लेखक- डॉ. सौरभ जोशी (मुंबई स्थित द वेन सेंटर में वैस्न्युलर रोगों के इंटरवेंशनल और रेडियोलॉजी उपचारों से संबद्ध)
उपचार से पहले और बाद की तस्वीर
स्पाइडर वेन्स पतली, लाल-बैंगनी रंग की नसें होती हैं. ये त्वचा के बहुत करीब होती हैं इसलिए काफ़ी उभरी हुई नज़र आती हैं. ये नसें बहुत भद्दी दिख सकती हैं. स्पाइडर वेन्स आमतौर पर उन लोगों में देखी जाती हैं जो लंबे समय खड़े रहने या बैठने का काम करते हैं, धूम्रपान व तंबाकू का सेवन करते हैं, इसके अलावा वंशानुगत, ज़्यादा वज़न उठाना, गर्भावस्था, बढ़ती उम्र आदि के कारण भी स्पाइडर वेन्स की तकलीफ़ हो सकती है. देशभर में 10 मिलियन से अधिक लोग अपनी टांगों/शरीर पर ब्लू वेन्स होने के रोग से पीड़ित हैं, लेकिन इससे अनजान रहते हैं. चूंकि प्रारंभिक चरण में ब्लू वेन्स का रोग दर्दरहित होता है, इसलिए 99% लोग उपचार ही नहीं करवाते हैं. इन ब्लू वेन्स को वैरिकोज़ वेन्स कहा जाता है जो एक हानिकारक रोग है. भारत में महिलाएं लंबे कपड़े पहनकर इस समस्या को छुपाने की कोशिश करती हैं और अपनी वैरिकोज़ व स्पाइडर वेन्स को छुपाने के लिए फिल्मी सितारे शूटिंग के दौरान आमतौर पर कोई बॉडी कंसीलर लगा लेते हैं.
समय बीतने के साथ वैरिकोज़ वेन्स के उपचार ने लंबी छलांग लगाई है, जिसमें खुली शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं से लेकर ऊष्मा का उपयोग करके नसों को अंदर से बंद करनेवाली न्यूनतम इनवेसिव लेज़र एवं रेडियो फ्रिक्वेंसी एब्लेशन तक के उपचार शामिल हैं. हाल ही में जलाने के बजाए नस को चिपकाकर बंद करने के लिए गोंद जैसी सामग्री का उपयोग किया जाने लगा है, जिससे रोगी का कष्ट और प्रक्रिया संबंधी जटिलताएं और भी कम हो जाती हैं.
नवीनतम गैर-इनवेजिव और वीडियो की मदद से संचालित एक्सोथर्म जैसी अत्यधिक प्रभावी तकनीक बिना कोई इंजेक्शन लगाए ही टॉपिकल लेज़र का उपयोग करके इन स्पाइडर वेन्स का उपचार कर सकती है. यह पहले इस्तेमाल होनेवाली स्न्लेरोथेरेपी के ठीक विपरीत प्रक्रिया है, जो रोगियों के लिए प्रायः दर्दनाक सिद्ध होती थी.
स्पाइडर वेन्स का उपचार करने हेतु लेज़र उपचार रोगियों के लिए बेहद उपयुक्त है और ये नवीनतम विधियां बहुत कम कष्ट और न्यूनतम जोखिम के साथ इच्छित परिणाम देती हैं. लेज़र का उपयोग गर्भवती महिलाओं तथा उन रोगियों के उपचार क्षेत्र में नहीं किया जा सकता है, जिनकी त्वचा पर वायरल अटैक या संक्रमण हो चुका है. ऊपरी वैस्न्युलर घाव त्वचीय वाहिकाओं के विस्तारण के चलते होते हैं और ये किसी शिरापरक विकृति का परिणाम हैं. सबसे आम ऊपरी वैस्न्युलर घावों को टेलांजिएक्टीजिया और एंजियोमा कहा जाता है.
शिरापरक रोग एक विकसित होता रहने वाला रोग है, बिना उपचार के यह ठीक ही नहीं होता.अपने शिरापरक निदान के लिए सही चिकित्सक से परामर्श करें और जितनी जल्दी हो सके इस विकृति का उपचार कराएं. यह नए ऊपरी वैस्न्युलर घावों के उभार को सीमित करेगा.
लेजर उपचार कैसे काम करता है?
लेजर सिद्धांत एक तापीय क्रिया के उत्पादन पर आधारित है. लेज़र प्रकाश एपिडर्मिस के माध्यम से त्वचा को भेदते हुए प्रवेश करेगा, ताकि डर्मिस के अंदर मौजूद नस को स्पर्श कर सके. इसके बाद ऊष्मा में तब्दील हुआ प्रकाश नस को अवरोधित करेगा और धीरे-धीरे उसे गायब कर देगा. लेज़र उपचार को स्न्लेरोथेरेपी के अतिरिक्त इस्तेमाल किया जा सकता है और यह घुटने, एड़ी या पैर के भीतरी हिस्सों जैसे प्रवेश करने में कठिनाई वाले क्षेत्रों पर कार्य करता है.
किसी लेज़र उपचार से पहले और बाद में बरती जानेवाली सावधानियां:
* उपचार शुरू होने के 2 सप्ताह पहले से धूप में नहीं निकलना है.
* उपचार के बाद उपचार किए गए क्षेत्र पर कोई मॉइश्चराइज़िंग क्रीम लगाएं और अगले दो हफ्ते तक धूप में हर्गिज़ न निकलें.
एक्सोथर्म लेज़र, कुशल और बिल्कुल नया
स्पाइडर वेन्स, जो वैरिकोज़ वेन्स की आरंभिक अवस्था होती हैं, जो एक किस्म की कॉस्मेटिक समस्या होती हैं, उन्हें लक्षित ट्रांसक्यूटेनियस लेज़र का इस्तेमाल करके ठीक किया जा सकता है. इस तकनीक में इन स्पाइडर वेन्स पर एक विशिष्ट तरंग का लेज़र प्रकाश डाला जाता है. यह प्रकाश त्वचा के करीब स्थित 2 मिमि व्यास से कम आकार वाली स्पाइडर वेन्स को वहीं का वहीं जला डालता है. ऐसे विभिन्न उपकरण उपलब्ध हैं जो यह नतीजा प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं. चिकित्सा का वर्तमान मानक एक्सोथर्म डिवाइस है, जिसमें स्पाइडर वेन्स को 10 गुना ज़ूम करने के लिए एक इन-बिल्ट कैमरा लगा हुआ है, जो नसों को आसान निशाना बनाने के साथ-साथ आसपास की त्वचा को 5 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रखने में मदद करता है. यह एक बहु-उपयोगी और पेटेंट की हुई तकनीक है, जो आसपास के ऊतकों को सर्वोत्तम दक्षता और उच्च सुरक्षा प्रदान करती है. पररणाम धीरे-धीरे दिखाई पड़ते हैं और 4 से 6 सप्ताह के भीतर स्थायी हो जाते हैं. चिकित्सक आपको आवश्यक उपचार सत्रों के बारे में उचित परामर्श देंगे.
प्रक्रिया को http://bit.ly/2N6q7DX लिंक पर देखा जा सकता है.
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