‘‘कपूर साहब, बहुत गंभीर बात है, आपका देहांत अट्ठाइस मई को पांच बजकर दस मिनट पर एक दुर्घटना से हो जाएगा. कोई वसीयत वगैरह करवानी हो तो करवा ले फिर ना...’’
‘‘ओ हितैषी के बच्चे, तू है कौन! छुपके वार करता है. मरद है तो सामने आ.’’ कपूर चीख पड़ा.
‘‘हेलो! कपूर साहब.’’
‘‘हेलो, हां मैं कपूर बोल रहा हू, साहब सुहब दा अता-पता नहीं.’’ (साहब सुहब का तो पता नहीं)
‘‘हेलो जी! मैं आपका हितैषी बोल रहा हूं.’’
‘‘कमाल हो गया भई, इस कलजुग में भी हितैषी बचे हैं. मैं तो यह भूल ही गया था. बादशाहो कहो की (क्या) हुकम है.’’
‘जी, हु़क्म तो कुछ नहीं बस...’
‘‘कपूर साहब, मुझे थोड़ी सीरियस बात करनी है.’’
‘‘पर तुसी हितैषी हो तो सीरियस गलां क्यों करना चांदे ओ?’’ (लेकिन आप तो हितैषी हैं, फिर गंभीर बातें क्यों)
‘‘कपूर साहब, बहुत गंभीर बात है, आपका देहांत अट्ठाइस मई को पांच बज कर दस मिनट पर एक दुर्घटना से हो जाएगा. कोई वसीयत वगैरह करवानी हो तो करवा ले फिर ना...’’
‘‘ओ हितैषी के बच्चे, तू है कौन! छुपके वार करता है. मरद है तो सामने आ.’’ कपूर चीख पड़ा.
कपूर की पत्नी जो पास ही सोफे पर बैठी थी, घबराकर पूछने लगी, ‘‘क्या बात है, कौन था?’’
कपूर गुस्से में थे. कहने लगे, ‘‘कोई बदतमीज़ है साला! कहता है कि कपूर, यानी मैं अट्ठाइस मई को पांच बजकर दस मिनट पर दुर्घटना में मर जाऊंगा. अरे! माना मुझे दिल की बीमारी का वहम हो गया था, मगर अब तो सारे टेस्ट करवा लिए हैं. कोई बीमारी नहीं है.’’
बात आई-गई हो गई. फिर कोई फ़ोन नहीं आया. मगर अट्ठाईस तारीख़ को कपूर की बीवी ने एहतियातन कपूर साहब को घर से बाहर न जाने के लिए राज़ी कर लिया. पहले तो कपूर साहब अकड़े, मगर फिर बीवी की बात मान गए.
बीवी शंकित थीं कि कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए? बृहस्पतिवार के व्रत माता का जगराता और पीर की चादर सब मन्नतें मान चुकी थी. उसने अपने छोटे भाई रमेश को भी बुला लिया था.
वह रसोई में कपूर साहब के मनपसंद पकवान बना रही थी. कपूर साहब व उनका साला रमेश अपनी-अपनी बीयर खोले बैठे थे. हालांकि श्रीमती कपूर ने बीयर पीने से मना किया था, मगर कपूर साहब नहीं माने थे. श्रीमती कपूर बीच-बीच में खाने की चीज़ें नमकीन वगैरा रखने के बहाने कपूर साहब को देख आती थीं. साढ़े तीन बजे सब लोग खाना खाने बैठे. कपूर व रमेश तो चहक रहे थे, मगर श्रीमती कपूर परेशान थीं. रह-रहकर दीवार घड़ी देख लेती थीं. उन्हें घड़ी की सुइयां सरकती नज़र नहीं आ रही थीं.
खाना खाने के बाद सभी लॉबी में आ गए. रमेश ने टीवी खोल दिया था कि अचानक बिजली गुल हो गई. अंधेरा होने पर कपूर ने पूछा कि ‘‘इनवर्टर को क्या हुआ?’’ कपूर साहब इन्वर्टर देखने के लिए उठे तो श्रीमती कपूर ने उन्हें यह कहकर रोक दिया, ‘‘आज आपको बिजली के पास नहीं जाना है.’’ कपूर साहब झुंझलाए. मगर मन मारकर बैठ गए. फिर गर्मी से घबराकर बालकनी में चले गए. श्रीमती कपूर उनके पीछे चली आई थीं.
कपूर साहब को उनकी यह हरकत नागवार लगी थी, मगर वे चुप थे. बालकनी की रेलिंग पर हाथ रखकर झुके ही थे कि चीख मारकर गिर पड़े. श्रीमती कपूर ने देखा कि एक सांप रेलिंग पर दाएं से बाएं सरपट सरक रहा था. इसके साथ ही श्रीमती कपूर की चीख निकल गई. हड़बडाहट में वे जल्दी-जल्दी सीढ़ियां उतरने लगे और पैर फिसल जाने से गिर पड़े. सिर सामने वाली दीवार पर जा लगा .खून का फव्वारा फूट चला. श्रीमती कपूर ने अपनी हाथ घड़ी को देखा. पांच बजकर दस मिनट हुए थे. श्रीमती कपूर के भाई रमेश नौकर को उनके पास खड़ा करके एम्बुलेंस को फ़ोन करने ऊपर आए, तो फ़ोन की घंटी बज रही थी. रमेश ने फ़ोन उठाया और बोले, ‘‘हैलो!’’
‘‘उधर से आवाज आई,’’ ‘‘कपूर साहब सकुशल तो हैं?’’
‘‘नहीं, वे सीढ़ियों से गिर पड़े हैं. आप फ़ोन रखें तो मैं डॉक्टर तथा एम्बुलेंस को बुलाऊं.’’
‘‘अब कुछ नहीं हो सकता. वे मर चुके हैं. मैंने उन्हें पहले ही बता दिया था कि वे आज पांच बजकर दस मिनट पर दुर्घटना में मर जाएंगे.’’ यह कहकर उसने फ़ोन काट दिया.
रमेश हैरान-परेशान चोगा उठाए खड़ा था. फिर उसे याद आया कि उसे टेलीफ़ोन करना है. डॉक्टर को टेलीफ़ोन करके वह सीढ़ियों के पास आया. श्रीमती कपूर होश में आ गईं, मगर कपूर साहब निश्चेष्ट पड़े थे. कपूर साहिब को पड़े देखकर दहाड़ मार कर रोती हुई, उनसे लिपटकर सुबकने लगीं. डॉक्टर कपूर साहब का मुआयना करने लगे. पांच-छ: मिनट मुआयना करने के बाद वे बोले, "आई एम सॉरी, ही इज़ नो मोर."
सुनकर मिसेज कपूर फिर दहाड़ मारकर रोने लगीं. लोग-बाग इकट्ठे हो गए थे. श्रीमती कपूर ने रो-रोकर सबको हितैषीवाला किस्सा सुना दिया. किसी ने बात पत्रकारों तक पहुंचा दी. फिर क्या था, आनन-फानन में ख़बर ने छपकर सारे शहर में तहलका मचा दिया. पुलिस के पास अनेक फ़ोन आए कि उन्हें भी हितैषी ने फ़ोन किया है. शहर में खलबली मच गई. आख़िर यह हितैषी कौन है जो फ़ोन पर मृत्यु की भविष्यवाणी करता है तथा भविष्यवाणियां सच भी हो रही हैं. कुल मिलाकर शहर में लगभग पचास फ़ोन आ चुके थे. कपूर साहब की मौत के बाद दो और व्यक्तियों की मौत का पता लगा.
शहर में अफ़रा-तफ़री का माहौल था. खोजी पत्रकारों ने खोज-खोजकर लोगों को ढू़ंढ निकाला, जिन्हें फ़ोन आए थे. अटकलें लगाई जा रही थीं कि अब किसकी बारी है?
तभी नगर में अफवाह फैली कि प्रसिद्ध उद्योगपति श्री मिन्हास राजधानी के एक बड़े हृदय रोग संस्थान में भरती हो गए हैं. हालांकि उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं थी, मगर हितैषी का फ़ोन आया और उसने कहा कि उनकी मृत्यु हृदयगति रुकने से चौबीस जून को सुबह दस बजे हो जाएगी. दहशत व एहतियात के तौर पर उन्होंने हृदय रोग संस्थान के इन्टेंसिव केयर (सघन चिकित्सा कक्ष) में पांच दिन पहले ही कमरा ले लिया था.
डॉक्टरों की एक टीम ने सबसे वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट की अध्यक्षता में उनका पूरा चेकअप करके उन्हें हृदय रोग के कोई लक्षण न होने का प्रमाणपत्र भी ज़ारी कर दिया था, फिर भी श्री मिन्हास ने अस्पताल में रहना ज़रूरी समझा तथा तेईस जून की रात से चार-चार घंटे के लिए एक-एक डॉक्टर को अपनी देखभाल हेतु फ़ीस देकर रख लिया.
मगर सारे किए-कराए पर तब पानी फिर गया, जब चौबीस जून को ठीक दस बजे डॉक्टरों की टीम की मौजूदगी में उनके दिल ने धड़कना बंद कर दिया और उन्हें बचाने की डॉक्टरों की सभी कोशिशें नाकाम हो गईं.
हर तरफ़ बेबसी-बेकसी का माहौल था. किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. कोई कह रहा था कि यह आकाशवाणी हो रही है, मगर आकाशवाणी टेलीफ़ोन से...
आख़िर थक-हारकर पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए. केस सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने शीघ्र ही अपने जासूस चारों ओर फैला दिए. मगर केस का कोई ओर-छोर पता नहीं लग रहा था. टेलीफ़ोन एक्सचेंज ने सभी नम्बरों पर विजिलेंस लगा दी थी. उपभोक्ताओं को बतलाया गया था कि कोई ऐसा फ़ोन आते ही तारे के चिह्न वाला बटन दबाएं, तो एक्सचेंज का कम्प्यूटर चौकस होकर फ़ोन करनेवाले के नम्बर को रिकॉर्ड कर लेगा, मगर कोई सुराग नहीं लगा. एक तो फ़ोन आने कम हो गए थे, दूसरे भविष्यवक्ता चौकन्ना हो गया था. वह पब्लिक बूथ प्रयोग में ला रहा था. पब्लिक बूथों पर पुलिस की निगरानी रखी जाने लगी. मगर नतीज़ा वही-ढाक के तीन पात.
आखिर सीबीआई ने अपने वरिष्ठ सेवानिवृत्त जासूस पं. चन्द्रचूड़ चिन्तामणि पाणिग्रही की सेवाएं लेने का फैसला लिया. श्री चन्द्रचूड़ अनेक जटिल केसों को सुलझा चुके थे. उन्होंने आते ही सारे हालात का जायज़ा लिया. जब कोई सूत्र हाथ नहीं लगा, तो उन्होंने उन दस लोगों को चुन लिया, जिनको सबसे बाद में टेलीफ़ोन आए थे. फिर वे हर किसी के घर जाकर उनसे मिले. लोग भड़के हुए थे. वे कुछ कहने-सुनने को तैयार नहीं थे, मगर चन्द्रचूड़ महोदय ऐसे चिन्तित लोगों से बातचीत करना चाहते थे. उनके काम करने का तरीका जासूसों जैसा न होकर चिकित्सक जैसा था, वह भी मनोचिकित्सक जैसा.
उन्होंने इन दस लोगों को समझाया, "अगर आप सहयोग देंगे, तो हो सकता है कि हम उस व्यक्ति को पकड़ लें. मैं जानता हूं तथा आप सब भी जानते हैं कि मृत्यु अटल सच है, अत: उससे बचना या डरना समझदारी नहीं है?’’
धीरे-धीरे उन्होंने अपने तय किए गए फार्मूले पर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने उन लोगों से फ़ोन आने से दस दिन पहले मिले लोगों की सूची बनाने को कहा. उन लोगों ने वह सूची बना दी थी, मात्र एक व्यक्ति को छोड़कर. वह था लाला घसीटाराम, भविष्यवाणी के मुताबिक उसके मरने में कुल बीस दिन बचे थे, अत: वह बहुत घबराया हुआ तथा गमगीन था. पं. चन्द्रचूड़ अब इस सूची को अपनी खोजी नज़रों से देखने लगे.
उन दस लोगों में सात व्यक्तियों में कुछ समानताएं थीं. एक तो अधिकांश लोग अमीर थे तथा चालीस से पचपन साल की उम्र के थे, दूसरा उनमें से छह व्यक्ति शहर के प्रसिद्ध जिम के सदस्य थे. असल में यह जिम, जिम कम क्लब ज़्यादा था. कुछ लोगों का ख़्याल था कि जिम की आड़ में यह अय्याशी का अड्डा था. इसका नाम भी इसकी बदनामी या शोहरत में इज़ाफ़ा करता था.
इस जिम का नाम था पल्सेटिंग हार्ट जिम. इस जिम के मालिक दो दोस्त थे. मिस्टर परेरा तथा कर्नल सिंह. दोनों अविवाहित थे तथा शहर में सनकी लोगों के सिरमौर कहे जाते थे. कर्नल सिंह जहां रंगीन तबीयत के आदमी थे, वहीं मिस्टर परेरा बेहद शुष्क व्यक्तित्व के स्वामी थे. कर्नल सिंह को ख़ूबसूरत औरतों से घिरे रहना पसंद था, वहीं परेरा औरतों से दूर भागते थे. मिस्टर परेरा यूं शुष्क प्रकृति के व्यक्ति थे, मगर वे हर शाम अपने एक अन्य मित्र डॉ. जोज़फ़ के घर शतरंज खेलने ज़रूर जाते थे तथा क्लब की सदस्यता प्राप्त करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक जांच भी इन्हीं डॉ. जोज़फ़ द्वारा की जाती थी. यह जिम अपने अनोखे कार्यक्रमों तथा अजीबो-गरीब नियमों की वजह से भी (कु)ख्यात था.
इसकी सदस्यता हेतु न केवल मोटी फ़ीस वसूली जाती थी, अपितु अनेक शर्तें भी सदस्यों पर लादी जाती थीं. मगर फिर भी इसकी सदस्यता हेतु लंबी वेटिंग लिस्ट हर समय बनी रहती थी. पं. चंद्रचूड़ ने इस क्लब की काफ़ी खोजबीन की, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं लगा. शहर के सभी आला अफ़सर भी इसके सदस्य थे तथा शहर के अनेक संभ्रान्त व्यक्ति भी इसके सदस्य थे. अत: उन पर हाथ उठाना संभव नहीं था.
पं. चंद्रचूड़ ने अब तक मर चुके लगभग बीस लोगों की भविष्यवाणी सुनकर मरनेवाले लोगों के बारे में तफतीश आरंभ कर दी. यहां भी कुछ संदिग्ध तथ्य सामने आए. एक तो यह कि मरनेवालों में से पांच व्यक्तियों के बारे में भविष्यवाणी ग़लत निकली थी, कोई उस समय नहीं मरा था, जो समय बतलाया गया. कोई एक दिन या दो दिन पीछे मरा था, तो कोई किसी अन्य तरीके से मरा था. पं. चन्द्रचूड़ ने अपने सहयोगी युवा पुलिस इन्सपेक्टर विनय मराठे को इनकी जांच सौंप दी.
इस कर्मठ अधिकारी ने तीन मामले शीघ्र सुलझा कर दोषी व्यक्तियों को गिऱफ़्तार कर लिया, मगर इन दोषी व्यक्तियों ने कहा कि पुलिस अपनी अकर्मण्यता छुपाने के लिए उन्हें फंसा रही है.
छानबीन किसी नतीज़े पर नहीं पहुंच रही थी. चंद्रचूड़ सिगार पर सिगार फूंक रहे थे. तभी उन्हें एक और सूत्र हाथ लगा कि न केवल धमकी या भविष्यवाणी प्राप्त लोग जिम के सदस्य थे, अपितु मिस्टर मल्होत्रा जिनकी मृत्यु से यह केस उजागर हुआ था, वह भी डॉ. जोज़फ़ से चेकअप करवा चुके थे. अत: अब चन्द्रचूड़ ने अपना ध्यान, इस डॉक्टर पर केन्द्रित किया.
सूचनाओं के अनुसार इस डॉक्टर का नाम था डॉ. गेब्रिल जोज़फ़, वह लगभग पचास साल से इस शहर में प्रैक्टिस कर रहा था. वो काफ़ी भला, सहृदय तथा क़ाबिल डॉक्टर था. कई दिन से डॉक्टर की निगरानी ज़ारी थी, मगर कोई संदिग्ध बात नज़र नहीं आई. डॉक्टर न केवल भले व्यक्ति थे, बल्कि अनेक ग़रीब मरीज़ों का इलाज नि:शुल्क करते थे. उनकी दिनचर्या में सुबह-शाम सैर, व्यायाम, फिर सारा दिन अपने क्लीनिक के काम. क्लीनिक उनकी कोठी के ही अहाते में था. डॉक्टर की आयु सत्तर वर्ष से ऊपर थी, मगर वे अच्छे स्वास्थ्य तथा क़द-काठी की वजह से मात्र पचास-पचपन के लगते थे. उनकी पत्नी तथा तीनों सन्तान इंग्लैंड जाकर रह रहे थे. उनका टेलीफ़ोन टेप किया जाने लगा. हर आने-जाने वाले लोगों पर नज़र रखी जा रही थी. मगर नतीज़ा वही ढाक के तीन पात. इस बीच तीन और लोगों की मृत्यु भविष्यवाणी द्वारा बतलाए समय पर हो चुकी थी. मौत का तरीका भी वही था, जो फ़ोन पर बताया गया था. वे तीनों भी डॉक्टर जोज़फ़ के मरीज़ थे तथा मरने से चालीस-पैंतालीस दिन पहले डॉक्टर से मिले थे.
अब चन्द्रचूड़ ने और देर न करके डॉक्टर से पूछताछ का मन बना लिया. उन्होंने पुलिस के इन्स्पेक्टर जनरल से बात की और एक दिन सादी वर्दी में पुलिस कर्मी, डॉक्टर को चन्द्रचूड़ के पास ले आए. दो दिन लगातार पूछताछ के बाद भी कुछ सूत्र हाथ नहीं लगा. डॉक्टर काफ़ी सभ्य, मृदुभाषी, नेक इन्सान लगे थे चन्द्रचूड़ को, मगर उनकी छठी इन्द्रिय अभी भी शक की सूई डॉक्टर की तरफ़ घुमा रही थी, पर केवल शक के आधार पर डॉक्टर को गिऱफ़्तार करना न केवल कठिन था, अपितु इससे डॉक्टर की जान को ख़तरा भी हो सकता था.
फिर भी चन्द्रचूड़ ने डॉक्टर को शहर से बाहर न जाने की चेतावनी दे दी थी. उनका पासपोर्ट भी रखवा लिया था.
खोजी पत्रकार शिकारी कुत्तों की तरह इस सन्दर्भ में हर ख़बर को सूंघ रहे थे. जाने कैसे, एक सांध्य अख़बार ने डॉक्टर जोज़फ़ से पूछताछ की ख़बर छाप दी थी. बस फिर क्या था, आनन-फानन में यह ख़बर आग की तरह सारे शहर में फैल गई. इससे पहले कि डॉक्टर जोज़फ़ की सुरक्षा का कोई ठोस इंतज़ाम होता, गुस्साए रिश्तेदारों ने तथा दंगाई भीड़ ने डॉक्टर की कोठी को घेर लिया. डॉक्टर ने दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया तथा पुलिस को सूचित किया. मगर पुलिस के आने से पहले लोगों ने डॉक्टर की कोठी को आग लगा दी थी. डॉक्टर खिड़की खोलकर चिल्ला रहा था, ‘‘मेरी चाबी गुम हो गई है. प्लीज, दरवाज़ा तोड़कर मुझे बाहर निकालो. मैं बेकसूर हूं.’’ गुस्साई भीड़ ने खिड़की पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए.
चन्द्रचूड़ वहां पहुंच गया था. मगर पुलिस अभी तक नहीं पहुंची थी. कोठी पर तैनात मात्र दो सिपाही गुस्साई भीड़ को काबू करने में असमर्थ थे. उसने लोगों को समझाने का प्रयत्न किया. मगर उसकी बात कोई नहीं सुन रहा था. फिर उसने देखा, डॉक्टर ऊपरवाले कमरे में खड़ा अपने सेलफ़ोन पर किसी से बातें कर रहा था. घर को आग ने बुरी तरह जकड़ लिया था और डॉक्टर जोज़फ़ अपने ही घर में जल कर मर गए थे. जैसा ऐसे हालात में होता है. पुलिस ने कुछ लोगों को दंगा फैलाने के अपराध में गिऱफ़्तार कर लिया था और बात यहीं ख़त्म हो गई.
चन्द्रचूड़ उदास से अपने होटल के कमरे में बैठे थे. वे स्वयं को डॉक्टर का हत्यारा समझ रहे थे और केस भी अभी सुलझा कहां था?
छानबीन किसी नतीज़े पर नहीं पहुंच रही थी. चंद्रचूड़ सिगार पर सिगार फूंक रहे थे. तभी उन्हें एक और सूत्र हाथ लगा कि न केवल धमकी या भविष्यवाणी प्राप्त लोग जिम के सदस्य थे, अपितु मिस्टर मल्होत्रा जिनकी मृत्यु से यह केस उजागर हुआ था, वह भी डॉ. जोज़फ़ से चेकअप करवा चुके थे. अत: अब चन्द्रचूड़ ने अपना ध्यान, इस डॉक्टर पर केन्द्रित किया.
सूचनाओं के अनुसार इस डॉक्टर का नाम था डॉ. गेब्रिल जोज़फ़, वह लगभग पचास साल से इस शहर में प्रैक्टिस कर रहा था. वो काफ़ी भला, सहृदय तथा क़ाबिल डॉक्टर था. कई दिन से डॉक्टर की निगरानी ज़ारी थी, मगर कोई संदिग्ध बात नज़र नहीं आई. डॉक्टर न केवल भले व्यक्ति थे, बल्कि अनेक ग़रीब मरीज़ों का इलाज नि:शुल्क करते थे. उनकी दिनचर्या में सुबह-शाम सैर, व्यायाम, फिर सारा दिन अपने क्लीनिक के काम. क्लीनिक उनकी कोठी के ही अहाते में था. डॉक्टर की आयु सत्तर वर्ष से ऊपर थी, मगर वे अच्छे स्वास्थ्य तथा क़द-काठी की वजह से मात्र पचास-पचपन के लगते थे. उनकी पत्नी तथा तीनों सन्तान इंग्लैंड जाकर रह रहे थे. उनका टेलीफ़ोन टेप किया जाने लगा. हर आने-जाने वाले लोगों पर नज़र रखी जा रही थी. मगर नतीज़ा वही ढाक के तीन पात. इस बीच तीन और लोगों की मृत्यु भविष्यवाणी द्वारा बतलाए समय पर हो चुकी थी. मौत का तरीका भी वही था,
जो फ़ोन पर बताया गया था. वे तीनों भी डॉक्टर जोज़फ़ के मरीज़ थे तथा मरने से चालीस-पैंतालीस दिन पहले डॉक्टर से मिले थे.
अब चन्द्रचूड़ ने और देर न करके डॉक्टर से पूछताछ का मन बना लिया. उन्होंने पुलिस के इन्स्पेक्टर जनरल से बात की और एक दिन सादी वर्दी में पुलिस कर्मी, डॉक्टर को चन्द्रचूड़ के पास ले आए. दो दिन लगातार पूछताछ के बाद भी कुछ सूत्र हाथ नहीं लगा. डॉक्टर काफ़ी सभ्य, मृदुभाषी, नेक इन्सान लगे थे चन्द्रचूड़ को, मगर उनकी छठी इन्द्रिय अभी भी शक की सूई डॉक्टर की तरफ़ घुमा रही थी, पर केवल शक के आधार पर डॉक्टर को गिऱफ़्तार करना न केवल कठिन था, अपितु इससे डॉक्टर की जान को ख़तरा भी हो सकता था.
फिर भी चन्द्रचूड़ ने डॉक्टर को शहर से बाहर न जाने की चेतावनी दे दी थी. उनका पासपोर्ट भी रखवा लिया था.
खोजी पत्रकार शिकारी कुत्तों की तरह इस सन्दर्भ में हर ख़बर को सूंघ रहे थे. जाने कैसे, एक सांध्य अख़बार ने डॉक्टर जोज़फ़ से पूछताछ की ख़बर छाप दी थी. बस फिर क्या था, आनन-फानन में यह ख़बर आग की तरह सारे शहर में फैल गई. इससे पहले कि डॉक्टर जोज़फ़ की सुरक्षा का कोई ठोस इंतज़ाम होता, गुस्साए रिश्तेदारों ने तथा दंगाई भीड़ ने डॉक्टर की कोठी को घेर लिया. डॉक्टर ने दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया तथा पुलिस को सूचित किया. मगर पुलिस के आने से पहले लोगों ने डॉक्टर की कोठी को आग लगा दी थी. डॉक्टर खिड़की खोलकर चिल्ला रहा था, ‘‘मेरी चाबी गुम हो गई है. प्लीज, दरवाज़ा तोड़कर मुझे बाहर निकालो. मैं बेकसूर हूं.’’ गुस्साई भीड़ ने खिड़की पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए.
चन्द्रचूड़ वहां पहुंच गया था. मगर पुलिस अभी तक नहीं पहुंची थी. कोठी पर तैनात मात्र दो सिपाही गुस्साई भीड़ को काबू करने में असमर्थ थे. उसने लोगों को समझाने का प्रयत्न किया. मगर उसकी बात कोई नहीं सुन रहा था. फिर उसने देखा, डॉक्टर ऊपर वाले कमरे में खड़ा अपने सेलफ़ोन पर किसी से बातें कर रहा था. घर को आग ने बुरी तरह जकड़ लिया था और डॉक्टर जोज़फ़ अपने ही घर में जल कर मर गए थे. जैसा ऐसे हालात में होता है. पुलिस ने कुछ लोगों को दंगा फैलाने के अपराध में गिऱफ़्तार कर लिया था और बात यहीं ख़त्म हो गई.
चन्द्रचूड़ उदास से अपने होटल के कमरे में बैठे थे. वे स्वयं को डॉक्टर का हत्यारा समझ रहे थे और केस भी अभी सुलझा कहां था?
- डॉ. श्याम
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