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बच्चों के दिमाग़ पर मोबाइल का दुष्प्रभाव (7 Harmful Effects Of Mobile On Children)

Harmful Effects Of Mobile On Children   कभी बच्चों को बहलाने के लिए तो कभी उनकी ज़िद्द के कारण पैरेंट्स उन्हें अपना मोबाइल थमा देते हैं, आजकल स्मार्टफोन तो बच्चों का खिलौना हो गया है, मगर क्या आप जानते हैं कि मोबाइल आपके बच्चे के दिमाग़ को कमज़ोर बना सकता है. मोबाइल के ज़्यादा इस्तेमाल का क्या होता है बच्चों के मस्तिष्क पर असर? जानने के लिए पढ़िए यह लेख. व्यवहार संबंधी समस्या यदि आपका बेटा/बेटी बाहर जाकर खेलने की बजाय मोबाइल पर गेम्स खेलने में बिज़ी रहते हैं, तो उन्हें बिहेवियरल प्रॉब्लम्स होने की संभावना उन बच्चों से ज़्यादा है, जो बाहर जाकर अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलते हैं. पल-पल मूड बदलना आजकल ज़्यादातर बच्चों को मूड स्विंग की समस्या रहती है. ये पल भर में ख़ुश, तो दूसरे ही पल चिड़चिड़े व मायूस हो जाते हैं. दरअसल, मूड स्विंग का एक बहुत बड़ा कारण मोबाइल का अधिक इस्तेमाल है. जो बच्चे स्मार्टफोन पर हमेशा अलग-अलग तरह की एप्लिकेशन ट्राई करने में बिज़ी रहते हैं, उन्हें इस तरह की समस्या ज़्यादा होती है. कमज़ोर याद्दाश्त मोबाइल फोन से निकलनेवाले रेडिएशन के कारण दिमाग़ की सोचने की क्षमता प्रभावित होती है. अतः जो बच्चे ज़्यादा देर तक मोबाइल पर बिज़ी रहते हैं उनकी याद्दाश्त कमज़ोर होने लगती है. यह भी पढ़े: कहीं बच्चों को संवेदनहीन तो नहीं बना रहा आपका व्यवहार?  लर्निंग डिसैब्लिटी दिनोंदिन हाईटेक होती टेक्नोलॉजी और उसकी आसान उपलब्धता के कारण बच्चों के पढ़ने का तरीक़ा भी बदल गया है. अब वे हमारी और आपकी तरह पढ़ने के लिए दिमाग़ ज़्यादा ख़र्च नहीं करते, क्योंकि इंटरनेट के कारण एक क्लिक पर ही उन्हें सारी जानकारी मिल जाती है, तो उन्हें कुछ भी याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती. मैथ्स के कठिन से कठिन सवाल को मोबाइल, जो अब मिनी कॉम्प्यूटर बन गया है कि मदद से सॉल्व कर देते हैं. अब उन्हें रफ पेपर पर गुणा-भाग करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसका नतीज़ा ये हो रहा है कि बच्चे नॉर्मल तरी़के से पढ़ना भूल गए हैं. साधारण-सी कैलकुलेशन भी वो बिना कैलकुलेटर के नहीं कर पाते. आक्रामक व्यवहार बच्चों के हाथ में मोबाइल होने के कारण उनका दिमाग़ 24/7 उसी में लगा रहता है. कभी गेम्स खेलने, कभी सोशल साइट्स, तो कभी कुछ सर्च करने में यानी उनके दिमाग़ को आराम नहीं मिल पाता. दिमाग़ को शांति व सुकून न मिल पाने के कारण उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है. कभी किसी के साथ साधारण बातचीत के दौरान भी वो उग्र व चिड़चिड़े हो जाते हैं. ऐसे बच्चे किसी दूसरे के साथ जल्दी घुलमिल नहीं पाते, दूसरों का साथ उन्हें असहज कर देता है. वो हमेशा अकेले रहना ही पसंद करते हैं. ध्यान केंद्रित नहीं कर पाना लगातार हानिकारक रेडिएशन के संपर्क में रहने के कारण दिमाग़ को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. दिमाग़ के सामान्य काम पर भी इसका असर पड़ता है. बच्चों के दिमाग़ में हमेशा मोबाइल ही घूमता रहता है, जैसे- फलां गेम में नेक्स्ट लेवल तक कैसे पहुंचा जाए? यदि सोशल साइट पर है, तो नया क्या अपडेट है? आदि. इस तरह की बातें दिमाग़ में घूमते रहने के कारण वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पातें. ज़ाहिर है ऐसे में उन्हें पैरेंट्स व टीचर से डांट सुननी पड़ती है. बार-बार घर व स्कूल में शर्मिंदा किए जाने के कारण वो धीरे-धीरे फ्रस्ट्रेट भी होने लगते हैं. यह भी पढ़े: क्या करें जब बच्चा पहली बार स्कूल जाए? काल्पनिक दुनिया में जीते हैं मोबाइल पर सोशल साइट्स की आसान उपलब्धता के कारण बच्चे आपसे नज़र बचाकर ज़्यादातर समय उसी पर व्यस्त रहते हैं. अपने रियल दोस्तों की बजाय वर्चुअल वर्ल्ड में दोस्त बनाते हैं और उसी आभासी दुनिया में खोए रहते हैं. बार-बार पैरेंट्स द्वारा मना करने के बाद भी उनकी नज़र बचाकर वो सोशल साइट्स पर बिज़ी हो जाते हैं. नतीजतन पढ़ाई और बाकी चीज़ों में वो पिछड़ते चले जाते हैं. आभासी दुनिया में खोए रहने के कारण उनकी सोशल लाइफ बिल्कुल ख़त्म हो जाती है, जो भविष्य में उनके लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता है.

- रुचि अलका

अधिक पैरेंटिंग टिप्स के लिए यहां क्लिक करेंः Parenting Guide

क्या आपका बच्चा भी झूठ बोलने लगा है? देखें वीडियो:
https://youtu.be/SdlNnzRXCoo

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