कभी घर, तो कभी ऑफिस का ग़ुस्सा बच्चों पर उतारने वाले अधिकांश पैरेंट्स को इस बात का एहसास तक नहीं होता कि ऐसा करके वो कितनी बड़ी ग़लती कर रहे हैं. बच्चों को ज़्यादा डांटने-मारने और ताने कसने से उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस कम हो जाता है. यदि आप अपने बच्चे की सही परवरिश करना चाहते हैं, तो किन बातों का ध्यान रखना है ज़रूरी? आइए, जानते हैं.
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि बच्चे कम्युनिकेशन के अधिकतर गुण घर से ही सीखते हैं. जो बच्चे बचपन में बेइ़ज़्ज़ती और आलोचना के शिकार होते हैं, बड़े होकर वे दूसरों के साथ भी वैसी ही नकारात्मक भाषा में बात करते हैं. उनके इस व्यवहार के कारण उन्हें जॉब में, पार्टनर व बच्चों के साथ सामंजस्य बिठाने में द़िक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है. कई बार तो पैरेंट्स जान भी नहीं पाते कि जाने-अनजाने वे अपने बच्चे की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं. बच्चों की सही परवरिश के लिए सभी पैरेंट्स को इन बातों का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए.
न करें परफेक्ट पैरेंट बनने की कोशिश
बच्चा बहुत कोशिश करके अपनी शर्ट के बटन लगाना सीखता है. वो सारे बटन लगाकर आपको दिखाता है. आप उसकी इस छोटी-सी क़ामयाबी से ख़ुश होते हैं और उसे शाबासी देते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कह देते हैं कि तुम्हें शर्ट को सही तरी़क़े से इन करना भी आना चाहिए. आपका यही लेकिन शब्द बच्चे का सारा उत्साह ठंडा कर देता है. बच्चे को परफेक्शनिस्ट बनाने की आपकी ये ख़्वाहिश उसके अंदर निराशा भर देती है. उसे लगता है कि वो आपकी आशाओं पर ख़रा नहीं उतर पा रहा है. ऐसे में आप जाने-अनजाने उसके आत्मविश्वास को कम कर देते हैं.
यूं करें हैंडल
बच्चे की भावना व क्षमताओं को समझने के लिए उसके साथ समय बिताना व डिस्कशन करना ज़रूरी है. बातों-बातों में आप बच्चे के मन को पढ़ सकते हैं. आपके पांच वर्ष के बच्चे द्वारा उसका बेड ठीक करने पर आप जब उसे शाबासी देते हैं, तो उसे अच्छा लगता है. साथ ही वह आगे उससे भी अच्छा काम करने की कोशिश करता है. अतः परफेक्शन की उम्मीद किए बिना बच्चे की उपलब्धियों को सराहें, जल्दी ही आपको पॉज़िटिव रिज़ल्ट मिलने लगेंगे.
मज़ाक न उड़ाएं
कई बार पैरेंट्स प्यार से पुचकारते हुए भी बच्चों के दिल को ठेस पहुंचाते हैं. अभिनव बचपन में चब्बी दिखता था और मुंडन से पहले उसके बाल भी काफ़ी घने और लंबे थे. उसकी मां लाड़ में आकर कई बार उसे लड़कियों वाले कपड़े पहना देती थी, जो उसे बिल्कुल पसंद नहीं आता था. बड़ा होने पर भी कई बार उसे चिढ़ाती कि ये तो हमारी गोलू-मोलू बिटिया है. इसका असर ये हुआ कि जब भी ताक़त या मर्दानगी की बात आती तो जाने-अनजाने अभिनव ख़ुद को दूसरे लड़कों से कमतर समझने लगता.
यूं करें हैंडल
मज़ाक में कही आपकी कौन-सी बातें बच्चे को अच्छी नहीं लगतीं या उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं, इसका ख़्याल रखें. बच्चे से बातों-बातों में पूछते रहें कि उसे आपकी या परिवार के किसी अन्य सदस्य की कौन-सी बात अच्छी नहीं लगती. यदि वह कुछ बताए, तो उसे ध्यान से सुनें और कोशिश करें कि आगे से उसके साथ ऐसा मज़ाक न किया जाए.
नज़रअंदाज़ न करें उनकी भावनाओं को
आपकी बेटी डांस कॉम्पटीशन में हिस्सा लेने के लिए बहुत दिनों से मेहनत कर रही है, लेकिन उसका सिलेक्शन नहीं हो पाता. जब वो ये बात आपको बताती है, तो आप उसका मन रखने के लिए कह देती हैं कि शायद दूसरी लड़कियों को इस डांस कॉम्पटीशन की ज़्यादा ज़रूरत थी. आपको लगता है कि आपका जवाब तर्क संगत है, लेकिन एक्सपर्ट्स आपकी बात से सहमत नहीं. इस तरह का जवाब सुनकर बेटी को लगेगा कि आपको उसकी भावनाओं की क़द्र नहीं और आगे से वह अपने मन की बात शायद आपके साथ शेयर न करे.
यूं करें हैंडल
आपको बेटी के दुख को समझते हुए उसका साथ देना चाहिए. आपको उससे कहना चाहिए कि आप उसकी तकलीफ़ समझ सकती हैं. जब हम किसी चीज़ के लिए बहुत मेहनत करते हैं और वो चीज़ हमें नहीं मिलती, तो बहुत दुख होता है. साथ ही उसे यह भी समझाएं कि कोई भी मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. इस साल न सही, अगले साल डांस कॉम्पटीशन में उसका चयन ज़रूर होगा.
न करें बहुत तारीफ़
आपकी बेटी दिखने में ठीक-ठाक है, फिर भी आप उससे कहते हैं कि वो दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत लड़की है. इसी तरह आपका बेटा पढ़ाई में एवरेज है, फिर भी आप उससे कहते हैं कि वो क्लास का सबसे बुद्धिमान और स्मार्ट बच्चा है. उस समय तो बच्चों को आपकी बातें बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन जब क्लासरूम में दूसरे बच्चे आपकी बेटी की मोटी नाक का मज़ाक उड़ाते हैं या टीचर द्वारा पूछे गए प्रश्न का ग़लत जवाब देने पर दूसरे बच्चे आपके बेटे पर हंसते हैं, तो उसका आप पर से विश्वास उठ जाता है. बच्चों को लगता है कि आप उन्हें ख़ुश करने के लिए हर बार झूठ बोलते हैं, इसलिए वे आपकी हर बात को ग़लत समझने लगते हैं.
यूं करें हैंडल
बच्चे का उत्साह बढ़ाना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा करते वक़्त हक़ीक़त को भूल जाना ठीक नहीं. यदि आप बच्चे के अच्छे गुणों के लिए उसकी तारीफ़ करते हैं, तो उसे उसकी कमियां बताना भी न भूलें. इससे उसका आप पर विश्वास बढ़ेगा और वह आपकी बताई बातों पर अमल कर अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश भी करेगा.
बच्चे को न कहें लूज़र
आप रोज़ शाम अपने बेटे को प्लेग्राउंड में ले जाती हैं, जहां उसके दोस्त रोज़ उसके साथ खेलते हैं. खेल के दौरान आप महसूस करती हैं कि आपका बच्चा लगभग हर खेल में अन्य बच्चों के मुक़ाबले पीछे रह जाता है. आप उसे प्रोत्साहित भी करती हैं, लेकिन इसका उसके खेल पर कोई असर नहीं पड़ता. आख़िरकार चिढ़कर आपने कई बार उसके लिए लूज़र (हारा हुआ इंसान) शब्द का इस्तेमाल भी किया है. आपने तो अपनी भड़ास बच्चे पर निकाल दी, लेकिन आप शायद ही अंदाज़ा लगा पाएं कि जब भी वह किसी काम में नाक़ामयाब होगा, तो उसे लगेगा कि उसके साथ तो ऐसा होना ही था, क्योंकि वो लूज़र है. वहीं जब कभी उसकी जीत होगी, तो इसका श्रेय भी वो ख़ुद को देने की बजाय अपनी क़िस्मत को देगा कि क़िस्मत ने उसे यह मौक़ा दिया है. आपका एक लूज़र शब्द उसके आत्मविश्वास को इस क़दर तोड़ सकता है कि उसका अपनी क़ाबिलीयत पर से भी विश्वास उठ जाएगा.
यूं करें हैंडल
आपका बच्चा यदि दूसरे बच्चों की तरह खेलकूद में ऐक्टिव नहीं है तो इस बात से परेशान न हों. उसकी अन्य ख़ूबियों को पहचानकर उनकी सराहना करें. यदि बच्चे के मन में यह भावना आती है कि वह दूसरे बच्चों की तरह अच्छा नहीं खेल पाता, तो उसे कोसने की बजाय समझाएं कि उसमें जो ख़ूबियां हैं, वो दूसरे बच्चों में नहीं हैं. यह भी बताएं कि हर इंसान में अलग-अलग ख़ूबियां होती हैं, जिन्हें निखारकर वह दूसरों से आगे निकल सकता है.
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झूठा डर न दिखाएं
आपकी पांच साल की बेटी खाना खाने में बहुत आनाकानी करती है, इसी तरह आपका आठ साल का बेटा होमवर्क करने में घंटों लगा देता है. जब स्थिति को हैंडल करना आपके वश में नहीं होता, तो आप डर के हथियार का सहारा लेती हैं. आप बेटी से कहती हैं कि यदि वो दस मिनट में खाना ख़त्म नहीं करेगी, तो आप उसे बहुत पीटेंगी. इसी तरह बेटे से कहती हैं कि यदि होमवर्क जल्दी ख़त्म नहीं हुआ, तो आप उसे खेलने नहीं जाने देंगी. कुछ दिनों तक तो बच्चों पर आपके डर का असर रहता है, लेकिन जल्दी ही वे समझ जाते हैं कि आप सिर्फ़ उन्हें डराती हैं, असल में आप ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली. आपकी समस्या वहीं की वहीं रह जाती है और बच्चे पहले से अधिक ज़िद्दी हो जाते हैं.
यूं करें हैंडल
बच्चों को सुधारने के लिए या उनसे कोई काम करवाने के लिए डराना या मारना-पीटना सही तरीक़ा नहीं है. इससे धीरे-धीरे बच्चों को डांट या मार खाने की आदत पड़ जाती है और उनका डर ख़त्म हो जाता है. आप बच्चों को सुधारने के लिए पॉज़िटिव तरीक़ों का प्रयोग कर सकती हैं. आप बेटी से कह सकती हैं कि यदि वो जल्दी खाना ख़त्म कर देगी, तो आप उसकी डॉल की ड्रेस पहनाने व उसे सजाने में उसकी मदद करेंगी. इसी तरह बेटे से कह सकती हैं कि होमवर्क जल्दी पूरा करने पर उसे आधे घंटे ज़्यादा खेलने का मौक़ा मिलेगा. आपके प्रोत्साहन से बच्चे जल्दी काम पूरा कर लेंगे और आपको तनाव भी नहीं झेलना पड़ेगा.
- रेषा गुप्ता
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