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10 बातें जो हर पिता को अपने बच्चों को सिखानी चाहिए (10 Things Every Father Should Teach His Kids)


 
अगर मां बच्चों की पहली पाठशाला होती है, तो यक़ीनन पिता यूनिवर्सिटी माने जाएंगे, क्योंकि जैसे संस्कार और परवरिश उन्हें बचपन में माता-पिता से मिलते हैं, वही उनकी पर्सनालिटी बन जाती है. अगर कोई आपके बच्चे को देखकर कहता है कि संस्कार उम्र से बड़े हैं इसके, तो समझ जाएं कि आपने उनकी सही परवरिश की है, लेकिन वहीं दूसरी ओर जब भी बच्चे कोई ग़लती करते हैं, तो समाज पिता की ओर यह कहकर उंगली उठाता है कि फलाने का बच्चा ऐसा है. ऐसा हमारे समाज में इसलिए होता है, क्योंकि ऐसी बहुत-सी बातें और संस्कार हैं, जो मां की तुलना में एक पिता अपने बच्चों को ज़्यादा अच्छे से सिखा पाते हैं. तो आइए जानते हैं, वो कौन-सी बातें या संस्कार हैं, जो हर पिता को अपने बच्चों को सिखाने चाहिए.


 
1. अनुशासित जीवनशैली
बच्चे अनुशासन अपने पिता से ही सीखते हैं, क्योंकि मां अपनी ममता के कारण अक्सर ज़्यादा सख़्ती नहीं बरत पातीं. एक पिता यह अच्छे से जानते हैं कि एक अच्छी और ख़ुशहाल ज़िंदगी के लिए जीवन में अनुशासन कितना ज़रूरी है. अनुशासन यानि कुछ ऐसी आदतें, जो आपके जीवन को आसान बनाती हैं और भीड़ में भी आपकी एक अलग पहचान बनती है. हर दिन सुबह समय से सोकर उठना, एक्सरसाइज़ करना, कहीं भी दिए गए समय से 10 मिनट पहले पहुंचना, रात को समय से सोना, एक समय में एक ही काम पर फोकस करना, अपनी चीज़ें ख़ुद समेटकर रखना, दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय अपने छोटे-मोटे काम ख़ुद करना जैसी आदतें हम पिता को देखकर ही सीखते हैं.
 
2. ग़लतियों से घबराएं नहीं
पिता होने के नाते बच्चों को बचपन से ही यह बात घुट्टी की तरह पिला दें कि जब आप कोई काम करते हैं, तो ग़लतियां होना लाज़मी है. ग़लती न हो जाए, इस डर को ख़ुद पर हावी न होने दें. लोगों में यह एक बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है कि ग़लती मान लेना शर्म की बात है. आपसे ग़लती हो गई, तो आप नाक़ामयाब हो गए, जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है. बच्चों को बचपन से ही सिखाएं कि अपनी ग़लती मान लेना बहुत बड़ी बहादुरी का काम है और जो ऐसा करता है, वह बहुत हिम्मती होता है. इसलिए कभी भी कुछ नया करने या सीखने से घबराएं नहीं. अपने बच्चों को स्पोर्ट्स में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि खेल जीत और हार दोनों को स्वीकारने की बहुत अच्छी आदत डालते हैं, जिससे हम ज़िंदगी में हार से घबराते नहीं.

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3. सेल्फ केयर और फिटनेस
मांएं अक्सर काम के चक्कर में अपनी हेल्थ को अनदेखा कर देती हैं, जबकि पिता ऐसा नहीं करते, इसलिए हेल्थ और सेल्फ केयर की सीख एक पिता ज़्यादा अच्छे से दे सकते हैं. सुबह उठकर सबसे पहले आधा घंटा अपने शरीर की मज़बूती के लिए देना, हर दिन वॉक पर जाना, अगर बाहर न जा सको, तो घर पर ही एक्सरसाइज़ करना, आउटडोर गेम्स के लिए बाहर भेजना, तबीयत ख़राब होने पर लापरवाही ना करना, हेयरकट और शेव करके ख़ुद को हमेशा प्रेज़ेंटेबल रखना, हेल्दी डायट लेना आदि. अगर आप ज़िंदगी की सभी ज़िम्मेदारियों के बावजूद अपने दोस्तों के साथ खेलने जाते हैं, उनके साथ क्वालिटी समय बिताते हैं, तो बच्चों को यह सीख मिलती है कि खेल स़िर्फ बचपन में मौज-मस्ती का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह हमें हमेशा सेहतमंद बनाए रखने का बेस्ट ऑप्शन है. बच्चों को फिज़िकल के साथ मेंटल और इमोशनल हेल्थ का ध्यान रखने के लिए ख़ुश रहना, ख़ुद को एंटरटेन करना आदि भी ज़रूर सिखाएं.
 
4. बचत और इंवेस्टमेंट

फाइनेंस एक ऐसा विषय है, जिसमें मांओं की विशेष रुचि नहीं होती, लेकिन पिताजी के लिए ये आकर्षण का विषय होता है. बचपन से ही बच्चों को न स़िर्फ बचत, बल्कि इंवेस्टमेंट के बारे में भी सिखाएं. पिग्गी बैंक में रखे पैसों को बैंक अकाउंट में रखना सिखाएं और पासबुक के ज़रिए उन्हें समझाएं कि कैसे उनके 100 रुपये पर 10 रुपए का ब्याज मिला और वही पैसा अगर इंवेस्ट करेंगे, तो 20 रुपये का फ़ायदा हो सकता है. बच्चों को अपने साथ बैंक लेकर जाएं, वहां उन्हें पासबुक की एंट्री करना, चेक भरकर जमा करना, एटीएम से पैसे निकालना आदि छोटी-छोटी चीज़ें सिखाएं. पोस्ट ऑफिस ले जाकर वहां की सुविधाओं के बारे में बताएं. ऐसा करने से बचपन से ही बच्चों का रुझान फाइनांस की ओर जाता है, जिससे उन्हें आगे चलकर इन्हें समझने में मुश्किलें नहीं आतीं.


 
5. कभी मेहनत से पीछे मत हटो
आजकल अक्सर लोग कहते हैं स्मार्ट वर्क करो, हार्ड वर्क नहीं, लेकिन वो भूल जाते हैं कि स्मार्ट वर्क को सीखने के लिए भी आपको मेहनत तो करनी ही पड़ती है. एक पिता यह बात बचपन से ही अपने बच्चों को सिखाए कि मेहनत का इस दुनिया में दूसरा कोई विकल्प नहीं है. पढ़ाई के लिए मेहनत करनी ही पड़ती है, चाहे खेल-कूद हो या फिर कोई नई कला सीखना, घर का कोई काम हो या फिर स्कूल-कॉलेज का कोई फंक्शन, मेहनत करने से कभी पीछे मत हटना. नौकरीपेशा पिता उदाहरण देकर समझा सकता है कि पूरे एक महीने मेहनत करने के बाद उन्हें तनख़्वाह मिलती है, तो बिज़नेस करनेवाला इसी को इस तरह कह सकता है कि जब आप ख़ुद के लिए काम करते हैं, तो समय और मेहनत नहीं देखते, आप अपने परिवार की ख़ुशियां देखते हैं कि कैसे आपकी मेहनत आपके परिवार के चेहरे पर मुस्कान लाती है और वो मुस्कान ही और मेहनत करने के लिए आपको प्रेरणा देती है.


6. बड़ों और महिलाओं की इज़्ज़त करना
ख़ासतौर से लड़के जिस तरह अपने पिता को परिवार की महिला सदस्यों जैसे पत्नी, मां, बहन और बेटी के साथ बर्ताव करते देखते हैं, वैसे ही संस्कार उनके भीतर भी आते हैं. अगर आप अपनी पत्नी के साथ हमेशा सम्मान से बात करते हैं, तो बच्चे भी वही सीखेंगे, लेकिन वहीं अगर आप अपनी पत्नी को बात-बात पर टोकेंगे, दूसरों के सामने मज़ाक उड़ाएंगे, तो वो भी बड़े होकर वही करेंगे, क्योंकि उन्हें लगेगा कि पार्टनर के साथ ऐसा करना ही नॉर्मल है. यह पूरी तरह पिता पर निर्भर करता है कि वो पड़ोसियों, रिश्तेदारों और समाज के बड़े-बुज़ुर्गों का किस तरह मान-सम्मान करते हैं, क्योंकि आपके बच्चे भी वही देखते हैं कि आप पैसे बचाने के चक्कर में रिश्तेदारों से दूर रहते हैं या घुल-मिलकर रहते हैं.
 
7. जो कहो उसे निभाओ -बी ए मैन ऑफ़ वर्ड्स
आपकी बातें आप पर लोगों का विश्वास बनाती भी हैं और बिगाड़ती भी हैं. आप अपनी कही बात को कितना निभाते हैं, आप अपने वादों कर कितने ख़रे उतरते हैं, ये बातें बच्चे आपको देखकर सीखते हैं. अगर आप घर बैठे फोन पर किसी से वादा करके उसे टकराने के लिए झूठ बोलेंगे कि आप बाज़ार में हैं या किसी और काम में उलझ गए या बीमारी का झूठा बहाना बनाते हैं, तो ध्यान रखें आपके बच्चे आपको देख और सुन रहे हैं. अपने बच्चों को सिखाएं कि अगर आप किसी से वादा करते हैं, तो उसे निभाएं और अगर नहीं निभा सकते, तो जो सच है वो बताएं, अलग-अलग बहाने बनाकर किसी व्यक्ति को अपने बारे में ग़लत राय कायम न करने दें. आपकी विश्वसनीयता आपके अपने हाथ में है.

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8. देना सीखें - देने की ख़ुशी ही अलग होती है
क्या आप जानते हैं कि आर्ट ऑफ़ लिविंग इज़ आर्ट ऑफ़ गिविंग. जब हमें कुछ मिलता है, तो हमें ख़ुशी मिलती है, लेकिन जब हम किसी को कुछ देते हैं, तो हमारी ख़ुशी कई गुना बढ़ जाती है. एक पिता को अपने बच्चों को यह बचपन से सिखाना चाहिए कि आप दूसरों को क्या दे सकते हो, वो देखो. आप अच्छे मार्क्स लाओगे, स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट करोगे, दूसरों से अच्छा व्यवहार करोगे, अपने भाई-बहनों के साथ चीज़ें शेयर करोगे, उनके बर्थडे को स्पेशल बनाओगे, पैरेंट्स के बर्थडे और एनिवर्सरी पर उन्हें स्पेशल फील कराओगे, तो आप पैरेंट्स को ख़ुशी दोगे. बच्चों को यह ज़रूर सिखाएं कि ख़ुशियां महंगे गिफ्ट ख़रीदने से नहीं, आपकी अच्छी भावना और कोशिश करने से मिलती हैं. एक ग्रीटिंग कार्ड, एक फूल, हाथ से बनाया कोई आर्ट वर्क, कोई डिश आदि आपकी अच्छी भावना दर्शाते हैं. घर के अलावा दोस्तों, रिश्तेदारों और ज़रूरतमंद को देने की आदत भी पिता ही सिखा सकते हैं, क्योंकि फाइनांस की ताक़त आपके पास होती है.
 
9. ना और हां कहने में हिचकिचाएं नहीं
ना और हां कहना तो हम तभी सीख जाते हैं, जब हम बोलना सीखते हैं, लेकिन ये कब कहना है और कब नहीं कहना है, यह सीखने में पूरी उम्र निकल जाती है. बहुत-से ऐसे लोग हैं, जिन्हें ना कहना आता ही नहीं और उसी का फ़ायदा लोग उठाते हैं. अगर बच्चे के दोस्त उसके भोलेपन का फ़ायदा उठाकर उसे बेवकूफ़ बना रहे हैं, तो उसे सही-ग़लत में फ़र्क करना सिखाएं, उसे यह बात समझाएं और ऐसे दोस्तों से दूरी बनाने के लिए कहें. ना कहने के साथ-साथ बच्चों को हां कहना सिखाएं, जैसे कि स्कूल में कोई नया प्रोजेक्ट शुरू हो रहा है, तो उसके लिए हां कहे, स्कूल किसी कॉम्पटीशन में हिस्सा ले रहा है, तो उसके लिए सबसे पहले हां कहें. बचपन में आपके द्वारा सिखाई गई ये आदत, उन्हें ज़िंदगी में सही निर्णय लेने में हमेशा मदद करेगी.


 
10. काम ज़रूरी है, पर परिवार सबसे पहले
आप अपने परिवार को कितना समय देते हैं, समय से घर आना, पूरे परिवार के साथ खाना खाना, बच्चों को घुमाने ले जाना, नई-नई जगह एक्सप्लोर करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना जैसी छोटी-छोटी बातें बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं. आप अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं, अपने काम को तवज्जो देते हैं, लेकिन काम के साथ-साथ परिवार को भी प्राथमिकता देते हैं, यह एक पिता ही अपने बच्चों को ज़्यादा अच्छे से सिखा सकता है, क्योंकि मां भले ही वर्किंग होगी, उसके लिए तो परिवार ही हमेशा प्राथमिक होता है, लेकिन पिता की प्राथमिकता बच्चों में सही संस्कार डालती हैं.
- दिनेश सिंह
 
  

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