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फिल्म रिव्यूः पंगा (Movie Review Of Panga)
फिल्मः पंगा
कलाकारः कंगना राणाउत, जस्सी गिल, रिचा चड्ढा, यज्ञ भसीन
निर्देशकः अश्विनी तिवारी अय्यर
स्टारः 3.5
पंगा की निर्देशिका अश्विनी तिवारी अय्यर ने अपनी फिल्में नील बटे संनाटा व बरेली की बरफी में ही साबित कर दिया था कि वे एक अच्छी स्टोरी टेलर हैं. अपनी फिल्म पंगा से उन्होंने इस विश्वास को और पुख्ता कर दिया है. इस फिल्म में कंगना ने जया निगम की भूमिका निभाई है जो कि रेलवे में काम करती हैं और भारतीय महिला कबड्डी टीम की भूतपूर्व कप्तान रह चुकी हैं. उन्होंने कामकाजी महिला के रूप में अपनी नई जिंदगी को स्वीकार कर लिया है, लेकिन उनकी जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आता है. पंगा के माध्यम से अश्विनी अय्यर ने संदेश देने की कोशिश की है कि अगर महिला को अपने परिवारवालों का साथ व सपोर्ट मिले तो वो अपने सपनों को आसानी से पूरा कर सकती है और सपनों के हासिल करने में उम्र कभी बाधा नहीं बनती.' मां के भी सपने होते हैं'...पंगा का सार इस लाइन में छुपा है.
जया निगम ( कंगना राणाउत) एक समय कबड्डी की नेशनल प्लेयर और कैप्टन रही चुकी हैं. मगर अब वह 7 साल के बेटे आदित्य उर्फ आदि (यज्ञ भसीन) के बेटे की मां और प्रशांत (जस्सी गिल) की पत्नी है. जया अपनी छोटी-सी दुनिया में खुश है. कबड्डी ने उसे रेलवे की नौकरी दी है और उसकी जिंदगी घर,बच्चे और नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच गुजर रही है. फिर एक दिन घर में एक ऐसी घटना घटती है कि जया का बेटा आदि उसे 32 साल की उम्र में कबड्डी में कमबैक करने के लिए प्रेरित करता है. पहले जया पति प्रशांत के साथ मिलकर कमबैक की प्रैक्टिस का झूठा नाटक करती है, मगर इस प्रक्रिया में उसके दबे हुए सपने फिर सिर उठाने लगते हैं. अब वह वाकई इंडिया की नैशनल टीम में कमबैक करके अपने स्वर्णिम दौर को दोबारा जीना चाहती है. उसके इस सफर में उसका पति और बेटा तो साथ है ही, उसकी मां (नीना गुप्ता), बेस्ट फ्रेंड मीनू (रिचा चड्ढा) जो कबड्डी कोच और प्लेयर भी है, उसे हर तरह का सपॉर्ट देती है.
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क्या है खास?
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यह फिल्म जया नामक महिला के आस-पास घूमती है. इस फिल्म के माध्यम से अश्विनी अय्यर ने हर उस महिला को जागरूक करने की कोशिश की है, जो अपनी जिम्मेदारियों के चलते अपने सपनों की बलि दे देती है. अश्विनी ने बहुत सुंदर ढंग से बताया कि किस तरह एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम महिला को उसके सपने पूरे करने और पंखों को फैलाने में मदद कर सकता है. निखिल महरोत्रा और अश्विनी ने अपनी स्क्रिप्ट में ह्यूमर का भी भरपूर प्रयोग किया है. कंगन अपने दोनों किरदार हाउसवाइफ और कबड्डी प्लेयर में बेहतरीन दिखी हैं जितनी सादगी से उन्होंने एक हाउसवाइफ का किरदार निभाया, उतना ही दमदार वह कबड्डी प्लेयर के रूप में नजर आईं है. जया के एक्स्प्रेशन, उनकी सोच एक आम महिला की तरह है. जया के इस किरदार से कई महिलाएं खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगी. चाइल्ड आर्टिस्ट यज्ञ भसीन ने बेहतरीन डायलॉग्स बोले हैं. रिचा चड्डा ने कंगना की टीम मेंबर और बेस्टफ्रेंड का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है. एक सपोर्टिव और लविंग पति के रूप में जस्सी गिल बेहतरीन दिखे हैं. कंगना और जस्सी ने शादीशुदा जोड़े के किरदार को बखूबी जिया है. फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा लंबा लगता है, मगर सेकंड हाफ में कहानी अपनी मंजिल की ओर सरपट दौड़ती है. अश्विनी ने मानवीय रिश्तों की बुनावट के साथ कबड्डी जैसे खेल के थ्रिल को भी बनाए रखा है. जय पटेल ने भोपाल शहर को सुंदर ढंग से पेश किया है.
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क्या है कमी?
फिल्म की शुरुआत थोड़ी धीमी है, लेकिन यही इस फिल्म की खासियत भी है. नीना गुप्ता का किरदार थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था.
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