इस मदर्स डे मां को कराएं स्पेशल फील. उन्हें मदर्स डे विश करें खास अंदाज में, इन शेरो शायरी या ग़ज़ल के साथ.
मां जिंदगी का विश्वास होती है, मां जीवन का संबल होती है, मां जीवन का सराहा होती है, मां जीवन की आस होती है, मां जीवन का सार होती है
निदा फ़ाज़ली
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिनभर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गईं ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।
गुलजार की नज़्म
तुझे पहचानूंगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूंढ़ा करता हूं तुम्हें
अपने चेहरे में कहीं
लोग कहते हैं
मेरी आंखें मेरी माँ सी हैं
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैं
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लिए
कान छिदाया होगा
सामने दांंतोंं का वक़्फ़ा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पांव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया, दौड़ गई
क्या ख़ुदा देख लिया था
कि मुझे छोड़ गई
मेल के देखता हूं
मिल ही जाएं तुझ-सी कहीं
तेरे बिन ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तूझे पहचानूंगा कैसे?
तूझे देखा ही नहीं।
मां पर मुनव्वर राना के 5 शेर
1.ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी मां सजदे में रहती है
2.मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
3.चलती फिरती हुई आंखों से अजां देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
4.अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है
5. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई
मां पर कुछ और बेहतरीन शेर
मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है
-आलोक श्रीवास्तव
न जाने क्यों आज अपना ही घर मुझे अनजान सा लगता है,
तेरे जाने के बाद ये घर-घर नहीं खाली मकान सा लगता है
- अज्ञात
नहीं हो सकता कद तेरा ऊंचा
किसी भी मां से ऐ खुदा
तू जिसे आदमी बनाता है
वो उसे इंसान बनाती है
वो उजला हो के मैला हो या महंगा हो के सस्ता हो
ये मां का सर है इसपे हर दुपट्टा मुस्कुराता है
सुबह उठते ही जब मैं चूमता हूं मां की आंखों को
ख़ुदा के साथ उसका हर फरिश्ता मुस्कुराता है
रूह के रिश्तो की ये गहराइयां तो देखिये
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है मां
हम खुशियों में मां को भले ही भूल जाये
जब मुसीबत आ जाए तो याद आती है मां
स्याही खत्म हो गयी 'मां लिखते-लिखते
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी
उसके होंठो पर कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती
राहत जिस को कहते हैं
माँ की गोद में होती है
बिल्क़ीस ख़ान
लाख बदलना चाहो लेकिन माँ को माँ कहते बनती है
मिट्टी वही वही है धरती बदल गईं पिछली दीवारें
बिमल कृष्ण अश्क
उम्मीदें माँ बाप की देखीं
बच्चों का जब बस्ता देखा
आतिश इंदौरी
कितने सुख से धरती ओढ़ के सोए हैं
हम ने अपनी माँ का कहना मान लिया
राहत इंदौरी
मिरा ज़ब्त बढ़ता चला जा रहा है
मैं परछाईं माँ की बनी धीरे धीरे
बिल्क़ीस ख़ान
मां के क़दमों में जो सुकूं है मियां
वो ज़मीं पर न आसमान में है
राशिद क़य्यूम अनसर