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9 विवाह क़ानून, जो हर विवाहित महिला को पता होने चाहिए (9 Legal Rights Every Married Woman In India Should Know)

शादी एक ऐसा रिश्ता होता है, जो दो लोगों को ही नहीं, बल्कि दो परिवारों को भी आपस में जोड़ता है. विवाह को भले ही जन्म जन्मांतर का रिश्ता माना जाता हो, लेकिन कई बार ये रिश्ता कुछ सालों तक भी निभ नहीं पाता. कई बार महिलाएं रिश्ते को बचाने के लिए अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों को सालों-साल सहती रहती हैं. कभी लोक-लाज और समाज के डर से तो कभी इसलिए भी कि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती. इसलिए ये ज़रूरी है कि हर विवाहित महिला को विवाह संबंधी निम्नलिखित कानूनों और अपने अधिकारों की जानकारी हो.

1. पति द्वारा भरण-पोषण का अधिकार

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 में कहा गया है कि एक विवाहित महिला और पुरुष को अपने पति से सभ्य जीवन स्तर और जीवन की बुनियादी सुविधाओं का दावा करने का अधिकार है. इसके तहत अगर पति या पत्नी के पास अपना गुजारा करने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत न हो तो वे इसके तहत अंतरिम गुजारा भत्ता और इस प्रक्रिया में लगनेवाले खर्च की क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं. इसके अलावा पति या पत्नी अगर अपना गुजारा करने में असमर्थ हों तो स्थायी गुजारा भत्ता का दावा भी कर सकते हैं. गुजारा भत्ता कितना होगा, इसका कोई तय फार्मूला नहीं है. ये अदालत के विवेक पर निर्भर करता है. अदालत परिस्थितियों के हिसाब से गुजारा भत्ता को घटा-बढा सकती है या रद्द भी कर सकती है.

2. निवास का अधिकार

पति चाहे पुश्तैनी मकान में रहे, ज्वॉइंट फैमिली वाले घर में रहे, खुद से खरीदे घर में रहे या किराए के मकान में रहे, जिस घर में पति रहता है, उसी घर में रहने का अधिकार पत्नियों को भी मिला है. घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 17, महिला को अलग होने के बाद भी साझा घर में रहने का अधिकार देती है. अगर कोई महिला अपने पति से अलग हो जाती है, तो भी किसी भी महिला को वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को घर छोड़ने के लिए नहीं कहा जा सकता, भले ही वे संयुक्त रूप से घर की मालिक हों या न हों.

3. वैवाहिक बलात्कार कानून

मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार का अर्थ है पत्नी की सहमति या मर्जी के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना. आज भी हमारे देश में रेप को तो अपराध माना जाता है, लेकिन मैरिटल रेप को नहीं. भारतीय दंड संहिता की धारा 365 में बलात्कार की परिभाषा तय की गई है, लेकिन इसमें मैरिटल रेप का कोई ज़िक्र नहीं है. इसके तहत एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग को तब तक बलात्कार नहीं माना गया है  जब तक कि पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम न हो.

4. तलाक के लिए आधार

भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 के अनुसार, पति या पत्नी निम्नलिखित आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.

व्याभिचारः यानी विवाह के बाहर यौन संबंध बनाना. अगर पति या पत्नी में से कोई भी विवाहेतर संबंध में लिप्त होता है तो पति या पत्नी अदालत में तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं.

क्रूरताः अगर पति या पत्नी दोनों में से कोई एक दूसरे को भावनात्मक, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं तो इसे क्रूरता माना जाता है और इस आधार पर वे तलाक की मांग करने के हकदार हैं.

परित्यागः अगर विवाह के बाद कोई एक पक्ष अपने पति या पत्नी को दो वर्ष से अधिक की अवधि के लिए छोड़ देता है तो पीड़ित पक्ष तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है.

धर्म परिवर्तनः यदि दोनों पक्षों में से किस एक ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो तो दूसरा पक्ष चाहे तो इस आधार पर तलाक ले सकता है.

कुछ रोगों की स्थिति में: यदि पति-पत्नी में से किसी एक को कुष्ठ रोग, यौन रोग या कोई मानसिक विकार हो तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक का हकदार है.

मृत्यु का अनुमानः यदि पति या पत्नी में से किसी का भी सात साल या उससे अधिक समय से जीवित होने का कोई समाचार नहीं मिला है तो दूसरा पक्ष तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है.

5. अबॉर्शन का अधिकार

हर महिला के पास अबॉर्शन का अधिकार होता है यानी वह चाहे तो अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट कर सकती है. इसके लिए उसे अपने पति या ससुरालवालों की सहमति की ज़रूरत नहीं है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत ये अधिकार दिया गया है कि एक महिला अपनी प्रेग्नेंसी को किसी भी समय ख़त्म कर सकती है. हालांकि, इसके लिए प्रेग्नेंसी 24 सप्ताह से कम होनी चाहिए. लेकिन स्पेशल केसेज़ में एक महिला अपने प्रेग्नेंसी को 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्ट करा सकती है.

6. स्त्री धन पर अधिकार

हिन्दू विवाह अधिनियम (हिंदू विवाह अधिनियम, 1955) के अनुसार शादी के वक्त महिलाओं को मिले जेवर और पैसों पर उसका हक होता है. भले ही पति या ससुराल वाले उसे अपनी कस्टडी में रखें, लेकिन उन्हें कहां और कैसे ख़र्च करना है, इसका अधिकार केवल इस उस स्त्री को होता है.

7. रिश्ते में प्रतिबद्धता का अधिकार

जब तक पति पत्नी से तलाक नहीं ले लेता, वह किसी और के साथ शादी या संबंध नहीं बना सकता है. ऐसा करने पर उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अंतर्गत एडल्ट्री के चार्ज लगेंगे. इस आधार पर महिला अपने पति से तलाक भी ले सकती है.

8. भरण-पोषण का अधिकार

हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधीनियनम, 1956 के सेक्शन 18 के अनुसार हिन्दू पत्नी, अपने जीवनकाल में अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी. सेक्शन 25 के अंतर्गत तलाक के बाद भी वह एलिमनी की हकदार होगी.

बच्चे की कस्टडी का अधिकार अगर पति और पत्नी अलग-अलग रह रहे हों तो नाबालिग बच्चे की कस्टडी का अधिकार मां को होता है. अगर महिला के पास आय का कोई स्रोत नहीं है, तो बच्चे की परवरिश का खर्च पिता को उठाना होगा.

9. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार

महिलाओं की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत हर महिला को यह अधिकार दिया गया है कि अगर उसके साथ पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, इमोशनल, सेक्सुअल या फाइनेंशियल किसी भी तरह का अत्याचार करते हैं या शोषण करते हैं, तो पीड़िता उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है. इसके अंतर्गत महिला अपने पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर पुलिस में केस दर्ज कर सकती है.

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