पैसा ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर इससे जुड़े मसलों को यदि सही तरी़के से हैंडल न किया जाए, तो ये शादीशुदा ज़िंदगी में दरार भी डाल सकता है. आइए जानते हैं पैसों से जुड़े कौन-से मुद्दे बिगाड़ सकते हैं दांपत्य जीवन का संतुलन?
शादी के बाद ज़िंदगी में ढेर सारे बदलाव आते हैं. उन्हीं में से एक बदलाव पैसों से जुड़ा है. शादी के बाद पैसे खर्च करते समय पार्टनर के बारे में चाहकर या न चाहते हुए भी सोचना पड़ता है. जेब ज़्यादा ढीली न हो जाए इसे लेकर हमेशा अलर्ट रहना पड़ता है. पैसों से जुड़े लेन-देन के मामले में यदि कपल्स की सोच दो दिशाओं जैसी है, तो रिश्ते में तकरार बढ़ने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है.
स्वार्थी रवैया
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पैसों के मामले में ‘मैं या मेरा’ वाली सोच आपके रिश्ते के लिए सही नहीं है. आज के महंगाई के इस दौर में अच्छी लाइफस्टाइल मेंटेन करने के लिए पति-पत्नी दोनों का वर्किंग होना ज़रूरी है. ऐसे में घर की आर्थिक ज़िम्मेदारियां तो दोनों मिलकर उठाते हैं, मगर उसके बाद बचे पैसों को ख़र्च करने की आज़ादी दोनों को रहती है. ऐसा करना काफ़ी हद तक सही भी है क्योंकि सभी की अपनी ज़रूरतें होती हैं, लेकिन कई बार यही सोच रिश्ते में तनाव की वजह भी बन जाती है. जब पति या पत्नी परिवार के बारे में सोचना छोड़कर स़िर्फ और स़िर्फ अपने बारे में सोचने लगते हैं, तो उनका ये स्वार्थी रवैया रिश्तों में दूरियां पैदा कर देता है.
क्या करें?
ख़ुशहाल जिंदगी जीना चाहते हैं, तो आर्थिक ज़िम्मेदारियां बांटने के साथ ही पार्टनर और परिवार की ज़रूरतों का भी ख़्याल रखें. अपने ऊपर फिज़ूलख़र्च करने की बजाय सेविंग की आदत डालें. हर तरह के ख़र्च और सेविंग के बारे में एक-दूसरे से डिस्कस करें. इससे पैसों की बचत भी होगी और प्यार भी बढ़ता जाएगा.
उधार की आदत
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दोस्ती-यारी में उधार लेनदेन के चक्कर में न पड़ने में भी आपकी भलाई है. ये नियम पति-पत्नी दोनों पर लागू होता है. पार्टनर को बिना बताए चोरी-छुपे
किसी को न तो उधार दें और ना ही उधार लें.
क्या करें?
यदि आपको किसी दोस्त या रिश्तेदार की मदद ही करनी है तो पार्टनर से सलाह मशविरा करके ही
कोई फैसला करें. अपना घर लुटाकर दानवीर बनने की कोशिश कतई ना करें. इसी तरह यदि परिवार की किसी जरूरत को पूरा करने के लिए उधार लिया है, तो समय से चुकता करने की कोशिश करें, अन्यथा वह पार्टनर पर भी बोझ बन जाएगा. इस स्थिति में आपसी नाराज़गी बढ़ सकती है, जिससे आपके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है.
पैसे ख़र्च करने के तौर-तरी़के
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हर किसी का पैसों के प्रति नज़रिया अलग होता है. कोई सेविंग को तवज्जो देता है और पेंशन फंड या बैंक अकाउंट में पैसे जमा करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है. वहीं दूसरा पार्टनर मस्तमौला अंदाज़ में जीना चाहता है, उसे महंगी-महंगी चीजों की शॉपिंग करना, आउटिंग पर जाना पसंद होता है. दोनों पार्टनर का ये विरोधाभासी नज़रिया उनके रिश्ते के लिए परेशानी का सबब बन जाता है.
क्या करें?
एक-दूसरे को समझे और परिस्थितियों के हिसाब से ख़र्च करें. जहां जरूरी है वहां तो ख़र्च करना ही
होगा, लेकिन जब लगे कि किसी ख़र्च को कम किया जा सकता है, तो सेविंग करने में ही समझदारी है. ख़र्च और बचत में बैलेंस बनाकर साथ क़दम बढ़ाएं.
इगो क्लैश
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जब पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार की जगह अहंकार ले ले, तो रिश्ते में दूरियां आते देर नहीं लगती.आपसी समझदारी न होने पर यदि पति-पत्नी में से कोई एक वर्किंग है या फिर दोनों में से कोई एक (ज़्यादातर मामलों में यदि पत्नी की कमाई अधिक हो) ज़्यादा कमाता है, तो अक्सर उनके अहम् टकरा जाते हैं. इतना ही नहीं दोनों के परिवार की आर्थिक स्थिति में फ़र्क़ है, तो उनका स्टेट्स भी इगो क्लैश की वजह बन जाता है. ऐसी स्थिति में जो पार्टनर ज़्यादा कमाता है वही घर से जुड़ी हर बात में अपनी मर्ज़ी चलाना चाहता है. सब कुछ अपने हिसाब से करना चाहता और यही सोच पति-पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट घोल देती है.
क्या करें?
सफल शादीशुदा ज़िंदगी के लिए पति-पत्नी दोनों का एक-दूसरे को सहयोग करना और एक-दूसरे की इच्छाओं/भावनाओं का ख़्याल रखना ज़रूरी है. आप ज़्यादा कमाते हैं, तो घर में आपका रुतबा भी ज़्यादा होना चाहिए… अपनी ये सोच बदल दें क्योंकि घर में पति-पत्नी दोनों की अहमियत बराबर होती है.
पैसा और पैरेंटिंग
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इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए पैसा बहुत ज़रूरी है, मगर पैसों को अपने पैरेंट्स बनने की चाहत में रुकावट न बनने दें. आजकल ज़्यादातर कपल्स पैसा कमाया जाए या बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाई जाए? शादी के 4-5 साल तक इसी सवाल में उलझे रहते हैं, और जब वो बच्चा चाहते हैं, तो कभी उम्र, कभी तनाव और कभी कोई और रुकावट आ जाती है. बढ़ती महंगाई में बच्चे की परवरिश पर होने वाले ख़र्च के बारे में कपल्स ज़्यादा सोचने लगते हैं. इसलिए आपसी तनाव बढ़ता है. कई बार ऐसा भी होता है कि पति-पत्नी में से कोई एक बच्चा चाहता है, मगर दूसरा ख़र्च बढ़ने के डर से ऐसा नहीं चाहता, ऐसे में आपसी विवाद बढ़ जाता है.
क्या करें?
आजकल ज़्यादातर कपल्स 30 की उम्र के बाद शादी करते हैं, ऐसे में बच्चे के लिए 5-6 साल इंतज़ार करना सही नहीं है. यदि आप बच्चा चाहते हैं, तो सही उम्र में ही प्लानिंग कर लें. पैसे तो आप बाद में भी कमा सकते हैं. अपने माता-पिता बनने की इच्छा के आड़े पैसे को ना आने दें. आपसी सहमति और समझदारी से ही कोई भी फैसला करें.
मां-बाप और सास-ससुर का ख़र्च
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आमतौर पर पति-पत्नी के बीच में घर के बड़े बुजुर्गों पर होने वाले ख़र्च को लेकर भी तनातनी हो जाती है. पति को अपने माता-पिता का ख़र्च तो उठाना ही पड़ता है, कई बार पत्नी के माता-पिता के बारे में भी सोचना पड़ता है. दोनों के बारे में सोचना ज़रूरी है. क्योंकि बेटी का भी अपने पैरेंट्स के प्रति कुछ फ़र्ज़ होता है, मगर विवाद तब होता है जब पति को पत्नी के माता-पिता और पत्नी को अपने सास-ससुर का ख़र्च बोझ लगने लगे.
क्या करें?
दोनों को एक-दूसरे के पैरेंट्स की इज्ज़्त करनी चाहिए और उनका ख़्याल रखना चाहिए. यदि पत्नी भी वर्किंग है तो पैरेंट्स का ख़र्च उठाने में पति की मदद करनी चाहिए और हो सके तो फिज़ूलख़र्च में कटौती करें. यही बात पति पर भी लागू होती है. इस मामले में बेहद ज़रूरी है कि पति-पत्नी आपस में बात करके घर के बजट के हिसाब से अपने-अपने पैरेंट्स की ज़रूरते पूरी करें.
पैसे से जुड़ी हर बात शेयर न करना
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चोरी-छुपे ख़र्च करने की आदत हो तो उसे छोड़ दें. छुपकर शॉपिंग करना, किसी से उधार लेना या देना, बिना पार्टनर की जानकारी के बैंक एकाउंट खोलने जैसी चीज़े रिश्ते में अविश्वास पैदा कर देती है. ये सारी स्थितियां पति-पत्नी के साथ-साथ पूरे परिवार का माहौल भी ख़राब कर सकती हैं.
क्या करें?
छोटे-मोटे ख़र्च का हिसाब भले ही आप एक-दूसरे को न दें, मगर बड़े ख़र्च, इनवेस्टमेंट, उधार, लोन आदि के बारे में पार्टनर से खुलकर बात करें. इससे आपसी विश्वास और प्यार बढ़ेगा. साथ ही मुश्किल समय में आप एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं.