारा गाना शुरू किया.
जब फांसी से पहले अपराधी ने आखिरी इच्छा के तौर पर रफी का गाना सुनने की बात की
वैसे तो रफी साहब के प्रति लोगों में दीवानगी के कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन ये किस्सा नौशाद साहब ने खुद सुनाया था. हुआ यूं कि एक बार एक अपराधी को फांसी दी जी रही थी. उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने न तो अपने परिवार से मिलने की इच्छा जताई और न ही किसी ख़ास खाने की फ़रमाइश की. उसने कहा कि वो मरने से पहले रफ़ी का 'बैजू बावरा' फ़िल्म का गाना 'ऐ दुनिया के रखवाले' सुनना चाहता है. इस पर एक टेप रिकॉर्डर लाया गया और उसके लिए वह गाना बजाया गया. वैसे बता दें कि
इस गाने के लिए मोहम्मद रफ़ी ने 15 दिनों तक रियाज़ किया था और रिकॉर्डिंग के बाद उनकी आवाज़ इस हद तक टूट गई थी कि कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि रफ़ी शायद कभी अपनी आवाज़ वापस नहीं पा सकेंगे.
...और दुनिया से मौसिकी का पयंबर चला गया...
मोहम्मद रफी का निधन 31 जुलाई 1980 को हार्ट अटैक आने से हुआ था. मृत्यु से बस कुछ घंटे पहले ही रफी एक गाने की रिकॉर्डिंग करके आए थे. यह गाना था फिल्म 'आस-पास' का 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आसपास है दोस्त'. मोहम्मद रफी का निधन रमजान के महीने में हुआ था. जिस दिन उनकी अंतिम विदाई थी, उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी. फिर भी अंतिम यात्रा में कम से कम 10000 लोग सड़कों पर थे और सबने नम आंखों से अपने इस पसंदीदा गायक को बिदाई दी. रफी साहब के निधन पर भारत सरकार द्वारा दो दिन का राष्ट्रीय शोक भी रखा गया था.
उनके निधन के बाद संगीतकार नौशाद ने कहा था- कहता है कोई दिल गया
दिलबर चला गया
साहिल पुकारता है
समंदर चला गया
लेकिन जो बात सच है
वो कहता नहीं कोई
दुनिया से मौसिकी का
पयंबर चला गया
प्रतिभा तिवारी