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#विश्‍व पर्यावरण दिवस: कविता- वन संरक्षण (#WorldEnvironmentDay: Kavita- Van Sarakshan)

वृक्षों से ही वन बनते हैं, धरती हरी-भरी करते हैं।
वर्षा के कारण हैं जंगल, जिससे होता सबका मंगल।

वृक्षों बिन क्या जीवन होता, प्राण वायु हर कोई खोता।
काट-काट वृक्षों को ढोता, बिन वर्षा किस्मत को रोता।

जंगल धरती क्षरण बचायें, वर्षा जल भूतल पहुँचायें।
बाढ़ जनित विपदाएं आयें, अपनी करनी का फल पायें।

कितने प्राणी वन में रहते, प्रकृति संतुलन सब मिल करते।
जीव सभी हैं इन पर निर्भर, वनवासी के भी हैं ये घर।

औषधि भोजन लकड़ी देते, नहीं कभी कुछ वापस लेते।
अर्थव्यवस्था इनसे चलती, सारी दुनिया इन पर पलती।

औषधियाँ दें कितनी सारी, हरते हैं हारी बीमारी।
अंग-अंग गुणवान वनों का, संयम से संधान वनों का।

लकड़ी जो पेड़ों से मिलती, आग तभी चूल्हों में जलती।
अब विकल्प इसका आया, हमने नव ईंधन अपनाया।

काष्ठ शिल्प बिन वन कब होता, जीवनयापन साधन खोता।
घर के खिड़की अरु दरवाजे, गाड़ी हल लकड़ी से साजे।

वन की कीमत हम पहचानें, इन पर निर्भर सबकी जानें।
संरक्षण इनका है करना, सदा संतुलित दोहन करना।

काटना तनिक रोपना ज्यादा, करना होगा सबको वादा।
जीवन का आधार यही है, वन संरक्षण लक्ष्य सही है।

प्रवीण त्रिपाठी

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