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काव्य- क़ैद (Kavya- Qaid)

लो बीत गया
दिन एक और
चाहे जैसा गुज़रा
यह दिन
अब बंद हो चुका है
मेरी स्मृति की क़ैद में
और भी जाने कितने
अनगिनत दिन
बंद है इस क़ैद में
कब मिलेगा इन
छटपटाते दिनों को
इस क़ैद से छुटकारा
शायद तब, जब मौत करेगी
आकर आलिंगन मेरा
ये दिन तो छूट जाएंगे
इस क़ैद से
किंतु मैं स्वयं,
क़ैद होकर रह जाऊंगा
एक शून्य में…

दिनेश खन्ना
lost

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