आज जब देश को उसकी ज़रूरत है, तो क्यों न वह अपने अकेलेपन और खालीपन की निराशा से मुक्ति पाकर एक योद्धा की तरह अपनी कर्मभूमि में वापस लौट आए. डॉक्टर प्रताप हॉस्पिटल में पहुंच गए थे. उसने उनके समक्ष अपना मंतव्य स्पष्ट किया. उसके फ़ैसले से वह बेहद प्रसन्न हुए.
यकायक ही उसकी नींद टूट गई और वह चौंककर उठ बैठा. सारा शरीर पसीने से तरबतर था. उफ़, कितना भयानक सपना देखा था. दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में वह अकेला उद्देश्यहीन-सा भटक रहा है, तभी कुछ लोग आकर उसे पकड़ने की चेष्टा कर रहे हैं. जबरन घसीटकर अपने साथ ले जाना चाहते हैं. वह हाथ-पैर पटक रहा है. मदद के लिए चिल्लाना चाहता है, किंतु आवाज़ गले से नहीं निकल रही. इसी बेचैनी में उसकी नींद टूट गई.
वह पलंग से उठ बैठा. प्यास से गला सूख रहा था. उसने पास रखा पानी का ग्लास उठाया और एक ही सांस में ग्लास खाली कर दिया. पानी पीकर कुछ राहत-सी महसूस हुई. इतना तो वह भी समझ गया था कि यह दु़ःस्वप्न उसे अकेलेपन की घबराहट के कारण आया है. तीन माह होने को आए, बहन रितु और जीजाजी को अपनी बेटी के पास मुंबई गए हुए. सोचा था. एक-डेढ़ माह पश्चात वे दोनों लौट आएंगे, इसलिए भांजी के इसरार के बावजूद वह मुंबई नहीं गया. अब क्या पता था कि कोरोना वायरस इतनी तेज़ी से पूरे देश में फैल जाएगा कि लॉकडाउन के कारण बहन वापस नहीं आ पाएगी और दोस्तों का आना-जाना भी छूट जाएगा.
सुबह के आठ बज रहे थे. एक गहरी निःश्वास लेकर वह किचन की ओर बढ़ गया. इतना तो वह भी समझ रहा था कि अकेलापन और खालीपन उसे निराशा की गर्त में पहुंचा रहे हैं. चाय का कप हाथ में लेकर वह बालकनी में आ बैठा. तभी उसका मोबाइल बज उठा. "हेलो." दूसरी ओर से उसके पड़ोसी देवेशजी की आवाज़ आई, "डॉक्टर रजत, क्या इस समय आप घर पर आ सकते हैं? मेरी पत्नी सुधा बैठे-बैठे बेहोश हो गई है."
चाय का कप छोड़ उसने दस्ताने पहने, मास्क लगाया और घर को बंदकर देवेशजी के घर की ओर भागा. "इन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा. शुगर और बीपी बहुत लो है." वह और देवेशजी सुधाजी को लेकर हॉस्पिटल पहुंच गए.
हॉस्पिटल में उस समय बस एक जूनियर डॉक्टर था. "क्या बात है कोई सीनियर डॉक्टर नहीं है क्या? कोई इमरजेंसी केस आ जाए तो…"
"सर क्या करें, आजकल कोरोना के चलते डॉक्टर्स की बहुत कमी है. इसी हॉस्पिटल के 3 डॉक्टर क्वारंटाइन में चले गए हैं. बाकी भी रात-दिन पेशेंट की सेवा में लगे हुए हैं. यहां के फिजीशियन डॉ. प्रताप कल तीन दिन बाद घर गए हैं. वैसे मैंने उन्हें फोन कर दिया है. सर, आपने क्या रिटायरमेंट ले लिया है?" वह ख़ामोश रहा.
सुधाजी का पल्स रेट डाउन हो रहा था. उसने तुरंत उन्हें आईसीयू में एडमिट करवाया और उनका ट्रीटमेंट शुरू कर दिया. वह भी तो कभी इतना ही व्यस्त हुआ करता था. शहर का जाना-माना फिजीशियन, जिसकी हर कोई इज्ज़त करता था. इसी व्यस्तता के चलते उसने शादी नहीं की. मरीज़ों की सेवा को ही वह अपने जीवन का उद्देश्य मानता था, किंतु पिछले वर्ष एंजाइना के उठे एक अटैक ने उसके जीवन के उद्देश्य को भुला दिया. दूसरों को बड़ी-बड़ी पीड़ाओं से मुक्ति दिलानेवाला इंसान अपनी एक छोटी-सी पीड़ा ना सह सका और घबराकर जॉब से रिटायरमेंट ले लिया. जूनियर डॉक्टर की कही एक-एक बात उसके ह्रदय को झिंझोड़ रही थी.
आज जब देश को उसकी ज़रूरत है, तो क्यों न वह अपने अकेलेपन और खालीपन की निराशा से मुक्ति पाकर एक योद्धा की तरह अपनी कर्मभूमि में वापस लौट आए. डॉक्टर प्रताप हॉस्पिटल में पहुंच गए थे. उसने उनके समक्ष अपना मंतव्य स्पष्ट किया. उसके फ़ैसले से वह बेहद प्रसन्न हुए. सुधाजी अब स्वस्थ थीं. उन्हें घर पहुंचाकर एक बार फिर से वह लौट आया अपनी कर्मभूमि में, जहां ना जाने कितने इंसानों की दुआएं उसकी प्रतीक्षा कर रहे थीं.
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