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कहानी- बंधन और मुक्ति 2 (Story Series- Bandhan Aur Mukti 2)

"जब आप लोगों से बिछड़ने का समय आया और बुआ ने मेरे सामने ये प्रस्ताव रखा, तो मैं भी आपकी तरह अवाक रह गया. उनकी मनुहार से दिल टटोला, तो पाया कि शायद उनकी अनुभवी आंखों ने मेरी कोरी आंखों में वो पढ़ लिया है, जिससे मैं ख़ुद अनजान था. इस सवा साल में जाने कब और कैसे आपकी और बंटी की एक मुस्कान मेरे लिए ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशी बन गई और दर्द सबसे बड़ी टीस." तीसरे दिन जब सुकेश ने हां कर दी, तो रात में मां ने सुहासिनी का नाराज़ हाथ फिर कोमलता से हाथों में लिया, “शाश्वत दो साल का था, जब तेरे ससुर शहीद हुए. तब मैंने भी अपनी ज़िंदगी उनके सपनो के नाम कर दी थी, पर यादों के सहारे ज़िंदगी काटना बहुत मुश्किल है. इंसान को एक तन्हाई का साथी, एक सुख-दुख का सहारा चाहिए ही होता है, जो सबके नसीब में नहीं होता.  दिल की भीतरी तहों की एक बात जो ख़ुद से भी कहने में सकुचाई हूं, तुझे बताऊं? कुछ सालों बाद ये एकाकीपन बुरी तरह खलने लगा था. क्या पता कुछ साल बाद तुझे भी... पर जो प्यार तुझे आज मिल रहा है, वो पता नहीं कल मिले न मिले. सबके नसीब में होता भी नहीं. तू किस्मतवाली है.” पर सुहासिनी न मानी. शाश्वत से कोई दो दिन की प्रीत तो थी नहीं. पड़ोसी परिवारों का अपरिमित स्नेह कब प्यार बनकर उनके नन्हें दिलों में स्थानांतरित हो गया, पता ही नहीं चला था. शाश्वत का प्यार कोई भूलनेवाली चीज़ थी क्या? छोटी थी, जब अटैक के कारण अस्पताल में उसे एडमिट कराना पड़ता. मां उसके साथ अस्पताल में रहतीं, तो खाना शाश्वत की मां बनाकर ले आतीं. साथ में शाश्वत भी आता. “आप इसे लेकर न आया करिए, अस्पताल में इतने इंफेक्शन होते हैं.बच्चे जितना दूर रह सकें...” मां के कहने पर वो मुस्कुराती, “लाना तो मैं भी नहीं चाहती, पर क्या करूं, जब तक सुहासिनी की भली-चंगी सूरत न देख ले, खाना नहीं खाता ये.” स्कूल में गायकी की प्रतियोगिता के एनाउंसमेंट के समय चेहरा उतर जाता उसका. जानती थी चाहकर भी वो इसमें शामिल नहीं हो सकती. मंच पर होनेवाली नर्वसनेस अटैक बन जाती थी, पर शाश्वत तो जैसे हर समय उसका चेहरा ही पढ़ता रहता था. शाश्वत ने ही उसका नाम लिखा दिया था प्रतियोगिता में. उसे हौसला देने से लेकर दोस्तों और अध्यापिकाओं के साथ मिलकर मंच पर ऐसा माहौल बनाने तक कि उसे नर्वसनेस न हो, सारा काम उसी ने किया था. ट्रॉफी लेकर छलछलाई आंखों से बोली थी, “ये तुमने कैसे किया शाश्वत? सच में मुझे एक पल के लिए भी लगा ही नहीं कि मैं मंच पर अकेली हूं.” मुस्कुरा उठा था वो. “लगता कैसे? तुम अकेली थीं हीं नहीं. मेरा प्यार तुम्हारी रूह में बस चुका है. हमेशा तुम्हारे साथ रहता है और रहेगा. तुम जीवन में कभी कहीं अकेली नहीं हो सकतीं." यह भी पढ़े: स्त्रियों की 10 बातें, जिन्हें पुरुष कभी समझ नहीं पाते (10 Things Men Don’t Understand About Women) पर बंटी एक दिन भी अकेलापन बर्दाश्त न कर पाया. सुकेश के जाने के बाद रो-रोकर घर सिर पर उठा लिया. बुखार में तपते बंटी को डॉक्टर ने किसी क़रीबी के दूर जाने से हुड़क गया बताया था. ख़बर सुनते ही सुकेश आ गए थे. गोद में लेकर टहलाना शुरू किया, तो निश्चिंत होकर सो गया था. एक घंटे में ही बुखार उतर गया था. बात करने के लिए अकेला छोड़े जाने पर सुकेश ने बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात रख दी, “जब आपके घर आया, तो मन में बिल्कुल आपकी तरह ये भाव था कि देश के लिए बलिदान होनेवाले अपने भाई की आख़िरी निशानी, उसके नाम को बचा लूं. उसके परिवार के लिए कुछ करके अपना कर्तव्य निभा दूं. जब आप लोगों से बिछड़ने का समय आया और बुआ ने मेरे सामने ये प्रस्ताव रखा, तो मैं भी आपकी तरह अवाक रह गया. उनकी मनुहार से दिल टटोला, तो पाया कि शायद उनकी अनुभवी आंखों ने मेरी कोरी आंखों में वो पढ़ लिया है, जिससे मैं ख़ुद अनजान था. इस सवा साल में जाने कब और कैसे आपकी और बंटी की एक मुस्कान मेरे लिए ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशी बन गई और दर्द सबसे बड़ी टीस. पता ही नहीं चला. यही तो प्यार है.” bhavana prakash भावना प्रकाश अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES Best Kahaniya

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